------------ जंगल ( देश के दुश्मन ) बहुत लापरवाह इंसान कभी कभी खता खा लेता हैं।
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कसौली तक का सफर.... घूमने वाला खतरनाक सफर था। अजनबी अब निज़ाम के पास बैठा पीछे सिगरेट फुक रहा था, शीशा कार का नीचे किया हुआ था। सारा धुआँ पीछे ही आ रहा था। सब ने आपीती की थी। पर उसका कोई फायदा नहीं था।
पहाड़ी सफर कहा खत्म होने वाला था।
कसौली आने पर एक पेट्रोप्प पे कार लगा दी थी। तेल भरवा कर, कार को थोड़ा सा एक ग्राड मे ले आये थे, शायद वहा कोई नहीं था। अजनबी की शक्ल एक दम स्पाट थी, कोई दाढ़ी मुश नहीं, बाते एक दम से साफ चेहरे की तरा थी। " उसने कहा फिर से, कोई बचकानी हरकत मौत को दावत होंगी। " वो कहने बाद मुखफ़ित हुआ, निज़ाम की और ---- " बारखुरदार बताओ, किधर जाना हैं, कितनी दूर कया हैं। "
-----" निज़ाम ने एक कच्ची पेन्सिल से नक्शा निकाल के आगे बड़ा दिया, इससे और जयादा मै कुछ नहीं जानता। " निज़ाम ने आँखो मे आखें डाल के कहा।
वो नक्शा अजनबी ने बाहर निकल क़र देखा... " कब बनाया। " राहुल ने उसका प्रश्न कर दिया।
"उननो ने दिया। " चुप था निज़ाम, " अजनबी ने पूछा, " तुम मेरे लाग कोट की तरफ मत देखो, मैं कौन हू, मै जो भी हू, बहुत खतरनाक हू, " एक सवाल का उतर दयो। " अजनबी ने दात भींचते हुए कहा।
"कया उतर दू। "----- निजाम ने जैसे मुश्किल से कहा।
" राहुल का आगे का केबिन और कया कया उड़ा कर आये हो, जेटल मैन। "
"तुम्हारी बेबसी, उस विचारे को बता तो देते। " राहुल ये सुन कर हका बका रह गया था। चुप एक सनाटा।
वो उच्ची उच्ची रोने लगा..." मैंने कुछ भी जानबूझ के नहीं किया, जनाब " चुप एक भ्र्म था। "बहुत खूब --" अजनबी ने कहा।
" तुमने वास्तव का नुकसान किया हैं, भरो गे, जरूर। "
अजनबी ने कहा। फिर वो डुस्क पड़ा... धीरे धीरे कबूल किया उसने जुर्म। "---पर बेबसी मे जुर्म नहीं होता, जनाब " अजनबी हसा उच्ची आवाज मे, " सुने हम भी कया होता हैं। " निज़ाम बहुत कठिन शकजे मे फ़स गया था। " जुर्म ही होता हैं... सर। " फिर वो चारो चुप हो गए। एक स्नाटा छा गया था।
" तुमने किसने कहा था, माया रहुल के वरखिलाफ हैं... बोलो निज़ाम ये उतर दो, ज़िन्दगी की कश्मक्ष से ज़िन्दगी खाली हो जाएगी... " अजनबी ने जोर देकर एक एक अल्फाज़ को कहा।
" सच बोलता हू, जनाब.... रीना कोई हैं, उसने मुझे कहा था, सच मे सर, और कुछ नहीं जानता , मै। " निज़ाम आगे आगे पोथी खोल रहा था, इतने पक्के टारगेट मे शामिल था, पर कयो। "
अजनबी बोला, " जानता हू, तुम मुलमान मे एक हिन्दू सस्कार लिए हो, हम सब आपकी इज़जत करते हैं, हिदुस्थान तुम्हे बेहद प्यारा हैं, और मुझे तुम बेहद प्यारे हो। " अजनबी ने बढ़े सेहज ढंग से कहाः।
अब जो हो गया हैं, सो हो गया, निज़ाम, " अब हमको कोई गलत इनफार्मेशन दी, तो समझ सकते हो, क़ानून हम सूली पे टांग दे। "
ये जैसे उनका हुक्म था, और बाकी वास्तव को उसने कहा था, " हम हर्जाना भी इससे वसूल लेगे, बरखुरदार... ये मित्र हैं, और मित्र ही रहेगा। "
सब चुप थे, एक सनाटा जो सब का पीछा कर रहा था।
(चलदा )--------------------------- नीरज शर्मा