( देश के दुश्मन )
जंगल के उपन्यास की कड़ी देश के दुश्मन आगे चलते वक़्त आप का धयान निज़ाम पे ले जाता हू। निज़ाम एक बेहद ही हिंदुस्तान को प्यार करने वाला शक्श हैं, जिसकी जिंदगी सिमट चुकी थी, शिमले की सकरी उची नीची गलियों मे, वो पक्का निमाजी था, पर असूल उसके आपने ही थे, उन लोगों को वो खत्म कर देना चाहता था, जो हिंदुस्तान का खा कर सबसे जयादा हराम करते थे। उनमे से उसका चाचा भी था। आखिर उसके रोकने पर भी वो कयो नहीं रुका था, जाली करसी को बनाने मे, कयो उसने ऐसा किया था.. अब सब उलट गया तो उसे इधर भेज दिया।
चलो छोड़ो, बात करे ! राहुल बेवाक ये सोच रहा था। अब किया कैसे जाये। वो तो निशांची था, पर वास्तव दिमागी था...
उसने एक बड़ा सा रुका लिखा, और वास्तव को बाते करने को छोड़ कर चला गया... लेकिन वास्तव को थोड़ा टाइम देकर चला गया।
फिर वो आ गया थोड़ी देर मे ।
तभी तीनो एक कार से निकल गए। कार वास्तव चला रहा था। वो दोनों पीछे बैठे थे। उसने टी शॉप पे रुकने के लिए कहा था। राहुल ने कहा, मै कॉफी का रेजमेंट करके आता हू... " भाई आगे बैठ जाऊ। " वास्तव ने कहा " निज़ाम तुम यही बैठे हो, बैठे रहो... तभी राहुल आ कर पिछली सीट पे बैठ गया था। निज़ाम ने कहा " चाये स्टाल से रुकने का मतलब नहीं समझा। " राहुल ने कहा... " कुछ समान ले ले। " समय देखा " गयारा वज गए थे। " अभी रुकना होगा। तभी दूर से एक आदमी निज़ाम और वास्तव के लिए अजनबी था, शीशे पे टिक्कके किया... दरवाजा खुला.. बैठ गया।
" कौन हो भाई "---- वास्तव ने पूछा।
"बताना जरूरी नहीं, चलो.... जिस और चले हो।" उसने टपाक से जवाब दिया। " पुछ सकता हू ये साथ वाला कौन हैं "
------" मैं निज़ाम हू जी "
" आप की तफरीश कया हैं जी "
" मेरी तुम से भी भयकर तफरीश हैं " साथ मे रिवाल्वर निका लता हुआ बोला।
"ओह " राहुल ने एक्टिंग की।
"हम किडनेप हो गए हैं। " वास्तव ने कहा... और थूक गले से उतारा।
तुम मेरे साथ तीनो उतरो... जल्दी...
निज़ाम ने कहा कयो मगर....
बाद मे देखना। वास्तव, राहुल, वो अजनबी... निज़ाम बैठा रहा..." उतरो निज़ाम..." राहुल ने कहा। वो जल्दी से उतर गया और सुनसान जगह पे एक तेज धमाका हुआ।
निज़ाम की अटी बटी फुस हो गयी थी। चारो को यकीन बड़ा कठन था...
अजनबी ने कहा " निज़ाम जो कपड़े मैंने तुझे बैग मे दिए हैं हमारे सामने डालो। "
जैसे हुक्म हुआ, उसने वैसा ही किया... पीली टी शर्ट और लेक्सी पजामा जो चमड़ी से चिपक गया था... " ये कया हुआ " निज़ाम ने कहा।
" ये लाजमी था, धमाका.... हम चारो मर गए.... उनकी निगाह मे, जो हमारा पीछा कर रहे हैं... यहाँ से भागो... नीचे उत्तराई मे.... भागो.... बहुत भागे... और सभल कर खायी से निकल कर एक बूल्ट प्रूफ गाड़ी मे बैठ गए... जो ड्राइवर था... वो जा चूका था।
" चोरी की गाड़ी " हाफ्ते हुए वास्तव ने कहा।
"बिलकुल लेकिन सेफ हैं " उस अजनबी ने तारो से स्टार्ट की... और चल पड़ी.... " अब मरेंगे... पक्का। " निज़ाम ने मुँह खोला... लेकिन डर रहा था। " देखा जायेगा... "राहुल अजनबी के साथ मुस्करा रहा था, अजनबी कह रहा था," कोई बचकानी हरकत जान से जाओगे। " सब चुप थे।
(चलदा ) नीरज शर्मा