Donor Girl - 2 in Hindi Fiction Stories by S Sinha books and stories PDF | डोनर गर्ल - 2

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डोनर गर्ल - 2

                                                                                डोनर गर्ल 


भाग 2  - यह कहानी एक ऐसी लड़की की  है जिसके जन्म के समय का फ्रोजेन स्टेम सेल आगे चल कर किसी व्यक्ति की जान बचाता है  . अब तक आपने पढ़ा कि प्रेम और सोफ़िया दोनों अमेरिका से इंडिया आये  . सोफिया ने एक बच्ची जूली को जन्म दिया , अब आगे पढ़ें  …  


करीब दो महीने  के बाद सोफिया भी अपने काम पर जाने लगी  . जूली की देखभाल के  लिए एक फुल टाइम आया थी , मारिया  . कुछ दिनों बाद सोफिया को अमेरिका के  पुराने रिश्तेदारों के पत्र मिले  . सोफिया बचपन में उनके यहाँ रह कर पली थी   . उन्होंने इस साल थैंक्स गिविंग पर सोफिया को सपरिवार अमेरिका आने का निमंत्रण दिया था  . हालांकि सोफिया का जन्म एक ईसाई परिवार में हुआ था पर वह अपनी याद में कभी चर्च नहीं गयी थी न ही कभी इसके लिए उसके मन में कोई  रूचि थी  . भारत में वह एक आम भारतीय की तरह रहती थी और अपने समाज के सभी त्योहारों में बढ़ चढ़ कर भाग लेती थी  . 


अपने रिश्तेदारों के पत्र दिखाते हुए सोफिया ने प्रेम से कहा  “ क्या इस बार थैंक्स गिविंग पर हमलोग अमेरिका चल सकते हैं ? “


“ हाँ , क्यों नहीं ? मुझे भी टर्की खाये बहुत दिन हो गए  . अभी तो एक महीना से ज्यादा दिन बाकी हैं , तुम तैयारी शुरू कर दो  . जूली के लिए पर्याप्त गर्म कपड़े लेने होंगे  . मैं टिकट बुक कर लेता हूँ  . “ 


नवंबर के दूसरे सप्ताह में प्रेम और सोफिया बेटी के  साथ अमेरिका की फ्लाइट पकड़ने  के लिए पुणे से मुंबई जा रहे थे  . प्रेम और सोफिया दोनों आगे की  सीट पर थे , एस यू वी प्रेम खुद ड्राइव कर रहा था  . पीछे की सीट पर आया मारिया और जूली थी और सबसे पीछे उनका ड्राइवर बैठा था  . उन्हें एयरपोर्ट ड्रॉप कर मारिया  और ड्राइवर को पुणे लौटना था  . अभी वे आधे रास्ते भी नहीं गए थे कि उनकी गाड़ी का एक्सीडेंट हुआ  . प्रेम और सोफिया दोनों की मौत घटनास्थल पर ही हो गयी  . पीछे बैठे लोगों को कोई ख़ास चोट नहीं आयी थी  . जूली बहुत डर गयी थी इसलिए रोये जा रही थी  . जूली बेबी सीट में बैठी थी , उसे कोई चोट नहीं आयी थी  . 


यहाँ प्रेम या सोफिया का अपना कहने वाला कोई नहीं था  . वैसे भी  ईसाई से शादी करने के चलते प्रेम के  पिता ने उस से सारे रिश्ते तोड़ लिए थे  . .   उसकी एक छोटी बहन थी जो एक या दो बार उस से मिलने पुणे आयी थी  . मारिया उसे जानती थी  . उसने प्रेम की बहन को इस घटना के बारे में फोन कर के कहा  . वह इंदौर में रहती थी  . यह सुन कर प्रेम की बहन अपने पति के साथ आयी  . प्रेम का अंतिम संस्कार उन्होंने किया  . सोफिया के अंतिम संस्कार की व्यवस्था लोकल चर्च ने किया  . सभी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद अब जूली के भविष्य का सवाल था  . सोफिया के किसी अमेरिकी रिश्तेदार का पता यहाँ किसी को नहीं था  . प्रेम की बहन ने पति से कहा 

“ क्यों न जूली को हमलोग अपने साथ ले चलें ? “


उसके पति ने उत्तर दिया “ तुम अच्छी तरह जानती हो  मेरे माता पिता ने कितनी मुश्किल से तुम्हें स्वीकार किया है  . हम ब्राह्मण हैं  और तुम एक बैकवर्ड  . मैंने तो तुमसे प्यार किया था , मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं था  . पर मम्मी पापा को मैंने किस तरह मनाया है तुम अच्छी तरह से जानती हो  . अब इस ईसाई बेबी को वो किसी कीमत पर घर में रखने के लिए  तैयार नहीं होंगे   . “ 


मारिया एक आदिवासी विधवा क्रिस्चियन थी  . उसने कहा “ अगर आपको कोई आपत्ति न हो तब मैं इसे कुछ दिनों तक रख सकती हूँ  . मैं अकेली ही रहती हूँ  , मुझे जूली को ले कर ख़ुशी होगी  . बाद में आपका परिवार अगर जूली को  ले जाना चाहे तो ले जा सकता है  . “


“ कुछ दिनों तक नहीं , तुम चाहो तो इसे हमेशा के लिए रख सकती हो  . हम इसे नहीं रखने वाले हैं  . “  प्रेम के बहनोई ने कहा 


“  ठीक है , मैं तो इसे गॉड का वरदान समझूंगी  . आपलोग जो कानूनी प्रक्रिया जरूरी हो , उसे करवा दें ताकि भविष्य में कोई प्रॉब्लम न हो . कुछ औपचारिकताओं के बाद मारिया को जूली की कानूनी कस्टडी सशर्त मिल गयी   . शर्त्तें थीं कि अगर प्रेम या सोफिया का कोई संबंधी कोर्ट से आर्डर ले कर जूली की कस्टडी लेने आएगा तब  मारिया  जूली की कस्टोडियन नहीं रहेगी  . इसके अतिरिक्त जब जूली 18 वर्ष की हो जाएगी तब वह जहाँ चाहे वहां रह सकती है , उसका अपना निर्णय अंतिम होगा  . 


जूली मारिया के संरक्षण में पलने लगी  . जूली उसे ऑन्टी कहा करती  थी  . मारिया का अपना घर था  . साल दर  साल बीतते गए , समय हाथ में रखे पानी की तरह रिसता रहा  . जूली 17  वर्ष की हो  गयी थी  .  अमेरिका के एक युवा पायलट ओलिवर को ब्लड कैंसर के लिए बोन मैरो की शीघ्र ही आवश्यकता थी  . डॉक्टर के अनुसार अगर छह महीने के अंदर उसे बोन मैरो नहीं मिला तब उसकी जान बचाना असंभव था    . अमेरिका के स्टेम सेल रजिस्ट्री संस्था दुनिया के WMDA ( वर्ल्ड मैरो डोनर एसोसिएशन ) के सहयोग से अनेक स्टेम सेल रजिस्ट्री संस्थाओं के संपर्क में आयी   . इनमें भारत की चेन्नई स्थित संस्था भी थी  . इनके वेब साइट पर डोनर के जेनेटिक टाइपिंग ( HLA typing ) अवेलेबल  होते हैं   . डोनर और  रोगी दोनों का HLA मिलाया जाता है  . जिस डोनर का HLA सबसे ज्यादा मैच करता है उसका स्टेम सेल रोगी को दिया जाता है  . 


अमेरिका में ओलिवर वेटिंग लिस्ट पर था और उसके मैच का HLA नहीं मिल रहा था  .फिलहाल वह प्लेन के  पायलट के योग्य नहीं था और लंबी  छुट्टी पर था  .  भारत की संस्था में एक डोनर का HLA ओलिवर के HLA से  बहुत  करीब मिल रहा था  . भारत और अमेरिका दोनों जगह के डॉक्टर हैरान थे क्योंकि आमतौर पर निकट संबंधियों के ही HLA मिलते हैं और दूसरी नस्ल ( race ) में तो ऐसा विरले ही संभव था   . बाद में सोफिया की माँ के अमेरिकी मूल के बारे में जान कर उन्हें लगा कि तभी HLA मैच  हुआ था   . खैर कुछ कानूनी प्रक्रिया के बाद जल्द ही ओलिवर के लिए स्टेम सेल भेजने का प्रबंध किया गया  . इस के  लिए एक ट्रेंड टेक्नीशियन को फ्लाइट से जाना था  .  इसके लिए अमेरिका से टेक्नीशियन आया जो एक भारतीय मूल का अमेरिकी नागरिक था  .  उसके पास OCI कार्ड था इसलिए उसे किसी वीजा की जरूरत नहीं थी  . स्टेम सेल या बोन मेरो ट्रांसपोर्ट करने के लिए  एक खास बॉक्स क्रेडो आया जिसका तापमान 2 - 8 डिग्री C के अंदर मेंटेन कर रखना था    . इसके अलावा  इसे 100 घंटों के अंदर अपने गंतव्य पर सुरक्षित पहुंचाना जरूरी था . ट्रेंड आदमी फ्लाइट में हैंड लगेज में इसे कैरी कर अपने साथ ले गया  . प्रोटोकॉल के अनुसार  क्रेडो के अंदर का तापमान हर 15 मिनट पर रिकॉर्ड करना पड़ता था  . 


ओलिवर का  समय रहते बोन मैरो का सफलतापूर्वक ट्रांसप्लांट किया गया   . फिर भी स्वास्त्य नियम के अनुसार उसे उड़ान भरने की अनुमति एक साल बाद ही मिली  . ओलिवर .मन ही मन अपने बोन मैरो डोनर के प्रति कृतज्ञ था  . वह  उस से मिल कर आभार प्रकट करना चाहता था पर कानून इसकी इजाजत नहीं देता था . एक साल के बाद ही वह डोनर से सम्पर्क कर सकता था , वह भी डोनर की मंजूरी के बाद और सिर्फ दोनों  लिखित नोट आदान प्रदान कर सकते थे डोनर रजिस्ट्री संस्था के माध्यम से  . ओलिवर को डोनर का पता लगाने में एक साल और लग गया  .  वह उस से निजी तौर पर मिल कर  थैंक्स कहना चाहता था  .  डोनर जूली थी जिसे खुद इसके बारे में पता नहीं था  . मारिया ने जूली के कस्टोडियन होने के कारण  और मानवता के नाते डोनेशन की मंजूरी दे दी थी   . बाद में उसने जूली को भी यह बात बता दी थी  . जूली को यह सुन कर ख़ुशी हुई कि उसके बचपन का स्टेम सेल किसी के लिए संजीवनी बना  . 


कॉलेज की पढ़ाई के दौरान जूली को एक लड़के से प्यार हुआ  पर एक साल के अंदर ही ब्रेकअप हो गया था  . वह बहुत दुखी हुई  . जूली ने आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका जाने के लिए कहा  . जूली वैसे भी ब्रेकअप के बाद इस माहौल  से दूर जाना चाहती थी  . जूली एम एस करने अमेरिका गयी  . उधर ओलिवर अपनी  हर फ्लाइट पर पैसेंजर लिस्ट खुद चेक करता था  कि शायद कहीं एक दिन उसकी  डोनर मिल जाये  . आठ साल हो गए पर ओलिवर को डोनर से आमना सामना नहीं हो सका था  .  


आखिर एक दिन आया जिस दिन ओलिवर का इंतजार समाप्त होने जा रहा था , वह जल्द ही अपने डोनर से मिलने जा रहा था  . जब उसने कॉकपिट में पैसेंजर लिस्ट मंगवा कर चेक किया तो उसके चेहरे पर खुशियों की लहर दौड़ने लगी  . उसने लिस्ट में जूली सैनी  का नाम देखा , जूली इकॉनमी क्लास में 21 A सीट पर थी  . वह दौड़ कर जूली से मिलने जाना चाहता था पर प्रोटोकॉल उसे इसकी इजाजत नहीं दे रहा था  . उसके को - पायलट ( सह पायलट ) ने पूछा “ सर , क्या बात है ? एक सेकंड पहले आप बहुत खुश थे पर तुरंत परेशान दिख रहे हैं  . “ 


ओलिवर ने अपने मन की बात को - पायलट को बताई तो वह भी बहुत खुश हुआ और बोला “ इसमें परेशानी की क्या बात है ? टेक ऑफ के बाद जब हम क्रूज लेवल पर आ जाएँ तब आप कमांड मुझे दे कर उस से मिल सकते हैं  . प्रोटोकॉल इसकी इजाजत देता है  .  इट इज सो इजी , रिलैक्स  . “ 


क्रमशः अंतिम भाग 3 में