प्रयाग यात्रा - 4 पौराणिक और प्राचीन महत्व (।।)
कहा जाता हैं, माघ महीने में यहाँ सब तीर्थों का वास रहता है, अत: इस महीने में यहाँ वास करने का बहुत फल लिखा है, पर यहाँ बैलगाड़ी पर सवार होकर नहीं जाना चाहिए।
प्रयाग को ‘तीर्थराज’ कहा गया है, अर्थात पग यात्रा करके यहाँ त्रिवेणी में स्नान करने का विशेष माहात्म्य है, जिसमें गंगा, यमुना तथा सरस्वती का संगम होता है।
बुद्ध साहित्य में भी प्रयाग का किसी बड़े नगर के रूप में वर्णन किया गया था, वरन् बुद्ध काल में वत्सदेश (16 महा जनपदों मे से एक) की राजधानी के रूप में कौशांबी(प्रयाग) अधिक चर्चित है ।
वर्तमान मे कौशाम्बी एक जनपद है किन्तु पूर्व मे यह प्रयाग के अंतर्गत आता था।
वर्तमान कौशाम्बी जिला 4 अप्रैल 1997 को प्रयागराज (इलाहाबाद) जिले से बना था। जिला मुख्यालय, मंझनपुर यमुना नदी के उत्तर तट पर इलाहाबाद के दक्षिण-पश्चिम में इलाहाबाद से लगभग 55 किमी दूर स्थित है।
यह दक्षिण में चित्रकूट, उत्तर में प्रतापगढ़, पश्चिम में फतेहपुर और पूर्व में इलाहाबाद से घिरा हुआ है।
हालांकि, इस जिले के कब्जे वाले इलाके में बहुत गौरवशाली अतीत है।
प्राचीन भारत में, ईसा मसीह के जन्म के सैकड़ों वर्ष पहले, कौशाम्बी, छेदी-वत्स जनपद की राजधानी थी, एक प्रमुख जनपद जिनमें भारत-आर्य लोगों का विभाजन हुआ था, में से एक था।
जैसा कि इनमें से कुछ जनपद ब्राह्मणों और उपनिवासों में प्रमुखता से आते हैं, यह संभव नहीं है कि कौशाम्बी की पुरातनता ब्राह्मणों की अवधि में वापस जाती है। सतपथ ब्राह्मण का कहना है कि कौशाम्बी नामक एक व्यक्ति का जन्म कौशाम्बी में हुआ था।
महाभारत और रामायण द्वारा इस शहर में प्राचीन काल की पुष्टि की गई है, जो कुसाम्बा को तीसरा बेटा, कुशी राजा उपरिका वासु के तीसरा बेटा और कुसाम के पुत्र कुसाबा के लिए अपनी नींव बता रहा है।
महान सम्राट अशोक ने प्रतिष्ठित प्रयाग-स्तंभ कौशांबी में स्थापित किया था। बाद में मुगल बादशाह के समय में इसे कौशांबी से प्रयाग मे स्थापित किया गया था।
प्रयाग-स्तंभ पर महराज समुद्रगुप्त की चर्चित प्रयाग-प्रशति अंकित है।
कालिदास ने ' रघुवंश ' के 13वें सर्ग में गंगा-यमुना के संगम का मनोहारी वर्णन किया है। (श्लोक 54 से 57 तक)
(वत्स देश का उल्लेख महाजनपदों मे भी है जिसे आगे की श्रृंखलाओं मे प्रस्तुत करूंगा)
वत्स का राजा उदयन जो प्राचीन काल से प्रतिष्ठित है, उदयन चंद्रवंश से ही संबंधित है-इससे भी प्रयाग में चंद्रवंश की स्थिति ऐसी है जो वास्तव में प्रयाग की प्राचीनता है।
बौद्ध काल में प्रयाग में बहुत से विहार तथा मठ बने थे। यहाँ का ‘अक्षयवट’ बहुत प्राचीन काल से प्रसिद्ध है। इस तीर्थ के उत्तर में प्रतिष्ठान के रूप में रक्षक ब्रह्मा, वेणिमाधव के रूप में विष्णु तथा अक्षयवट के रूप में शिव रक्षक एवं पाप निवारक हैं ।
प्रयाग के प्राचीन पौराणिक साक्ष्य के बारे मे बात हो रही है और श्रृंगवेरपुर की चर्चा ना हो, यह प्रयाग के साथ अन्याय होगा।
श्रृंगवेरपुर का उल्लेख हिंदू महाकाव्य रामायण में निषादराज के शाही राज्य की राजधानी या 'मछुआरों के राजा' के रूप में मिलता है।
प्रयाग के सुंदर स्थान पर स्थित प्रयागराज शहर से लगभग 40 किमी दूर स्थित श्रृंगवेरपुर का अनोखा गांव है।
पौराणिक कथा के अनुसार, इस श्रृंगवेरपुर गांव का नाम श्रृंगी ऋषि के नाम पर पड़ा था।
क्रमशः