Jungle - 30 in Hindi Thriller by Neeraj Sharma books and stories PDF | जंगल - भाग 30

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जंगल - भाग 30

                    (  देश के दुश्मन )

                           जंगल की कड़ी से जुड़ा ये उपन्यास, तब गंभीर हो गया, ज़ब राहुल ने पूछा " निज़ाम तुम आपना समझ के आये हो, पर जहा तक आये कैसे ? " वास्तव पास बैठा सुन रहा था.. उनकी वार्ता।

निज़ाम ने कहा, " राहुल आपको मैंने आपना भाई समझा हैं, इस लिए ही आया हू, अकेला.... हा एक टकला हैं , कोई माया भी होंगी, उसने  यही का अड्रेस दिया, पर साथ कोई नहीं आया। " ये सुन कर राहुल गंभीर हो गया था, " तुम उनके पास कैसे पहुंच गए। " निज़ाम  ने रुक कर कहा था, " सच्ची बात बताऊ, टकला और माया ने आपके साथ किया हैं, पता नहीं कयो... " वो चुप था। राहुल सोचने लगा, " पर ये ऐसा कयो करेंगे मेरे से, वास्तव  तो कई रातो का जैसे उनिदा सोने लगा था। " 

                     वास्तव आखें खोलो, उसने कंधे पे थपकी दी... और सारी बात बताई राहुल ने, उसकी जैसे नींद छू मत्र हो गयी थी। " निज़ाम ओ निज़ाम मिया " चुप सा कर गया था राहुल।

                        अगला प्रश्न वास्तव का था, " बच्चे कहा हैं, और कैसे हैं। " निज़ाम थोड़ा सहम गया... इतना पता हैं, वो शिमला मे ही हैं, एक फार्म हैं घोड़ो का... वीरान हैं शायद अब, वही हैं ----" रुक के बोला, " जिनके पास आप गए थे, वो मेरे अबा नहीं, चाचा जी हैं, वो भी ज़िन्दगी की बाज़ी पे लगे हुये हैं। " राहुल एक दम से चकरा सा गया। 

                          राहुल ने वास्तव को पेग बनाने को कहा, " निज़ाम पीते हो... डरो नहीं, हम हिंदुस्तानी हैं, कोई वैर नहीं करते, पियो हमारे साथ... " राहुल ने सोचते हुए कहा। " देखो मै सच्चा मुस्लिम हू, अल्ला ताला को मानने वाला, मै पीता नहीं, कभी पी नहीं... कारसाज कया सोचेगा। "  निज़ाम ने आपनी टोपी पे हाथ रखते हुए कहा। वास्तव तीन पेग बना लाया।

                        "अब चाचा बारे जानकारी पूरी देना, सच्ची "  राहुल ने एक झटके मे कहा। 

---" चाचा जी के पास आप आये थे, ये खबर पहले ही जैब मिलिटेंट लाइन से जुड़ गयी थी। फिर उननो ने ही कार मे बम्ब रख दिया और मुझे बाध दिया गया। चाचा को ऐसा करने को बड़ी गालिया दी, कि तुमने उसे इतने पैसे कयो दिए, और जाली करसी का भी इलज़ाम लगा... पता नहीं मेरे चाचा जी कहा होंगे, कुछ पता नहीं लगा। " निज़ाम चुप था। "---चाचा ने बोला था मुझे, तुम जैसे भी पैसे माँग कर चार करोड़ दे कर आओ। " निज़ाम ने साथ ही हाथ जेब मे डाला दो चैक उने पकड़ा दिए... " ये शिमला हिमाचल कॉपरेटिव बैंक की चैक बुक पर थे। "उठाओ जाम निज़ाम दोस्ती के नाम का, राहुल ने कहा। " '----तुम बहुत ही शरीफ इंसान हो --" वास्तव ने हुंगारा भरा।  राहुल ने देखा उसने पेग उठा कर, होठो को लगा लिया था। एक ही सास मे वो पी गया... और मुठी भर के बदाम खा गया था।

                "   वाह दोस्ती के नाम एक होर हो जाये  ¡" राहुल ने कहा।

"नहीं राहुल जी... नहीं.. बहुत मुश्किल पी हैं... इस से ही घूम गया हू... "  राहुल गंभीर था, मगर मुस्करा पड़ा।

एक और बात.... वो उठा बैग मे जिप खोल के दो रिवाल्वर, साथ मे गोलिया... और स्टेरगज उनके हवाले की।

   " चाचा ने कहा था, इसके साथ ही आना। " 

राहुल और वास्तव कुछ सोचने मे मजबूर से हो गए थे।

(चलदा )-------------------नीरज शर्मा।