Jungle - 29 in Hindi Thriller by Neeraj Sharma books and stories PDF | जंगल - भाग 29

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जंगल - भाग 29

     जंगल... की रोमांचित थ्रीलर उपनयास  की कड़ी...

                          (  8)

         "  देश के नाम पे लानत हैं, जनाब  बहुत अफसर समझे ही होंगे। " इलाहबादी ने जाहर किया। ऐसा ही कृपट अफसर... अख़बार की पहली सुर्खियों मे था। राहुल एक दम सुन कर काँप गया। खूब असला वेचा। -"--बहुत वयरल हुआ था ... सच मे। " राहुल ने कहा --" इलाहबादी जी हम कोई देश की मीटिंग के लिए तो कुछ करने नहीं लगे... कुछ उनके बारे जनकारी दे सकते हो। " सुनने  मे आया हैं, कि वो तोबा ग्रुप के मिलिटेंट हैं। " बनारसी ने कुछ और कह दिया था। राहुल कुछ सेकिंड के लिए उठ कर बाहर सिगरेट के पज से उठ आया था। " फिर उसने माया को बुलाया... " माया ये कौन पेनचोर (ये गाली दी थी )को ले आई। " राहुल के सिर पे बोझ था।

ये काम निपटा लो, तुम ही.... अगर फोन आये तो कनेक्ट करो, कौनसे मिलिटेंट घोख पड़ताल करो, बस मैं यूँ ही गया और यूँ आया। "-बस दस मिनट मे तेरे पास माया मै आता हू। " ये कह के वो निकल गया था एक सकरी सी गली की और।

                              -------*---------

                 डोर बेल हुई। चौक  गया वास्तव..... " कौन " राहुल ने कहा दरवाजा खोलो तुम... वो दोनों दोचिति मे घबराये हुए थे। 

           डोर खुला... दरवाज़े कौन हो सकता था.. वही अचर्ज था दोनों को... वोही था पता कौन, चलो दिमाग़ लाओ, देखते हैं, ये सब उलझी हुई गेम का खिलाड़ी कौन हो सकता था।

       राहुल दंग था। वास्तव इस मे किसी भी गुथी मे उलझा हैं ही नहीं... उसे कुछ मालम नहीं था... ये राहुल को ही पता था, कौन हैं ये बद्रपुरष। अच्छी हिंदी जानकारी रखता था... ये निज़ाम था जो आपने अबू के पास ले कर गया था राहुल को।

       " राहुल जी हम ने कहा बिना लक्ष्यर के मिलने चलते हैं आपसे  " निज़ाम ने दरवाजे पर चिटकनी लगाते हुए कहा। राहुल उसे देख कर बे वाक सा रह गया था। " इतनी दूर से आया, बैठने को नहीं कहोगे। " 

" बैठो... आओ.. चेयर पे, जरूर। " निज़ाम ने मुस्करा के कहा ----" थैंक्स सर " 

k"बेफिक्र हू सर " आगे निज़ाम बोला। राहुल और वास्तव जो जानता ही नहीं था, कया खिचड़ी पक रही हैं।मन मे धारणा थी राहुल के। " निज़ाम परेशान सा कयो हैं ? ? " 

ऐसी सोच रखने वाला दलेर युवक... जो निश्चित हो के बैठा हैं। इतनी दूर से अकेला ... कयो,किस लिए, कौन से मनत्व के लिए आया हैं, जानने के लिए समय देना, उसका फ़र्ज़ था। उसकी सर जमीन पे आया था... दुश्मन या दोस्त? ये समझ  पाना बड़ा कठिन था, वास्तव  को कहा गया राहुल ने -------" निज़ाम मिया चाये पीओ गे। " 

"नहीं मेहमान हैं चाये ब्लेक बनाओ "   राहुल ने आखें भींचते हुए कहा।

किस लिए आना हुआ, निज़ाम को बोलने का पूरा मौका दिया गया। चाये टेबल पे रखते हुए कहा --" निज़ाम हैं, ये दोस्त वास्तव हैं। " वास्तव ने कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखाई... कयो की वो मुदा नहीं जानता था.. इस लिए चुप ही था। 

 निज़ाम ने चाये उठायी, "कड़वी हैं मिया ---"  

राहुल ने जिगर पर पथर रखते कहा... "इसमें शकर डाल दो, वास्तव " उसने अभी तक जिक्र आपने बच्चे और सगीना का नहीं किया था।

  निज़ाम की नजरें फर्श पर गड़ी हुई थी।

(चलदा )                               --- नीरज शर्मा --