परिचय:
भारत के दिल में, पुराने पहाड़ों और सुनसान गलियों के बीच एक प्राचीन हवेली खड़ी है—सत्य विला। यह भव्य इमारत अपनी अंधेरी और रहस्यमय इतिहास के लिए जानी जाती है। कानों में गूंजते हैं कुछ लुभावने किस्से, जो आत्माओं की गुमशुदगी, शापित वंशों और विश्वासघात से जुड़े हुए हैं। कई पीढ़ियों तक इस हवेली में बसने वाले परिवार के लोग एक दिन रहस्यमय तरीके से गायब हो गए, और उनके बाद सिर्फ़ सन्नाटा और राज़ ही बचा।
अब, वर्षों बाद, जब दीया शर्मा को अपने भाई विक्रम की गुमशुदगी का राज़ सुलझाने के लिए वापस आना पड़ा, तो वह जानती थी कि यह सिर्फ़ एक संपत्ति का मामला नहीं था। एक साधारण विरासत से कहीं ज्यादा खतरनाक कुछ छिपा हुआ था।
दीया को यह एहसास होता है कि सत्य विला का राज़ कोई साधारण कहानी नहीं है। यह हवेली उसके परिवार की एक डरावनी और ख़ौफ़नाक विरासत है।
क्या वह सच को उजागर कर पाएगी, या उसे अपनी जान की कीमत चुकानी पड़ेगी? क्या कुछ राज़ ऐसे होते हैं जिन्हें खोलने से हमारी दुनिया ही बदल जाती है?
आइए, इस कहानी में डूबिए जहाँ रहस्य और भय से भरे मोड़ आपको अंत तक साथ ले चलेंगे। सत्य विला का आखिरी रहस्य आपका स्वागत करता है।
अध्याय 1: आधी रात की दस्तक...
बाहर तूफ़ान उफान पर था। आसमान में बिजली कड़क रही थी, जैसे कोई अदृश्य ताकत गुस्से में आ गई हो। हवाएँ ज़ोरों से खिड़कियों को हिला रही थीं, और पुरानी हवेली की लकड़ियाँ अजीब आवाज़ें कर रही थीं।
ठक... ठक... ठक...
रात के ठीक 12 बजे दरवाज़े पर दस्तक हुई।
दीया शर्मा ने कंपकंपाते हाथों से दरवाज़े से झाँका। कोई नहीं था।
फिर भी, दरवाज़े के नीचे से किसी ने एक कागज़ सरका दिया था।
"अगर यह तुम्हारे पास पहुँचा है, तो समझो मैं असफल हो चुका हूँ। वे अब तुम्हारे पीछे हैं। तुम्हारे पास समय बहुत कम है। - विक्रम"
दीया का दिमाग़ सुन्न पड़ गया।
विक्रम।
उसका बड़ा भाई, जो दस साल पहले बिना कोई निशान छोड़े ग़ायब हो गया था।
अध्याय 2: खोया हुआ भाई...
विक्रम के ग़ायब होने की घटना आज भी उसके ज़ेहन में ताज़ा थी।
रात के 3 बजे थे जब आखिरी बार उसने विक्रम की आवाज़ सुनी थी। वह अपने कमरे में था, किसी से फोन पर बात कर रहा था।
फिर अचानक—
एक भयानक चीख़।
जब दीया दौड़कर उसके कमरे में पहुँची, तो दरवाज़ा अंदर से बंद था।
"भइया! दरवाज़ा खोलो!"
कोई जवाब नहीं।
पाँच मिनट बाद, जब माँ-पापा आए और दरवाज़ा तोड़ा, तो अंदर कोई नहीं था।
कमरा ख़ाली था। खिड़की बंद। कोई दूसरा दरवाज़ा नहीं। बस सन्नाटा।
विक्रम का कोई निशान नहीं मिला। जैसे वह हवा में घुल गया हो।
अब, दस साल बाद, अचानक उसका यह संदेश...?
"वे अब तुम्हारे पीछे हैं।"
वे कौन?
अध्याय 3: हवेली का रहस्य...
दीया की हवेली बहुत पुरानी थी। 1800 के दशक में बनी यह हवेली पीढ़ियों से उनके परिवार में थी। लेकिन यह हमेशा से अजीब घटनाओं का गवाह रही थी।
बचपन में उसने कई बार महसूस किया था कि कोई उसे देख रहा है।
अचानक बंद होते दरवाज़े। रात में फर्श पर किसी के कदमों की आवाज़।
कमरे में किसी के होने का एहसास—पर जब देखा, तो वहाँ कोई नहीं।
अब विक्रम के पत्र के बाद, दीया को महसूस होने लगा कि यह सिर्फ़ उसका वहम नहीं था।
कुछ तो था। कुछ बहुत डरावना।
अध्याय 4: रहस्यमयी गुप्त कमरा...
उसने विक्रम के पत्र को ध्यान से देखा। काग़ज़ के किनारे जले हुए थे, जैसे किसी ने इसे जलाने की कोशिश की हो।
अचानक, उसे पत्र के कोने पर एक नाम दिखा—
"कमरा नंबर 103 - सत्य विला"
सत्य विला?
यह तो उनकी हवेली का ही दूसरा नाम था!
लेकिन... कमरा नंबर 103?
उसने पूरी हवेली देखी थी, लेकिन कोई भी कमरा 103 नंबर का नहीं था।
तो फिर यह कमरा कहाँ था?
अध्याय 5: दीवार के पीछे छिपा सच...
दीया को बचपन में विक्रम की कही एक बात याद आई—
"हर हवेली में एक ऐसा कमरा होता है जिसे कभी नहीं खोला जाता।"
शायद विक्रम इस गुप्त कमरे की बात कर रहा था?
दीया ने हवेली के हर कोने की जाँच करनी शुरू की।
तभी...
उसका ध्यान दीवार पर पड़ी एक अजीब तस्वीर पर गया।
यह एक पुरानी पेंटिंग थी—एक आदमी की शक्ल, लेकिन उसकी आँखें नहीं थीं।
उसका दिल तेज़ी से धड़कने लगा।
उसने हिम्मत जुटाकर पेंटिंग को हटाया।
और उसके नीचे—
एक लकड़ी का दरवाज़ा।
जो अब तक उसने कभी नहीं देखा था।
अध्याय 6: दरवाज़े के पीछे का अंधेरा...
दरवाज़ा ज़ंग लगा था। वह धक्का देने लगी, लेकिन वह टस से मस नहीं हुआ।
तभी, उसने देखा—दरवाज़े के बीच में एक अजीब-सी आकृति बनी हुई थी।
जैसे कोई चाबी लगने की जगह।
लेकिन यह किस चीज़ की चाबी थी?
तभी उसके कानों में किसी की फुसफुसाहट गूँजी—
"वे तुम्हें देख रहे हैं..."
दीया काँप उठी। उसने पीछे मुड़कर देखा—कोई नहीं था।
लेकिन अचानक, दरवाज़े के पीछे से एक खरोंचने की आवाज़ आई।
"खर्र... खर्र... खर्र..."
जैसे कोई अंदर से निकलने की कोशिश कर रहा हो।
अध्याय 7: बंद दरवाज़े का सच...
दीया के दिल की धड़कन तेज़ हो गई। दरवाज़े के पीछे से आती खरोंचने की आवाज़ थम चुकी थी।
उसने पेंटिंग के पीछे मिली दरार में हाथ डाला और महसूस किया कि लकड़ी के बीच एक संकरी जगह थी। जैसे वहाँ कुछ छिपा हो।
धीरे-धीरे, उसने उँगलियों से उसे कुरेदा—और अचानक, एक छोटी धातु की चाबी उसके हाथ में आ गई।
चाबी पुरानी थी, लेकिन उस पर एक नंबर उकेरा हुआ था—103
कमरा नंबर 103।
दीया ने गहरी साँस ली और काँपते हाथों से चाबी को दरवाज़े में डाला।
क्लिक।
दरवाज़ा धीरे-धीरे चरमराता हुआ खुल गया।
सामने एक गहरा अंधेरा था।
अध्याय 8: तहख़ाने में छुपा सच...
अंदर कदम रखते ही दीया को मिट्टी और नमी की तेज़ गंध आई।
यह एक संकरी गुप्त सुरंग थी, जो हवेली के नीचे की ओर जाती थी।
जैसे-जैसे वह आगे बढ़ी, उसे लगा कि कोई पीछे देख रहा है।
दीवारों पर पुरानी तस्वीरें टंगी थीं। लेकिन ये तस्वीरें अजीब थीं—कुछ में उसके परदादा थे, कुछ में दादा, लेकिन...
हर तस्वीर में किसी एक आदमी का चेहरा जला हुआ था।
कौन था वह? और उसे मिटाने की कोशिश क्यों की गई थी?
दीया को ठंड लगने लगी। वह जानती थी कि वह जितना अंदर जा रही थी, उतना ही खतरे के करीब पहुँच रही थी।
अध्याय 9: गुप्त दस्तावेज़...
सुरंग के आख़िर में एक लोहे की तिजोरी रखी थी।
दीया ने चाबी से तिजोरी का ताला खोला।
अंदर कुछ पुराने दस्तावेज़ रखे थे—पीले पड़े कागज़, जिन्हें किसी ने जानबूझकर छिपाया था।
उसने उन्हें पढ़ना शुरू किया।
पहला दस्तावेज़:
"25 दिसंबर 1972 - सत्य विला में एक बड़ी दुर्घटना हुई। परिवार के एक सदस्य को ज़िंदा दीवार में चुन दिया गया। यह सच किसी को नहीं पता चलना चाहिए।"
दूसरा दस्तावेज़:
"ख़ून के रिश्ते से बड़ा कोई दुश्मन नहीं। सत्य विला की विरासत पर जो राज करेगा, वही जिंदा रहेगा।"
दीया के हाथ काँपने लगे।
इसका मतलब...
उसके ही परिवार ने किसी को मारकर इस हवेली में छुपाया था।
पर किसे?
अध्याय 10: अंतिम सच...
तभी दीया के कानों में किसी की धीमी आवाज़ आई—
"सच जानना इतना आसान नहीं होता, दीया..."
वह झटके से पलटी।
उसके सामने एक छाया खड़ी थी।
चमकती आँखें। धीमी लेकिन ठंडी साँसें।
"तुम्हारे भाई विक्रम ने भी यही गलती की थी... और अब तुम भी कर रही हो।"
दीया का गला सूख गया।
"कौन हो तुम?"
वह आदमी धीरे-धीरे आगे बढ़ा।
"मैं तुम्हारे परिवार का वो हिस्सा हूँ, जिसे तुम्हारे अपनों ने जिंदा दफना दिया था।"
दीया को अब सच समझ आ रहा था।
विक्रम ने दस साल पहले यही राज़ खोजा था—इसलिए वह ग़ायब हो गया।
अब वही लोग दीया को भी खत्म करना चाहते थे।
अध्याय 11: भागने की कोशिश...
दीया को अब सिर्फ़ एक ही रास्ता दिख रहा था—यहाँ से जिंदा बाहर निकलना।
लेकिन तभी, सुरंग का दरवाज़ा तेज़ी से बंद हो गया।
"तुमने वो देख लिया, जो तुम्हें नहीं देखना चाहिए था, दीया।"
उसके परिवार की परछाइयाँ अब उसके चारों तरफ़ थीं।
दीया ने दस्तावेज़ों को पकड़कर दौड़ लगाई।
वह जानती थी कि अगर वह रुकी, तो वह भी ग़ायब हो जाएगी—ठीक वैसे ही जैसे विक्रम हुआ था।
लेकिन बाहर निकलने का रास्ता कौन सा था?
अध्याय 12: हवेली की आखिरी रात...
दीया दौड़ रही थी।
उसके हाथ में दस्तावेज़ थे—वे दस्तावेज़ जो सत्य विला के सबसे बड़े राज़ को उजागर कर सकते थे।
उसके पीछे तेज़ कदमों की आवाज़ थी।
"रोको उसे!"
किसी ने चिल्लाया।
दीया ने पीछे मुड़कर देखा। हवेली के दरवाज़े की ओर कुछ परछाइयाँ तेज़ी से बढ़ रही थीं।
उसे भागना था। अभी।
अध्याय 13: दस्तावेज़ों में छुपा कातिल...
दीया ने दस्तावेज़ खोलकर पढ़ना शुरू किया।
"1982 - सत्य विला की विरासत अब सिर्फ़ एक ही वारिस को मिलेगी। जो इस विरासत का हक़दार नहीं, उसे हमेशा के लिए मिटा दिया जाएगा।"
इसके नीचे कई नाम लिखे थे।
पहला नाम: विक्रम शर्मा - ग़ायब
दूसरा नाम: दीया शर्मा - ख़तरे में
तीसरा नाम: ???? (नाम मिटाया हुआ था)
दीया को झटका लगा।
इसका मतलब विक्रम को इसलिए ग़ायब किया गया क्योंकि वह इस हवेली का असली वारिस था।
तो फिर… अब उसकी बारी थी?
अध्याय 14: आखिरी सुराग...
दीया को एक और दस्तावेज़ मिला।
"1982 की दुर्घटना - एक बच्चा जो जिंदा नहीं रहना चाहिए था।"
दीया के हाथ काँपने लगे।
उसने नीचे देखा—एक पुरानी ब्लैक एंड व्हाइट फोटो थी।
इसमें दो बच्चे थे—एक विक्रम… और दूसरा?
यह बच्चा कौन था?
उसके चेहरे पर काले निशान थे, लेकिन आँखों की बनावट जानी-पहचानी थी।
तभी, उसे एहसास हुआ।
यह बच्चा कोई और नहीं… बल्कि वह खुद थी।
अध्याय 15: सच, जो जानलेवा था...
दीया के दिमाग़ में सबकुछ साफ़ होने लगा।
सत्य विला के वारिस के लिए सिर्फ़ एक बच्चा जिंदा रह सकता था।
1982 में, उसके परिवार ने फैसला किया कि केवल एक बच्चा वारिस बनेगा और दूसरा मर जाएगा।
विक्रम और दीया जुड़वा भाई-बहन थे।
लेकिन उनके परिवार ने विक्रम को मिटाने का फैसला किया था।
पर… वह बच गया था।
और पिछले दस सालों से, वह इसी सच को खोजने की कोशिश कर रहा था।
अब दीया को समझ में आ रहा था कि विक्रम ने उसे संदेश क्यों भेजा था—
"वे अब तुम्हारे पीछे हैं।"
क्योंकि अब हवेली के लोग उसे भी मिटाने वाले थे।
अध्याय 16: हवेली का आखिरी मोड़...
तभी, हवेली का दरवाज़ा ज़ोर से खुला।
"दीया…"
दीया ने सिर उठाया।
सामने विक्रम खड़ा था।
ज़िंदा।
पर उसकी आँखों में गुस्सा था।
"तुमने बहुत देर कर दी। अब सिर्फ़ एक ही बच सकता है—तुम या मैं।"
दीया पीछे हटने लगी।
"क्या मतलब?"**
विक्रम ने कागज़ों को ज़मीन पर फेंक दिया।
"इस परिवार ने हमें एक-दूसरे के ख़िलाफ़ कर दिया। लेकिन अब फैसला हमें करना होगा।"
"या तो तुम इस हवेली को छोड़कर भाग जाओ… या फिर मैं तुम्हें भी गायब कर दूँगा।"
अध्याय 17: आखिरी फैसला...
दीया की साँसें तेज़ हो गईं।
भाग जाए?
क्या विक्रम सच में उसे मार सकता था?
लेकिन तभी…
उसने देखा—विक्रम के ठीक पीछे कोई खड़ा था।
हवेली का असली रक्षक।
"अब बहुत हुआ।"
एक गोली चली।
विक्रम ज़मीन पर गिर पड़ा।
दीया को समझ में नहीं आया कि यह सब किसने किया।
जब उसने सिर उठाया, तो सामने उनका दादा जी खड़े थे।
"कह दिया था न… खून के रिश्ते से बड़ा कोई दुश्मन नहीं होता।"
अध्याय 18: हवेली का नया वारिस...
दस दिन बाद।
सत्य विला अब वीरान हो चुकी थी।
विक्रम ग़ायब था।
और दीया?
अब वह सत्य विला की अकेली मालिक थी।
पर एक सवाल अब भी बाकी था—
क्या यह सब सच में खत्म हो गया था?
या फिर…
किसी और की बारी थी?
अध्याय 19: अंत… या एक नई शुरुआत?
सत्य विला अब शांत थी।
दीया ने अपने चारों तरफ़ देखा—सब कुछ वैसा ही था, जैसे पहले था। हवेली की पुरानी दीवारें, ठंडी हवा, और अंधेरे में छिपे रहस्य।
वह सोच रही थी कि यह सब अब खत्म हो गया है।
लेकिन तभी…
एक धीमी आवाज़ आई।
"दीया..."
वह एकदम ठिठक गई।
आवाज़ सुरंग के अंदर से आ रही थी।
विक्रम की आवाज़।
लेकिन यह कैसे हो सकता था?
उसने धीरे-धीरे सुरंग के भीतर झाँका। वहाँ कुछ नहीं था—बस अंधेरा।
लेकिन तभी, उसे ज़मीन पर पड़ा एक कागज़ मिला।
एक आखिरी दस्तावेज़।
उसने काँपते हाथों से उसे उठाया और पढ़ा—
"तुम्हें लगा कि यह खत्म हो गया?"
"सत्य विला की असली कहानी अभी बाकी है।"
नीचे विक्रम का नाम लिखा था।
पर यह दस्तावेज़ 1982 में लिखा गया था।
दीया का दिल तेज़ी से धड़कने लगा।
क्या विक्रम मर चुका था, या… वह हमेशा से हवेली का ही हिस्सा था?
हवा में फिर से फुसफुसाहट गूँजी—
"तुम अगली हो, दीया…"
भाग 1 समाप्त – पर सत्य विला की विरासत अभी बाकी है… भाग 2 में क्या होगा?