जादुई लकीरें : “ एक रहस्यमय कहानी ”
अध्याय 1: “ जन्म से जुड़ी लकीरें ”
गुजरात के एक छोटे से गाँव संधियावाड़ा में ठंडी हवा बह रही थी। आसमान में चमकते तारे किसी अज्ञात संदेश की तरह जगमगा रहे थे। यह वही रात थी, जब अर्जुन का जन्म हुआ। उसकी माँ सुमित्रा दर्द से काप रही थी, और उसका पिता कैलाश बेचैनी से दरवाजे के बाहर टहल रहा था।
रात के ठीक बारह बजे अर्जुन की पहली किलकारी गूँजी। पर यह कोई साधारण रात नहीं थी। गाँव के सबसे बुज़ुर्ग साधु, बाबा महेश्वरनाथ, जो भविष्य देखने के लिए जाने जाते थे, अचानक घर के बाहर आ खड़े हुए।
उन्होंने अर्जुन की नन्ही हथेलियों को देखकर कहा - “इस बालक की लकीरें विचित्र हैं… इसकी तक़दीर हर बार बदलती रहेगी!”।
सुमित्रा और कैलाश ने पहले इसे अंधविश्वास समझा, लेकिन जैसे-जैसे अर्जुन बड़ा होता गया, वह देख नहीं पाए कि उसकी ज़िंदगी में बार-बार कुछ अनोखा हो रहा था...
अर्जुन की पहली परीक्षा – “ भाग्य का खेल ”
अर्जुन बचपन से ही बहुत होशियार था। उसके माता-पिता उसे हमेशा आगे बढ़ते देखना चाहते थे। जब वह पाँच साल का हुआ, तो गाँव के ही स्कूल में उसका नाम लिखा दिया गया।
वहाँ उसकी मुलाकात रिद्धि से हुई। रिद्धि गाँव के सबसे अमीर ज़मींदार की बेटी थी—चंचल, सुंदर और बहुत जिद्दी। पहली ही मुलाकात में उसने अर्जुन को अपना सबसे अच्छा दोस्त बना लिया।
रिद्धि ने हँसते हुए कहा - “तुम्हें पता है, अर्जुन? बड़े होकर हम दोनों साथ में पढ़ेंगे, साथ में खेलेंगे,”।
अर्जुन ने मासूमियत से पूछा - “और?”
रिद्धि ने कहा और दोनों हँस पड़े - “और हमेशा साथ रहेंगे!”
लेकिन भाग्य ने अर्जुन के साथ पहला खेल खेला...“ पहली बार बदली अर्जुन की लकीरें ”
तूफान और भाग्य का संकेत
एक दिन स्कूल में मौसम अचानक खराब हो गया। तेज़ हवाएँ चलने लगीं और आकाश में काले बादल घिर आए। कुछ ही देर में एक भयानक तूफान आ गया। बच्चे डरकर इधर-उधर भागने लगे।
रिद्धि एक पेड़ के पास खड़ी थी, जब एक तेज़ हवा के झोंके ने उसकी किताबें उड़ा दीं। वह उन्हें पकड़ने के लिए दौड़ी, लेकिन तभी पेड़ की एक भारी शाखा टूटकर उसके ऊपर गिरने लगी।
अर्जुन ने बिना सोचे-समझे उसकी ओर छलांग लगाई और उसे धक्का देकर दूर गिरा दिया। शाखा अर्जुन के पीछे ज़मीन पर गिर गई, लेकिन वह बाल-बाल बच गया।
रिद्धि काँप रही थी, उसकी आँखों में डर था। उसने अर्जुन की ओर देखा और कहा, “तुम ठीक हो?”
अर्जुन ने मुस्कुराकर कहा, “हाँ, पर तुम आगे से ज्यादा ध्यान रखना!”
« लेकिन तभी… चारों ओर सन्नाटा छा गया। »
अचानक साधु बाबा फिर से प्रकट हुए। उनके लंबे सफेद बाल तेज़ हवा में उड़ रहे थे। उन्होंने अर्जुन का हाथ पकड़ा और गंभीर स्वर में बोले— “बालक, तेरी हाथ की लकीरें बदल रही हैं, और साथ में तेरे प्यार की लकीरें भी बदल रही हैं। अब तुम्हारी जिंदगी की हर एक नई कसौटी में ये लकीरें पहले बदलेंगी।“
रिद्धि यह सुनते ही सहम गई। उसकी आँखों में डर था , उसने काँपते हुए पूछा। “मतलब… अर्जुन की तक़दीर कभी स्थिर नहीं रहेगी?”
साधु बाबा ने कोई जवाब नहीं दिया, बस आसमान की ओर देखकर धीरे-धीरे गायब हो गए।
रिद्धि का दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा। उसे एक अनजाना डर सताने लगा कि शायद अर्जुन के साथ रहना खतरे से खाली नहीं।
वह बिना कुछ कहे भागकर वहाँ से चली गई…
अर्जुन उसे पुकारता रहा, लेकिन वह पलटकर नहीं आई।
रिद्धि का अचानक जाना
अगले ही हफ्ते, अर्जुन को खबर मिली कि रिद्धि का परिवार शहर जा रहा है, और अब वह कभी वापस नहीं आएगी।
अर्जुन बहुत रोया, लेकिन वह कुछ नहीं कर सकता था। उसके हाथ की लकीरें फिर से बदल चुकी थीं...
समायरा की एंट्री – नई लकीरों का खेल
10 साल बाद...
« गुजरात का सबसे प्रतिष्ठित कॉलेज—“सूर्यवंशी यूनिवर्सिटी”। »
यहाँ पढ़ाई के साथ-साथ हर साल एक “किंग और क्वीन ऑफ द ईयर” प्रतियोगिता होती थी, जिसमें कॉलेज के सबसे टैलेंटेड लड़के और लड़की को चुना जाता था।
इस साल का सबसे बड़ा दावेदार था—अर्जुन।
अब वह एक साधारण गाँव के लड़के से बदलकर एक आत्मविश्वासी, स्मार्ट और आकर्षक नौजवान बन चुका था।
पर एक दिन उसकी ज़िंदगी फिर से बदलने वाली थी...
कॉलेज की पहली मुलाकात – जब वक्त ने समायरा को भेजा
कॉलेज के पहले ही दिन, अर्जुन अपनी बाइक से उतरकर लाइब्रेरी की तरफ बढ़ रहा था। तभी एक ब्लैक कार तेजी से उसकी तरफ आई और ऐन वक्त पर ब्रेक लगाकर रुकी।
अर्जुन ने गुस्से से देखा, लेकिन जब कार का दरवाजा खुला, तो उसकी नज़रें ठहर गईं।
वहां खड़ी थी समायरा मेहता—लंबे खुले बाल, तीखी आँखें और एक अजीब-सा रौबदार अंदाज़।
समायरा ने मुस्कराते हुए कहा - “सॉरी! लेकिन तुम सड़क के बीच में क्यों चल रहे थे?”
अर्जुन ने बिना हिचकिचाहट जवाब दिया, “क्योंकि मुझे नहीं पता था कि कोई अपने स्टाइल में लोगों को कुचलने निकला है!”
समायरा ने थोड़ा सरप्राइज होकर अर्जुन को देखा, फिर हँस पड़ी, “इंटरेस्टिंग! तुम अर्जुन हो, ना? इस साल के ‘किंग ऑफ द ईयर’ के सबसे बड़े दावेदार?”
अर्जुन ने हल्की मुस्कान दी, “हूँ... और तुम?”
उसने आँख मारते हुए कहा - “मैं समायरा मेहता। इस साल की क्वीन बनने वाली लड़की!” और आगे बढ़ गई।
लेकिन अर्जुन को अंदाजा भी नहीं था कि समायरा उसकी ज़िंदगी में सिर्फ एक दोस्त बनकर नहीं, बल्कि उसकी तक़दीर बदलने के लिए आई थी।
फिर से बदली लकीरें – साधु बाबा की वापसी
कॉलेज के पहले ही महीने में अर्जुन और समायरा की दोस्ती गहरी होने लगी। दोनों ने साथ में प्रोजेक्ट किए, साथ में कॉम्पिटिशन में भाग लिया और धीरे-धीरे उनकी दोस्ती में एक नया अहसास पनपने लगा।
लेकिन...
एक दिन अर्जुन को फिर से वही अजीब एहसास हुआ, जो उसने बचपन में रिद्धि के साथ महसूस किया था।
कॉलेज की वार्षिक स्पोर्ट्स मीट में अर्जुन और समायरा दोनों हिस्सा ले रहे थे। जैसे ही अर्जुन ने दौड़ शुरू की, अचानक मौसम खराब हो गया। आसमान में बादल छा गए, हवा तेज़ हो गई और चारों तरफ धूल उड़ने लगी।
और तभी... साधु बाबा फिर से प्रकट हुए! अर्जुन ठहर गया। उसकी आँखें चौड़ी हो गईं।
साधु बाबा ने उसकी हथेलियाँ देखीं और गंभीर स्वर में कहा— “बालक, तेरी लकीरें फिर से बदल रही हैं! तेरा अतीत तुझसे मिलने आ रहा है… और इस बार तुझे सबसे कठिन परीक्षा देनी होगी!”
ये बात सुनके अर्जुन के रोंगटे खड़े हो गए। अर्जुनने घबराकर पूछा - “मतलब?”
साधु बाबा ने बस एक ही बात कही— “तेरे प्यार की लकीरें फिर से बदलने वाली हैं, लेकिन इस बार फैसला तुझे खुद करना होगा—तक़दीर के खिलाफ!”
और इसके तुरंत बाद...
समायरा दौड़कर उसके पास आई और बोली, “अर्जुन! जल्दी चलो, किसी ने तुम्हें ढूँढने के लिए कॉलेज के नोटिस बोर्ड पर एक अनजान चिट्ठी चिपकाई है!”
अर्जुन चौंक गया—अब क्या होने वाला था?
अगले अध्याय में देखिये :
चिट्ठी का रहस्य – अर्जुन का अतीत लौट आया?
क्या समायरा की एंट्री अर्जुन की तक़दीर बदलने के लिए हुई है?
और सबसे बड़ा ट्विस्ट—क्या रिद्धि वापस आ गई है?
To Be Continues.......
जादुई लकीरें : अध्याय 2 ...............
Story Writer
Digvijay Thakor