krick and nakchadi - 4 in Hindi Love Stories by krick books and stories PDF | Krick और Nakchadi - 4

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Krick और Nakchadi - 4

अब नकचडी की स्कूल की पढ़ाई  पूरी हो गई थी मे बारवी मे आ गया मुझे पता था की उसके बिना ये साल मे निकाल ही नही पाऊंगा क्युकी जब वो एक दिन स्कूल मे नही आती थी तो मेरी जान ही निकल जाती थी जैसा बिना आत्मा का शरीर मे पूरी दिन उदास ही रहता था अब नकचडी पुरा एक साल तक मुझसे नही मिलने वाली थी उसके बिना ही मुझे स्कूल की आखरी कक्षा निकाल नी थी ! मैने बहुत महीने उसकी याद मे ही निकाले अब तो उसके साथ ज्यादा बात भी नही होती थी ! उसके बिना सब कुछ सुना सुना सा लगता था उसने ठीक ही कहा था की मेरे जेसी मिल जायेगी लेकिन मे नही मिल सकती! 

" जैसे तेसै मेने बारवी की पढाई शरू की लेकिन मुझे किसी से अब कोई मतलब नही था मे ये सोचता रहता था की जल्दी से स्कूल ख़तम हो जाये और कॉलेज मे हम दोनों फिर से मिल जाये अब मे स्कूल मे सिर्फ अपने काम से मतलब रखता था मेरी पढाई खतम करने के बाद कही अकेले मे जाके बैठे जाता था अब तो  हर वक्त मे खोया खोया से रेहता हूँ नकचडी का वो चेहरा मेरी यादों की तस्वीर बन चुका था उसे देखने का मिलने का मन करता था थोड़े ही समय हम मिले और साथ छुट गया उसकी आदत सी मुझे हो गई थी होस्टल पर तो मेरे पास फोन भी नही था और उसे चिठ्ठी भी नही भेज सकता था इस लिये मेरी उसके साथ बात ही नही हो पा रही थी मेरी क्लास की पढाई चल ही रही थी उतने मे दुनिया की सबसे बड़ी आफत आने वाली थी जिसके सामने मेरा दुख सुई की नोक जितना भी नही था चाइना के एक शहेर मे हमने कोरोना वायरस के बारे मे सुना हर बार की तरफ हमने इसे हलके मे ही लिया लेकिन सिर्फ एक हप्ते मे तो दुनिया के कई सारे देशों मे ये वायरस फेल गया है ये सुनते ही हम सब डर गये वो धीरे धुरी भारत मे भी फेलता जा रहा था और बहुत सारी स्कूलों ने छुटिया कर दी थी और आखिर मे हमारी स्कूल ने भी छुटिया घोसित कर दी अब हम घर आ चुके थे पता ही नही चल रहा था की अब क्या करे  क्या हो रहा है ये  सब पहली बार मेने ऐसी छुटियाँ देखी थी लेकिन मुझे नकचडी से बाते करनी थी लेकिन केसे करू मेरे पास सिर्फ  उसका फोन नम्बर ही था खुद का फोन ही नही था मेने उसे कहा था की मे घर जा कर तुमसे बाते करूँगा वो इंतजार कर रही थी मेरे कोल का लेकिन मे कर ही नही पा रहा था।  मेरे पास फोन ही नही था मे सोच रहा था की घर मे किसी और के फोन से मे उस से बात करू लेकिन डरता था की कही कोई गड़बड़ ना हो जाये । लेकिन एक दिन  क्रिक ने अपनी दीदी के फोन से मेसेज कर दिया और बोल दिया की मे क्रिक हूँ तब से नकचडी की क्रिक के साथ बात हुवी लेकिन वो थोड़ी ही देर थी इसके बाद उनकी बाते कभी नही उहि क्युकी खुद का फोन होना बहुत जरूरी होता है इस लिये क्रिक ने बात को अधूरी ही बता कर छोड़ दिया सिर्फ नाम ही बताया उसके बाद उसने सोचा की अभी बात करना ठीक नही है ये उसकी सबसे बडी मजबूरी और भोली भाली भूल थी जो बाद मे दोनो के रिश्तो को तोड़ने की वजह बनी । लेकिन क्रिक के चाचा बेटी उसकी दूसरी बहेन उसको ये पता चला की क्रिक की किसी लड़की से बात होती है अभी तो सिर्फ क्रिक और नकचडी अच्छे दोस्त बने थे उसने बिना क्रिक को बताये नकचडी से बाते करने लगी शरुआत मे तो वो खुद ही क्रिक बन कर नकचडी से बाते करती थी लेकिन बिचारी नकचडी इस बाते से बिल्कुल अंजान थी की वो क्रिक से ही बात कर रही है या किसी और से  क्रिक की जो बहेन थी उसको  दुसरो के जीवन मे ज़ाख़ ने का और उनके रिश्ते तुड़वाने का बहुत शोख था उसने नकचडी को बहुत परेशान किया वो दिखावा करती की मेरे भाई से दूर रहो उसे पढ़ने दो वगेरा वगेरा बाद मे नकचडी को पता लगा की मे क्रिक से नही किसी और से बात कर रही थी नकचडी क्रिक की  बहेन से बात कर रही थी और इस बात का पता बिचारे क्रिक को भी नही था की इतने दिनों से वो तो ये सोच के मेसेज से बात नही करता था की उसके पास खुद का फोन नही है दूसरो के फोन से बात करना बहुत ही अजीब साबीत हो सकता है क्रिक का एक गलत कदम उनकी दोस्ती तुडवा सकता है और बाद मे जिस बात का डर था वही हुआ नकचडी हर दिन ये सोच के मेसेज  कर रही थी की कही क्रिक से एक बार बात हो जाये आज कल बहुत आसान हे बात करना लेकिन उस समय पर बहुत ही मुशिकल था किसी और के फोन से बात करना नकचडी के मेसेज से क्रिक की बहेन ज्यादा ही चीड़ गई और उसने फोन मे मेरे सामने ही बीचारी नकचडी को बहुत बुरा भला सुना दिया मे तो ये सोच के हैरान था की बात इतनी आगे केस बढ़ गई मेने तो सिर्फ एक बार ही मेसेज से बात की थी वो भी सिर्फ नाम पता जान ने के लिये लेकिन उसके बात मुझे क्या पता की मेरी ही बहेन उसके साथ बाते कर रही थी जिस बतमीज तरीके से वो बात कर रही थी उसी से ही पता चल रहा था की उसने कई दिनों तक मेरी दोस्त नकचडी से बाते की है बहुत बुरा भला उसने सुनाया जिसकी वजसे नकचडी को बहुत ही बुरा लगा वो कई दिनों तक उदास रही रोती रही लेकिन किसी को कुछ भी बता नही पायी उसने सारे जगह से फोन ब्लॉक कर दिये मे चाह कर भी उससे बात नही कर पा रहा था उसके बाद दस बारह नंबर से मेने उससे बात करने की कोसिस की सिर्फ एक सोर्री के  लिये लेकिन उसने मेरी एक नही सुनी उसके साथ बात ही नही हो पायी उसने मेरी एक नही सुनी इसका  अंदाज आप इस बात से लगा सकते है की वो मुझसे कितना प्यार करती थी उसका मेरे पे कितना ही भरोसा था उसे भी ज्यादा की मेरी सिस्टर ने उसे किसी लेवल का भला बुरा सुनाया होगा की नकचडी मुझसे बात तक नही की हा ये घटना लॉक डॉउन के समय की है मे भी बहुत ही उदास रहने लगा क्युकी मेरी वजसे पहली बार मेरी सबसे प्यारी दोस्त की आँखों मे आशु थे और संज्जोग भी कुछ इस तरह के थे की मे चाह कर भी उसके आँखों के आशु  पोछ नही सकता था। 

लॉक डाउन की छुटियो मे पुरा परिवार साथ मे था सब बहुत खुश थे और उनके बीच मेरा ये दुख ना किसी को बताया जा सकता था ना ही रो रो के मन हलका किया जा सकता था अपने दिल मे ही ये दर्द मैने बडी ही हिम्मत से दबाया था मैने कभी भी अपनी बहेन को इसके लिये बुरा भला नही कहा बल्कि मैने उस से इस बारे मे बात ही नही की मुझे पता था की अगर मैने उसे बुरा भला सुनाया तो वो इस से भी ज्यादा बुरी बन जायेगा  क्युकी जो आँखे पढ़ के दुख नही समझ सकते उनसे बाते करके क्या ही समझाना। 

"अभी अभी हुई दोस्ती कुछ इस तरह टूटी की जैसे हमे प्यार करते थे हमे तो ठीक से प्यार भी नही मिला और बदनाम तो ऐसे हुए की प्यार-मोहब्बत के बादशाह हो हम। "

चाहे कितनी ही कोशिस क्यों ना करले लेकिन मे उसे भुलाह ही नही पा रहा था मैने कई महीनों ऐसे ही उदासी मे बिताये। "

"जब  विरोध मे अपने ही सामने खडे हो तो स्तिथि अर्जुन जैसी हो जाती हैं हम चाह कर भी उसे कुछ नही कर सकते बाहर के रिस्तो को तो हम खत्म भी कर सकते है एक आज कोई और दोस्त कल कोई और दोस्त लेकिन अपनो को बदला नही जा सकता उन्हे जैसे के तेसै स्वीकार ना ही पड़ता है। इस लिये मैने सब कुछ समय पर छोड दिया मैने कुछ साबित नही किया समय ने खुद अपनी गवाही दी और कैसे हम दोनों पांच साल के बाद फिर से मिले वो हम कहानी मे आगे अगले भाग मे जानेगे। 

!! चलो दोस्तो चलता हूँ आगे के भाग मे फिर मिलता हूँ!!