chandrika in Hindi Horror Stories by Rakesh books and stories PDF | चंद्रिका

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चंद्रिका


जंगल की घनी अंधेरी रात में, विक्रम अपनी कठोर साधना में लीन था। वह आठवें दिन तक लगातार मंत्र जाप करता रहा था, क्योंकि उसे सिद्धि के नौवें दिन पर वह अनुभव होने वाला था, जिसे पाकर वह अपने मन में बसे यक्षिणी – चंद्रिका – को अपनी पत्नी के रूप में सिद्ध करना चाहता था। बचपन से सुनी उसकी कथाएँ, उसकी अतुलनीय सुंदरता और मनोकामनाएँ पूरी करने की शक्तियाँ, इन सब ने विक्रम के मन में उस स्त्री के लिए अटूट प्रेम भर दिया था। उसे विश्वास था कि वह उसे प्राप्त कर ही लेगा, चाहे साधना कितनी भी कठिन क्यों न हो।

साधना करते-करते उसे ऐसा अनुभव हुआ, मानो उसके चारों ओर अनगिनत जंगली जानवर उसके पास गुर्राते हों, और उसकी त्वचा पर रेंगती हुई शक्तियाँ उसे छू रही हों। उसकी गर्दन में घुटन सी होने लगी, जैसे किसी ने कसकर पकड़ा हो, पर विक्रम ने अपना ध्यान मंत्र में ही लगाया रखा।  

कुछ घंटों बाद, जब दसवें दिन की साधना समाप्त हुई, तो उसने आँखें खोली – परंतु वहाँ कोई प्रकट नहीं हुआ। थक कर उसी स्थान पर लेट कर सो गया। रात के करीब एक या दो बजे, उसे एक अजीब सपना आया। सपने में उसने एक स्त्री को लाल साड़ी में सजी हुई देखा, जो उसकी ओर पीठ करके बैठी थी। उसने पूछकर पुकारा, "तुम कौन हो?" बिना मुड़े ही उस स्त्री ने मधुर हँसी में जवाब दिया, "मैं वही हूँ, जिसे तुम बचपन से पाना चाहते थे।"  

इस सुनहरे वादे से विक्रम का मन खुशी से झूम उठा। उसने समझ लिया कि वह रति प्रिय – चंद्रिका – ही है। उसने तुरंत अपनी साधना में और उत्साह के साथ लग गया। अगली शाम, जब विक्रम पुनः मंत्रों में लीन था, अचानक किसी ने उसके कंधे पर कोमल स्पर्श किया। धीरे-धीरे, उस स्पर्श की मधुरता और उत्तेजना ने उसे अपनी साधना से विचलित कर दिया, परन्तु उसने ध्यान नहीं खोया। कुछ देर बाद, उसे ऐसा लगा जैसे कोई उसकी गोद में बैठ गया हो और जोरदार थप्पड़ भी मार दिया हो। फिर भी, विक्रम ने अंतिम मंत्र का जाप पूरा किया।  

जैसे ही मंत्रों की आहुति पूरी हुई, उसे चंद्रिका की हँसी की मधुर आवाज सुनाई दी – "बहुत अच्छे! तुम्हारी साधना ने मुझे दिल से प्रसन्न कर दिया है, विक्रम।"  

विक्रम ने आँखें खोलीं और अपने सामने दुनिया की सबसे सुंदर स्त्री पाई – उसकी सुंदरता, लंबे बाल, चमकती आँखें और कोमल होंठ ने उसे बेसुध कर दिया। वह स्त्री मुस्कुराई और बोली, "विश्वास नहीं हो रहा कि तुमने मुझे सिद्ध कर लिया।"  

विक्रम ने कहा, "जबसे तुम्हारे बारे में सुना, तबसे तुम्हें सिद्ध करना चाहता था, तुमसे विवाह करना चाहता था।"  

चंद्रिका ने हल्की हँसी में कहा, "ज़रूर करूंगी, पर पहले मेरी कुछ शर्तें हैं।"  

उसने कहा, "मेरी पहली शर्त है कि तुम्हें अभी मुझसे विवाह करना होगा। दूसरी – कि मैं तुम्हें पत्नी के रूप में सिद्ध कर रहा हूँ, इसलिए मेरे अलावा तुम किसी और को न देखोगे। और तीसरी – कि मैं कौन हूँ, यह तुम्हारे अलावा किसी और को कभी न पता चले।"  

विक्रम ने खुशी-खुशी सारी शर्तें मान लीं और उसी पल विवाह कर लिया। अपने परिवार को बिना बताए शादी कर लेने की बात सुनकर कौसल्या, अरविंद और संगीता हैरान रह गए, पर विक्रम की प्रेम कहानी ने सबको चकित कर दिया।  

कुछ दिनों में विक्रम और चंद्रिका का प्रेम बढ़ता गया। विक्रम ने अपने जीवन के अधिकांश पल चंद्रिका के साथ बिताए, जिससे वह काम से ध्यान भटका गया। कौसल्या ने उसे समझाने की कोशिश की कि वह अपने पिता के साथ दुकान पर जाकर काम भी करे, पर विक्रम का मन केवल चंद्रिका में ही लग गया था।  

एक दिन, जब कौसल्या ने देखा कि चंद्रिका और विक्रम की आपसी लिप्तता से घर का काम प्रभावित हो रहा है, तो उसने कड़ाई से चंद्रिका को चेतावनी दी – "अब से तुम विक्रम से दूर रहोगी, नहीं तो हमारे घर की इज्जत दांव पर लगेगी।"  

रात के करीब, जब नितिन भी घर आया, तो उसने देखा कि चंद्रिका गायब है। उसे ढूंढते-ढूंढते वह रसोई में पहुँचा, जहाँ चंद्रिका गुस्से में बैठी थी। उसने पूछा, "क्या हुआ, तुम यहाँ क्यों हो?"  

चंद्रिका ने क्रोध में जवाब दिया, "तुम्हारी मां ने मुझे तुम्हारे पास आने से रोका है, उन्हें पता चल गया कि हम दुकान में क्या कर रहे थे।"  

विक्रम भी अपनी साधना में लगा रहा, पर जब उसने चंद्रिका को देखा तो खुशी से उसका मन मोहित हो गया। दोनों ने मिलकर एक-दूसरे के साथ रात भर भोग-विलास किया। अगले दिन, जब चंद्रिका की मुंह दिखाई दी और संगीता उसे तैयार कर रही थी, तो विक्रम के कुछ दोस्त भी आ पहुँचे।  

उनमें से राहुल ने मजाक में कहा, "विक्रम, तुम किस मंदिर में जाकर माथा टेक रहे थे, जिससे इतनी सुंदर पत्नी मिली?"  
विक्रम ने मुस्कुराते हुए कहा, "यह किस्मत की बात है, मेरे लिए यह सबसे अनमोल उपहार है।"  

परन्तु धीरे-धीरे, विक्रम की साधना और भोग-विलास में उलझन ने उसके काम पर असर डालना शुरू कर दिया। कौसल्या ने बार-बार उसे चेतावनी दी, पर विक्रम ने अनदेखी कर दी।  

एक दिन, जब विक्रम ने अपनी माँ कौसल्या को यह समझाने की कोशिश की कि चंद्रिका उसके लिए अत्यंत प्रिय है, तो कौसल्या ने उसे डांटते हुए कहा, "अब तेरी मूरत से हमारे घर की इज्जत दांव पर लगेगी!"  
इस पर विक्रम ने गुस्से में अपनी माँ, बहन संगीता और यहाँ तक कि अपने मित्र अरविंद को भी मार डालने का रास्ता चुन लिया। घर में हिंसा का ऐसा भयानक दृश्य गवाह बना कि गाँव के लोग भी काँप उठे।  

जब शिवानंद बाबा के पास गाँव के कुछ अनुभवी तांत्रिक आए और बताया कि शायद चंद्रिका ने विक्रम पर जादू-टोना कर रखा है, तो कौसल्या, अरविंद और संगीता ने तुरंत उनके साथ श्मशान की ओर रुख किया। बाबा ने मंत्रों का उच्चारण किया और घर पहुँचे।  

जब वे विक्रम के कमरे के दरवाजे पर पहुँचे, तो अंदर से जोर-जोर से चीखें आ रही थीं। दरवाजा खोलते ही एक भयानक दृश्य सामने आया – विक्रम का शरीर सूख चुका था, उसकी आँखें खुली थीं, मानो जीवन की आहट ही मिटी हो। बाबा ने चुपचाप कहा, "देर हो गई, उसे वह ले गई।"  

और इस प्रकार, विक्रम और चंद्रिका की प्रेम कहानी इस दुनिया में समाप्त हो गई – शायद चंद्रिका ने उसे अपनी रहस्यमयी दुनिया में ले लिया।  

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दोस्तों, आज की कहानी यहीं समाप्त होती है।  
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