Do Dilo ka Milan - 4 in Hindi Love Stories by Lokesh Dangi books and stories PDF | दो दिलों का मिलन - भाग 4

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दो दिलों का मिलन - भाग 4



मुस्कान के जाने के बाद, लोकेश कुछ देर तक बाग में अकेला बैठा रहा। वह जानता था कि मुस्कान को परिवार के मामलों से निपटने के लिए एकांत की ज़रूरत थी, और उसे यह भी समझ था कि हर रिश्ता अपने समय और स्थान पर ही फलता-फूलता है। लेकिन फिर भी, वह उसकी चिंता और उसकी हालत को महसूस कर रहा था। उसने सोचा, क्या वह सही कर रहा था? क्या वह मुस्कान के साथ और अधिक समर्थन नहीं दे सकता था?

वह बाग से बाहर निकलने को हुआ, जब अचानक उसके फोन की घंटी बजी। उसने फोन देखा और मुस्कान का नाम देखा। उसकी आँखों में एक हल्की सी चमक आई, और उसने फौरन कॉल उठाया।

"लोकेश," मुस्कान की आवाज़ सुनाई दी, "मैं घर पहुँच गई हूँ, और सब ठीक है। लेकिन तुमसे एक बात कहनी थी।"

लोकेश ने राहत की सांस ली और कहा, "क्या सब ठीक है, मुस्कान?"

"हाँ, अब सब ठीक है। लेकिन तुम्हें बताना था कि मैं अब कुछ समय के लिए अपने परिवार के साथ रहूँगी। मुझे लगता है, इस वक्त मुझे उनके साथ रहकर कुछ चीज़ें सुलझानी चाहिए।" मुस्कान ने हलके से कहा।

लोकेश ने समझदारी से जवाब दिया, "मैं समझता हूँ, मुस्कान। तुम जहां भी हो, अगर तुम्हें किसी मदद की ज़रूरत हो, तो मुझे बताना।"

"तुम्हारा बहुत धन्यवाद, लोकेश। मुझे तुमसे बात करने से बहुत राहत मिलती है," मुस्कान ने कहा। "तुम हमेशा मेरे लिए खड़े रहते हो, और मैं इसके लिए हमेशा आभारी रहूँगी।"

"यह मेरा कर्तव्य है," लोकेश ने नर्म आवाज़ में कहा। "तुम्हारे लिए हमेशा यहाँ हूँ, मुस्कान।"

फोन बंद होने के बाद, लोकेश ने एक गहरी सांस ली। उसे महसूस हुआ कि मुस्कान की चिंता और परिवार की समस्याएँ अब कुछ दूर से महसूस हो रही थीं। लेकिन उसने यह भी जाना कि इस समय वह उसे जितना सपोर्ट दे सकता था, उतना वह कर चुका था। अब यह मुस्कान का वक्त था, और वह अपनी ज़िंदगी के इस हिस्से को ठीक से सुलझा पाएगी।

वहीं, मुस्कान के लिए भी यह एक महत्वपूर्ण समय था। घर वापस आकर उसने महसूस किया कि अपने परिवार के साथ कुछ समय बिताना जरूरी था। उसके माता-पिता की स्थिति खराब होती जा रही थी, और वह जानती थी कि अगर वह अपनी मदद नहीं करती, तो हालात और भी बिगड़ सकते थे।

लेकिन मुस्कान की ज़िंदगी में एक और मोड़ आने वाला था। कुछ दिनों बाद, एक दिन जब वह घर में बैठी थी, उसके पिता ने उससे एक गंभीर बात की।

"मुस्कान, हमें कुछ सख्त कदम उठाने होंगे," उसके पिता ने कहा, "हमारी स्थिति बिगड़ती जा रही है, और हमें कुछ हल खोजना होगा।"

मुस्कान ने अपने पिता की ओर देखा और उनकी आँखों में चिंता और थकान साफ दिखाई दे रही थी। "क्या हुआ, पापा? क्या हमें कुछ मदद की ज़रूरत है?" मुस्कान ने धीरे से पूछा।

"हां, हमें कुछ पैसे की जरूरत है, ताकि हम घर की मरम्मत करवा सकें। और हमें तुम्हारी मदद चाहिए, मुस्कान। तुम्हारी पढ़ाई के बारे में हमें फिर से सोचने की जरूरत है," उसके पिता ने गंभीरता से कहा।

मुस्कान की आँखों में हल्की सी चिंता आई, लेकिन उसने खुद को संभालते हुए कहा, "पापा, मैं जानती हूँ कि हम बहुत मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं, लेकिन मैं आपकी मदद करूंगी। मैं पढ़ाई के साथ-साथ कुछ और काम भी ढूंढ सकती हूँ, ताकि हम अपनी स्थिति सुधार सकें।"

उसके पिता ने मुस्कान को देखा और फिर एक लम्बी सांस ली। "तुम हमेशा हमारी उम्मीद हो, मुस्कान। हम जानते हैं कि तुम हमेशा हमारा साथ दोगी।"

मुस्कान ने अपने पिता के कंधे पर हाथ रखा और कहा, "हम इसे एक साथ ठीक कर सकते हैं, पापा। मैं कुछ ऐसा करूँगी, जिससे हमारी मुश्किलें कम होंगी।"

अब मुस्कान को अपनी स्थिति को ठीक करने के लिए और भी मजबूत कदम उठाने थे। उसने ठान लिया कि वह अपनी पढ़ाई के साथ-साथ कुछ काम भी करेगी, ताकि परिवार के लिए पैसे जुटा सके। लेकिन इस बीच, लोकेश का समर्थन और उसकी समझ उसे सबसे ज़्यादा राहत देती थी।

इसी समय, लोकेश भी अपने जीवन में कुछ अहम फैसले ले रहा था। वह जानता था कि मुस्कान को सिर्फ उसकी बातों से ही नहीं, बल्कि उसके हर कदम पर समर्थन की ज़रूरत थी। वह चाहता था कि वह मुस्कान के साथ ज्यादा समय बिताए और उसे किसी भी मुश्किल में अकेला न छोड़े।

एक दिन, लोकेश ने एक फैसला लिया। वह मुस्कान से मिलने उसके घर जाने का सोचा। वह जानता था कि मुस्कान को इस समय परिवार के साथ होने की ज़रूरत थी, लेकिन वह चाहتا था कि मुस्कान को यह एहसास हो कि वह हमेशा उसके साथ है, चाहे जो भी हो।

वह मुस्कान के घर के पास पहुँच गया, और मुस्कान ने उसे देखा। मुस्कान के चेहरे पर हल्की सी हैरानी थी, लेकिन उसकी आँखों में एक सुखद अनुभूति थी। लोकेश ने मुस्कान की ओर बढ़ते हुए कहा, "मुस्कान, तुम्हारे लिए मैं यहाँ हूँ। कभी अकेला मत महसूस करना।"

मुस्कान ने हल्की सी मुस्कान के साथ कहा, "तुम हमेशा मेरे लिए हैं, लोकेश। इस समय मुझे तुम्हारी बहुत ज़रूरत थी।"

लोकेश ने मुस्कान का हाथ थामते हुए कहा, "अब हम दोनों मिलकर तुम्हारी समस्याओं का हल ढूँढ सकते हैं। तुम अकेली नहीं हो।"


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