शांतिपूर्ण बाग के बीच में लगे हुए झूलों पर हवा का हल्का-हल्का झोंका आ रहा था। आस-पास के पेड़-पौधे अपनी हरी-हरी पत्तियों को झटकते हुए इस खुशनुमा मौसम का स्वागत कर रहे थे। बाग में दूर-दूर तक न कोई शोर था, न कोई हलचल। बस हर जगह एक अजीब सी शांति और सुकून फैला हुआ था। बाग के एक कोने में, जहां कुछ फूलों से सजी एक छोटी सी बेंच रखी थी, मुस्कान बैठी हुई थी। उसकी आँखें किताब में डूबी हुई थीं, लेकिन कभी-कभी वह आसमान को निहारती, मानो कोई गहरी सोच में खोई हो।
लोकेश, बाग में टहलने आया था, बस अपने विचारों को थोड़ा शांत करने के लिए। वह एक ऐसे मोड़ पर था, जहां जिंदगी की उलझनें उसे घेर रही थीं, और वह इस बाग में अपने मन को थोड़ी राहत देना चाहता था। धीरे-धीरे कदम बढ़ाते हुए, वह मुस्कान के पास से गुजरने लगा। उसकी नजरें मुस्कान पर पड़ीं, जो किताब पढ़ रही थी, और उसकी मासूमियत और शांतिपूर्ण चेहरे ने लोकेश को आकर्षित किया। लेकिन जैसे ही वह थोड़ा और पास आया, अचानक एक कुत्ता दौड़ते हुए आया और लोकेश के पैरों से टकरा गया।
लोकेश संतुलन खो बैठा और एक झटके से मुस्कान के पास गिरते हुए उससे टकरा गया। मुस्कान चौंकी और किताब उसके हाथ से गिर गई। वह घबराकर खड़ी हो गई, और फिर हल्की सी मुस्कान के साथ बोली, "देखो, क्या तुम ठीक हो?"
लोकेश हड़बड़ी में खड़ा हुआ और कहा, "मुझे माफ़ करना, मैं ध्यान नहीं दे पाया।" वह अपनी शर्मिंदगी को छिपाने की कोशिश कर रहा था, लेकिन मुस्कान की नज़रों में एक हल्की सी हंसी थी, जो उसने बड़ी मुश्किल से रोकी थी।
"कोई बात नहीं," मुस्कान बोली, "तुम तो शायद ये सब भूल चुके हो, लेकिन मैं अब अपना किताब भी नहीं ढूंढ़ पा रही हूं।" वह थोड़ा परेशान होते हुए किताब को इधर-उधर देख रही थी।
लोकेश ने झुंझलाते हुए नीचे देखा और किताब को उठाते हुए कहा, "यह रही तुम्हारी किताब।" उसने किताब मुस्कान की ओर बढ़ाई।
मुस्कान ने उसे हाथ में लिया और फिर एक पल के लिए लोकेश की आँखों में देखा। "तुम इस बाग में अक्सर आते हो?" उसने हलके से पूछा।
लोकेश थोड़ा चौंका, लेकिन फिर मुस्कान के सवाल का जवाब देते हुए कहा, "हाँ, मैं यहाँ अक्सर आता हूँ, कभी अकेला सोचने, कभी शांति पाने के लिए।"
"शांति?" मुस्कान ने हंसते हुए कहा, "मुझे लगता है, इस बाग में शांति सिर्फ़ उस वक्त मिलती है, जब कोई न हो।" फिर वह खुद ही मुस्कान हो गई, "लेकिन फिर भी, यहां का माहौल कुछ अलग सा है, है ना?"
लोकेश को इस पर कुछ सोचने का समय मिला और वह हल्का सा मुस्कराया। "हाँ, तुम सही कह रही हो। कभी-कभी, हमें कुछ ऐसी जगहों की ज़रूरत होती है, जहाँ शांति महसूस हो सके।"
मुस्कान ने उसकी तरफ देखा और फिर सिर झुका लिया। "मुझे लगता है, हम दोनों को थोड़ी देर के लिए यहीं बैठना चाहिए।" वह बेंच की ओर इशारा करते हुए बोली।
लोकेश ने सिर हिलाया और मुस्कान के साथ बेंच पर बैठ गया। वह दोनों चुपचाप कुछ देर तक बैठे रहे, एक-दूसरे के आस-पास की शांति का आनंद लेते हुए। हवा का हल्का झोंका उनके चेहरे को छूता और बाग की चुप्पी को तोड़ता हुआ आवाज़ में मिल जाता।
लोकेश और मुस्कान की पहली मुलाकात इतनी सरल और स्वाभाविक थी, जैसे यह एक संयोग था, लेकिन दोनों के दिलों में एक अजीब सा एहसास था। एक हल्का सा आकर्षण, जो दोनों के बीच बिना शब्दों के बढ़ने लगा।
फिर मुस्कान ने धीरे से कहा, "तुमसे मिलकर अच्छा लगा।" लोकेश ने मुस्कान की ओर देखा और कहा, "मुझे भी। शायद हम फिर से यहाँ मिलें।"
मुस्कान मुस्कराई और कहा, "मैं भी यही सोच रही थी।"
इस मुलाकात के बाद, दोनों के दिलों में एक नई उम्मीद और उत्साह का जन्म हुआ, हालांकि यह सिर्फ एक संयोग था। लेकिन, जैसा कि हमेशा होता है, कभी-कभी सबसे छोटी सी मुलाकात भी बड़े बदलाव की शुरुआत बन जाती है।