Do Dilo ka Milan - 2 in Hindi Love Stories by Lokesh Dangi books and stories PDF | दो दिलों का मिलन - भाग 2

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दो दिलों का मिलन - भाग 2

"लोकेश और मुस्कान" - दूसरा भाग

कुछ दिनों बाद, लोकेश और मुस्कान का यह संयोगिक मिलन यादों में बैठ गया था। दोनों ने एक-दूसरे से मिलकर एक अलग ही प्रकार का संतोष और शांति महसूस की थी। बाग में वे पहली बार मिले थे, लेकिन उस दिन के बाद उनकी मुलाकातें अक्सर उसी बाग में होनी लगीं। वह बाग अब दोनों के लिए एक खास जगह बन चुका था—एक ऐसी जगह, जहाँ वे अपनी ज़िंदगी के संघर्षों और उलझनों को भूलकर एक दूसरे से मिलते थे।

लोकेश को यह सब बहुत ताजगी देता था। वह अपने रोज़ के तनाव से कुछ पल के लिए बाहर आकर मुस्कान से बातें करता। मुस्कान के साथ बिताए गए समय में उसे एक अजीब सा सुख मिलता। वह शांति, जो उसे पहले कभी कहीं और नहीं मिली थी, अब मुस्कान की मौजूदगी में महसूस होती थी। और मुस्कान भी कुछ ऐसा ही महसूस करती थी। वह लोकेश से मिलकर अपने जीवन के छोटे-मोटे तनावों को भूल जाती थी, और उसे यह महसूस होता था कि एक और दुनिया भी है, जो इन सब उलझनों से दूर है।

एक दिन, जैसे ही लोकेश बाग में आया, उसने देखा कि मुस्कान एक बेंच पर बैठी हुई थी, लेकिन आज उसकी आंखों में एक उदासी थी। लोकेश ने पास जाकर मुस्कान से पूछा, "क्या हुआ, मुस्कान? तुम ठीक हो?"

मुस्कान ने सिर उठाकर उसे देखा और हल्की सी मुस्कान के साथ कहा, "हां, सब ठीक है। बस कुछ परेशानियाँ हैं, जो दिमाग में घूम रही हैं।"

लोकेश ने उसकी आँखों में देखा और तुरंत समझ गया कि कुछ ग़लत है। "तुम कह सकती हो अगर तुम चाहो, मुझे सुनने में कोई समस्या नहीं है।" लोकेश ने नर्म आवाज़ में कहा।

मुस्कान चुप रही कुछ समय तक। फिर उसने धीमे स्वर में कहा, "मुझे अपने परिवार के साथ कुछ दिक्कतें आ रही हैं। मेरी माँ और पिताजी के बीच बहुत समस्याएँ चल रही हैं। मुझे लगता है, ये सब मेरे लिए बहुत मुश्किल हो रहा है।"

लोकेश ने उसके पास आकर उसकी पीठ थपथपाई और कहा, "मुस्कान, मैं जानता हूँ कि यह बहुत कठिन है, लेकिन तुम अकेली नहीं हो। तुम चाहे तो मुझसे कुछ भी साझा कर सकती हो, मैं तुम्हारे साथ हूँ।"

मुस्कान ने आंखें बंद कीं और एक लंबी सांस ली। वह जानती थी कि लोकेश उसे समझता है और उसकी चिंता वास्तविक है। उसने धीरे से कहा, "धन्यवाद लोकेश, तुमने मुझे थोड़ा आराम दिया।"

लोकेश ने मुस्कान से नज़रे मिलाते हुए कहा, "हम दोनों को मिलकर सब कुछ ठीक करना होगा, क्योंकि हर समस्या का हल होता है।"

उनकी बातचीत थोड़ी देर और चली, और फिर मुस्कान ने धीरे से मुस्कराते हुए कहा, "तुमसे मिलकर हमेशा अच्छा लगता है, लोकेश।"

लोकेश ने भी मुस्कान की आँखों में देखते हुए कहा, "तुमसे भी, मुस्कान। अब, क्या तुम चाहोगी कि हम यहाँ कुछ और समय बिताएँ?"

मुस्कान ने सिर हिलाया और दोनों ने बाग में और समय बिताया, दोनों के दिलों में एक-दूसरे के लिए और भी गहरी समझ और प्यार बढ़ रहा था। इस मुलाकात के बाद, लोकेश और मुस्कान के रिश्ते में एक नई दिशा मिल चुकी थी—एक ऐसा रिश्ता, जिसमें शब्दों से अधिक समझ थी, और जहाँ एक-दूसरे की चिंता और समर्थन सबसे बड़ा आधार बन गया था।

अगले कुछ सप्ताहों में, लोकेश और मुस्कान ने एक-दूसरे से और भी ज्यादा खुलकर बात करना शुरू किया। वे न सिर्फ अपने व्यक्तिगत मुद्दों पर चर्चा करते, बल्कि अपने सपनों, आकांक्षाओं और जीवन के बारे में भी बात करने लगे। एक दिन, मुस्कान ने लोकेश से पूछा, "तुम अपनी जिंदगी में क्या चाहते हो?"

लोकेश कुछ देर चुप रहा, फिर उसने कहा, "मैं चाहता हूँ कि मैं ऐसा काम करूँ, जिससे लोगों की ज़िंदगी बदल सके, और मैं खुद को भी समझ सकूँ। लेकिन कभी-कभी लगता है, मुझे खुद के लिए कुछ समय चाहिए।"

मुस्कान मुस्कराई, "यह तो हर किसी की इच्छा होती है। लेकिन क्या तुमने कभी सोचा है कि शायद तुम्हें किसी के साथ अपना समय बिताना चाहिए, ताकि तुम खुद को और बेहतर समझ सको?"

लोकेश ने मुस्कान की ओर देखा और फिर धीरे से कहा, "शायद तुम्हारा सही है।"

वह दोनों धीरे-धीरे एक-दूसरे के साथ और भी घनिष्ठ हो गए, और उनका रिश्ता एक नई राह पर बढ़ता गया, जहाँ समझ, समर्थन, और प्यार की नींव और भी मजबूत होती गई।

जारी......