मंजिले कहानियो का किताबी सग्रह मे से एक मर्मिक कहानी...
नाम ( प्रयागराज )
" मन की एक तृप्त करने वाली यक्त आज भी टीस देती थी " बिमला जैसे रोने लग जाती थी, मोहन लाल भी चुप हो जाता था। ये कारवा मौत का कैसे बना था। " कौन सा हम vip थे " बिमला बोली थी, " हम तो एक मामूली जनसधारण हैं। "
बस मे बैठने का कितना चाव था, केशव और अमोली को... वो पंद्रहा बीस साल के लगभग होंगे। 2025 जा रहा है। प्रयाग राज मे कर्मा वाले नाहते हैं, किस्मत जिनकी सीधी हो। वो जनवरी की ठंड... हवा छुरी से जैसे काट रही हो, आपने ही हाथ पकड़ कर ले जाते हैं।
कितना दुःख था, कितनी सिसकियाँ थी। प्रयाग राज कितनी दूर था.... बस पहुंच गए थे। मोनी अमावस्या का वो दिन... संगम मे हम पहुच गए थे। कितना खुश था.... उसको भी पाप लगा होगा... तभी नहाते हुए गहरे पाप ने उसका सास घुट गया... केशव और अमोली कितना तड़फ़े होंगे।
बहुत कुछ खत्म हो गया। मौन अवस्या थी... कदमो ने रोद दिया.. सौ रहे थे जनसंधारण और vip ऊपर पता नहीं कैसे चढ़ गए.... माखोल हो गया, जनाब आपका, गरीब शहीद हो गया।
कितनी घुटन थी वातावरण मे, सास भी नहीं आता था... लाइन किधर की किधर निकल गयी। पुलिस बताये... वो कया कर रही थी। भीड़ का इतना बड़ा हजूम जनसंधारण पे था... कोई गहरे सपने मे गया दुबारा नहीं उठा... ठंड का माहौल... बिमला उच्ची अवाजो मे पुकार रही थी। " केशव, उठ " बाप कह रहा था... "अमोली उठ " वो कभी नहीं उठे।
प्रयाग राज से कौनसा पाप धो के आये थे... सास भी कठिन हो गया था... कहा आता था... सब खत्म हो गया था। नहाने से पाप उत्तर गया... " हाँ मैंने तो केशव के पापा, बच्चे ही खो दिए। " चुप स्नाटा.... चीख.... शांत सदा के लिए जैसे काल खड़ा मुस्करा रहा हो.... खुद आता हैं, मेरा ग्रास बनने को "
उतरे हुए तन के कपड़ो के बीच और कोसती और भी किसे के भाई किसी का अब कोई नहीं बच पाया था। कितनी काहली मे सब कुछ खत्म हो गया... वो लोगों ने ऊपर चढ़ रोद दिया सब कुछ....
पाप हो गया... कौन सी तरवेणी मे नहायगे... प्रयागराज मे कौनसा पाप रह गया जो वो करेंगे, मल मल के नहाएंगे। कितना नहा सकोगे। जो पाप हुआ, अब कया होगा... जो छोड़ के वापस चले गए..भरे हाथ आये थे, छोड़ के चले आये.... मेले मे लूट के आये.... हम।
प्रयागराज मे पाप vip के और होंगे, जन सधारण के और होंगे... सोचता हू.. इतनी गहरायी मे, सब कुछ खत्म हो गया, सब कुछ भीड़ मे अच्छे हिरदे वाले टूट गए... कया हुआ -------" जुदा होने के बाद सब पाप छूट गए। " भगवान के चरणों मे सदा के लिए चला गया ---"कैसी ये समय की समस्या आन पड़ी, जुदा हो गए, भगवान के हिर्दय रूपी कमल मे " सब बेहाल, शोर रोने कुर्लाने का, सब संख्य नाद को लुप्त कर रहा था।
वाक्य था।----- प्राता काल की भिभूर करने वाली वो भीड़... जो सब कुछ खत्म कर गयी।
कैसा अंत था, प्रयागराज का, अंतकरण शून्य शून्य जल रहा था।
❤️ (चलदा ) ----------- " नीरज शर्मा "