Manzile - 19 in Hindi Anything by Neeraj Sharma books and stories PDF | मंजिले - भाग 19

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मंजिले - भाग 19

           मंज़िले कहानी सगरे मे से ------

                             ( एक मुलाक़ात )

1987 की सत्य घटना, आधारित कहानी, पात्र कल्पनिक  और स्थान कल्पनिक हैं। अगर सच लिख दू... तो पथर बाज़ी हो जाएगी। मारने वालो का पता नहीं, अपुन तो पक्का दोजख  मे.... नहीं  मै मरना नहीं चाहता... सच इतना भी मत बोलो, कि खुद संकट मे फ़स जाओ। बस यही सोच कर, मै चुप हू। 

                      कहानी के किरदार यूँ हैं... तुम जान सकते हो किसे के अंदर कया चलता हैं... चलता हैं बस मुश्किल से एक गुजरे जमाने का शौर। जान सकते हो सामने बैठे रहमत चाचे को.. बाते करो खूब बाते करो। जानो इसके अंदर कया चल रहा हैं। बाते होने के पश्चात कया जान पाए। " कुछ भी नहीं " उसने ऐसा बोला। डॉ. मनोचकितस्क हस पड़ा। 

               " जो आपने ऊगलो के नाख़ून खाये बार बार.... निचला होंठ खाये... हाथों से कोई न कोई चीज तोड़ता रहा हो। वो तुम्हारे ख़याल से कया होगा ---" कुछ होगा, जरूर। डॉ साहब बोले.. " बताता हू, ये लोग शकी और आत्मविश्वास के कमजोर होते हैं, आपने आप को बयान करने मे कुछ समय लेगे। सच कम बोलते हैं ऐसे लोग " इनसे बाते करो... " पूछो कुछ भी। " डॉ ने मुझें कहा ----" आज से हम दोनों इस कमरे मे रहेंगे... तुम्हारा नाम कया हैं? उसने गहरी आँखो के बीच उतरने की कोशिश की। " नाम रहमत हैं " फिर वो चलते हुए बोला, " कया जुर्म किया आपने। " ये सुन कर रहमत चुप सा हो गया। " जुर्म कोई नहीं " उसने कहा। " जुआरी के पास खड़ा था, पुलिस ने दबोच लिया, पर मै तो उसकी शेव बनाने आया था। " फिर उसने गहरी सास छोड़ी।

                     " तुम को कयो पकड़ा " रहमत ने कहा।

"मुझे भी बस इसी चक्र मे पकड़ा। जिसने कत्ल किया, वो भाग गया, मै पकड़ा गया।" रहमत उच्ची से हसा... "---क़ानून  अंधा हैं साला " रहमत ने कहा, "कोई धासु वकील करो, नही तो छोड़े गे नहीं जल्दी।" तभी सुपरडेंट ऑफ़ पुलिस का मुलाज़िम अंदर आया।

                    "चले कोई आपको मिलने आया हैं। " रहमत का माथा ठिनका " रहमत अभी आया। " बाहर जाकर  सुप्रडेंट से बोला, " साहब उसको पहचान होंगी हैं, मै क़त्ल नहीं किया, आपको जरूरत थी, तो छोटा मुल्लाजिम भेज देते। " 

                "तुम ए. स.आई  हो।" सुपरडेंट ने कहा। "  लाजिक बता नहीं कया लगा " उसने चुपी को तोड़ा " छोड़ दो, बड़े अफसर के आने  से पहले " सुपरडेंट बेवाक खड़ा रह गया था। " आप जान गए उसे। " सुप्रडेंट ने कहा। " हा छोटा मोटा चोर हैं,  शायद नहीं। " अफसर ने कहा।

     "कभी कभी जो हम सोचते हैं, ऐसा होता नहीं हैं। वो मामूली सा जुआरी हैं... सुरडेंट को कहा उसने ए . स. आई सुन कर सुरडेंट की बात अब बेवाक रह गया।

" आप ने पढ़ाई से उसको परख की, लेकिन साहब छोड़ देता हू, उसका क्राइम बहुत हैं। " महजबो के नाम पे गोलिया, छुरे मारता हैं, कल मुश्किल से पकड़ा गया हैं। आप कहते हैं छोड़ देते हैं, सर।

"वो तो..... एक दम से हरामी हैं... इसको छोड़ना नहीं.. लटका दो, चुराहे पे।"  अफसर बोलते हुए आपनी वर्दी डालने को चला गया... बहुत वार इंसान धोखा खा जाता हैं, किसी की परख के लिए।

(चलदा )               -- नीरज शर्मा --