बाबू की मस्ती
गाँव के एक छोटे से मुहल्ले में एक आदमी रहता था, जिसका नाम था बाबू। बाबू हमेशा कुछ न कुछ नया करने की सोचा करता था, लेकिन उसके हर नए आइडिया में हंसी-ठिठोली छुपी रहती थी। एक दिन बाबू ने सोचा, क्यों न कुछ ऐसा किया जाए जिससे सब लोग हंसी से लोटपोट हो जाएं?
उसने सबसे पहले अपने दोस्त शंकर से इस बारे में सलाह ली। शंकर बड़े गंभीर स्वभाव का आदमी था और हमेशा बाबू की मजाकिया हरकतों से दूर रहता था। बाबू ने कहा, "यार शंकर, मैं कुछ खास करने वाला हूँ, तुम मेरे साथ आओ, देखो और सीखो!"
शंकर ने मुँह चिढ़ाते हुए कहा, "तुम क्या करोगे, बाबू? कोई नई दवा तो नहीं बना रहे हो?"
बाबू हंसते हुए बोला, "नहीं, इस बार मैं कुछ और बड़ा करने जा रहा हूँ।"
फिर बाबू ने शंकर को बताया कि वह गाँव के चौक में एक बड़ा हास्य कार्यक्रम करने जा रहा है, जिसमें वह खुद को अलग-अलग रूपों में पेश करेगा। शंकर चौंकते हुए बोला, "तुम? बाबू? वह भी हास्य कार्यक्रम? पागल हो क्या?"
बाबू मुस्कराया और बोला, "देख लेना, मैं सबको हंसी से लोटपोट कर दूँगा!"
अगले दिन बाबू ने पूरी तैयारी कर ली। उसने एक बड़ा सा मंच तैयार किया और गाँव वालों को आमंत्रित किया। शंकर ने भी देखा, "बाबू ने तो सच में कुछ बड़ा कर दिया!"
कार्यक्रम शुरू हुआ। बाबू ने सबसे पहले मंच पर आकर शेर की तरह आवाज़ निकाली, "राव, राव!" गाँव वाले घबराए, फिर बाबू ने कहा, "अरे! मैं शेर नहीं हूँ, मैं तो बस बाबू हूँ, जो हंसी के साथ जंगल में घूमा करता है!"
गाँव वाले सब हंसने लगे। फिर बाबू ने दूसरे रूप में आकर खुद को एक डॉक्टर के रूप में पेश किया। उसने बड़े गंभीर लहजे में कहा, "मुझे बताओ, क्या दिक्कत है?"
एक गाँववाले ने कहा, "बाबू, मुझे तो बस पेट में थोड़ा दर्द है।"
बाबू ने बिना समय गवाए, कहा, "अरे, दर्द की तो कोई बात नहीं! तुम्हारे पेट में तो बस हंसी का वायरस फैल गया है, ठीक हो जाएगा!"
फिर बाबू ने एक और रूप धारण किया। इस बार वह गाँव के प्रमुख बनकर आए और बोले, "मैं हूँ आपके गाँव का प्रमुख, और आज से हर किसी को दिन में तीन बार हंसना होगा!"
गाँव वाले हैरान हुए और पूछने लगे, "पर ऐसा क्यों बाबू?"
बाबू ने कहा, "क्योंकि हंसी सबसे बड़ा इलाज है। जो हंसता है, वह स्वस्थ रहता है!"
गाँव वाले फिर हंसी में डूब गए। बाबू का हास्य कार्यक्रम पूरी तरह से सफल हो गया था। सब लोग हंसी से लोटपोट हो रहे थे और बाबू को बहुत तारीफ मिल रही थी।
लेकिन शंकर चुपचाप एक कोने में बैठा था और सोच रहा था, "बाबू ने तो सच में साबित कर दिया कि हंसी सबसे बड़ी दवा है।"
अगले दिन शंकर ने बाबू से कहा, "यार, तू तो असल में हंसी का डॉक्टर बन गया है।"
बाबू हंसते हुए बोला, "हाँ, शंकर, बस थोड़ी सी मस्ती और हंसी चाहिए, बाकी सब ठीक हो जाता है।"
फिर बाबू ने अपना नया प्लान बताया, "अब मैं गाँव में हर हफ्ते एक हास्य क्लब शुरू करूंगा, ताकि सब लोग अपनी परेशानियाँ भूलकर हंसें और स्वस्थ रहें!"
शंकर ने सहमति देते हुए कहा, "यार, तू बहुत ही अलग आदमी है, बाबू।"
बाबू हंसते हुए बोला, "क्या करूँ, मस्ती तो मुझमें है ही!"
और इस तरह बाबू ने अपनी हंसी और मस्ती से गाँव के लोगों की ज़िंदगी में खुशियाँ भर दीं। अब गाँव में हंसी का वायरस फैल चुका था, और सब बाबू को धन्यवाद दे रहे थे।
गाँव में हंसी की बहार आ गई थी और बाबू को सबसे खास पहचान मिल गई थी। अब वह सिर्फ बाबू नहीं, बल्कि "हंसी के डॉक्टर" के नाम से मशहूर हो गया था।