छोटे से गांव में रहने वाली आर्या और शहर में पढ़ाई कर रहा आरव, पहली बार मेले में मिले। आर्या के शांत स्वभाव और आरव की हंसी-मजाक से दोनों जल्द ही एक-दूसरे के करीब आ गए। मेले की वो मुलाकात एक गहरी दोस्ती में बदली और धीरे-धीरे वो दोस्ती प्यार में बदल गई।
आरव हर छुट्टी में गांव आता और दोनों घंटों नदी किनारे बैठकर सपने बुनते। आर्या चाहती थी कि वो दोनों एक दिन शादी कर लें और शहर में एक छोटी-सी दुनिया बसाएं। आरव ने भी वादा किया कि वह पढ़ाई पूरी होते ही आर्या के घर रिश्ते की बात करेगा।
लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। आरव का परिवार उसकी शादी शहर के एक अमीर घराने की लड़की से तय कर चुका था। आरव ने बहुत कोशिश की, लेकिन वह अपने परिवार के खिलाफ नहीं जा सका। जब उसने यह बात आर्या को बताई, तो उसकी आंखों में आंसुओं का समंदर था। आर्या ने चुपचाप आरव को विदा किया, लेकिन भीतर से वह टूट चुकी थी।
शादी के कुछ दिनों बाद आरव को आर्या का एक ख़त मिला। उसमें लिखा था:
"आरव, मैं जानती हूं कि तुमने हर कोशिश की, लेकिन शायद हमारा साथ बस यहीं तक था। तुम्हारा प्यार मेरी जिंदगी की सबसे खूबसूरत याद है। इस प्यार के साथ ही मैं अपनी आखिरी सांस लूंगी। तुम खुश रहना।"
आरव ने वह ख़त पढ़ते ही गांव की ओर दौड़ लगाई, लेकिन जब वह पहुंचा, तब तक देर हो चुकी थी। आर्या ने नदी किनारे अपने सपनों को अलविदा कह दिया था।
आरव ने तब से वह गांव छोड़ दिया और वह ख़त उसकी जिंदगी की सबसे बड़ी टीस बनकर रह गया।
कभी-कभी प्यार सिर्फ मिलन की नहीं, बलिदान की कहानी बन जाता है।
आर्या के जाने के बाद आरव पूरी तरह बदल गया। वह अपनी शादीशुदा जिंदगी में होते हुए भी कभी खुश नहीं रह पाया। उसकी पत्नी अनुष्का समझदार और दयालु थी। वह आरव के चेहरे पर हर रोज़ एक छिपा हुआ दर्द देखती थी, लेकिन उसने कभी सवाल नहीं किया।
एक दिन, आरव ने अनुष्का को आर्या की कहानी बताई। सुनते ही अनुष्का ने कहा, "प्यार कभी खत्म नहीं होता, चाहे इंसान चला जाए। लेकिन अगर तुम इस दर्द को संभाल नहीं पाए तो खुद को भी खो दोगे। तुम आर्या की यादों को एक सकारात्मक तरीके से जीने दो।"
अनुष्का की बातों ने आरव को सोचने पर मजबूर कर दिया। उसने तय किया कि वह आर्या की याद में कुछ ऐसा करेगा जो उसे हमेशा जिंदा रखे। उसने उसी गांव में एक स्कूल बनवाने का फैसला किया, जहां आर्या पढ़ना चाहती थी।
गांव में नई शुरुआत
आरव ने अपने काम और परिवार के साथ-साथ हर सप्ताहांत गांव जाना शुरू किया। उसने गांव के बच्चों को पढ़ाने के लिए एक छोटा स्कूल बनवाया और उसका नाम रखा, "आर्या विद्या निकेतन"। यह स्कूल उन बच्चों के लिए था, जो गरीबी के कारण पढ़ाई नहीं कर सकते थे।
गांव के लोग आरव की इस पहल से बहुत खुश हुए। बच्चों की पढ़ाई और उनके भविष्य में बदलाव देखकर आरव के दिल में सुकून आने लगा। लेकिन हर बार स्कूल के पास की नदी पर बैठकर उसे आर्या की याद आ जाती।
आरव की आखिरी मुलाकात
एक दिन, जब स्कूल के 10 साल पूरे हुए, तो आरव ने गांव में एक बड़ा समारोह रखा। वहां के बच्चे, शिक्षक और गांव के लोग इकट्ठा हुए। समारोह खत्म होने के बाद, आरव नदी के किनारे गया, जहां उसने और आर्या ने अपने सपने देखे थे।
उसने आंखें बंद कीं और मन ही मन कहा,
"आर्या, देखो, तुम्हारा सपना पूरा हो गया। शायद मैं तुम्हारे साथ नहीं रह सका, लेकिन तुम्हारी यादों ने मुझे जीना सिखा दिया।"
कहा जाता है कि उसी शाम, आरव ने नदी किनारे बैठकर अपनी आखिरी सांस ली। गांव के लोगों ने उसे वहीं दफनाया, जहां आर्या को दफनाया गया था। अब वह जगह प्यार और बलिदान की कहानी बन गई।
"आर्या और आरव का नाम आज भी उन मासूम बच्चों के चेहरे पर मुस्कान बनकर जिंदा है, जिनकी जिंदगी उनके सपने के स्कूल ने बदल दी