Badlaav Zaruri Hai - 3 in Hindi Moral Stories by Pallavi Saxena books and stories PDF | बदलाव ज़रूरी है भाग -3

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बदलाव ज़रूरी है भाग -3

बदलाव ज़रूरी है शृंखला में लीजिये पेश है मेरी तीसरी कहानी 

कानून व्यवस्था और न्याय

पंकज एक बहुत ही साधारण आम सा दिखने वाला एक मामूली इजीनियर है लेकिन प्रतिष्ठा एक बहुत ही खूबसूरत गोरी चिट्टी किन्तु कम पढ़ी लिखी महिला है. जिसके पापा के पास बहुत पैसा है और उनका यही पैसा देखकर पंकज के पापा ने मोटी रकम के नाम पर अपने सीधे सादे पंकज की शादी प्रतिष्ठा से ही कर देना उचित समझा क्यूंकि उन्हें लगता था अपनी नौकरी के चलते तो वह पंकज को कभी कोई सुख दे नहीं पाए, कम से कम शादी के बाद उसे पैसों के लिए किसी का मुंह ना देखना पड़े. पंकज की माँ ने बहुत समझाने की कोशिश करी कि

“शादी ब्याह जितना हो सके बराबर वालों में हो उतना ही अच्छा होता है”. पंकज की भी यही राय थी. वह यह शादी नहीं करना चाहता था. लेकिन पंकज अपने परिवार में इकलौता बेटा नहीं था उसके और भी तीन छोटे भाई बहन थे. उसे लगा शायद शादी के नाम पर मिले पैसों से उसके भाई बहनों का जीवन सुधर जाये तो उसने भी इस शादी के लिए हाँ कह दिया.
बड़ी ही धूम धाम से शादी हुई कुछ दिनों तो "हिन्दी पिक्चरों" के आधार पर जीवन शांति पूर्वक एक आदर्श बहू का नाटक करते -करते व्यतीत हो गया. लेकिन जब देखा अब सबको आदत हो चली है और काम बढ़ने लगा है तो प्रतिष्ठा ने अपने नाम की मर्यादा को भंग करते हुए. जो हंगामा खड़ा करना शुरु किया कि परिवार वालों के साथ -साथ सभी नाते रिश्तेदार के भी होश ठिकाने आगये. इधर पड़ोसियों के भी कान खड़े हो गये.
पंकज का परिवार माध्यम वर्गीय परिवार रहा था तो सभी के मन में उनके परिवार के लिए बहुत ही आदर और सम्मान की भावना थी उनका मानना था सीधे सादे आचरण वाले बड़े ही सज्जन लोग हैं और उनके घर ऐसी बहू आ सकती है इसकी तो कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था. पंकज अपनी पत्नी को समझाने का बहुत प्रयास किया करता था. लेकिन उसकी पत्नी ने उसकी कभी एक ना सुनी उसने घर का सब काम करना बंद कर दिया. घर की माँ और बहन को घर की नौकरानी बना दिया और खुद क्लब जाकर पार्टियां करने लगी. आय दिन पंकज से हाथ खर्च मांगने लगी और जब पंकज मना करता तो कहती

“मेरे पापा ने तुम्हारे पापा को बहुत पैसे दिए हैं. कायदे से देखा जाये तो वह मेरे ही पैसे हैं, उन पर मेरा अधिकार होना चाहिए, तुम्हारे बाप का नहीं”
“तमीज से बात करो...!”

“तुम मुझे क्या तमीज सिखाओ गे...! दो कौड़ी के नौकर, तुम से शादी करके मेरी ज़िन्दगी बर्बाद हो गयी. क्या क्या सपने देखे थे मैंने कि तुम एक इंजीनियर हो हम बाहर विदेश जायेंगे घूमेंगे और हुआ तो वहीं बस जायेंगे. पैसा भी ज्यादा मिलेगा तो मैं भी महंगी महंगी चीजे खरीदूँगी और अपनी सहेलियों को जलाऊंगी, लेकिन तुमने मेरे सारे सपनों को तोड़ दिया. विदेश ले जाना तो दूर तुम तो मुझे अपने परिवार से भी दूर नहीं ले जाते. मैं अलग होना चाहती हूँ. इतनी सी बात तुम्हारी समझ में क्यूँ नहीं आती....!”
“अलग होकर करोगी क्या...? यहाँ तो माँ और मंजू मिलकर सारा काम संभल लेती है. अलग हो गए तो सब तुम्हें ही करना पड़ेगा और रही बात विदेश की तो यहाँ तो फिर भी नौकर चाकर मिल जाते है. वहां विदेश में कोई नहीं मिलता”

“हाँ तुम्हें बड़ा पता है”.

“पता ही है, इसलिए बोल रहा हूँ...!”

रोज-रोज पति पत्नी के इस तरह के झगड़ों से अब घरवाले भी तंग आ चुके थे. उन्होंने पंकज से कहा “तुम बहू को लेकर अलग हो जाओ, हम लोग भी अब रोज रोज का क्लेश नहीं सह सकते”.
पंकज अपनी पत्नी को लेकर अब अलग हो चुका था. फिर कुछ दिन जीवन सामान्य चला. लेकिन फिर थोड़े ही दिनों बाद पंकज को पता चला कि वह पिता बनने वाला. यह खबर सुनते ही ऐसा लगा कि अब सब ठीक हो जायेगा. लेकिन प्रतिष्ठा को अब अपने शरीर में आ रहे बदलावों को लेकर दिन प्रतिदिन खीज होने लगी थी. कहीं ना कहीं उसे ऐसा लगने लगा था कि इस बच्चे की वजह से उसकी शारीरिक बनावट बिगड़ जायेगी जो वो किसी भी कीमत पर होने नहीं देना चाहती थी क्यूंकि कहीं ना कहीं उसे ऐसा लगता था कि मात्र उसके पास यही एक वो चीज है, जिसके बल पर वह खुद को पंकज से उपर रख पाती है. यह भी चला गया तो उसके पास ऐसा कुछ भी नहीं रह जायेगा जिसके बल बूते पर वह पंकज को खरी-खोटी सूना सके...!
समय बदला, बच्चे का जन्म हुआ. सभी लोग बहुत खुश थे. पंकज के माँ -पिता ने भी पंकज को यही समझाया कि अब सब ठीक हो जायेगा. लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. उल्टा अब बच्चे की देखभाल के चलते लगे प्रतिबंधों ने प्रतिष्ठा के (एंगर इशू) ने और जड़े पकड़ ली. एक दिन तो वह बच्चे के साथ ऐसा व्यवहार करते पायी गयी कि पंकज के मन में डर बैठ गया कि कहीं उसके पीछे उसकी पत्नी बच्चे के साथ कुछ कर ना बैठे. उसने अपनी पत्नी को मनोचिकत्सक के पास चलने के लिए बहुत समझाया, बहुत मनाया, लेकिन प्रतिष्ठा का गुस्सा अब दिन पर दिन और अधिक बढ़ता जा रहा था.
पंकज ने यह बात अपने ससुर जी को भी बतायी पर उन्होंने कहा

“जी मुझे माफ़ कीजिये, मैंने तो शादी के वक्त ही आपके पिता जी को सब बता दिया था कि उसे एंगर इशू की प्रॉब्लम है और मैं केवल इसी शर्त पर शादी करूँगी कि मेरी बेटी हमेशा आप लोगों के साथ एक ही घर में रहेगी. लेकिन आप उसे लेकर अब अपने परिवार से अलग हो चुके हैं. इसमें मैं आपकी कोई सहायता नहीं कर सकता. अब वो मेरी बेटी बाद में है, पहले आपकी पत्नी है. आपको जो ठीक लगे वह निर्णय ले. हम तो गंगा नहा चुके”

कहते हुए उन्होंने पंकज के मुंह पर दरवाजा बंद कर दिया.
पंकज की समझ में नहीं आरहा था कि अब वो क्या करे क्या ना करे. उसने बच्चे को अपनी माँ और बहन के साथ रखना शुरु कर दिया. ताकि उसकी पत्नी बच्चे को कोई नुकसान ना पहुँचा दे. दिन बर दिन हालात और खराब होते चले गए. अब नौकरी के साथ -साथ घर का सारा काम और बच्चे की देखभाल भी पंकज को ही करनी पढ़ रही थी. उस पर भी यदि प्रतिष्ठा को किसी काम से दिक्कत होती तो अब उसने पंकज पर हाथ उठना और उसके साथ घरेलू हिंसा तक करना प्रारम्भ कर दिया था.
आये दिन कभी पंकज के हाथ में चोट लगी होती तो कभी पैर में चोट लगी होती, कभी कभी तो सर से लेकर चेहरे तक पर नीले पीले निशान और सूजन आदि ने उसका चेहरा तक बिगड़ के रख दिया था. सब कहते

“तुम थाने में जाकर शिकायत क्यूँ नहीं दर्ज करा आते”

“पंकज का कहना था, "गया था एक बार लेकिन उन्होने मेरा मज़ाक उड़ाया" कहा "कैसा आदमी है रे तू पत्नी से पिट ता है शर्म नहीं आती तुझे अपने साथ -साथ समस्त पुरुषों की नाक कटवाता है”

लेकिन पंकज अगर चुप था तो सिर्फ अपने बच्चे के लिए. कई बार उसके मन में आया कि वह अपनी पत्नी की हत्या कर दे. लेकिन दूजे ही पल फिर यह भी विचार आया कि यदि ऐसा कर के वह जेल चला गया तो उसके बच्चे का क्या होगा...? उसे कौन पालेगा. सोचकर वह किसी तरह खुद को समझा बुझा कर शांत कर लेता.
लेकिन कोई भला कब तक ऐसे हालातों में जी सकता है. एक दिन उसने “महिला प्रताड़ित पुरुष” संस्था में कॉल किया. वहां के लोगों ने उसे बुलाया और उसका सारा हाल पूछा. पंकज ने उन्हें सब कुछ सच सच बता दिया...मामला कोर्ट कचहरी तक पहुँचा. आरोप प्रत्यारोप में महिला पक्ष की वकील ने दहेज़ की मांग को लेकर प्रतिष्ठा के पक्ष को मजबूत करते हुए यह साबित कर दिया कि पंकज और उसके घरवालों ने दहेज लिया और फिर जब और मांग करने पर प्रतिष्ठा और उसके माँ बाप ने और दहेज़ देने से मनाकर दिया तो उन्होंने उसे इतना प्रताड़ित किया कि वह बेचारी अपना मानसिक संतुलन ही खो बैठी और इस बीमारी का शिकार हो गयी. इतना ही नहीं पंकज ने अपनी पत्नी की बीमारी की आड़ में अपने बच्चे को भी उससे दूर रखना प्रारम्भ कर दिया...! आप ही बताइये माईलार्ड कि एक दूध पीते बच्चे को उसकी माँ से अलग कर दिया जायेगा तो क्या कोई भी माँ अपने गुस्से पर काबू रख पायेगी...? नहीं ना...! बस इसी बात का फायदा उठाकर पंकज मेरी मुवक्किल को दोषी साबित करते हुए सजा दिलाना चाहता है”.
लेकिन “महिला प्रताड़ित पुरुष संस्था” की ओर से पंकज के पक्ष में लड़ रहे वकील ने कुछ आस पास के लोगों के ब्यानों से यह साबित कर दिया कि हमेशा हर जगह एक पुरुष ही गलत हो और महिला ही सही हो यह जरूरी नहीं, कई बार एक महिला भी दोषी हो सकती है."

“जज साहब, आप मेरे मुवक्किल को केवल इस बात के आधार पर दोषी करार नही दे सकते कि उसने प्रतिष्ठा के पिता से दहेज़ लिया और उसे प्रताड़ित किया क्यूंकि खुद प्रतिष्ठा के पापा को भी यह बात पता थी कि उसे ( एंगर इशू )की समस्या पहले से थी और उन्होंने इसी बात को छिपाने के लिए खुद सामने से दहेज दिया, इस लिहाज से वह भी उतने ही दोषी हैं जितने की पंकज और उसके परिवार वाले.”

“जज साहब इस एंगल से तो दोनों ही परिवारों को सजा सुनाई जानी चाहिए...ना कि सिर्फ पंकज और उसके परिवार को क्यूंकि हर बार केवल गलती पुरुष की ही नहीं होती, कई बार एक स्त्री भी दोषी होती है. जज साहब आज के समय में कानून व्यवस्था में भी
बदलाव जरूरी है....!

अगली नयी कहानी पढ़ने के लिए जुड़े रहिए मेरे साथ...धन्यवाद