Nafrat e Ishq - Part 9 in Hindi Love Stories by Umashankar Ji books and stories PDF | Nafrat e Ishq - Part 9

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Nafrat e Ishq - Part 9



सहदेव अपने कमरे में बैठा था, लेकिन उसका दिमाग उस पत्र के इर्द-गिर्द घूम रहा था। काव्या की कॉल ने थोड़ी राहत दी थी, लेकिन उसके भीतर का अशांत सागर शांत होने का नाम नहीं ले रहा था। कमरे की घड़ी की टिक-टिक और बाहर बहती हवा की आवाजें माहौल को और भी तनावपूर्ण बना रही थीं।  

"क्या सच में सब कुछ ठीक हो सकता है?" उसने खुद से कहा।  

उसके विचारों का सिलसिला अचानक टूट गया जब उसने खिड़की पर एक परछाई देखी। वह ठिठक गया। खिड़की के कांच पर हल्की सी धुंधली परछाई हिली और फिर गायब हो गई। सहदेव का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा।  

उसने जल्दी से अपने टेबल के नीचे से फोल्डिंग लकड़ी निकाली, जो उसने कभी आत्मरक्षा के लिए खरीदी थी। उसकी पकड़ मजबूत हो गई और कदम सावधानी से खिड़की की ओर बढ़ने लगे।  


खिड़की के पास पहुंचकर उसने बाहर झांका, लेकिन वहां कुछ भी नहीं था। सड़क खाली थी। खिड़की के बाहर लगे पेड़ की शाखाएं धीमे-धीमे हिल रही थीं। सहदेव ने लंबी सांस ली, लेकिन उसका डर कम नहीं हुआ।  

"क्या यह मेरा वहम था?" उसने खुद से पूछा।  

वह खिड़की को बंद करने ही वाला था कि अचानक घर की **डोरबेल** बजी।  

उसकी रीढ़ में ठंडक दौड़ गई। वह कुछ क्षणों तक हिल भी नहीं सका। उसकी नजर मुख्य दरवाजे की ओर थी, लेकिन उसका दिमाग उस खतरे की कल्पना कर रहा था जो दरवाजे के बाहर हो सकता था।  

धीमे कदमों से वह कमरे से बाहर निकला। फोल्डिंग लकड़ी उसकी हथेली में कसकर पकड़ी हुई थी। घर की हर छोटी-सी आवाज अब उसे डराने लगी थी।  

"कौन हो सकता है इस वक्त?" उसने सोचते हुए धीरे-धीरे दरवाजे की ओर बढ़ना शुरू किया।  


डोरबेल फिर से बजी। इस बार हल्की और धीमी। वह दरवाजे के पास पहुंचा और peephole से बाहर झांका।  

बाहर एक अजीब सा सन्नाटा था। कोई दिख नहीं रहा था। उसने दोबारा देखा, लेकिन वहां कोई नहीं था।  

"क्या कोई मजाक कर रहा है?" उसने खुद से कहा।  

लेकिन उसके मन में एक अनजान डर गहराता जा रहा था। उसने दरवाजे के पास लगे चेन लॉक को लगाया और दरवाजा थोड़ा-सा खोलकर बाहर झांका।  

बाहर खाली सड़क पर हल्की रोशनी फैली थी। लेकिन जब उसने दरवाजा बंद करने की कोशिश की, तभी अचानक हवा का एक तेज झोंका अंदर घुसा।  
हवा के झोंके से घर की खिड़कियां खड़कने लगीं। सहदेव ने जल्दी से दरवाजा बंद किया और उसकी कुंडी लगा दी। लेकिन जैसे ही वह पलटा, उसे लगा कि कमरे का तापमान अचानक ठंडा हो गया है।  

कमरे में हल्की सी सरसराहट की आवाज गूंजने लगी।  

"क्या यह हवा की वजह से है?" उसने अपने डर को दबाने की कोशिश की।  

लेकिन फिर, कमरे की लाइट हल्की-हल्की चमकने लगी। पहले धीमी, फिर तेज। जैसे किसी ने बिजली से छेड़छाड़ की हो। सहदेव अब घबरा चुका था।  


वह अपने कमरे की ओर भागा और दरवाजा बंद कर लिया। उसके दिल की धड़कन तेज थी। उसने खिड़की के पर्दे पूरी तरह से खींच दिए और लाइट्स को बंद कर दिया। लेकिन जैसे ही वह पलटा, उसे दरवाजे के नीचे से एक परछाई सरकती हुई नजर आई।  

"कौन है वहां?" उसने कांपती आवाज में पूछा।  

कोई जवाब नहीं आया।  

तभी कमरे में हल्की हंसी की आवाज गूंजी। वह आवाज धीमी थी, जैसे किसी ने कान के पास फुसफुसाया हो।  

सहदेव ने अपने चारों ओर देखा, लेकिन कोई नहीं था।  

"यह सब मेरी कल्पना है। यह सब मेरी कल्पना है," उसने खुद को दिलासा दिया।  


तभी कमरे की अलमारी का दरवाजा अपने आप खुल गया। अंदर से कोई चीज गिरने की आवाज आई। सहदेव ने डरते-डरते अलमारी की ओर देखा।  

उसने फोल्डिंग लकड़ी को कसकर पकड़ा और अलमारी के पास गया। वहां सिर्फ कुछ पुराने कपड़े और किताबें गिरी हुई थीं। लेकिन जैसे ही उसने कपड़ों को हटाया, उसे एक पुराना लिफाफा मिला।  

लिफाफे पर उसके नाम से कुछ लिखा हुआ था।  

"यह यहां कैसे आया?" उसने खुद से पूछा।  

उसने जल्दी से लिफाफा खोला। अंदर एक छोटी सी चिट्ठी थी। उस पर लिखा था:  

"जो अतीत में खो गया है, वह तुम्हारे वर्तमान में लौट रहा है।"

सहदेव का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। वह इस संदेश का मतलब समझने की कोशिश कर ही रहा था कि पीछे से उसे किसी के पैरों की आहट सुनाई दी।  


उसने पलटकर देखा, लेकिन वहां कोई नहीं था। तभी, दरवाजे पर तेज खटखटाने की आवाज आई।  

सहदेव ने घबराकर दरवाजे की ओर देखा।  

"कौन है?" उसने चीखकर पूछा।  

कोई जवाब नहीं आया।  

दरवाजे की आवाज तेज होती गई। जैसे कोई उसे तोड़ने की कोशिश कर रहा हो। सहदेव के पास अब सिर्फ एक ही विकल्प था—वह किसी तरह बाहर जाकर मदद मांगे।  


सहदेव ने खिड़की के रास्ते बाहर जाने का फैसला किया। उसने खिड़की खोली और धीरे-धीरे बाहर उतरने लगा। लेकिन जैसे ही उसने नीचे झांका, उसे लगा कि कोई सड़क के किनारे खड़ा होकर उसे घूर रहा है।  

"यह सब क्या हो रहा है?" उसने खुद से कहा।  

उसने जल्दी से दूसरी ओर कूदने की कोशिश की। लेकिन जैसे ही वह खिड़की से बाहर निकला, उसकी आंखों के सामने सब कुछ अंधेरा हो गया।  


जब सहदेव को होश आया, वह एक अजनबी कमरे में था। कमरे में हल्की नीली रोशनी थी।  

"मैं कहां हूं?" उसने खुद से कहा।  

कमरे के कोने में एक शख्स खड़ा था। उसका चेहरा छाया में छिपा हुआ था।  

"तुमने जो देखा, वह सिर्फ शुरुआत है," उसने कहा।  

"तुम कौन हो?" सहदेव ने कांपती आवाज में पूछा।  

"सच जानने के लिए तैयार हो जाओ, सहदेव। लेकिन याद रखना, सच हमेशा खूबसूरत नहीं होता।"  

कमरे में अचानक रोशनी तेज हो गई, और सहदेव ने खुद को फिर से अपने कमरे में पाया।  

"यह... यह सब क्या था?" उसने खुद से कहा।  

क्या यह सपना था या कोई हकीकत? लेकिन उस चिट्ठी के शब्द अब भी उसके हाथ में थे। और दरवाजे पर लगे खरोंच के निशान इस बात का सबूत थे कि कुछ तो सचमुच हुआ था।  

सहदेव जानता था कि यह सिर्फ एक शुरुआत थी। उस परछाई का रहस्य अभी बाकी था।