Nafrat e Ishq - Part 2 in Hindi Love Stories by Umashankar Ji books and stories PDF | Nafrat e Ishq - Part 2

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Nafrat e Ishq - Part 2



नए मैनेजर के आने से पहले, सहदेव ने खुद को सकारात्मकता से भर लिया। वह जानता था कि उसकी मेहनत और लगन उसे आगे ले जाएगी, और वह इस मौके को पूरी तरह से भुनाना चाहता था। 

“यह नई शुरुआत है,” उसने मन में कहा, और एक नई उम्मीद के साथ अपने काम में जुट गया। तभी, एक प्यारी-सी आवाज़ ने उसकी तंद्रा भंग की।

"सहदेव, प्लीज, तुम इस बॉक्स को उठा सकते हो?" आवाज़ में हल्की झिझक और मिठास थी।

सहदेव ने पीछे मुड़कर देखा, तो फाइनेंशियल डिपार्टमेंट की आरोही गुप्ता खड़ी थी। हल्का मुस्कुराते हुए, सहदेव ने गौर किया कि यह वही आरोही है, जो एक महीने पहले ही कंपनी में शामिल हुई थी। वह थोड़ी शर्मीली थी, और जल्दी किसी से दोस्ती नहीं करती थी। सहदेव को यह जानकर हैरानी हुई कि उसने मदद के लिए उसी को बुलाया।

"अरे, हां... बिल्कुल। क्या काम है?" सहदेव ने बात को सहज बनाने के लिए हल्की हंसी के साथ पूछा।

"क्या तुम इस बॉक्स को सेकंड फ्लोर ले जाओगे?" आरोही ने उम्मीद भरी निगाहों से देखते हुए कहा और बॉक्स की ओर इशारा किया।

"वैसे, इस बॉक्स में है क्या?" सहदेव ने थोड़ा उत्सुकता से पूछा, क्योंकि बॉक्स का वजन उसे कुछ ज्यादा ही महसूस हुआ था।

"इसमें फेमस स्वीट शॉप से मिठाई आई है!" आरोही के चेहरे पर चमक थी, जैसे मिठाई का नाम लेते ही उसकी आंखों में एक अलग ही खुशी झलक उठी। उसकी आंखों में मिठाई के लिए एक विशेष लालसा साफ झलक रही थी, मानो वह खुद को रोक नहीं पा रही हो।

सहदेव मुस्कुराए बिना नहीं रह सका। उसने बॉक्स उठाया, और थोड़े मज़ाकिया लहजे में बोला, "अच्छा, तो तुम मिठाई के चक्कर में मुझे भगा रही हो? या ये सब सिर्फ बहाना है?"

आरोही ने थोड़ा शर्माते हुए जवाब दिया, "अरे नहीं, मुझे बस...उसे ऊपर ले जाने में मदद चाहिए थी। वैसे, मिठाई तो...थोड़ी मैं भी खा लूंगी," उसने हल्के हंसी के साथ जवाब दिया, और इस बात पर दोनों की हंसी छूट गई। यह एक हल्का-फुल्का, लेकिन सुखद संयोग था। 

जैसे ही सहदेव ने सेकंड फ्लोर की ओर कदम बढ़ाए, वह महसूस कर रहा था कि यह ऑफिस, यह नई टीम, और यहां के लोग अब पहले से ज्यादा परिचित और अपने से लगने लगे हैं। सहदेव और आरोही के बीच इस सहज बातचीत ने उसकी झिझक को थोड़ा कम कर दिया था, और आरोही भी अब उसे एक दोस्ताना नजर से देखने लगी थी। 

आखिरकार, सेकंड फ्लोर पर पहुंचकर, सहदेव ने बॉक्स को टेबल पर रखा। आरोही ने हल्के मुस्कुराते हुए उसे धन्यवाद कहा। उनके बीच एक दोस्ताना सा रिश्ता बनने का यह पहला कदम था। शायद यह एक छोटी-सी शुरुआत थी, जो आगे चलकर उनकी दोस्ती को और भी गहरा बना देगी।




वही दूसरी तरफ, ब्लैक कलर की बीएमडब्ल्यू 7 सीरीज सड़क पर तेजी से दौड़ रही थी, मैक्स म्यूलर मार्ग से निकलकर वह अब जनपथ मार्ग पर पहुंच गई थी। तेज़ी से चलती गाड़ी के भीतर, लड़की अपने मेकअप में खोई हुई थी। उसकी आँखों में उत्तेजना थी, और उसकी मनोदशा किसी भी क्षण बदल सकती थी।

अचानक गाड़ी के ब्रेक लग गए। 

"आउच! यू इडियट, इतनी अचानक से ब्रेक कौन लगता है?" एक लड़की की गुस्से से चिल्लाने की आवाज़ गाड़ी में गूंज उठी। 

"सॉरी, मैडम, लेकिन अचानक से भिखारी सामने आ गया था," ड्राइवर ने बड़े शांत भाव से कहा, उसके चेहरे पर कोई हलचल नहीं थी। 

"हां तो, तो एक भिखारी सामने आया इसलिए तूने ब्रेक मारा? अगर मेरा मेकअप खराब हो जाता तो मैं एंप्लॉय के सामने कैसे इम्प्रेस जाती? क्या तुमने सोचा है?" लड़की ने ड्राइवर की ओर मुड़ते हुए उसे एक कड़ी फटकार लगाई।

वह अपनी होंठों पर लिपस्टिक लगा रही थी, लेकिन अचानक से ब्रेक लगाने के कारण लिपस्टिक उसके गालों पर फैल गई थी। उसने तुरंत एक साफ रुमाल निकाला और उसे मिटाने लगी। 

ड्राइवर ने गाड़ी फिर से स्टार्ट की, और जैसे ही वे आगे बढ़े, एक सुकून का एहसास हुआ। लेकिन कुछ ही मिनटों बाद गाड़ी फिर से रुक गई।

"अब क्या हुआ? गाड़ी क्यों रोकी?" लड़की ने इरिटेट होते हुए पूछा। 

"आगे ट्रैफिक लगा हुआ है," ड्राइवर ने सरलता से बताया। 

उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और अपना फोन देखने लगी। गाड़ी धीरे-धीरे चलने लगी, और ट्रैफिक खुलने में करीब 5 मिनट लगे। 

चलते-चलते वे एक स्ट्रीट साइड स्टॉले के पास पहुंचे, जहां कई लोग कपड़े खरीदने में व्यस्त थे। जनपथ मार्केट हमेशा की तरह भीड़ से भरी थी, स्ट्रीट वेंडर्स अपने सामान बेचने में लगे हुए थे। 

अचानक लड़की ने अपना फोन नीचे रखा और गाड़ी से बाहर झांका। उसकी नजर एक चीज़ पर टिकी रह गई, और देखते ही देखते उसके चेहरे पर गुस्सा छा गया। 

"इन लोगों की वजह से हमारी इकोनॉमी कितनी डाउन चल रही है!" उसने दांत पीसते हुए कहा। 

"क्या हुआ, मैडम? कोई प्रॉब्लम है?" ड्राइवर ने पूछा, थोड़ा परेशान होते हुए।

"तुम बाहर देखो, उस आदमी के हाथ में जो टॉप है, वही टॉप मैंने खुद पहन रखा है। और यह आदमी उसे सिर्फ ₹1000 में बेच रहा है!" उसने ड्राइवर को इशारा करते हुए कहा। 

ड्राइवर ने बाहर की ओर देखा और उसके चेहरे पर एक संजीदगी का भाव आ गया। वह आदमी जो टॉप पकड़े हुए था, उसने ध्यान से देखा कि वही टॉप उसकी मैडम ने भी पहना हुआ था। 

ड्राइवर को याद आया कि एक हफ्ते पहले वे एक शॉपिंग मॉल गए थे, जहां मैडम ने एक ब्रांडेड स्टोर से वही टॉप खरीदी थी, जिसकी कीमत ₹25,000 थी। 

"मैडम, यह ओरिजिनल नहीं है। यह सिर्फ टॉप की एक सस्ती कॉपी है," ड्राइवर ने कहा, उसके स्वर में गंभीरता थी। 

लड़की ने उस पर गुस्से से नजर डाली। "क्या तुम यह कह रहे हो कि मैंने पैसे बर्बाद किए हैं? क्या तुम जानते हो कि यह मेरा स्टाइल स्टेटमेंट है? मैं एक अच्छी कंपनी के लिए काम करती हूं, और मुझे इस तरह के कपड़े पहनने की जरूरत है!" 

उसकी आवाज़ में खीझ और निराशा दोनों थे। वह न केवल अपने पैसे की बर्बादी को लेकर नाराज थी, बल्कि अपनी छवि को लेकर भी चिंतित थी। 

"मैं सिर्फ यह कह रहा हूं कि कभी-कभी हम जो खरीदते हैं, वह मार्केट में कहीं और सस्ता मिल सकता है," ड्राइवर ने स्थिति को संभालने की कोशिश की। 

लड़की ने झिड़कते हुए कहा, "तुम्हें क्या पता? तुम्हारी अपनी दुनिया है, जहां तुम सिर्फ अपनी बात करते हो। तुम कभी भी मेरे जैसे जीवन नहीं जी सकते।" 

ड्राइवर की आँखों में चुभन महसूस हुई। उसे अपनी स्थिति पर अफसोस हुआ। वह सिर्फ अपनी नौकरी कर रहा था, लेकिन उसकी बातों में कुछ सच्चाई थी। वह जानता था कि कपड़ों की कीमतें कभी-कभी लोगों की असली कीमतों से अधिक होती हैं। 

फिर, जैसे ही ट्रैफिक थोड़ा खुला, लड़की ने अपनी नज़रें सड़क पर घुमाई। उसने अपने चारों ओर देखा और कुछ लड़कियों को देखा जो चुटकीले कपड़ों में थीं और अपने मज़ेदार अंदाज़ में हंस रही थीं। वह सोचने लगी कि क्या वास्तव में ऐसा दिखना आवश्यक है। 

"क्या यह सब बेमानी है?" उसने मन में सोचा। लेकिन अपनी इमेज को लेकर उसकी चिंता ने उसे आगे बढ़ने से नहीं रोका। 

"तुम मुझे बस ड्राइवर समझते हो, लेकिन मैं तुम्हारी तरह नहीं हूं। मैं अपने ख्यालों में जीता हूं," ड्राइवर ने धीरे से कहा। 

लड़की ने एक पल के लिए उसे देखा। उसके मन में एक हल्का सा बदलाव आया। "मुझे नहीं पता, शायद तुम ठीक कहते हो। लेकिन ये सब मेरे लिए बहुत जरूरी है," उसने कहा, और फिर से अपने फोन में ध्यान लगाने लगी।

गाड़ी फिर से चलने लगी, और ड्राइवर ने सोचा कि यह सिर्फ एक कपड़े की बात नहीं थी; यह समाज की वास्तविकता थी, जिसमें सभी की सोच अलग-अलग होती है। 



जनपथ से निकलने के बाद बीएमडब्ल्यू कार अब कनॉट प्लेस के मार्ग पर थी। कुछ मिनट की ड्राइव के बाद, वह फास्ट ट्रैक एडवरटाइजमेंट एजेंसी के सामने रुकी। 

जैसे ही गाड़ी गेट के पास पहुंची, वॉचमैन की आंखें कार की महंगी डिज़ाइन पर टिक गईं। उसने तुरंत गेट खोला, और जैसे ही गाड़ी अंदर आई, सिक्योरिटी गार्ड ने ड्राइवर से पहचान पत्र मांगा। 

ड्राइवर ने गेट का कांच नीचे किया, और खुद को पेश करते हुए बोला, "यह है, मनीष शर्मा... इस एडवरटाइजमेंट एजेंसी की नई मैनेजर।" 

सिक्योरिटी गार्ड की आंखों में एक चमक आई। उसने तुरंत सिर झुकाया और उन्हें अंदर जाने का इशारा किया। 

ड्राइवर ने गाड़ी पार्किंग एरिया में खड़ी की और मनीषा के लिए बैक गेट खोला। 

मनीषा ने अपने फोन को पर्स में डाला और एयरफोन्स निकालकर बाहर निकली। वह तेज कदमों से आगे बढ़ी, जबकि उसका दिल कुछ बेचैनी से भर गया था। 

मनीष शर्मा, 28 साल की एक खूबसूरत युवती, जिसकी हाइट 5 फुट 6 इंच थी, एक ब्लैक फॉर्मल ड्रेस और मैचिंग हील्स में नजर आई। उसके हाथ में पिंक कलर का ब्रांडेड हैंडबैग था। 

वह हाल ही में अपनी फैमिली के साथ दिल्ली के गोल्फ लिंक में एक विला में शिफ्ट हुई थी, लेकिन मूल रूप से इंदौर की रहने वाली थी। उसका बचपन वहीं बीता था। 

जैसे ही मनीषा बिल्डिंग की एंट्रेंस पर पहुंची, दो एम्पलाई ने पार्टी बम फोड़कर उसका स्वागत किया। मनीषा ने हंसते हुए उनका अभिवादन स्वीकार किया, और उसका चेहरा गुस्से से हल्का खुशियों की ओर मुड़ गया। 

तभी ऑफिस के फीमेल एम्पलाई थाली के साथ आईं, और मनीषा के माथे पर तिलक लगाते हुए उसकी आरती उतारी। उन्होंने उसके मुंह में मिठाई डाल दी। 

इस तरह के स्वागत ने मनीषा को गदगद कर दिया। वहां करीब 60 एम्पलाई खड़े थे, जो उसकी ओर उत्साह से देख रहे थे। 

वह लेफ्ट ओर चल रही थी कि अचानक उसकी नजर अंतिम कोने पर खड़े एक व्यक्ति पर पड़ी। उसे देखकर उसके दिल में एक अजीब सा गडबड होने लगा। 

उसका चेहरा एक पल के लिए सख्त हो गया, और उसकी आंखों में आश्चर्य की लकीर उभर आई। वह व्यक्ति, जो उसके लिए बिल्कुल अनजाना था, लेकिन उसे देखकर उसकी यादें ताज़ा हो गईं। 

वह पल, जब उसकी ज़िंदगी में एक काली रात आई थी, उसके मन में फिर से ताजा हो गया। मनीषा उस रात को भुलाने की कोशिश करती रही थी, लेकिन अब वह सपना उसके सामने था। 

"यह वह है!" उसने मन ही मन सोचा, और उसकी सांस थम गई। 

वह व्यक्ति उस काली रात का साक्षी था, जिसने उसके जीवन में तूफान ला दिया था। मनीषा ने अपनी नजरें दूसरी ओर घुमाईं, अपने चेहरे पर एक झूठी मुस्कान लाते हुए, लेकिन उसके दिल की धड़कनें तेज हो गईं। 

उस व्यक्ति ने उसे नजरों में पकड़ा, और उसकी आंखों में कुछ ऐसा था जो मनीषा को घेरने लगा। "क्या वह जानता है?" उसने सोचा। 

सभी कर्मचारियों ने फिर से ताली बजाई, लेकिन मनीषा की सोच कहीं और थी। वह खुद को उस पल से बाहर निकालने की कोशिश कर रही थी, लेकिन अतीत के साये ने उसे पकड़ रखा था। 

उसने अपने जज्बातों को काबू में करने की कोशिश की और उन लोगों के बीच चहकने की कोशिश की, जिन्होंने उसका स्वागत किया था। लेकिन उस व्यक्ति की उपस्थिति ने उसके अंदर की जंग को फिर से जिंदा कर दिया। 

वह अनजान था, लेकिन उसके दिल में जो तूफान चल रहा था, वह उसके चेहरे पर साफ दिख रहा था। मनीषा को अपनी भावनाओं पर काबू पाना मुश्किल हो रहा था। 

"मुझे उसे भूल जाना चाहिए," उसने सोचा। "यहाँ मैं नई शुरुआत करने आई हूँ। मुझे अपने काम पर ध्यान देना चाहिए।" 

लेकिन उस व्यक्ति की उपस्थिति ने उसे हर बार खींच लिया। "क्या वह यहाँ काम करता है? क्या यह एक इत्तेफाक है?" उसके मन में सवाल घुमड़ने लगे। 

जैसे ही मनीषा ने अपने अंदर की उथल-पुथल को काबू में करने की कोशिश की, उसने सोचा कि शायद यह सब एक नई चुनौती है, जो उसके सामने आ रही है। 

उसने ठान लिया कि वह अपनी नई जर्नी पर ध्यान देगी, लेकिन उस व्यक्ति की छवि उसके साथ रहने वाली थी। 

इस नये माहौल में, मनीषा ने अपने डर और घृणा को बाहर निकालने की कोशिश की, लेकिन क्या वह अपनी पुरानी यादों को भुला पाएगी? यह सवाल उसके मन में रह गया। 

क्योंकि यह सिर्फ एक व्यक्ति नहीं था, यह उसके अतीत का एक हिस्सा था, जो उसे फिर से परिभाषित करने की कोशिश कर रहा था।