बिछुड़े बारी बारी
काफी पुराना गाना है।आपने जरूर सुना होगा।हो सकता है बहुत से कहे नही सुना
"जिंदगी है एक सफर सुहाना
किशोर का यह गाना तो जरूर सुना होगा।आज भी खूब बजता रहता है।
दोनों गाने मिल कर क्या संदेश देते हैं।
सफर या यात्रा हर आदमी कभी ने कभी सफर करता है।ऐसे तो बिरले ही होंगे आज के युग मे जो कभी सफर करते हैं
वरना
लोगो को शादी ब्याह या अन्य कार्यक्रमों में जाने के लिए सफर करना पड़ता है।धार्मिक यात्राएं जैसे तिरुपति,अयोध्या, रामेश्वरम, गंगा स्नान,कुम्भ, महाकाल,केदारनाथ
हमारे यहाँ इतने धार्मिक स्थल है कि पूरे साल लोग जाते रहते है।
इसके अलावा मसूरी,कश्मीर, मुम्बई आदि अनेक पर्यटन स्थलो पर भी लोग जाते रहते हैं।
सफर लोग ट्रेन , बस,प्लेन से करते हैं।सफर में लोग मिलते हैं और बिछड़ते रहते हैं।जिंदगी भी एक सफर है।इसमें भी जिनको हम नही जानते वो मिलते हैं लेकिन उन्हें हम ज्यादा याद नही रखते या भूल जाते हैं।उनके बिछड़ने पर दुख नही होता।दुख होता है उनका जो अपने होते है।रिश्तेदार या मित्र
मैं सन 1970 में पहली पोस्टिंग पर आगरा फोर्ट आया था।उन दिनों आगरा फोर्ट स्टेशन पर छोटी और बड़ी लाइन दोनों हुआ करती थी।बड़ी लाइन के पार्सल,बुकिंग,क्लॉकरूम और रिजर्वेशन ऑफिस प्लेटफार्म नम्बर 1 पर और छोटी लाइन के प्लेटफार्म नम्बर4 पर हुआ करते थे।ए एस एम ऑफिस प्लेटफार्म नम्बर 2 पर था।
यू तो उन दिनों कोमर्सियाल स्टाफ आगरा फोर्ट पर सौ के आसपास था।जिसमे बुकिंग, पार्सल,चेकिंग और क्लास फोर्थ शामिल था।जिन लोगो के साथ मुझे लंबे समय तक काम करने का मौका मिला, वे थे-ओम दत्त मेहता, बाबूलाल झा,सरदार सिंह डोगरा,ओम प्रकाश मंगला,शांति लाल वर्मा, धर्मपाल वर्मा,गिरधारी लाल राठौर ये सब आज नही है।उस समय अर्जुन दास एनानी और मोहन लाल शर्मा बड़ी लाइन पार्सल में कार्यरत थे।इन दोनों के साथ मुझे ज्यादा समय तक कार्य नही करना पड़ा लेकिन इनसे सम्पर्क शुरू से ही बन गए थे।इसकी वजह थी ये दोनों अजमेर के रहने वाले थे और मेरी कुछ शिक्षा अजमेर में हुई थी और बाद में मेरी ससुराल भी अजमेर हुई।
मैं बात कर रहा हूँ एनानी की।बिना इनके दोस्त की बात किये चर्चा अधूरी रह जायेगी।दोस्त थे अर्जुन दास भाटिया।दोनों बड़ी लाइन पार्सल में कार्य कर रहे थे और दोनों की तूती बोलती थी।दोनों ही लंबे कद, आकर्षक व्यक्तित्व के थे और दोनों की जुबान पर गाली धरी रहती थी।
दोनों नशेड़ी लेकिन एक अंतर था।एनानी अपने पैसों की नही आ पिता था जबकि भाटिया खुद के।एनानी ने परिवार का ख्याल रखा और बच्चों का भविष्य बनाया जबकि भाटिया ने खुद और परिवार को बर्बाद कर दिया।
बात एनानी कि
शुरू से ही झगड़ालू प्रवर्ति और चाहे जिससे उलझ जाने की आदत रही।रेलवे में सन1974 में हड़ताल हुई थी।बोनस की मांग को लेकर।उस समय इंद्रा गांधी प्रधानमंत्री थी।एनानी एम्पलाईज यूनियन के आगरा फोर्ट ब्रांच के नेता थे।काफी लोगो को उस समय जेल में डाला गया था।आगरा फोर्ट से भी कुछ लोग जेल गए थे।उनमें एनानी भी थे।
इनके बहुत से कार्य ऐसे थे जिसकी वजग से मेरे से काफी सीनियर होकर भी ज कभी इंचार्ज नही बन पाए।उलझ जाना इनका स्वभाव था।एक बार अपर मंडल रेल प्रबंधक रेहान आगरा फोर्ट आये।उनके पीछे ऐसे पड़े की उन्हें जान बचाकर भागना पड़ा।
शेष अगलेमें