"शुभम - कहीं दीप जले कहीं दिल"( पार्ट -२३)
डॉक्टर शुभम युक्ति के भाई रवि के साथ बातचीत करता है
अब आगे...
रवि बोलते बोलते थोड़ा रुक गया।
बोला:- "मुझे थोड़ा पानी पीने दो।"
कुछ मिनट बाद रवि पानी पीकर आया
डॉक्टर शुभम:-" हाँ.. फिर क्या हुआ? युक्ति का स्वभाव बदल गया था?"
रवि:- "हाँ.. युक्ति कम बोलती थी। लेकिन मैंने उसकी आँखों में हरि के लिए प्यार देखा। युक्ति किसी बहाने से हरि की पत्नी के पास बात करने जाती थी। लेकिन मेरी माँ को यह बात पसंद नहीं थी ।पिता को इस बारे में कुछ भी पता नहीं था ।"
रवि रुक गया, उसका दम घुट गया।
उसी वक्त रवि को किसीका फोन आया
रवि:-"एक मिनट। मेरा पर्सनल फोन है, मैं अभी आया।"
रवि फोन पर बात करने दूसरे कमरे में चला गया।
डॉक्टर शुभम सोचने लगे कि रवि सच कह रहा होगा! युक्ति का मामला यहाँ एक मोड़ ले रहा है?हरि भी युक्ति से प्यार करता होगा? शायद प्रेम प्रसंग के कारण...
पांच मिनट तक फोन पर बात करने के बाद रवि दूसरे कमरे से आ गया और डॉक्टर शुभम के पास आया।
रवि:-" सॉरी... आप सोच रहे होंगे कि मैं टाइम पास कर रहा हूं लेकिन ऐसा नहीं है। मेरी गर्लफ्रेंड की मां का फोन आया था। वह शादी के लिए राजी हो गई है। उसने तीन महीने बाद शादी करने का वादा किया है। यह एक शर्त है कि भविष्य में वह युक्ति के साथ कोई संबंध नहीं रखेंगे और उसे अपने घर मत लाओ ।अब तुम्हें मेरी मजबूरी समझ में आ जाएगी।”
डॉक्टर शुभम:-" मुझे यह कहते हुए खुशी हो रही है कि तुम्हारी जिंदगी सेटल हो रही है।मैं चाहता हूं कि आपकी जिंदगी व्यवस्थित हो जाए। मैं आपको समझ सकता हूं। युक्ति की चिंता मत करो। मैं इसके लिए जिम्मेदार रहूंगा। अब मूल बात करो।"
रवि:- "ठीक है..ठीक है..मैंने युक्ति की आँखों में हरि के लिए प्यार देखा। मैंने उससे यह भी कहा कि हरि शादीशुदा है। उसके बाल बच्चे भी हैं। लेकिन युक्ति हरि के प्यार में पागल थी। यह उस समय की बात है जब हरि की पत्नी उसके मायके गई थी।जब मैं और पापा वहां नहीं थे तो युक्ति चुपके से हरि के घर पहुंची।युक्ति ने अपने प्यार का इजहार किया। लेकिन हरि ने बता दिया कि उसे युक्ति में इंटरेस्ट नहीं है। प्यार के लिए इनकार कर दिया। इससे निराश होकर युक्ति हमारे घर आई।"
इतना कहकर रवि रुक गया।
डॉ. शुभम और जानना चाहते थे, वह निर्णायक मोड़ सुनने के लिए उत्सुक थे।
रवि:-"डॉक्टर साहब, क्या आप नाश्ता करेंगे? मुझे बहुत भूख लगी है।"
डॉक्टर शुभम:-"नहीं.. मुझे भूख नहीं है। आप नाश्ता कर लीजिए। मैं बैठा हूं।"
कुछ ही मिनटों में रवि नाश्ता करने बैठ गया।
नाश्ता करने के बाद रवि ने बताया कि
दूसरे दिन घर में एक और बात होने लगी। बाद में पता चला कि युक्ति ने माता को हरि के बारे में ग़लत बातें बताई थी। जिसके कारण मेरी मां गुस्से होने लगी। मेरी माता ने हरि को हमारे घर पर बुलाया और पहले समझाने लगी। लेकिन हरि ने कहा कि उसकी बीबी है और बच्चे भी हैं। युक्ति की बात मानने से इंकार कर दिया। मेरी माता गुस्से हो कर हरि को भला-बुरा कहने लगी। हरि ने युक्ति को फंसाया है और अब दगा कर रहा है। हरि चुपचाप मेरे घर से चला गया।
हरि की मानसिक स्थिति ठीक थी इसलिए चुप्पी साध कर चला गया था।बाद में हरि ने मुझे सब कुछ बताया कि वह निर्दोष है। हरि को युक्ति के प्रति कोई लगाव नहीं है और वह अपनी बीबी से ही प्यार करता है।अगर ऐसा लगता है तो घर खाली कर दूंगा। मैं हरि को अच्छी तरहसे जानता था। हरि अच्छा और सीधा सादा इन्सान था।"
इतना कहकर रवि रुक गया।
रवि:- "हरि की बातें सुनकर मुझे भी युक्ति पर गुस्सा आया। मैंने यह बात अपने पिता को बताई। अगर हरि घर खाली कर देगा तो कमाई भी चली जाएगी। मेरे पिता ने हरि से बात की और समझाया। मेरे पिता ने युक्ति को बहुत समझाया। कहा कि हरि तुझसे प्यार नहीं करता। वह शादीशुदा हैं। मैं तुम्हारी पसंदीदा दूसरे लड़के से शादी करा दूंगा। एक दो जगह बात चलाई है।दो-चार दिनों के बाद फिर से युक्त ने अपना नाटक शुरू कर दिया। उसने अपने पिता को धमकी दी कि अगर वह उसकी शादी हरि से नहीं करायेंगे तो वह आत्महत्या कर लेगी। यह सुनकर पिताजी डर गये थे। रविवार को मेरे पिता ने हरि को हमारे घर बुलाया और उससे गुस्से में कहा कि वह कल से एक नया घर ढूंढेगा। लेकिन इस बीच, मेरी माँ और युक्ति ने हरि की पत्नी को परेशान करना शुरू कर दिया, मुझे बाद में पता चला कि हरि की फेमिली को माता सता रही है। लेकिन मैं क्या कर सकता था?
एक दिन मेरे पिता हरि को अकेले में मिले और भगवान का प्रसाद है ऐसा कह कर खिला दिया।जिसमें कुचले हुए धनतूरा के बीज मिलाये हुए थे। भोले-भाले हरि ने इसे प्रसाद समझकर खा लिया, लेकिन फिर अगले दिन हरि की तबीयत बिगड़ने लगी और उसे पास के शहर के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया। उनके कुछ रिश्तेदार उस शहर में रहते थे और हरि का परिवार उनके रिश्तेदार के घर में रहता था।"
( आगे की कहानी जानने के लिए पढ़िए मेरी धारावाहिक कहानी)
- कौशिक दवे