Humraz - 2 in Hindi Love Stories by Gajendra Kudmate books and stories PDF | हमराज - 2

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हमराज - 2

     ज़ेबा तो उस जल्दबाजी में भूल ही गयी थी के बादल भी उसका इंतजार करते हुए खिडकी पर बैठा था, बहोत इंतजार करने  के बाद बादल भी उठकर घर के भीतर चल दिया. ज़ेबा ने फिर अम्मी के साथ बैठकर खाना खाया और वह फिर से अपने कमरे के भीतर दाखिल हुई तब उसे याद आया की बादल उसका इंतजार कर रहा था, वह बड़ी ही फूर्ती से खिड़की की ओर लपकी लेकिन बादल तो पहले ही वहाँ से जा चूका था. फिर वह बादल के बारे में सोचने लगी, आज जेबा उम्र के जीस पड़ाव पर थी वहा पर उसे दोस्ती और प्यार इसके बीच का फासला अभी मालूम नहीं हुआ था, बचपन से दोस्त बनकर वह दोनों साथ थे आजतक लेकीन कुछ दिनों से ज़ेबा को खुद के भीतर कुछ और ही महसूस हो रहा था. वह दिन ब दिन बादल के खयालों में खोयी जा रहीं थी. वह समझ नहीं पा रही थी की यह अचानक से क्या होने लगा है. यही हाल उधर बादल का भी हो रहा था. ज़ेबा फिर अपनी पढाई में व्यस्त हो गयी.

      अगले दिन ज़ेबा जब कॉलेज जाने के लीये नीकली उस ही समय बादल भी घर से कॉलेज में जाने के लीये

नीकला था. फिर अचानक से दोनों एकदूसरे के सामने आ गये. फिर दोनों ने एकदूसरे को हाय हेलो किया और दोनों ही अपने अपने कॉलेज की तरफ जाने के लीये नीकल पड़े. आज भी रोज की ही तरह दोनों मीले थे लेकिन उस दिन ज़ेबा को कुछ और ही महसूस होने लगा था. इस कारण से उसकी बेचैनी बढ़ती जा रही थी. ज़ेबा लड़कियों के कॉलेज में थी जहाँ सिर्फ लडकियाँ ही पढती थी और बादल द्सरे कॉलेज में था जहाँ लड़का और लड़की साथ में पढ़ते थे. ऐसा कई दिन तक चलता रहा और एक दिन अचानक बादल ज़ेबा के कॉलेज के सामने जाकर खड़ा हो गया. ज़ेबा को तो इस बात का इल्म भी नहीं था की बादल उसके कॉलेज के बाहर आकर खड़ा है. तो ज़ेबा जब कॉलेज से बाहर नीकली तो उसने देखा के बादल सड़क के किनारे खड़ा है. बादल को देखकर ज़ेबा को बहोत ख़ुशी हुई लेकिन वह उसे अनदेखा कर के अपनी सहेली के साथ सड़क के दूसरी ओर से घर जाने के लीये नीकल पड़ी. कॉलेज से काफी दूर तक बादल ने ज़ेबा का पीछा किया लेकिन उसके करीब जाने की उसने हिम्मत नहीं की. ज़ेबा को इस बात का इल्म था की बादल उसका पीछा कर रहा है. लेकिन वह खमोशी से आपने रास्ते पर चलती जा रही थी. फिर उसके घर से कुछ ही दुरी पर उसकी सहेली का घर आ गया तो वह सहेली अपने घर जाने के लीये मुड़ी और ज़ेबा अपने घर की ओर चली गयी. अब बादल ने ज़ेबा के करीब जाकर उससे बात करने की कोशिश की तभी दोनों का घर आ गया. फिर ज़ेबा ने पीछे मुड़कर एक नजर देखा और वह अपने घर पर आ गयी. उसके पीछे से बादल भी अपने घर की ओर चला गया. बादल ने फिर घर में जाकर अपनी खिड़की से ज़ेबा के घर की खिडकी की ओर देखा तो उसे ज़ेबा ठीक उसके ही खिड़की की तरफ देखती हुई दिखी. जब बादल और ज़ेबा की नजरें मीली तो ज़ेबा ने अपनी नजरे झुका ली और उसने खिड़की का परदा गीरा दिया. अजीब से बेचैनी दोनों ही तरफ एक जैसी ही थी. फिर बादल भी घर के भीतर कहीं चला गया लेकिन ज़ेबा अपने खिड़की के परदे की ओट से उसे बराबर देख रही थी. फिर ज़ेबा भी आपने घर के भीतर चली गयी. 
   
     अगले कुछ दिन ऐसा ही चलता रहा बादल रोज की ही तरह ज़ेबा के कॉलेज के बाहर उसका इंतजार करता रहा और ज़ेबा अपनी सहेली के साथ घर की ओर जाने लगी. फिर एक दिन ज़ेबा की सहेली यासीन ने कुछ महसूस किया और उसने ज़ेबा की तरफ देखकर कहा, " जेबा क्या तुम उस लड़के को जानती हो." तब ज़ेबा ने कहा, "हाँ, वह हमारी ही चौल में रहता है." उसके बाद यासीन बोली, " तुम दोनों में बातचीत है या नहीं." तब ज़ेबा ने कहा, " बचपन से लेकर अबतक हम दोनों साथ खेले कूदे और स्कुल में पढ़ाई भी की. लेकिन अब हम अलग अलग कॉलेज में है." फिर यासीन बोली, " तो फिर अभी कुछ बातचीत होती है या नहीं " ज़ेबा ने कहा, " नहीं, पहले हम जीस तरह बिंदास एकदूसरे से मीलते जुलते बाते करते थे तब मुझे ऐसा कुछ महसूस नहीं होता था. लेकिन कुछ दिनों से मुझे अजीब सा महसूस होने लगा है." तब यासीन बोली, " जेबा तुम्हे इश्क हो गया है." ज़ेबा चौंककर बोली, " क्या! क्या कहा तुमने इश्क, या अल्लाह यह क्या बकवास कर रही हो तुम." यासीन ने कहा, " हाँ मेरी जान इसे ही तो इश्क कहते है और यह इश्क करना नहीं पड़ता है हो जाता है." यासीन का जवाब सुनकर ज़ेबा सुत्न हो गयी थी. तभी यासीन का घर आ गया और वह अपने घर की ओर चली गर्यी. अब ज़ेबा यासीन की बातों को सोचते हुए घर की तरफ बढ़ने लगी थी के तभी उसके कानों में पीछे से आवाज आयी, " ज़ेबा" वह आवाज सुनकर ज़ेबा एकदम से घबरा गयी और फिर तेजी से घर की ओर चली गयी. आज ज़ेबा के दिल की धड़कने कुछ ज्यादा ही तेजी से धड़क रही थी. वह उस ही जल्दबाजी में घर पहुंच गयी. घर पहुँचने के बाद उसकी अम्मी ने उसे देखा तो कहा, " क्या हुआ बेटा कोई पीछे पड़ गया है क्या जो तुम इतनी हांफ रही हो." ज़ेबा ने कहा, " नहीं अम्मी, वहाँ सड़क पर कुछ कुत्ते
आपस में लड़ रहे थे तो इसलीये मै डर गयी थी और तेज चलते हुए घर आ गयी." फिर अम्मी बोली, " ओह, कोई बात नहीं है बेटा कुत्तो से ऐसा नहीं डरते है. आओ जरा पंखा चलाकर बैठो कितना पसीना नीकल रहा है सारे बदन से. थोड़े देर में तुहे अच्छा लगने लगेगा" फिर अम्मी ने उसे पानी पीने को दिया. पानी पीने के बाद ज़ेबा अपने कमरे के भीतर चली गयी और उसने खिड़की से झांका तो बादल उसे उसकी खिड़की की ओर देखता हुआ दिखाई दिया. एकबार के लीये तो उसे बहोत खुशी हुई लेकिन अचानक उसने खिड़की का परदा फिर से गीरा दिया. अब उसकी बेचैनी और ज्यादा बढ़ गयी थी. उसे रह रहकर यासीन के बोले हुए शब्द याद आने लगे. इस कारण से वह और भी ज्यादा डरी हुई थी फिर उसने परदे की ओट से झांककर देखा तो बादल उसे
खिड़की के आसपास भी दिखाई नहीं दिया.
     शेष अगले भाग में....