Shuny se Shuny tak - 78 in Hindi Love Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | शून्य से शून्य तक - भाग 78

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शून्य से शून्य तक - भाग 78

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   आशी को अचानक सामने देखकर सबके मन में अलग अलग तरह से विचार भरने लगे थे| दीना जी के मन में बेटी को देखकर उसके प्रति अचानक एक ममताली हवा का झौंका आकर उन्हें हिला गया था| आशी खुद भी अपने मन में अपनी तस्वीर तलाश रही थी| फ़्रेश होने के बहाने उसने महसूस किया कि उसकी आँखों से आँसू झर रहे थे| 

 मनु पर और किसी का अधिकार कैसे हो सकता है?वह उसकी लीगल वाइफ़ है| वह जानती थी कि उसने किन शर्तों पर मनु से शादी की थी लेकिन उसने इस सबकी कल्पना तक भी नहीं की थी| अब?

  मनु अनन्या और उसकी मम्मी को हॉस्पिटल छोड़कर घर आ गया था| उसे डैडी की भी चिंता थी| आशिमा, रेशमा उनके पास ही थे और सबसे बड़ी बात कि माधो था लेकिन वह असहज था| डॉक्टर से बात करके अनन्या की सलाह से ही वह वापिस घर आया था| अनन्या तो थी ही बहुत समझदार, वह सारी स्थिति को समझती थी| उसने खुद ही मनु से कहा कि ऐसी स्थिति में उसे डैडी के पास होना चाहिए, मम्मी तो हैं हीं उसके साथ !

   आशी ने अब तक कुछ खाया नहीं था | दीना जी बहुत सी बातों को सोचकर ऊपर-नीचे हो रहे थे| उन्होंने मनु से भी बात की कि वह वकील साहब से जल्दी ही बात करे| मनु और आशी की शादी के बाद उनके संबंध न बनने और अब एक वर्ष से ऊपर बीत जाने के कुछ ऐसे प्वाइंट्स थे जिन पर वकील साहब काफ़ी श्रम कर रहे थे| 

“जा माधो, बीबी से खाने के लिए तो पूछ आ, पता नहीं उसने कब से कुछ खाया है या नहीं?”यह पिता का दिल था जो उन्हें चैन से नहीं बैठने दे रहा था| एक ओर अपनी बेटी की चिंता तो दूसरी ओर अनन्या को उसका सही स्थान दिलवाना | ऊपर से उससे किस प्रकार तलाक दिलवाया जाए, इस बात की भी चिंता!

  मनु का फ़ोन बजा, वह दीना जी के कमरे से बाहर आ गया था | अभी तो सबके विचार सबके मन में ही थे, कोई बात नहीं हो पाई थी कि डॉक्टर का फ़ोन बज उठा| मनु को वहाँ बुलाया जा रहा था| 

“डैडी! हॉस्पिटल जाना पड़ेगा---”

“सब ठीक है न मनु बेटा?”

“जी, सब ठीक ही होगा, अनु को डिलीवरी के लिए ले जा रहे हैं| सिजीरियन की तैयारी हो रही है| मुझे पेपर्स साइन करने होंगे| ”प्रश्न यह भी था कि वह किस रिश्ते से पेपर साइन करेगा?

“मुझे लगता है कि अनन्या की मम्मी को ही साइन करने पड़ेंगे लेकिन मुझे उनके मॉरल सपोर्ट के लिए उनके साथ रहना होगा| ” मनु ने कहा| 

“हाँ, बेटा, तुम्हें जाना चाहिए---ईश्वर सब ठीक करेंगे| ”दीना जी मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना कर रहे थे कि किसी तरह आशी संभली रहे| 

  मनु उनके कमरे में से बाहर निकलकर लॉबी में आया ही था कि न जाने किधर से आँधी की तरह आशी उसके सामने आ गई| शायद वह अपने कमरे में से निकली थी| उसने मनु को अचानक ही अपने अंक में समेट लिया| 

“आशी---यह क्या कर रही हो आशी---?” मनु हकबका गया| आशी ने उसे इतना कसकर बाँध लिया था जैसे किसी जंजीर से बाँध रही हो---इतनी सख्त गिरफ़्त !उसका परेशान होकर हड़बड़ाना बड़ा स्वाभाविक था| 

“ये क्या पागलपन है आशी ?”उसने अपने आपको छुड़ाने की बहुत कोशिश की लेकिन आशी के हाथ तो जाने कितने मजबूत हो गए थे जिन्हें मनु छुड़ा भी नहीं पा रहा था| 

  आशी के सख्त बंधन में बंधे हुए उसकी बातें, शर्तें मनु के दिमाग में गूंजने लगीं| आशी ने कितनी निर्ममता से कहा था कि अपने पिता और उसके पेरेंट्स की इच्छा के कारण उससे शादी तो कर लेगी लेकिन मनु उससे तब तक संबंध नहीं बना पाएगा जब तक वह नहीं चाहेगी| यहाँ तक कि उसके साथ कहीं घूमने-फिरने भी नहीं जाएगी जब तक उसका मन नहीं होगा| 

“क्या तुम सच में मुझे प्यार----वो जाने दो , पसंद नहीं करती हो?”उस दिन बात करते हुए मनु ने पूछा था| 

“वो सब जाने दो, क्या तुम नहीं चाहते कि फैमिली की इच्छा के मुताबिक हम शादी कर लें?”

“आशी ! इतने लंबे समय से तुम नेगेटिव बनी हुई हो?इच्छा उनकी है लेकिन हमारी ज़िंदगी का क्या मतलब और मकसद?” मनु ने एक बेकार सी कोशिश की थी आशी से खुलकर बात करने की| 

“आशी ! ऐसी शादी का आखिर मतलब क्या ?” 

 “व्हाटएवर---”आशी ने लापरवाही से अपने कंधे उचका दिए थे| 

   हुआ वही जो होना था| दीना अंकल का अपने ऊपर हाथ जैसे उसके अपने माता-पिता का आशीर्वाद था| कैसे वह उनके इतने प्यार व सपोर्ट को अनदेखा कर देता?शादी हुई और मनु अपने मन की बात तक आशी से खुलकर नहीं कर पाया| वह उसे बात करने का मौका कहाँ देना चाहती थी?शादी में अपने रंग दिखा ही दिए थे उसने !चलो शारीरिक संबंध की बात भी कुछ समय जाने देता, वह आशी की प्रतीक्षा कर सकता था लेकिन आशी उसके साथ एक मित्र की भाँति तो व्यवहार कर सकती थी !

  दीना अंकल के मन के विश्वास, आस के कारण शादी तो कर ली गई थी लेकिन उससे अपने मन की बात साझा करना तो दूर, वह तो हमेशा दुतकारा ही जाता रहा था| कोई इंसान अपने आत्मसम्मान को इस प्रकार नहीं जला सकता लेकिन परिस्थिति के अनुसार मनु ने अपने आपको कितना नीचे गिरा दिया था| अक्सर अकेले में वह फूट-फूटकर रो लेता लेकिन उसने अपनी पीड़ा किसी के सामने जाहिर नहीं की थी| 

  वह बात और थी कि उससे जुड़े रिश्ते सब कुछ समझते थे, इस अकेलेपन का ही अंजाम था कि वह और अनन्या करीब आ गए थे, आशी तो उसे और उसे ही क्या अपने संवेदनशील पिता को भी छोड़कर चली ही गई थी|