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आज, ऐसे समय में मनु को आशी का व्यवहार अपने ऊपर मनु को बेइज़्ज़ती से भी अधिक एक प्रहार सा लगा| ये वही आशी है जिसने उससे ऐसे वायदे लिए थे| यहाँ तक कि अपने पिता की बेइज्ज़ती और पीड़ा भी उसके लिए कोई मायने नहीं रखती थी|
“यह क्या कर रही हो आशी ?यूमहारी शर्तों पर ही तो चल रहा हूँ---”वह ज़िंदगी भर गिड़गिड़ाता ही रहेगा क्या?उसका सिर घूम रहा था और बेबसी की हालत में आँखों में आँसु सिमट आए थे|
“आई नो नथिंग मनु , एंड डोंट वॉन्ट टू नों इवन, आई नीड यू---”कहते हुए वह उसे अपने कठोर आलिंगन में बांधती हुई उसकी बाहों में झूल गई|
दीना जी के कमरे के बाहर ही आशी मनु के चिपट गई थी| उनका दरवाज़ा खुला था, वे अपनी आराम कुर्सी पर अधलेटे थे जब उनकी दृष्टि बाहर की लॉबी में पड़ी| अचानक उनके दिल की धड़कनें सप्तम पर जा पहुंचीं, उनका सिर कुर्सी पर टिक गया| उनकी फटी हुई आँखें आशी पर चिपक गईं थीं|
“मालिक!”माधो ज़ोर से चिल्लाया| उसके मालिक की गर्दन कुर्सी पर पीछे की ओर टिकी हुई थी और आश्चर्यचकित आँखें ऊपर की ओर खुली रह गई थीं|
माधो की चीख सुनकर आशी भी शायद कुछ होश में आई, मनु ने अपने आपको उसके कठोर आलिंगन से ज़बरदस्ती छुड़ा लिया था और वह दीना की ओर भागकर आ गया था| पीछे-पीछे अधमरी सी आशी भी थी और आशिमा, रेशमा उस आवाज़ को सुनकर डरी हुई सी उधर की ओर भागी आईं थीं जहाँ कुछ देर में ही दीना अंकल की कुर्सी को सब घेरकर खड़े हो चुके थे|
“डैडी !”मनु बहुत ही घबरा गया था और समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे?उधर हॉस्पिटल से बार बार उसके फ़ोन पर घंटी बज रही थी| पहले डॉक्टर फिर अनन्या की मम्मी लगातार फ़ोन किए जा रहे थे|
“मम्मी ! आप फॉर्मैलिटीज़ पूरी कर दीजिए, मुझे कुछ टाइम लग जाएगा| ”मनु की घबराई हुई आवाज़ सुनकर अनन्या की मम्मी और भी घबरा गईं थीं| मनु समझ रहा था लेकिन उसके पास कोई उपाय नहीं था|
“अच्छा!आप डॉक्टर साहब से बात करवा दीजिए---“उसकी आवाज़ में घबराहट के साथ कंपन भी था|
“क्या हुआ है मनु, बताओ तो---“ अनन्या की माँ और भी घबरा गईं तो मनु को अपने ऊपर ज़बरदस्ती कुछ कंट्रोल करना पड़ा|
“डॉक्टर तो अनु के साथ ऑपरेशन थिएटर में हैं, कुछ तैयारी करवा रहे हैं| बताओ तो क्या हो गया इतनी सी देर में ?” अनन्या की मम्मी का दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा था|
“अरे मम्मी , आप डॉक्टर साहब से बात तो करवा दीजिए---”उसके खुद के हाथ–पैर फूले जा रहे थे| क्या करे वह?
अनन्या की मम्मी ने डॉक्टर के चैंबर में जाकर देखा , डॉक्टर वहीं थे और अपने असिस्टेंस से कुछ डिस्कस कर रहे थे| ऑपरेशन थियेटर में अनन्या थी कुछ स्टाफ़ से घिरी हुई | उसकी मम्मी ने डॉक्टर से प्रार्थना की कि वे एक बार मनु से बात कर लें| वह बाहर चली गईं थीं|
“मनु, अचानक अनन्या के पेन्स बढ़ गए हैं| उसे ऑपरेशन थिएटर में भेज दिया है, स्टाफ़ सर्जरी की तैयारी कर रहा है| तुम्हें क्या हुआ?”डॉक्टर परिचित तो थे ही, उन्हें भी उत्सुकता हुई|
मनु ने शॉर्ट में डॉक्टर से सारी स्थिति स्पष्ट रूप से समझाई व उनसे प्रार्थना की कि वह जल्दी से जल्दी आने की कोशिश करेगा| वे परिस्थिति के अनुसार अपना निर्णय ले लें| यह भी कि कहा कि अभी वे अनन्या और उसकी मम्मी को कुछ न बताएं|
“अरे ! यह भी कुछ कहने की बात है, बड़ी मुश्किल परिस्थिति है मनु, सबको संभालना है| ”
खेल खत्म हो चुका था, किसी के हाथ कुछ भी नहीं लगा था| ऐसी स्थिति में सबको छोड़कर हॉस्पिटल जाने का कोई अर्थ नहीं था| मनु दीना जी की शांत मूर्ति को देखता हुआ न जाने कहाँ चल गया था| कैसे मोड़ पर आकर खड़ा हो गया है?उसने दीना अंकल की फटी हुई आँखें बंद कीं और उसकी आँखों से आँसू टपककर उनके चेहरे को भिगो गए|
माधो ने रोते-रोते डॉक्टर शर्मा को फ़ोन कर दिया था| वैसे शायद सब कुछ खत्म हो चुका था लेकिन डॉक्टर साहब का आना बहुत जरूरी था|
आनन फानन में सारे में शोर मच गया| माधो एक कोने में जैसे धंस गया था और हिडकते हुए बेहोश सा होने लगा था | आँसु उसके गालों को भिगोते हुए नीचे बहे जा रहे थे| लड़कियाँ बदहवास सी हो गईं थीं और कमरे के दूसरे कोने में जैसे सिमट गईं थीं| दोनों बहनें एक-दूसरे के आलिंगन में सिमटी सुबकियाँ भरने लगीं थीं|
मनु को तो जैसे कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था। क्या करे वह?उसने कई बार सिर घुमाकर देखा, उसे आशी कहीं नहीं दिखाई दी| डॉक्टर आकर डिक्लेयर कर गए थे, उन्होंने मनु के कंधे पर सांत्वना से हाथ रखा और कहा, ”मनु!सब रिश्तेदारों को बुला लो, मुझे टाइम बता देना---”बहुत कुछ कहने की ज़रूरत नहीं थी|
घंटे भर में पूरी कोठी परिचितों से भर चुकी थी| आशिमा के ससुराल वाले आ पहुँचे थे| अनिकेत के आते ही मनु को जैसे कुछ होश सा आया| अनिकेत के माता-पिता के पहुँच जाने से वह कुछ सोचने की स्थिति में आया और अपनी आँखों में प्रश्न लेकर वह उनके सामने खड़ा हो गया|
“बेटा! हो चुका जो होना था, अब तो इन्हें बिदा करना है | ”वे भी रो दिए| मनु उनके कंधे पर सिर रखकर एक नन्हे बच्चे सा सुबकने लगा था|
पता नहीं, कैसे क्या हुआ लेकिन लगभग दो/ढाई घंटे में सारी तैयारियाँ कर दीं गईं| जो लोग आ सके , आ गए थे| कुछ लोगों को पहुँचने में देरी होने लगी तो उन्होंने घर पर फ़ोन करके घर में स्टाफ़ से बात की और सीधे अपने सेठ मित्र को अंतिम स्थल पर मिलने पहुँच गए थे|
माधो को भी अब होश सा आने लगा था अपने आँसु पोंछते हुए वास्तविकता के गलियारे में आ खड़ा हो वह अपने कर्तव्य की ओर अग्रसर हो रहा था| जीवन के सत्य का आभास उसने हर पल किया था| एक-एक पल का अपने मालिक का साक्षी रहा था वह !
“बीबी!---”माधो ने कई बार आशी के कमरे का दरवाज़ा खटखटाया लेकिन कोई उत्तर नहीं मिलने पर वहाँ से हट गया|
“एक बार मिल तो लो , अब देखने को नहीं मिलेंगे---”रोते हुए एक बार फिर से माधो आशी के कमरे का दरवाज़ा पीट रहा था| सब व्यर्थ ही रहा|
अंतिम यात्रा पर चल दिए थे सेठ दीनानाथ !माधो उनको कैसे छोड़ सकता था ?वह साथ ही बना रहा| उसके दिमाग में हलचल थी कि एक बार पिता को देख तो लेती आशी बीबी---