Savan ka Fod - 18 in Hindi Crime Stories by नंदलाल मणि त्रिपाठी books and stories PDF | सावन का फोड़ - 18

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सावन का फोड़ - 18

कोशिकीपुर के बच्चे पूरे दिन जोहरा को पागल समझ कर परेशान करते जोहरा भी पागल का किरदार निभाते ऊब चुकी थी कभी वह सोचती कहाँ फंस गए जहां अगले लम्हे का पता नही क्या हो जाए ? जोहरा सोच ही रही थी कि गांव वाले  बच्चे बूढ़े महिलाएं एक साथ जोहरा को गांव से खदेड़ने कि नियत से बरगद के नीचे पहुंचे सोच में डूबी जोहरा को गांव से बाहर खदेड़ने कि नियत से इकट्ठा हुए लोंगों के हाथों में लाठी डंडे आदि थे जब जोहरा ने गांव के लोंगो को एक साथ इतनी भीड़ में देखा तो वह घबरा गई और भय के मारे थरथर कांपने लगी और अपने बचाव का रास्ता खोजने लगी तभी भीड़ में उसे अद्याप्रसाद नजर आए जोहरा एक झटके से उठी और भीड़ को चीरते हुए भागने लगी हाथों में लाठी डंडे लिए कुछ लोग खूंखार पागल कि अनाप शनाप हरकतों के भय से इधर उधर भागने लगे तो कुछ लोगो ने लाठी डंडे से प्रहार करने कि नियत से उसकी तरफ भागे अचानक जोहरा अद्याप्रसाद के करीब जा कर विल्कुल शांत खड़ी हो गयी भाग रहे लोग भी रुक गए और उसे मारने की नीयत के लोग हाथ मे लाठी डंडे लिए ठिठक गए क्योकि पूरे गांव में अद्याप्रसाद की बहुत इज़्ज़त थी लोग उन्हें आदर एव सम्मान देते लोंगो को डर था की पागल को मारने के चक्कर मे कही कोई चोट अद्याप्रसाद को न आए ।अद्याप्रसाद ने जब जोहरा को देखा उन्होंने बड़े शांत स्वर में गांव के लोंगो से कहा आप लोग शांत हो जाइए मैं इस औरत को जनता हूँ अब यह कोई ऐसी हरकत कर ही नही सकती जिससे की इसे गांव से मार पीट कर भगाना पड़े जोहरा भी एकटक अद्याप्रसाद को देखे जा रही थी अद्याप्रसाद ने गांव वालों से अपने  अपने घर लौटने का निवेदन किया और स्वंय अपने घर को चल पड़े जोहरा को उन्होंने ना तो साथ चलने का इशारा ही किया ना ही कहा फिर भी जोहरा उनके पीछे चल रही थी एका एक जब पीछे मुड़कर अद्याप्रसाद ने देखा तो उन्होंने जोहरा से पूछा क्या तुम पागल हो ?जोहरा ने कहा नही हुजूर अद्याप्रसाद ने और कुछ पूछना उचित नही समझा और उसे साथ चलने के लिए कहा जोहरा अद्याप्रसाद के साथ उनके घर पहुंची जहां शामली मुनक्का पहले से ही मौजूद थे रजवंत बाहर किसी काम से गए हुए थे कुछ देर में या यूं कहें कि अद्याप्रसाद के साथ ही आए शामली और मुन्नका रजवंत ने जब जोहरा को देखा तो हतप्रद रह गए शामली ने पति अद्याप्रसाद से सवाल किया आप तो गांव वालों के साथ गांव के बाहर बरगद के पेड़ तक गए थे यह कहा मिल गई अद्याप्रसाद ने पत्नी शामली से कहा यही है वह पागल जिसके भय के साए में पिछले दो तीन दिनों से गांव  के लोग जी रहे थे ।शामली मुन्नका एव रजवंत एक साथ बोल उठे नही यह पागल नही हो सकती है यह तो बहुत समझदार औरत है हम लोगो से कलकता डॉ मित्रा के अस्पताल में मिली थी कोई खास बात ऐसी जरूर है जिसके कारण इसे ऐसा करने के लिए मजबूर होना पड़ा ।जोहरा सबकी बातों को सुन रही थी तभी अद्याप्रसाद  बोले क्या खास बात इसकी इस हालात के लिए जिम्मेदार है ?यह तो यही बता सकती है शामली ने जोहरा से सवाल किया जोहरा अब तुम्हे गांव वालों से डरने कि जरूरत नही है तुम सही सही बताओ बात क्या है? अद्याप्रसाद बोले अरे भग्यवान जोहरा को ले जाओ कपड़े बदलवाओ कुछ खाने को दो फिर इत्मीनान से सवाल जबाब कर लेना शामली और मुंनक्का अपने साथ जोहरा को लेकर गईं और उसे कपड़े देते हुए बोली जोहरा नहा लो तुम्हारे शरीर से बदबू भी आ रही है जैसे तुमने बहुत दिनों से नहाया ही न हो जोहरा बिना देरी के कपड़े लेकर नहाने चली गई और नहा कर कपड़े बदलकर बाहर आई बाहर आते ही शामली ने मुंनक्का से कहा देखो आ गयी कलकत्ता कि तुम्हारी सखी मुंनक्का ने तपाक से जबाब दिया तो तुम्हारी कौन सी दुश्मन है तुम्हारी भी तो सखी ही है शामली ने कहा हम तीनों ही सखी है।शामली ने कहा मुंनक्का रात होने को है तुम्हे भी घर जाकर खांना बनाना होगा मैं जोहरा को खाना खिला देती हूँ तब तक इसके पागल बनने की कहानी पूंछती हूं मुन्नका के जाने के बाद शामली खाना बनाने कि तैयारी करने लगी जोहरा भी पूछ पूछ कर शामली का हाथ बंटाने लगी।खाना बनने के बाद शामली ने सुभाषिनी को खाना खिलाया सुभाषिनी ने जबसे जोहरा को देखा था बहुत खुश थी बार बार जोहरा के पास जाती  जोहरा उसे दुलार करती रात को जोहरा और शामली ने साथ खाना खाया खाना खाने के बाद अद्याप्रसाद प्रसाद अपनी नियमित दिनचर्या के अनुसार सोने चले गए सुभाषिनी जोहरा के गोद मे थी और शामली के बगल बिस्तर पर लेटी थी शमली को यही उचित अवसर लगा जोहरा के पागलपन के नाटक का औऱ कोशिकीपुर तक पहुचने का शामली से सवाल करती उससे पहले ही जोहरा ने कहा दीदी आज अद्याप्रसाद जी न होते तो गांव वाले हमे जिंदा नही छोड़ते और हम पागल पन के झूठे नाटक के कारण बेवजह मारे जाते शामली ने सवाल किया तब जरूरत क्या आन पड़ी कि तुम्हे पागल बनना पड़ा। जोहरा बोली दीदी एक आदमी है जिसने हमे अपने प्यार में फंसा लिया और उसके झूठे प्यार के चक्कर मे गलती कर बैठी जिसके कारण मेरे कोख में उसका चार माह का बच्चा पल रहा है यह बात जब कर्मा दीदी को पता लगीं वह आबे से बाहर हो गई और उस आदमी को बुलाया जिसने मुझे अपने झूठे प्यार के झांसे में फंसाकर ऐसे हालात पे ला खडा किया है उसका नाम है मुस्तकीम  जब मुस्तकीम आया तब कर्मा दीदी ने उससे कहा की तुम जोहरा से निकाह करो मुस्तकीम ने कहा की मैं अभी विदेश पैसे कमाने जा रहा हूँ लौट कर जोहरा से निकाह कर लूंगा तब कर्मा दीदी ने उससे कहा की जोहरा कि कोख में पल रहे तुम अपने बच्चे का अबॉर्शन करा दो नही तो हम तो कही मुहँ दिखाने लायक रहेंगे और जोहरा कि जिंदगी भी तबाह हो जाएगी। मुस्तकीम कर्मा दीदी कि बात मानकर मुझे एबॉर्शन के लिए डॉक्टर के पास ले गया ड्राक्टर ने मेरी जांच करने के बाद कहा की जोहरा का एबॉर्शन सम्भव नही है क्योकी इसमें जोहरा के जान जाने  का खतरा अधिक है हां मैं एक सलाह मदद के रूप में देना चाहूंगी तुम जोहरा को तब तक मेरे अस्पताल में छोड़ सकते हो जब तक इसकी कोख में पल रहा बच्चा पैदा न हो जाए और हां तब तक तुम्हे अस्पताल को हर माह पांच हज़ार महीने देने होंगे जब बच्चा पैदा हो जाएगा तब बहुत से ऐसे लोग है जिनको औलाद हो ही नही सकती या औलाद पैदा करने के काबिल नही होते लेकिन दौलत खुदा ने बहुत दे रखी है कुछ लोग ऐसे भी हैं जो औलाद पैदा करने के काबिल तो है लेकिन पैदा नही करना चाहते और दौलत कि कोई कमी नही होती दोनों ही तरह के लोग मेरे संपर्क में है जब जोहरा कि कोख में पल रहा बच्चा पैदा हो जाएगा तब मैं उन्ही में से किसी को जोहरा के बच्चे को सौंप दूंगी और जो खर्चा तुमने जोहरा के प्रैग्नेंसी पीरियड में किया होगा व्याज के साथ वापस करा देंगे किसी को कानो कान कोई खबर नही मिलेगी और बच्चे को अच्छी परिवरिश एव परिवार मिल जाएगा । मुस्तकीम डॉक्टर साहब कि बातों को सुनकर हां में हां मिलाता रजामंद हो गया डॉक्टर साहब ने  मुस्तकीम से पहले  माह के पांच हज़ार जमा करने को कहा मुस्तकीम ने डॉक्टर साहब से कहा मैडम मैं इतना पैसा लेकर आया ही नही था मैं घर जाकर पैसा लेकर आता हूँ तब तक जोहरा को आप अपने पास रखिए ।मुस्तकीम मुझे डॉक्टर साहब के पास छोड़ कर चला गया डॉक्टर रुखसाना मैडम ने उसका सप्ताह भर इंतज़ार करने के बाद कहा जोहरा हम तुम्हे और अधिक दिनों तक नही रख सकते तुम जाओ औऱ जब पैसे कि व्यवस्था हो जाए तब आना ।दीदी मैं लौटकर कर्मा दीदी के घर आई और मुस्तकीम को खोजने कि बहुत कोशिश किया कर्मा दीदी ने भी मुस्तकीम को खोजने में ऐड़ी से चोटी तक का जोर लगा दिया लेकिन मुस्तकीम का कही  कोई पता नही चला ।