Savan ka Fod - 3 in Hindi Moral Stories by नंदलाल मणि त्रिपाठी books and stories PDF | सावन का फोड़ - 3

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सावन का फोड़ - 3

बाढ़ में जन धन सब कुछ गंवाने के बाद कोशिकीपुर गाँव एव आस पास के गांवो में बीमारियों कि महामारी फैल गयी .बाढ़ में अपने परिजनों मवेशियों घर आदि के खोने के बाद बीमारियों कि महामारी से प्रतिदिन कोई न कोई मरता पूरे इलाके में एक तरह का सन्नाटा पसरा हुआ था किसी भी परिवार व्यक्ति को देखने से उसके अन्तर्मन कि वेदना भय एव लाचारी बेचारगी स्प्ष्ट दृष्टिगोचर होती लेकिन कुछ बेहतरी कि आश अब भी कोशिकीपुर एव आस पास के गांव के लोंगो को अपनी माटी से भावनात्मक रूप से जोड़े हुए थी।
गांव के लोग बाढ़ में हुए नुकसान हेतु सरकार द्वारा घोषित राहत के लिए ब्लाक तहसील एव जिलों के चक्कर काटते तो स्थानीय राजनीतिक नेताओ से मदद की गुहार लगाते साथ ही साथ बाढ़ में अपने परिजनों को खोने वाले प्रशासन से अपने खोए परिजन के विषय मे जानकारी प्राप्त करने की गुहार लगाते यही स्थितियां परिस्थियां कोशिकीपुर एव आस पास के गांवों की थी .रजवंत कि पत्नी मुन्नका और अद्याप्रसाद की पत्नी शामली दोनों पल प्रहर अपने बेटी सुभाषिनी और बेटे रितेश के लिए रोती अपने पतियों को कोसती कहती कईसन बाप हव लोग पांच बारिश के लड़िका लड़की बाढ़ में बही गइलन और तू लोग कुछ करत नाही सुतले आधी रात बाढ़ में बच्चा बही गईलें और तू लोग आबो सुतलयही हवो अरे अब त जाग कम से कम अब त पुलिस थाना जाके पता कर शायद कोनो सुराग मिल जाए।
अद्याप्रसाद और रजवंत अपनी अपनी पत्नियों के तानों को समझते लेकिन उनको कुछ भी बता सकने में असमर्थ रहते कारण कि पुलिस एव प्रशासन बार बार यही कहता कि रात के अनियारे में तोहन लोगन के बेटी बेटा कहाँ बही गईलें हम लोग कईसे बता सकत हई ना कही लाश मिलल ना कौनो सुराग जियत रहिते त कही से कुछ न कुछ पता लगबे करत बेहतर इहे बा की अब संतोष कर दुनो जाने जऊँन होखे के रहे हो गइल था अब कुछो सम्भव नही बा।
अद्याप्रसाद एव रजवंत कि पत्नियां मुन्नका और शामली सुबह शाम दोपहर रात रोती रहती कभी कभी कहती अब केकर वियाह होई ना बेटऊवे बा ना बिटिऊए जब अद्याप्रसाद एव रजवंत कि पत्नियां गर्भावस्था में थी तो दोनों ने अपनी पत्नियों कि सहमति से एक दूसरे को बचन दिया था की दिनों में यदि किसी को लड़का एव लड़की पैदा हुई तो उनका विवाह करेंगे .दोनों कि पत्नियां रोते विलख बिलखते एक दूसरे को गले लगकर यही दोहराती सुनने वालों का कलेजा फट जाता और भगवान से कहते यह आपका कैसा न्याय दोनों के पतियों अद्याप्रसाद एव रजवंत के पास उनकी व्यथा का कोई हल नही था सिवा इसके कि दोनों अपनी अपनी पत्नियों को तरह तरह कि बात कहानियां बता सुनाकर सांत्वना देने कि कोशिश करते रहते ।
अद्याप्रसाद और रजवंत पत्नियों के कोसने एव दबाव में कभी थाने जाते तो कभी प्रशासनिक अधिकारियों से अपने बेटी बेटों के विषय मे जानकारी चाहते एव खोजने का अनुरोध अनुनय विनय निवेदन करते और सरकारी अधिकारियों एव कर्मचारियों कि डांट खाते बेइज्जत होते सरकारी अधिकारियों एवं कर्मचारियों से यही उत्तर मिलता की भयंकर बाढ़ एव बारिस के कहर में बड़े बड़े लोगो का तो पता ही नही चल रहा है पांच वर्ष के बच्चों की कौन बात करे मायूस किस्मत को कोसते अद्याप्रसाद एव रजवंत घर लौट कर अपनी अपनी पत्नियों को ढाढस बधाते कि हाकिम लोग बोले है कोशिश जारी है और कुछ दिनों में बच्चों का पता चल जाएगा ।
अद्याप्रसाद की कोशिकीपुर गांव एव जवार में अच्छा रसूख धन संपत्ति खेती बारी के मामले में था रजवंत को ससुराल से ही बहुत दौलत खेती बारी मिली हुई थी अक्सर जसवंत कि पत्नी अपने बेटे के साथ अपने मायके रहती वह तो उसका दुर्भाग्य था कि वह ऐन बाढ़ के वक्त कोशिकीपुर आ गयी थी जिसके कारण उसके ऊपर बाढ़ बारिस का कहर बज्रपात बनकर टूटा और सबकुछ विखर गया वर्वाद हो चुका था ।
बाढ़ में अपने बेटे रितेश को खो देने के उपरांत रजवंत कि पत्नी मुनक्का अपने मैके खैरा जाना भी कम कर दिया वहां उसके माता पिता गिरिराज एव गौरी प्रतीक्षा करते रहते उन्होंने बेटी मुनक्का का विवाह रजवंत से इसीलिए किया था की रजवंत घर जमाई बन कर खैरा ही रहेगा और कोशिकीपुर कि जमीन जायदाद बेच देगा रजवंत भी ऐसा ही सोच रहा था और गम्भीरता से प्रयास कर रहा था तब तक बाढ़ कि विभीषिका तबाही का मंजर लेकर आई जो जीवन कि सभी उम्मीदों आशाओं अरमानों को जाने कहाँ बहा ले गयी सारी उम्मीदें आशाएं अरमान धरी कि धरी रह गयी अब गिरीराज और गौरी भी बेटी दामाद के दुःख से दुःखी कभी भाग्य को कोसते कभी भगवान को दोनों पड़ोसी मित्रों अद्याप्रसाद एव रजवंत के परिवार की स्थिति पर गांव वाले चुटकी लेते कहते का दुनो पड़ोसी में मित्रता रहल ह दुनो अपनी बिटिया बेटवा के वियाह पैदा होले से पहिले तय कई दिहले रहलें इहे कहल जाला भगवान और भाग्य के एक साथे मार दुनो के संताने गंगा मईया लील गईली कि कोशी के भेंट चढ़ गइलन और सांत्वना देते कहते जायद तोहन दुनो पड़ोसी दोस्तन के किस्मत एके कलम से भगवान लिखले हउवन तबे त दुनो जने क एक तरह के दुःख दिहले हउवन और मन ही मन प्रसन्न होते भगवान को धन्यवाद देते कहते बड़ा निक कईल भगवान ई दुनो दोस्त गाँव मे केहू के कुछ समझते नाही रहलन हॉउवे अपने दोस्ती और धन संपत्ति के आगे अद्याप्रसाद और रजवंत गांव वालन के चुटकी के बहुत अच्छी तरह से समझते लेकिन समय वक्त हालात के हाथ विवश उनके भी व्यंग सुनते जिनकी हिम्मत कभी सामने खड़े होने कि नही पड़ती।।