Beyond Words : A Love Born in Silence in Hindi Thriller by Dev Srivastava Divyam books and stories PDF | बियोंड वर्ड्स : अ लव बॉर्न इन साइलेंस - भाग 5

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बियोंड वर्ड्स : अ लव बॉर्न इन साइलेंस - भाग 5


दोपहर का समय,

सन रे कैफे,

जब निशा के नाना ने आराम से कहा, " तुम एक गन छीन सकते हो, सारी नहीं । "

तो सिद्धांत के होठों पर एक तिरछी मुस्कान आ गई । उसने कहा, " डू यू रियली थिंक दैट ? "

निशा के नाना ने थोड़ी तेज आवाज में कहा, " व्हाट डू यू मीन ? "

सिद्धांत ने उसी गन से अपने सिर पर स्क्रैच करते हुए कहा, " एक्चुअली, यू आर राइट ! हम सारी गन्स नहीं छीन सकते हैं, लेकिन... "

फिर उसने गहरी आवाज में कहा, " खुद को तो खत्म कर सकते हैं न । "

अपनी बात बोलते ही सिद्धांत ने वो गन अपने ही सिर पर प्वाइंट कर ली ।

निशा के नाना ने चीखते हुए कहा, " सिड ! "

सिद्धांत ने उसके आदमियों को देख कर अपने सामने नीचे की ओर इशारा करके, " तुम सब, अपनी अपनी गन्स यहां रखो । "

वो सारे आदमी एक दूसरे की शक्ल देखने लगे तो सिद्धांत ने चिल्ला कर कहा, " एक बार में बात समझ नहीं आती ! "

फिर उसने निशा के नाना की ओर देख कर कहा, " ठीक है फिर, अब हम खुद को ही खत्म कर लेते हैं । "

अपनी बात बोलते हुए उसने गन लोड कर ली ।

ये देख कर निशा के नाना ने तुरंत कहा, " नहीं सिड, तुम ऐसा कुछ नहीं करोगे । "

फिर उसने फौरन अपने आदमियों की ओर देख कर कहा, " तुम सब खड़े खड़े मुंह क्या देख रहे हो ! गन्स यहां रखो । "

उन सभी आदमियों ने एक साथ कहा, " यस बॉस ! " और अपनी गन सिद्धांत के बताए हुए जगह पर रख दी । "

सिद्धांत ने अपने दोस्त की ओर देख कर कहा, " सैंड ! "

सैंड ने हां में सिर हिलाया और आगे बढ़ कर इतनी स्पीड में अपने हाथ पैर चलाए कि दो ही मिनट में उन सभी गन्स के पार्ट्स अलग अलग थे । अब सिर्फ सिद्धांत के हाथ में एक गन थी ।

निशा के नाना ने हैरानी के साथ सैंड को देखते हुए कहा, " यू ब्रोक ऑल दीज गन्स इन जस्ट दो मिनट्स ( तुमने ये सारी बंदूकें सिर्फ दो मिनट में तोड़ दीं ) ! "

इस बार सैंड ने कहा, " वो छोड़ न बुड्ढे, फिल्हाल तो सिड को यहां से जाने दे, वरना... कहीं तेरी नातिन की शादी इसकी लाश से ना करानी पड़ जाए । "

निशा के नाना ने ये सुनते सिद्धांत की ओर देखा तो उसने अभी भी अपने सिर से गन नहीं हटाई थी ।

निशा के नाना ने फिक्र के साथ कहा, " सिड ! बेटा, ये खेलने वाली चीज नहीं है । "

सिद्धांत ने आगे बढ़ते हुए कहा, " हमने कहा न, जाने दो हमें ! "

निशा के नाना ने कहा, " पर... "

लेकिन सिद्धांत ने उसकी बातों को काट कर कहा, " पर - वर कुछ नहीं, हमें जाना है तो मतलब जाना ही है ।

निशा के नाना ने झल्ला कर कहा, " ठीक है, जाओ ! लेकिन इतना याद रखो कि वापस तुम्हें यहीं आना है । "

सिद्धांत ने उसकी ओर देखते हुए ही पीछे की ओर बढ़ते हुए कहा, " इन योर ड्रीम्स ( आपके सपनों में ) ! "

उसने इतना ही कहा था कि इतने में उसे एक तेज बिजली का झटका लगा और वो लड़खड़ा कर गिर पड़ा और इसी के साथ एक पुरानी याद उसके दिमाग में कौंध गई ।

लेकिन तब तक उन गार्ड्स ने दो और डिवाइसेज उसे लगा दीं जिससे सिद्धांत तड़प उठा और फिल्हाल तो उसकी हालत ऐसी हो गई थी कि वो खुद को नहीं बचा सकता था ।

कुछ देर बाद वो बेहोश हो गया । फिर उसे होश आया तो उसने खुद को एक अंधेरे कमरे में पाया । उसने अपनी आंखें खोल कर आस पास देखा तो वो एक पुराने गोदाम जैसी कोई जगह थी ।

ये देख कर उसने उठने की कोशिश की तो उसने खुद को बंधा हुआ पाया । वो एक कुर्सी पर था और उसके हाथ पैर बंधे हुए थे । उसके मुंह पर भी टेप लगा हुआ था । उसके शरीर पर भी बहुत से चोट के निशान थे ।

जैसे ही उसे इस सबका अंदाजा हुआ उसने वैसे ही अपनी रस्सियां खोलनी शुरू कर दीं लेकिन तभी उसके सामने निशा का नाना आकर खड़ा हो गया । उसे देख कर सिद्धांत की आंखों में खून उतर आया । उनमें नफरत साफ देखी जा सकती थी ।

ये देख कर वो आदमी भद्दे तरीके से मुस्करा दिया और इसी के साथ वही लड़की अंदर आई जो सिद्धांत को हॉस्पिटल से बाहर लेकर आई थी । उसका चेहरा अभी भी ढका हुआ था ।

उसे देख कर सिद्धांत की नफरत और भी बढ़ गई लेकिन उस लड़की को इस सबसे कोई फर्क नहीं पड़ा क्योंकि उसकी नजर सिद्धांत के चोटों पर बनी हुई थी । जैसे ही उसने वो निशान देखे, उसका गुस्सा बढ़ने लगा ।

उसने चीखते हुए सामने खड़े गार्ड्स की ओर देख कर कहा, " किसने हाथ लगाया इसे ? "

उसकी आवाज इतनी तेज थी कि वहां खड़े सारे गार्ड्स अंदर तक कांप उठे । उनसे कुछ बोला ही नहीं गया ।

ये देख कर उस लड़की ने फिर से तेज आवाज में कहा, " मैंने पूछा, किसने हाथ लगाया इसे ? "

फिर उसने अपने नाना की ओर देख कर कहा, " नानू, जिसने भी ये किया है मुझे उसके शरीर पर भी वैसे ही मार्क्स चाहिए । "

अब ये सब सिद्धांत के बस से बाहर हो रहा था । उसने फिर से बहुत ही जोर से अपने हाथ पैर हिलाने की कोशिश की जिससे सबका ध्यान फिर से उसकी ओर चला गया ।

निशा ने उसे इतने गुस्से में देख कर कहा, " शांत हो जाओ बेबी, शांत हो जाओ । "

सिद्धांत को उसके शब्द सुन कर और गुस्सा आ रहा था । वो निशा को घूरने लगा तो निशा ने शर्मा कर कहा, " ऐसे मत देखो जान, मुझे शर्म आ रही है । "

ये सुन कर सिद्धांत ने अपनी नजरें फेर लीं । ये देख कर निशा ने अपना हाथ आगे बढ़ा कर उसके मुंह से टेप हटा दिया लेकिन इतने में एक गार्ड ने आकर सिद्धांत को एक थप्पड़ मार दिया ।

उसने थप्पड़ मारने के साथ ही कहा, " क्यों बे, मैम को नखरे दिखा रहा है । चुपचाप उनकी बात मान क्यों नहीं लेता ! "

असल में उस गार्ड को सिद्धांत से बहुत पहले से ही खुन्नस थी इसलिए जब से सिद्धांत यहां आया था तब से वो सिद्धांत के पीछे पड़ा था ।

जैसे ही उसने सिद्धांत को मारा वैसे ही निशा जलती हुई नजरों से उसे घूरने लगी लेकिन इससे पहले कि वो उस गार्ड को कुछ भी कहती, सिद्धांत ने तेज आवाज में कहा, " बंद करो अपना पागलपन । अरे इंसान ही हो न तुम या नहीं ! "

निशा ने तुरंत उसकी ओर देख कर कहा, " सिड, अपने प्यार के बारे में ऐसा नहीं बोलते ! "

सिद्धांत ने नफरत के साथ कहा, " प्यार, इसे प्यार कहती हो तुम ! अरे प्यार का मतलब भी पता है तुम्हें ! प्यार तो एक तपस्या है, एक पूजा है । प्यार में इंसान नीचे नहीं गिरता है, बल्कि ऊंचा उठ जाता है ।

तुमने हमें इसीलिए किडनैप किया न, ताकि हमें पा सको, लेकिन तुम्हें तो ये ही पता नहीं है कि प्यार में पाया नहीं, खुद को खोया जाता है । "

निशा ने तुरंत अपना मास्क हटा दिया । उसने सिद्धांत के कुर्सी को पकड़ा और उसके सामने उसी कुर्सी पर झुक गई ।

उसने अपना चेहरा सिद्धांत के चेहरे के बिल्कुल पास कर लिया जिससे सिद्धांत ने तुरंत आँखें बंद करके अपना चेहरा पीछे खींच लिया लेकिन उसे निशा की सांसें अभी भी अपने चेहरे पर महसूस हो रही थीं ।

निशा ने मदहोश आवाज में कहा, " आंखें खोलो, सिड ! "

लेकिन सिद्धांत ने अपनी आँखें और कस कर बंद कर लीं । ये देख कर निशा को गुस्सा आ गया । उसने अपना हाथ सिद्धांत के हाथ पर वहां रखा जहां उसे चोट लगी हुई थी और फिर जोर से दबा दिया ।

इसके बाद उसने अपने दांत पीसते हुए कहा, " सिद्धांत, मैंने कहा, अपनी आँखें खोलो । "

सिद्धांत ने अपनी आँखें खोल तो दी लेकिन उनमें डर का एक कतरा भी नहीं था । उनमें सिर्फ और सिर्फ नफरत नजर आ रही थी ।

निशा ने उसकी आंखों में देख कर कहा, " तुम दुनिया में कहीं भी क्यों ना चले जाओ लेकिन मुझसे नहीं भाग सकते । "

सिद्धांत ने एक नकली हंसी हंस कर कहा, " भ्रम में जी रही तो तुम, नहीं तो तुम्हें हमें अपने पास रखने के लिए ये हथकंडे नहीं अपनाने पड़ते । "

निशा ने उसके चारों ओर घूमते हुए कहा, " अब क्या करूं, अपनी मर्जी से तो तुम मेरे पास आ नहीं रहे थे, तो मुझे ये तरीका अपनाना पड़ा और रही बात प्यार की, तो अब तुम सिर्फ मेरा प्यार नहीं हो बल्कि मेरी जिद्द, मेरा जुनून बन चुके हो । "

वो साथ में उसके शरीर को छू भी रही थी जिससे सिद्धांत को घिन्न सी महसूस हो रही थी ।

सिद्धांत ने फिर से कुछ कहना चाहा कि इतने में निशा के नाना ने तेज आवाज में कहा, " बस, बहुत हुआ ! अब एक शब्द भी नहीं बोलोगे तुम ! मेरी नातिन ने तुम्हारे लिए क्या कुछ नहीं किया और तुम उसे ही सुना रहे हो ! "

सिद्धांत ने चिढ़ कर कहा, " ऐसा भी क्या किया है आपकी प्यारी नातिन ने ? "

निशा के नाना ने कहा, " खुद को देखो, तुम असल में सिद्धांत बन कर बैठे हो । "

सिद्धांत ने निशा की ओर देख कर अपने दांत पीस कर कहा, " किसने कहा था तुमसे ये सब करने के लिए ? हमारे नेक्स्ट बर्थडे पर हमारी शादी होने वाली थी । "

निशा ने तुरंत कहा, " किससे ? उस यश से ? "

सिद्धांत ने तेज आवाज में कहा, " हां, उसी से ! लेकिन तुमने सब बर्बाद कर दिया । "

निशा ने उसके बिल्कुल पास आकर उसकी आंखों में आँखें डाल कर कहा, " पर वो तुम्हें फिर से वो बना रहा था जो तुम्हारे पापा नहीं चाहते थें । "

सिद्धांत ने चिढ़ कर कहा, " वो जो भी कर रहा था वो हमारे साथ कर रहा था । वो सब हम दोनों के बीच की बात थी ।

हमारे बीच आने वाली तुम कौन होती हो और तुमसे किसने कह दिया कि वो हमें बदल रहा था ? उसने हमें वैसे ही एक्सेप्ट किया था जैसे हम हैं । बदलने की कोशिश तो तुमने की है हमें । "

निशा ने कहा, " तुम... "

लेकिन उसने अपनी आगे की बात अधूरी छोड़ कर कहा, " छोड़ो ! अभी तो तुमसे बात करना ही बेकार है । "

फिर उसने अपने नाना की ओर देख कर कहा, " चलिए नानू ! "

उसके नाना ने एक जलती हुई नजर सिद्धांत पर डाली और फिर एक गार्ड को कुछ इशारा करके निशा के साथ बाहर चला गया ।

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क्या खुन्नस थी उस गार्ड की सिद्धांत से ?

निशा के नाना ने अपने गार्ड्स को क्या इशारा किया था ?

इन सभी सवालों के जवाब जानने के लिए पढ़ते रहिए,

बियोंड वर्ड्स : अ लव बॉर्न इन साइलेंस

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लेखक : देव श्रीवास्तव