Sanyasi in Hindi Moral Stories by Saroj Verma books and stories PDF | सन्यासी -- भाग - 2

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सन्यासी -- भाग - 2

जयन्त अपनी साइकिल से जब काँलेज पहुँचा तो उसे बहुत भूख लगी थी,इसलिए कैन्टीन जाकर उसने कुछ खाने का सोचा,लेकिन कैन्टीन में कुछ भी उसके मतलब का कुछ भी नहीं था,इसलिए वो वहाँ से वापस चला आया और तभी उसका दोस्त वीरेन्द्र उसे दूर से दिखा और उसने उसे देखकर हाथ हिलाया, इसके बाद वीरेन्द्र उसके पास आकर बोला....
"भाई! तेरा मुँह क्यों लटका हुआ है"?
"यार! मेरा तो वही रोज रोज का टन्टा है,बाबूजी से बहसबाजी फिर इसके बाद भूखे काँलेज चले आना, कैन्टीन गया था कुछ खाने के लिए लेकिन वहाँ मेरे मतलब का कुछ भी नहीं था,इसलिए काँलेज के गेट के बाहर जा रहा था,कुछ खाने के लिए"जयन्त बोला...
"ओह...तो ये बात है,तो श्रीमान जयन्तराज जी आपकी दुविधा हम दूर किए देते हैं",वीरेन्द्र बोला....
"वो भला कैंसे?",जयन्त ने पूछा...
"माँ गाँव से आ गई है,कहती थी तुझे देखे हुए बहुत दिन हो गए हैं इसलिए चली आई,उन्होंने तेरे लिए आलू की भुजिया और पराँठे भेजे हैं,कहती थी कि जयन्त बेटा को खिला देना",वीरेन्द्र बोला....
"सच में!",जयन्त ने खुश होकर पूछा....
"हाँ! मेरी माँ मुझसे ज्यादा तुझे प्यार करती है",वीरेन्द्र बोला...
"हाँ! ये बात तो है,मौसी सच में मुझे बहुत प्यार करती है",जयन्त बोला....
"तो फिर देर किस बात की है,जल्दी से खा ले,इसके बाद क्लास में चलते हैं क्योंकि प्रोफेसर रघुनन्दन श्रीवास्तव के आने का वक्त हो गया है",वीरेन्द्र बोला....
"हाँ! चल खा लेते हैं",जयन्त बोला...
"नहीं भाई! मैं तो खाकर आया हूँ,ये तो केवल तेरे लिए हैं",वीरेन्द्र बोला....
"यार! थोड़ा तो खा ले,वरना मुझे अच्छा नहीं लगेगा",जयन्त बोला....
"नहीं! भाई! बिलकुल भी भूख नहीं है,वरना मैं खा लेता",वीरेन्द्र बोला....
"तो ठीक है अगर तुझे नहीं खाना तो मैं इसे जल्दी से खतम कर देता हूँ फिर क्लास लेने चलते हैं"
और ऐसा कहकर जयन्त खाने पर टूट पड़ा,फिर खाकर जयन्त और वीरेन्द्र क्लास की ओर चल पड़े,वे क्लास में बैठे ही थे कि प्रोफेसर रघुनन्दन श्रीवास्तव क्लास में हाजिर हुए और पढ़ाने लगे,तभी क्लास के बाहर एक लड़की आकर प्रोफेसर श्रीवास्तव से बोली...
"मे आई कम-इन सर!",
"आइए! लेकिन ये कोई वक्त नहीं है क्लास में आने का",प्रोफेसर रघुनन्दन श्रीवास्तव बोले...
"माँफ कीजिए! सर! मैं ने आज ही काँलेज ज्वाइन किया है,इसलिए क्लास ढूढ़ने में वक्त लग गया,आइन्दा से याद रखूँगीं",वो लड़की क्लास के अंदर आते हुए बोली...
"ठीक है,वैसे आपका नाम,मैं आपकी अटेन्डेन्स लगा देता हूँ",प्रोफेसर साहब ने कहा....
"जी! अनुकम्पा मुखर्जी",वो लड़की बोली....
"कहीं आप बैरिस्टर सुजोय मुखर्जी की बेटी तो नहीं,जिनका कल ही एडमिशन हुआ है",प्रोफेसर रघुनन्दन श्रीवास्तव ने पूछा....
"जी! आपने ठीक पहचाना",अनुकम्पा बोली....
"ठीक है,जाइए सीट पर बैठ जाइए",
और फिर ऐसा कहकर प्रोफेसर रघुनन्दन श्रीवास्तव पढ़ाने लगे,लेकिन क्लास में लड़को के बीच खुसर पुसर होने लगी,क्योंकि अनुकम्पा बहुत ही खूबसूरत नये जमाने की लड़की थी,उसने जो पारदर्शी हल्के गुलाबी रंग की साड़ी पहनी थी,वो बहुत ही महँगी लग रही थी,स्लीपकट ब्लाउज,गले में सोने की पतली सी चेन,कानों सोने के छोटे छोटे सोने के एयरिंग्स,होंठों पर हल्की सी सुर्खी,एक हाथ में महँगी घड़ी और दूसरे हाथ में सोने का जड़ाऊ कंगन,खुले बाल,ऊपर से उसने अपने सिर पर धूप का चश्मा भी चढ़ा रखा था, उसकी अदाऐं कयामत ढ़ाने वाली लग रहीं थीं,इसलिए सारे लड़के प्रोफेसर श्रीवास्तव के लेक्चर पर ध्यान ना देकर अनुकम्पा मुखर्जी पर ज्यादा ध्यान दे रहे थे और उधर प्रोफेसर साहब पढ़ाने में मगन थे,लेकिन जब उन्होंने पीछे मुड़कर लड़को की हरकतों पर ध्यान दिया तो वे नाराज होकर बोले.....
"ये सब क्या हो रहा?",
तभी एक शरारती लड़का अपनी जगह पर खड़ा होकर बोला....
"सर! आपने कहा ना कि ध्यान दो,तो हम सब तो बस ध्यान ही दे रहे थे"
उस लड़के की बात सुनकर सभी लड़के खिलखिला हँस पड़े तो प्रोफेसर श्रीवास्तव गुस्से से उबलकर बोले....
"ये क्या बेहूदगी"?
तभी दूसरा लड़का अपनी जगह पर खड़ा होकर बोला....
"सर! ये बेहूदगी नहीं आशिकी है",
"अभी प्रिन्सिपल साहब के पास तुम सबकी कम्पलेन पहुँच जाऐगी ना तो सारी आशिकी निकल आऐगी", प्रोफेसर श्रीवास्तव गुस्से से बोले.....
"कौन करेगा कम्पलेन.....आप?",तीसरा लड़का खड़ा होकर के बोला....
"हाँ! मैं!",प्रोफेसर रघुनन्दन श्रीवास्तव बोले....
"आप तो हम सबकी कम्पलेन कर देगें,लेकिन जब आपके घर में ये खबर जाऐगी कि आप रघुनन्दन नहीं कृष्ण कन्हैया हैं तो तब क्या होगा",दूसरा लड़का बोला....
"खामोश! ये क्या बकते हो",प्रोफेसर रघुनन्दन गुस्से से बोले...
"सर! बक नहीं रहा हूँ मैं! वो जो हमारे मुहल्ले की रसीलीबाई है ना! तो मैंने आपको रात में अक्सर वहाँ छुप छुपकर जाते हुए देखा है,अगर ये बात पूरी यूनिवर्सिटी को पता चल जाएँ तो फिर क्या होगा,जरा सोचिए!"
पहला लड़का बोला.....
"पूरी की पूरी क्लास नालायक है! बस खुराफात करवा लो,पढ़ने को ना कहो,मैं आज के बाद तुम लोगों को पढ़ाने नहीं आऊँगा",
और ऐसा कहकर प्रोफेसर रघुनन्दन श्रीवास्तव ने अपनी किताब और रजिस्टर अपने हाथ में उठाया और क्लास से बाहर जाने लगे तो जयन्त अपनी जगह पर खड़े होकर उनसे बोला.....
"सर! प्लीज! आप बाहर ना जाएँ,मैं आपसे इन सब की की तरफ से माँफी माँगता हूँ,अगर आज की क्लास नहीं हुई तो पढ़ाई का बहुत नुकसान हो जाऐगा"
"ये जो तुम्हारे सहपाठी हैं ना! तो तुम इन्हीं सब से क्यों नहीं पढ़ लेते,इन सबको तो मुझसे भी ज्यादा ज्ञान है,मेरी तुम लोगों को कोई जरूरत नहीं है, नहीं तो तुम लोग इस तरह से मेरी खिल्ली नहीं उड़ाते",प्रोफेसर रघुनन्दन श्रीवास्तव बोले....
"सर! कुछ लोगों की शरारतों का खामियाजा सारे क्लास को नहीं भुगतना चाहिए,प्लीज! आप क्लास लीजिए, अब हम सभी ध्यान से पढ़ेगें",वीरेन्द्र खड़े होकर बोला....
"नहीं! तुम बदमाशों को पढ़ाने का कोई फायदा नहीं,तुम लोग कभी सुधरने वाले नहीं हो,मेरा यहाँ से चले जाना ही बेहतर रहेगा",प्रोफेसर रघुनन्दन श्रीवास्तव बोले....
जब प्रोफेसर रघुनन्दन श्रीवास्तव क्लास में पढ़ाने के लिए तैयार ना हुए तो मिस अनुकम्पा मुखर्जी अपनी जगह पर खड़ी होकर बोलीं....
"रुक जाइए ना सर! मैं तो आज ही आई हूँ आपके क्लास में,आपका यूँ क्लास छोड़कर जाना ठीक नहीं"
अब जब अनुकम्पा मुखर्जी ने प्रोफेसर रघुनन्दन श्रीवास्तव से अरज करी तो वे मुस्कुराते हुए पढ़ाने के लिए तैयार हो गए और सारे क्लास के लड़के एक दूसरे का मुँह देखकर मंद मंद मुस्कुराते हुए प्रोफेसर रघुनन्दन श्रीवास्तव के लेक्चर पर ध्यान देने लगे,जब क्लास खतम हुई तो प्रोफेसर साहब क्लास से बाहर चले गए और उनके जाने के बाद,दो लड़के आपस में बतियाने लगे,पहला बोला....
"आय...हाय....क्या आँखें हैं....क्या अन्दाज़ है,प्रोफेसर को पढ़ाने के लिए रुकना ही पड़ा"
तब दूसरा बोला....
"हाँ! यार! बात करती है तो फूल झड़ते हैं....फूल....,भला कैंसे ना कोई पढ़ाने के लिए रुकेगा"
"हाँ! भाई! अब तो रोज क्लास आने का मन करेगा,ऐसी दिलकश़ अदाऐं भला किसे पसंद नहीं हैं",पहला बोला....
"हाँ! भाई! हमारी तो लाँटरी ही खुल गई",दूसरा बोला....
उन दोनों की ये सब बातें जयन्त को पसंद नहीं आईं,क्योंकि वो औरतों और लड़कियों की बहुत इज्जत करता था,इसलिए वो उन दोनों के पास जाकर बोला....
"हाँ! मदन! अब बोल कि क्या कह रहा था?"
"तुझे क्यों मिर्चे लग रहीं हैं,हम दोनों ने तुझे तो कुछ नहीं कहा",मदन बोला....
"लेकिन! तुम दोनों किसी लड़की के बारें में ऐसा कैंसे कह सकते हो",जयन्त बोला....
"लेकिन जब हम प्रोफेसर की बेइज्जती कर रहे थे ,तब तो तू कुछ नहीं बोला,लेकिन जब लड़की की बात आई तो बड़ा फड़फड़ा रहा है,क्या बात है कहीं तेरा दिल तो नहीं आ गया उस पर",मदन का दोस्त सुधीर बोला....
"ये जुबान सम्भालकर बात कर,मैं तुम दोनो की तरह बिल्कुल भी नहीं हूँ",जयन्त बोला...
"अभी हम दोनों तुझे बताते हैं कि तू कैसा है?"
और ऐसा कहकर मदन ने जयन्त को जोर का धक्का दे दिया,अब जयन्त भी कहाँ थमने वाला था,वो जमीन से उठा और उसने जोर का घूँसा मदन के मुँह पर मारा और फिर इसके बाद दोनों के बीच हाथापाई शुरु हो गई,मदन का दोस्त सुधीर भी जयन्त पर बरस पड़ा और फिर ये सब देखकर वीरेन्द्र भी कहाँ रुकने वाला था,वो भी अपने दोस्त को बचाने के लिए रणभूमि में उतर पड़ा,देखते ही देखते क्लास रुम कुरुक्षेत्र बन गया....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....