Sanyasi in Hindi Moral Stories by Saroj Verma books and stories PDF | सन्यासी -- भाग - 3

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सन्यासी -- भाग - 3

छात्रों के बीच क्लास रूम में हो रही मार कुटाई जब चपरासी ने देखी तो उसने फौरन ही प्रिन्सिपल रुम जाकर उन सभी की शिकायत कर दी,इसके बाद प्रिन्सिपल ने फौरन ही उन सभी अपने रुम में बुलाया और लड़ाई का कारण पूछा...
तब मदन प्रिन्सिपल साहब से बोला....
"सर! मैं और सुधीर तो आपस में बातें कर रहे थे,पता नहीं अचानक जयन्त को क्या हुआ,वो हमारी बातों के बीच बिना मतलब कूद पड़ा"
"सर! मदन झूठ बोल रहा है,भला! मैं बेवजह क्यों उलझूँगा किसी से",जयन्त बोला...
"तो फिर बताओ कि पूरी बात क्या है?",प्रिन्सिपल साहब ने जयन्त से पूछा....
"जी! मैं वो आपको नहीं बता सकता,किसी लड़की की इज्ज़त का सवाल है",जयन्तराज प्रिन्सिपल साहब से बोला....
"सर! ऐसी कोई भी बात ही नहीं थी,जयन्त मुझसे और सुधीर से बेमतलब उलझ रहा था",जयन्त ने प्रिन्सिपल साहब से कहा...
"तुम्हें मालूम है जयन्त! मैं तुम्हें इस बात के लिए काँलेज से रस्टीकेट भी कर सकता हूँ",प्रिन्सिपल साहब गुस्से से बोले....
"तो कर दीजिए रस्टीकेट,मुझे फरक नहीं पड़ता, क्योंकि मैं सही हूँ",जयन्त बोला....
"मैं आज ही तुम्हारे फादर को टेलोफोन करके तुम्हारी करतूतों के बारें में बताता हूँ",प्रिन्सिपल साहब गुस्से से बोले....
"तो बता दीजिए,अगर मैं गलत नहीं हूँ तो मुझे अपने बाबूजी का भी कोई डर नहीं है",जयन्त बोला....
"ऐसा बेखौफ रवैया,अब तो मैं जरूर तुम्हारे पिताजी तक इस बात को पहुँचाकर रहूँगा",प्रिन्सिपल साहब गुस्से से बोले....
इधर प्रिन्सिपल साहब की बातों को सुनकर मदन और सुधीर मन ही मन मुस्कुरा रहे थे और उधर वीरेन्द्र की हालत खराब थी,क्योंकि वो तो गरीब घर का लड़का था, अगर उसे काँलेज से रस्टीकेट कर दिया गया तो फिर वो क्या करेगा,वो यही सब सोच ही रहा था कि तभी प्रिन्सिपल आँफिस के बाहर अनुकम्पा मुखर्जी आई और उसने प्रिन्सिपल से कहा...
"मे..आय..कम-इन....सर!"
"जी! आइए!",प्रिन्सिपल साहब ने कहा...
इसके बाद अनुकम्पा मुखर्जी प्रिन्सिपल आँफिस के भीतर आई और प्रिन्सिपल सर से बोली....
"सर! मैं आप से कुछ कहना चाहती हूंँ"
"जी! कहिए!",प्रिन्सिपल सर बोले...
तब अनुकम्पा मुखर्जी उनसे बोली....
"सर! आज जो क्लासरूम में हुआ,उसमें जयन्तराज का कोई कुसूर नहीं है,ये दोनों मदन और सुधीर मुझ पर अभद्र टिप्पणियाँ कर रहे थे, इसलिए जयन्त को उन दोनों की बातों पर गुस्सा आ गया,जयन्त ने उन दोनों से बात करने की कोशिश की तो दोनों जयन्त से उलझ पड़े,फिर सभी के बीच हाथापाई शुरू हो गई और नौबत यहाँ तक आ पहुँची कि इन सभी को आपके आँफिस आना पड़ा"
"आपका नाम?", प्रिन्सिपल साहब ने अनुकम्पा से पूछा....
"जी! अनुकम्पा मुखर्जी!,मैंने आज ही काँलेज ज्वाइन किया है",अनुकम्पा बोली...
"कहीं तुम बैरिस्टर सुजोय मुखर्जी की बेटी तो नहीं",प्रिन्सिपल ने अनुकम्पा से पूछा....
"जी! वे ही मेरे फादर हैं",अनुकम्पा मुखर्जी बोली...
"ठीक है! अगर तुम कह रही हो कि इसमें जयन्त की कोई गलती नहीं है तो मैं इसे माँफ कर देता हूँ,लेकिन आइन्दा से क्लासरूम में ऐसा कुछ भी नहीं होना चाहिए,यहाँ तुम लोग पढ़ने के लिए आते हो इसलिए यहाँ केवल पढ़ाई ही किया करो,यहाँ लड़ाई दंगा करने की कोई जरूरत नहीं है",प्रिन्सिपल सर सभी से बोले...
"ठीक है सर! आइन्दा से ऐसी गलती नहीं होगी",जयन्तराज बोला...
और फिर सभी को प्रिन्सिपल सर ने अपने आँफिस से बाहर भेज दिया,मदन और सुधीर सड़ा सा मुँह बनाकर एक ओर चले गए और इधर जयन्त,अनुकम्पा और वीरेन्द्र एक ओर आ गए,तब जयन्त ने अनुकम्पा से कहा....
"आपका बहुत बहुत शुक्रिया! अगर आज आप समय से प्रिन्सिपल आँफिस ना आती तो शायद हम दोनों को काँलेज से रस्टीकेट कर दिया जाता",
"शुक्रिया तो मुझे आपका करना चाहिए,जो आप मेरे लिए उन दोनों से भिड़ गए",अनुकम्पा मुखर्जी बोली...
"जी! ये मेरी फितरत में शामिल है,मुझसे स्त्रियों का अपमान सहन नहीं होता,आपकी जगह अगर कोई और भी होता तब भी मैं यही करता",जयन्त बोला....
"तब तो बड़े उच्च विचार है आपके,क्योंकि आजकल के जमाने में तो बहुत कम लोग ही ऐसे मिलते हैं जो स्त्रियों का सम्मान करते हों,नहीं तो लोग स्त्री की एक गलती पर उसके साथ ना जाने कैसा सलूक करते हैं", अनुकम्पा मुखर्जी बोली....
"देवी जी! ये तो आपके देखने का नजरिया है ,जो आपको मेरे विचार उच्च लगे,वैसे ऐसा कुछ भी नहीं है",जयन्त ने कहा...
"जी! ऐसा ही है,एक सच्चा एवं अच्छा व्यक्ति कभी भी अपने गुणों का बखान स्वयं नहीं करता, आपके हृदय में स्त्रियों के सम्मान की भावना है,जो ये दिखाती है कि आप उदार प्रवृत्ति के व्यक्ति हैं", अनुकम्पा मुखर्जी बोली....
"अब आपको ऐसा नहीं लग रहा कि ये कुछ ज्यादा हो रहा है,आप खामख्वाह में मेरी तारीफ़ के पुल बाँधती जा रहीं हैं",जयन्त बोला....
जयन्त की इस बात पर अनुकम्पा मुस्कुराई और इसके बाद बोली....
"जी! ठीक है !अब मैं कुछ ना कहूँगी आपके बारें में,चलिए! कैन्टीन में बैठकर बातें करते हैं,मैं वहाँ कुछ खा भी लूँगी,सुबह जल्दबाजी में नाश्ता भी नहीं कर पाई",
तब अनुकम्पा की बात सुनकर वीरेन्द्र ने जयन्त की ओर इशारा करते हुए कहा...
"ये जनाब तो कैन्टीन का कुछ खाते ही नहीं हैं"
"क्यों?",अनुकम्पा ने वीरेन्द्र से पूछा....
"जी! ये जनाब कचौरी समोसे से बिलकुल दूर रहते हैं,ब्रेड और बटर देखकर इन्हें उल्टी आती है और रही चाय की बात तो इनकी समझ से वो अंग्रेजों का पेय पदार्थ है,इन्हें तो केवल घर का बना खाना ,छाज, लस्सी और शर्बत ही पसंद है,सच्चे देशभक्त जो ठहरे,बड़े महान व्यक्ति हैं हमारे जय बाबू!",वीरेन्द्र ने आँखें मटकाते हुए कहा....
"ओह...तो ये बात है,तब तो जनाब कट्टर देशभक्त हैं",अनुकम्पा बोली....
"जी! ऐसी कोई बात नहीं है,ये तो यूँ ही मेरा मज़ाक बना रहा है,क्या अपने देश और देश की चीजों से लगाव रखना गलत बात है?",जयन्त ने अनुकम्पा से पूछा...
"जी! मेरी समझ से तो ये बिलकुल भी गलत नहीं है",अनुकम्पा बोली....
"अंग्रेजों के खिलाफ तो कितने आन्दोलनकारी खड़े हैं,मैं तो केवल अपने देश से लगाव रख रहा हूँ और कुछ तो नहीं कर सकता अपने देश के लिए लेकिन इतना करना तो मेरा फर्ज बनता है,क्यों ठीक बात कही ना मैंने देवी जी!",जयन्त ने पूछा....
"जी! बिल्कुल सही कहा आपने, मैं भी कुछ वक्त पहले विलायत से लौटी हूँ,इसलिए अभी वहाँ का रंग उतरा नहीं मुझ पर से,जब उतर जाऐगा तो शायद मैं भी आपकी ही तरह सोचने लगूँगी",अनुकम्पा बोली....
"आप विलायत से लौटीं हैं,तब तो विदेशी रहन सहन के बारे में बखूबी जानती होगीं आप!",जयन्त बोला....
"हाँ! जानती तो बहुत कुछ हूँ वहाँ के बारें में,लेकिन जब से यहाँ आई हूँ तो यहाँ आकर ऐसा मालूम होता है कि खुली हवा में साँस ले रही हूँ",अनुकम्पा बोली....
"मेरा देश है ही ऐसा ,जो यहाँ आ जाता है तो यहाँ की आब-ओ-हवा से अछूता नहीं रह पाता,यहाँ के रंग में खुद को रंगने से नहीं रोक पाता",जयन्त बोला....
"ओ....देशभक्त महाराज! अगर आपका भाषण हो चुका हो तो देवी जी को कैन्टीन जाने की इजाजत दे दीजिए,आप तो भरपेट सब्जी पराँठे ठूँस चुके हैं,ये बेचारी तो भूखी होगीं",वीरेन्द्र बोला....
"हाँ...हाँ...क्यों नहीं,आप जाइए,मैं तो नहीं जाऊँगा कैन्टीन,मुझे तो रत्तीभर भी भूख नहीं है", जयन्त बोला...
"ठीक है तो फिर मैं चलती हूँ,बाद में मुलाकात होगी"
और ऐसा कहकर अनुकम्पा कैंटीन की ओर चली गई,उसके बाद वीरेन्द्र जयन्त से बोला....
"लड़की वैसे बुरी नहीं है"
"हाँ! इतने अमीर बाप की औलाद होकर अभी भी शिष्टता बाकी है और घमण्डी भी नहीं है"जयन्त बोला....
"हाँ! सही कहा तूने"वीरेन्द्र बोला....
और फिर जयन्त और वीरेन्द्र यूँ ही बातें करते हुए क्लास की ओर निकल गए.....

क्रमशः...
सरोज वर्मा....