Kukdukoo - 3 in Hindi Drama by Vijay Sanga books and stories PDF | कुकड़ुकू - भाग 3

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कुकड़ुकू - भाग 3

पिछले भाग मे....
स्कूल गैदरिंग मे रघु के रेस जीतने की खुशी मे उसकी मां उसके लिए बाजार से मुर्गा लेकर आई। रघु को चिकन बहुत पसंद था। लेकिन जब उसके पापा को खेत से घर आने मे देरी हुई तो रघु उनसे नाराज होकर बैठ गया। जब रघु के पापा को उसकी नाराजगी का पता चला तो उन्होंने फटाफट उसके लिए चिकन बनाना शुरू कर दिया।
अब आगे.....
शाम के समय सुशील के पड़ोसी जो उसके घर के पास से गुजर रहे थे , उनमे से एक महिला रघु की मम्मी शांतिको आंगन मे बैठा देख उससे पूछती है , “अरे अरूणा...! हमने सुना आज रघु स्कूल की दौड़ की प्रतियोगिता मे जीतकर आया है!”

“हां दीदी... आज स्कूल में दौड़ की प्रतियोगिता थी, उसी में वो जीतकर आया है।” शांतिने मुस्कुराते हुए उस महिला से कहा।
“अरे आज तो फिर कुछ खास बन रहा होगा?” उस महिला ने मुस्कुराते हुए शांतिसे पूछा। तभी एक दूसरी महिला ने रघु को देखते हुए कहती है, “अरे रघु...! हमे खाने पर नही बुलायेगा या नही?”
“अरे क्यों नही काकी, बिलकुल आप खाने पर आ सकते हैं।” रघु ने मुस्कुराते हुए कहा।

रघु की बात सुनते ही उस महिला ने मुस्कुराते हुए रघु से कहा, “अरे बेटा तूने बुलाया उतना ही काफी है, जुग जुग जियो बेटा और ऐसे ही सफलता हासिल करते रहो।” वहां खड़ी महिलाओं ने मुस्कुराकर रघु को आशीर्वाद देते हुए कहा, उसके बाद वो सब अपने अपने घर की तरफ चल पड़े।

थोड़ी देर बाद जानकी, रघु के घर पर आई। उन्होंने देखा की शांतिआंगन मे बैठी थी। “अरे शांतिबहन आज खाना मत बनाना, आज आप सबका खाना हमारे यहां है।” जानकी ने मुस्कुराते हुए शांतिसे कहा।

“जानकी बहन आज तो रघु की मनपसंद चीज बन रही है, आज तो आना नही हो पाएगा, पर बुलावे के लिए शुक्रिया।” शांतिजानकी से कहती है।
“अच्छा तो आज मुर्गा बन रहा है ! हमारे यहां भी आज शिल्पा के पापा मुर्गा लेकर आए हैं। चलिए ठीक है, पर अगली बार आपको हमारे यहां खाने पर आना ही होगा।” जानकी मुस्कुराते हुए शांति से कहती है।
“अरे बिलकुल आयेंगे। वैसे शिल्पा बेटी क्या कर रही है?” शांति ने जानकी से पूछा।
“अरे वो तो आंगन में दोस्तो के साथ मस्ती करने मे लगी हुई है। चलिये मैं चलती हूं, घर पर थोड़ा काम भी है।” कहकर जानकी अपने घर को चली गई।

अगले दिन रविवार होने के कारण स्कूल के छुट्टी थी। रघु उसकी मां और उसके पापा सुबह नाश्ता करने के बाद खेतों पर जाने के लिए रवाना हो गए। कुछ ही देर में वो लोग खेत पहुंच गए।
सुशील और शांति खेत के काम में लग गए, और रघु वहां से थोड़ी दूर पर गाय और बकरियों को चराने लगा। रघु के कुछ दोस्त भी उसके साथ गाय बकरियां चारा रहे थे ।

“अरे रघु... चलना यार गाय बकरियों को नदी के तरफ लेकर चलते हैं, वहां मछलियां भी पकड़ेंगे।” रघु के दोस्त मंगल ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए पूछा।

“अच्छा ऐसी बात है...! 2 मिनट रूक मैं मम्मी–पापा को बता कर आता हूं फिर चलते हैं।” इतना कहकर रघु अपने मम्मी–पापा के पास गया और उनसे बोला, “मां मै मंगल के साथ नदी की तरफ जा रहा हूं, उधर ही मंगल के साथ गाय चार लूंगा और खाने के समय वापस आ जाऊंगा।” रघु ने अपनी मां से कहा।

“ठीक है जा पर गाय बकरियों का ध्यान रखना की वो किसी के खेत मे ना चली जायें।” रघु की मां ने उसे समझाते हुए कहा।
“ठीक है मां मै ध्यान रखूंगा।” इतना कहकर रघु भागता हुआ मंगल के पास गया और बोला, “चल चलते हैं, अपनी गाय बकरियों को पहले इकट्ठा कर लेते हैं फिर चलेंगे।” इसके बाद दोनो ने गाय बकरियों को इकट्ठा किया और हकालते हुए नदी की तरफ चल पड़े।

चलते चलते रघु को कुछ ध्यान आया। उसने मंगल को देखते हुए पूछा, “मंगल हम मछली कैसे पकड़ेंगे? मैं तो कुछ लाया ही नही..!”
“अरे यार तू चल तो सही, मेरे पास सब इंतजाम है।” कहते हुए मंगल, रघु की तरफ देखकर मुस्कुराने लगा।

कुछ देर बाद दोनो नदी के पास पहुंच गए। मंगल थोड़ा आगे गया और फिर झाड़ियों से कुछ निकालने लगा। जब रघु ने उसे ये करते देखा तो उससे पूछा, “ओए मंगल... वहां झाड़ियों मे क्या ढूंढ रहा है?”
“अरे रूक जा थोड़ा, मैं लेकर आ रहा हूं, फिर खुद देख लेना” मंगल ने कहा और फिर दुबारा झाड़ियों में कुछ ढूंढने लगा।

थोड़ी देर बाद रघु ने देखा की मंगल एक लकड़ी लेकर आ रहा है, और उस लकड़ी मे मछली पकड़ने का कांटा लगा हुआ था। “अच्छा तो तूने यहां पहले से ही कांटा छुपा कर रखा है!” रघु ने मंगल की तरफ देखकर मुस्कुराते हुए कहा । इसके बाद दोनो नदी के किनारे जाकर पानी में कांटा डालकर बैठ गए।
पानी मे कांटा डालने के कुछ ही देर बाद दोनो के कांटो मे मछलियां फंसने लगी । देखते ही देखते उन्होंने बहुत सी मछलियां पकड़ ली। उसके बाद दोनो ने मछलियां आपस मे बराबर बाट ली।

मछली पकड़ते पकड़ते रघु और मंगल को पता ही नही चला की कब दोपहर हो गई। दोनो ने मछलियां उठाई और गाय बकरियों को हकालते हुए वापस आ गए। मंगल खाना खाने के लिए अपने मम्मी पापा के पास चला गया और रघु अपने मम्मी पापा के पास आ गया था।
रघु के मम्मी पापा ने जब उसके हाथ मे मछलियां देखी तो उससे पूछा, “रघु ये मछलियां कहां से पकड़ लाया?”
“मां मैने और मंगल ने मिलकर नदी से पकड़ी है। देखो कितनी बड़ी बड़ी हैं।” रघु ने अपने मम्मी पापा को मछलियां दिखाते हुए कहा।
“चल मुंह हाथ धो ले, मैं खाना निकालती हूं।” शांति ने रघु से कहा उसके बाद शांति ने सबके लिए खाना निकाला और सब खाना खाने लगे।
“अरे रघु...! तुम दोनो ने मछली कैसे पकड़ी ? मैने तो तुम्हारे पास कोई कांटा नही देखा था !” रघु के पापा सुशील ने उससे पूछा।
“अरे पापा वो मंगल ने पहले से ही नदी के पास कांटा छुपा रखा था, उसी कांटे से पकड़ी।” रघु ने अपने पापा से कहा और खाना खाने लगा। खाना खाने के बाद रघु गाय बकरियों चराने चला गया। शांति और सुशील भी अपने काम मे लग गए।
देखते ही देखते शाम हो गई। रघु और उसके पापा मम्मी घर जाने के लिए निकल गए। रास्ते मे चलते चलते रघु की नजर एक कटहल के पेड़ पर गई। पेड़ पर कटहल देखते ही रघु ने कटहल के पेड़ की तरफ इशारा करते हुए अपने पापा से कहा, “पापा उस कटहल के पेड़ पर चढ़कर देखो ना, अगर पका कटहल मिल जाए तो !” असल मे रघु को पका कटहल खाना बहुत पसंद था।
“अजी देख लो अगर एक आदि पका कटहल मिल जाए तो! पता नही इसको कटहल खाना कितना पसंद है ?” शांति ने अपने पति सुशील की तरफ देखते हुए कहा।
शांति की बात सुनने के बाद सुशील ने पेड़ की तरफ देखा और फिर पेड़ पर चढ़ गया । सुशील कटहल ठोक ठोक कर देखने लगा। सुशील पेड़ पर कटहल देख हो रहा था की तभी वहां पर शेखर आ गया “अरे भाभी...! आप और रघु यहां पर क्यों रूके हुए हो ! घर नही चलना क्या?” शेखर ने रघु और उसकी को वहां खड़ा देख कर पूछा।

“अरे भाई साहब वो इसके पापा पेड़ पर चढ़े हुए हैं, देख रहे हैं अगर एक आदी पका कटहल मिल जाए तो।” शांति ने पेड़ के ऊपर की तरफ देखते हुए शेखर से कहा।
“अच्छा...! तो सुशील, रघु की फरमाईश पर पेड़ पर चढ़ा है! ” शेखर ने मुस्कुराते हुए कहा। उतने में ऊपर पेड़ से सुशील एक कटहल तोड़कर नीचे आने लगा।

“अरे भाई सुशील, एक ही कटहल मिला क्या?” शेखर ने मुस्कुराते हुए सुशील से पूछा।
“हां शेखर भाई एक ही कटहल मिला। आपको भी चाहिए था क्या?” सुशील ने शेखर से पूछा।
“सुशील भाई तुम्हे तो पता ही है की शिल्पा को पका कटहल कितना पसंद है! देखो अगर एक आदी और मिल जाए तो...!” शेखर ने मुस्कुराते हुए सुशील से कहा।
“अरे हां पका कटहल तो शिल्पा बेटी को भी बहुत पसंद है। लेकिन इस पेड़ पर तो एक ही पका कटहल था।” सुशील ने इतना कहा ही था की तभी शांति बीच में आती हुई बोली, “अरे कोई बात नही, घर चलते हैं, वहां पर मैं कटहल काट दूंगी, आप शिल्पा बेटी के लिए आधा कटहल ले जाना।” शांति ने शेखर से कहा और सब घर की तरफ चल पड़े।

घर पहुंचकर शांति ने कटहल काट कर आधा कटहल शेखर को दे दिया। उसके बाद शेखर ने कुछ देर उनसे बातें की और फिर अपने घर जाने के लिए निकल गया।

“रघु ये ले बेटा, कटहल खा ले।” शांति ने रघु को कटहल देते हुए कहा। रघु ने जैसे ही ये सुना, वो भागता हुआ घर के अंदर गया और कटहल पर टूट पड़ा।
“अरे आराम से बेटा, इसको देखकर ऐसा लग रहा है जैसे इसको आज से पहले कभी कटहल खाने को ही ना मिला हो ! कटहल खाने मे तो इसका और शिल्पा का कोई मुकाबला नहीं कर सकता। इस मामले मे दोनो एक जैसे हैं।” शांति ने मुस्कुराते हुए अपने पति सुशील से कहा।
“नही मां, मैं उससे ज्यादा खा सकता हूं।” रघु ने अपनी मां से कहा। रघु की ये बात सुनकर शांति और सुशील को हंसी आ गई।

इस कहानी का ये भाग यहीं पर समाप्त होता है। मिलते हैं अगले भाग में।