Kukdukoo - 10 in Hindi Drama by Vijay Sanga books and stories PDF | कुकड़ुकू - भाग 10

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कुकड़ुकू - भाग 10

फुटबॉल खेलने के बाद जब रघु घर पहुंचा, तो उसकी मम्मी ने उसको देखते हुए कहा, “अरे रघु.., तू आ गया! चल जाकर नहा ले, पूरा पसीना पसीना हो गया है।” अपनी मां की बात सुनकर रघु नहा धोकर पढ़ाई करने बैठ गया।

थोड़े दिन बाद गांव मे फुटबॉल टूर्नामेंट शुरू होने वाला था। रघु इस बात से खुश था की अब वो भी एक फुटबॉल टीम मे है। उसको लग रहा था की टूर्नामेंट तक वो थोड़ा बहुत फुटबॉल खेलना तो सिख ही जायेगा।

शाम होते ही रघु मंगल के घर पर चला गया। दिलीप ने पहले से ही रघु को देने के लिए मोजे और शिन पैड निकाल कर रखे थे, और मंगल से बोल रखा था की रघु आए तो उसको ये से देना।
जब रघु मंगल के घर पहुंचा तो उसने देखा की मंगल आंगन मे बैठा हुआ था। उसके पास मे एक प्लास्टिक की थैली है जिसमे कुछ सामान रखा हुआ है। “अरे आ गया तू? कबसे मै ये मोजे और शिन पैड लेकर तेरा इंतजार कर रहा हूं,और तू इतने आराम से आ रहा है, ये ले मोजे और शिन पैड, कल से मैं भी तेरे साथ प्रैक्टिस पर आऊंगा।”
मंगल की बात सुनकर तो रघु की खुशी का ठिकाना नहीं रहा, उसने मंगल को गले लगा लिया और कहा, “अच्छा हुआ भाई तू भी मेरे साथ प्रैक्टिस पर आने वाला है, नही तो नये नये लडको के साथ खेलना अजीब लग रहा था। अब तू साथ मे रहेगा तो अच्छा लगेगा, और प्रैक्टिस करने मे भी मजा आयेगा।” रघु ने खुश होते हुए मंगल से कहा।
रघु को खुश देख कर मंगल भी खुश था। उसने रघु को बैठने को कहा और फिर बोला, “रघु देख, अभी थोड़े दिन बाद टूर्नामेंट शुरू होने वाला है, और भईया मुझे बता रहे थे की तेरी दौड़ बहुत तेज है, पर तुझे फुटबॉल की प्रैक्टिस करनी पड़ेगी, तभी तू खेलना सिख पाएगा। हमारे पास अभी एक हफ्ता है प्रैक्टिस करने के लिए, तब तक अगर तुझे खेलना आ गया तो हो सके तुझे टूर्नामेंट में खेलने का मौका मिला जाए, तब तक ये ले, भईया ने तुझे फुटबॉल भी देने को कहा था, और कहा था जब भी तुझे समय मिले, इस बोल से प्रैक्टिस करना, इससे तू जल्दी खेलना सिख जायेगा। चल अब तू जा, कल शाम से शाम चार बजे प्रैक्टिस कर आना है, ध्यान रखना, लेट मत होना। चल अब मैं जाता हूं, मुझे स्कूल का होमवर्क भी करना है।” इतना कहकर मंगल घर के अंदर चला गया, और रघु भी अपने घर की तरफ चल पड़ा। घर पहुंच कर रघु ने अपने मम्मी पापा को मोजे और शिन पैड दिखाए।

“पापा ये देखो, दिलीप भईया ने दिए हैं, अब से मैं भी गांव की फुटबॉल टीम मे हूं।” रघु ने अपनी कीट अपने पापा को दिखाते हुए कहा।
रघु की ये बात सुनकर उसके पापा कुछ सोचने लगे। जब रघु ने अपने पापा को देखा तो वो खुश नही लग रहे थे। रघु ने उनसे पूछा, “पापा क्या हुआ ! आप खुश नही लग रहे?” रघु की बात से सुशील का ध्यान टूट और उसने कहा, “बेटा रघु...! तुझे पता है ना की फुटबॉल खेलने मे चोट वगेरा लगती रहती है।”
रघु की पापा रघु को समझा ही रहे थे की तभी उसकी मम्मी बीच मे आते हुए बोली, “क्या आप भी, अगर उसको खेलने का मन है तो उसको खेलने दीजिए ना, देखो कितना खुश है वो, और वैसे भी अब वो बड़ा हो रहा है, वो अपना ध्यान रख सकता है।” ये कहते हुए शांति , रघु के सर पर हाथ फेरने लगी और सुशील के कुछ बोलने का इंतजार करने लगी।

इतने में सुशील ने शांति और रघु की तरफ मुस्कुराते हुए देखा और कहा, “हां शायद तुम सही कह रही हो, मैं फालतू मे ही चिंता कर रहा हूं। “रघु बेटा, देखना फुटबॉल खेलने मे अक्सर खिलाड़ियों मे लड़ाई हो जाती है, तू ध्यान रखना, किसी से लड़ाई मत करना।” सुशील ने अपने बेटे रघु से कहा।
रघु और उसके पापा मम्मी बात कर ही रहे थे की तभी उन्होंने देखा उनकी ट्रक मंगल का बड़ा भाई दिलीप आ रहा था। “नमस्ते चाचाजी, नमस्ते चाची।” दिलीप ने मुस्कुराते हुए शांति और सुशील की तरफ देखते हुए कहा।
“अरे बेटा दिलीप, तुम अचानक यहां?” सुशील ने दिलीप की तरफ देख कर पूछा।
“चाचाजी, मैं आप लोगों से कुछ जरूरी बात करने आया हूं। मैने कल रघु का खेल देखा, उसको अभी खेलना तो नही आता है पर वो दौड़ता बहुत तेज है, उसकी दौड़ देखकर कल सब उसकी तारीफ कर रहे थे। हम लोग फुटबॉल मैच खेलने के लिए दूसरे गांव जा रहें हैं। मैं चाहता हूं की रघु भी हमारे साथ चले, अगर आपको ठीक लगे तो रघु को हमारे साथ भेज दीजिए। आप लोग चिंता मत करो, मैं उसका ध्यान रखूंगा, और साथ मे मंगल भी भी रहा है तो दोनो साथ मे ही रहेंगे।” इतना कह कर दिलीप, शांति और सुशील के जवाब का इंतजार करने लगा।
दिलीप की सारी बात सुनकर रघु के तो मानो मन मे लड्डू फुट रहा हो। शांति और सुशील ने दिलीप को कुछ जवाब देने से पहले रघु की तरफ देखा तो रघु के चेहरे पर एक अलग ही खुशी नजर आ रही थी। उसकी खुशी देखकर सुशील और शांतिसमझ गए की रघु भी जाना चाहता है, इसलिए शांतिऔर सुशील ने दिलीप की तरफ देखते हुए रघु को साथ ले जाने के लिए हां कर दिया। शांतिऔर सुशील से बात करने के बाद दिलीप अपने घर चला गया।

शांति और सुशील ने रघु की तरफ देखा तो अभी भी उसके चेहरे पर पहले वाली मुस्कान बनी हुई थी। “बेटा रघु , तू तो बहुत खुश लग रहा है!” शांतिने रघु से कहा। रघु ने अपनी मम्मी की बात सुनकर कहा–“मम्मी अब मैं भी टीम से खेलने जाऊंगा। मुझे लगा था आप मुझे जाने से मना कर दोगे।” रघु की बात सुनकर सुशील ने उसकी तरफ देखकर मुस्कुराते हुए कहा–“अरे बेटा ऐसे कैसे माना कर देते, आखिर तेरी खुशी मे ही हमारी खुशी है, और हां कुछ भी हो तो सीधा दिलीप से बात करना।” रघु के पापा ने उसे समझाते हुए कहा। “जी पापा ठीक है।” कहते हुए रघु घर के अंदर चला गया।

Story to be continued.....