Lout aao Amara - 1 in Hindi Thriller by शिखा श्रीवास्तव books and stories PDF | लौट आओ अमारा - भाग 1

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लौट आओ अमारा - भाग 1

यूँ तो अभी कृष्ण-पक्ष की समाप्ति में दो दिन बचे हुए थे और चंद्रमा अपनी बहुत ही हल्की छाया में तारों के साथ धीमी-धीमी रोशनी फैलाते हुए आसमान में चहलकदमी कर रहा था लेकिन फिर भी अपने बिस्तर पर लेटे हुए खिड़की से इस दृश्य को निहार रही पायल अपने हृदय में अमावस्या के घोर अँधकार को महसूस करते हुए बहुत बेचैनी से करवट बदल रही थी।


पायल की इकलौती बेटी अमारा जो अभी-अभी दस वर्ष की हुई थी, कल अपने पापा के साथ अपने नए विद्यालय जाने वाली थी।


अमारा, जो पढ़ने में बहुत होशियार थी उसका चयन सैनिक विद्यालय में हो गया था।


चूँकि सैनिक विद्यालय दूसरे शहर में था इसलिए अब अमारा को छात्रावास में ही रहना था।


जहाँ एक तरफ पायल अपनी बेटी के इस नए सफ़र के लिए उत्साहित थी, वहीं दूसरी तरफ एक अंजाना सा भय उसे परेशान कर रहा था।


उसे बार-बार ऐसा महसूस हो रहा था कि कोई उससे उसकी बेटी को छिनने वाला है।


पायल ने आहिस्ते से करवट लेकर अपने करीब बेफिक्री से सोयी हुई अमारा के माथे को चूमते हुए मानों स्वयं को दिलासा देते हुए कहा, "मेरी बेटी को मैं किसी को मुझसे छीनने नहीं दूँगी। अमारा मेरी है, सिर्फ मेरी।"


"हाँ जी, श्रीमती जी, अमारा सिर्फ आपकी है। अब आप सो जाइए प्लीज। आपकी बेटी विद्यालय जा रही है न कि कोई उसका अपहरण करके उसे ले जा रहा है।" अमारा के दूसरी तरफ सो रहे पायल के पति संजीव ने कहा तो पायल चौंक सी गई।


"अरे! तुम जाग रहे हो? सो जाओ। सुबह ही सुबह तुम्हारी और अमारा की ट्रेन है।" पायल ने स्वयं को संयत करते हुए कहा तो संजीव बोला, "पहले तुम तो सो जाओ। पता नहीं क्यों इतना घबरा रही हो। शाम से ही मैं तुम्हारी बेचैनी देख रहा हूँ।"


"हम्म... क्या करूँ, पहली बार मेरी बेटी मुझसे दूर जा रही है और विडंबना देखो मैं इसे पहुँचाने भी नहीं जा पा रही हूँ। ये ऑफिस की इतनी जरूरी मीटिंग भी कल ही होनी थी।"


"परेशान मत हो। मैं रहूँगा न हमारी अमारा के साथ। वीकेंड में तुम्हें ले चलूँगा उसके पास, तब जी भरकर तुम उससे मिल लेना।


उसके अच्छे भविष्य के लिए ये फैसला भी तो आखिर तुमने ही किया था न।"


"हाँ, ये तो है। अब मोह-माया में पड़कर बच्ची के भविष्य को तो नहीं बिसराया जा सकता है न।


चलो सो जाओ। मैं भी सोने की कोशिश करती हूँ। शुभ रात्रि।"


"शुभ रात्रि अमारा की अम्मा।" पायल का मूड ठीक करने के लिए संजीव ने अपने चिरपरिचित अंदाज में ठिठोली की और फिर मुस्कुराते हुए दोनों ने स्वयं को नींद के हवाले कर दिया।


सुबह छह बजे अमारा और संजीव की ट्रेन जब प्लेटफार्म से चली तब बाहर खड़ी पायल उन दोनों को हाथ हिलाकर विदा करते हुए एक बार फिर भावुक सी हो गई थी।


उसकी आँखों में आँसू देखकर अमारा ने तेज़ आवाज़ में कहा, "रोना मत मम्मा, आपकी गुड़िया जल्दी आ जाएगी।"


हाँ में सिर हिलाते हुए पायल किसी तरह मुस्कुराते हुए बोझिल कदमों से पार्किंग की तरफ बढ़ गई।


अपनी विंडो सीट पर बैठी हुई अमारा बाहर के नज़ारों का लुत्फ़ उठाने में मगन थी।


लगभग एक घण्टे के बाद ट्रेन जिस इलाके से गुज़र रही थी वहाँ हर तरफ घने जंगल थे।


हर तरफ नज़र आ रही हरियाली ने अमारा का मन मोह सा लिया था।


अपने पापा की तरफ देखकर उसने कहा, "ये जगह कितनी सुंदर लग रही है न पापा। मेरा तो मन कर रहा है कि मैं अभी खिड़की से कूदकर इस जंगल में पहुँच जाऊँ। कितना मज़ा आएगा न यहाँ घूमते हुए।"


"बेटा जी, मज़ा तो आएगा लेकिन अगर तुम्हारी मम्मा ने ये बात सुन ली न तो अभी बेहोश हो जाएगी।" संजीव ने हँसते हुए जवाब दिया।


अमारा कुछ कह ही रही थी कि अचानक उसे महसूस हुआ मानों उसे बहुत तेज़ चक्कर आ रहा है।


"पापा... पापा मुझे कुछ...।" बस इतना ही कह पाई थी अमारा कि संजीव के साथ-साथ आस-पास के सहयात्रियों की चीख निकल गई।


सबकी नज़रों के सामने देखते ही देखते अमारा ट्रेन से गायब हो चुकी थी।


किसी के लिए भी सहज ही इस दृश्य पर भरोसा करना आसान नहीं हो पा रहा था लेकिन यही सच था।


अमारा जो अभी कुछ देर पहले अपनी सीट पर बैठी हुई जंगल को निहार रही थी अब ट्रेन में कहीं नहीं थी।


हैरान-परेशान संजीव "अमारा... अमारा..." चिल्लाते हुए ट्रेन की सारी बोगियों के चक्कर लगा आया लेकिन उसे अमारा का नामों-निशान भी नहीं मिला।


उसके साथ-साथ कोई भी ये नहीं समझ पा रहा था कि चलती ट्रेन से एक बच्ची इस तरह कैसे गायब हो सकती है।


"अब मैं उसकी माँ को क्या जवाब दूँगा? मैंने उसे भरोसा दिलाया था कि मैं हमारी बेटी का ध्यान रखूंगा। मैंने उसका भरोसा तोड़ दिया। वो तो अपनी बेटी के बिना मर जायेगी। हे भगवान! अब मैं क्या करूँ? अमारा... कहाँ हो तुम?" संजीव बिलख-बिलखकर रो रहा था।


उसके सहयात्री भी समझ नहीं पा रहे थे कि कैसे उसे सांत्वना दें।


ये चीख-पुकार सुनकर टीटी महोदय भी वहाँ आ चुके थे और प्रत्यक्षदर्शियों से सारी घटना सुनकर वो भी सोच में पड़ गए थे।


संजीव को जब कुछ नहीं सूझा तो उसने अपने कदम ट्रेन के दरवाजे की तरफ बढ़ा दिए।


अभी वो तेज़ रफ़्तार से चल रही ट्रेन से कूदने ही जा रहा था कि बड़ी मुश्किल से लोगों ने उसे पकड़कर रोका।


टीटी महोदय ने संजीव को समझाते हुए कहा, "देखिये भाईसाहब, जो होना था हो चुका है लेकिन अगर आप ऐसी कायरों वाली हरकत करेंगे तो आपकी पत्नी का क्या होगा?


अगले स्टेशन पर ट्रेन के रुकते ही आप उतर जाइए और रेलवे पुलिस के पास अपनी बेटी की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखवा दीजिये।


पुलिस आपकी बेटी को जरूर तलाश लेगी।


मैं भी आपके साथ चलूँगा क्योंकि आपको अकेले छोड़ना बिल्कुल सही नहीं है।"


संजीव बिना कोई जवाब दिए चुपचाप अपनी सीट पर जाकर बैठ गया।


अगले स्टेशन पर जब ट्रेन रुकी और मोबाइल की बजती हुई घँटी ने नेटवर्क के आने का इशारा किया, तब एक बार फिर संजीव की आँखों से बेबसी के आँसू बह चले।


उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी कि फ़ोन उठाकर दूसरी तरफ मौजूद पायल से बात कर सके।


उसने एक नज़र मोबाइल की स्क्रीन पर उभर रहे पायल के नाम को देखा और फिर मोबाइल ऑफ करके टीटी महोदय के पीछे-पीछे रेलवे पुलिस स्टेशन की तरफ बढ़ गया।


इस केस में मदद के लिए टीटी महोदय ने कुछ प्रत्यक्षदर्शियों के बयान भी अपने मोबाइल में रिकॉर्ड कर लिए थे।


क्रमशः