Lout aao Amara - 2 in Hindi Thriller by शिखा श्रीवास्तव books and stories PDF | लौट आओ अमारा - भाग 2

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लौट आओ अमारा - भाग 2

थाना प्रभारी इंस्पेक्टर रंजीत को जब टीटी महोदय ने इस अनोखी गुमशुदगी के विषय में बताया तो एकबारगी उन्हें भी भरोसा नहीं हुआ कि ऐसा कैसे हो सकता है कि चलती ट्रेन से कोई बच्ची अपनी सीट पर बैठे-बैठे ही लापता हो जाए, लेकिन टीटी महोदय के लाए हुए बयानों के आधार पर उन्होंने अमारा की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कर ली और संजीव को आश्वासन दिया कि जिस जगह अमारा गायब हुई थी वहाँ जाकर वो उसे जरूर तलाश करेंगे।

संजीव ने हाथ जोड़ते हुए इंस्पेक्टर रंजीत से कहा "सर, मैं भी आपके साथ अपनी बेटी को ढूँढने चलूँगा।"

"देखिए मिस्टर संजीव, वो जंगल बहुत खतरनाक है और वहाँ आम लोगों के जाने पर पाबंदी है। इसलिए मैं आपको वहाँ जाने की इजाजत नहीं दे सकता हूँ।
आप घर जाइए। कोई भी ख़बर मिलते ही मैं आपको तुरंत सूचित करूँगा।" इंस्पेक्टर रंजीत ने संजीव को दिलासा देते हुए कहा और फिर टीटी महोदय से बोले "इन्हें वापसी की ट्रेन में बैठा दीजिये और ट्रेन के अंदर मौजूद स्टाफ से कहिएगा इनके आस-पास ही रहे और इनकी पत्नी को भी सूचित कर दीजिए कि वो स्टेशन पर इन्हें लेने आ जाए।"

"जी सर।" टीटी महोदय ने जवाब दिया और फिर संजीव से उसका फोन लेकर पायल को फोन लगाया।

फोन उठाते ही पायल गुस्से से बोली "ये क्या तरीका है संजीव, पहले तुमने मेरा फोन नहीं उठाया और फिर फोन बंद भी कर दिया।
पता है मैं कितना डर गई थी।"

"मैडम एक मिनट मेरी बात सुनिये।" जवाब में संजीव की जगह एक अजनबी आवाज़ सुनकर पायल चौंक गई।

"आप कौन बोल रहे हैं? ये नम्बर मेरे पति संजीव का है।"

"जी ये नंबर उन्हीं का है। मैं उस ट्रेन का टीटी बोल रहा हूँ जिससे आपके पति और बेटी सफर कर रहे थे।
आपके पति इस वक्त बात करने की स्थिति में नहीं हैं इसलिए मैंने आपको फोन किया है।"

"मतलब? मैं कुछ समझी नहीं?" पायल की आवाज़ में असमंजस के भाव को महसूस करते हुए टीटी महोदय बोले "मैडम, हम उन्हें वापसी की ट्रेन से आपके शहर भेज रहे हैं। दो घण्टे के बाद आप उन्हें लेने स्टेशन पर जरूर पहुँच जाइएगा। उन्हें अकेला मत छोड़िएगा। बाकी बातें आपको उनसे मिलने पर पता चल जाएंगी।"

पायल को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि अचानक ऐसा क्या हो गया था कि संजीव और अमारा वापस लौट रहे थे और टीटी महोदय इस तरह क्यों बोल रहे थे कि उन्हें अकेला छोड़ना सही नहीं है और सबसे ज्यादा तो वो इस बात से परेशान हो गई थी कि संजीव और अमारा दोनों ही उससे बात क्यों नहीं कर रहे थे।

ये दो घण्टे का इंतज़ार इस वक्त पायल को दो जन्मों के इंतज़ार के बराबर लग रहा था।

अमारा की जब आँख खुली तो उसने पाया उसके चारों तरफ घुप्प अँधेरा छाया हुआ था।

उसे महसूस हुआ कि उसके सर में तेज दर्द हो रहा था और ऐसा लग रहा था मानों वो अभी-अभी हवा से भी ज्यादा तेज़ गति से यात्रा कर रही थी जिसकी वजह से उसे अपना सर घूमता हुआ भी लग रहा था।

अपनी याददाश्त पर ज़ोर डालते हुए उसने याद किया कि वो तो कुछ देर पहले अपने पापा के साथ ट्रेन में थी।

"मैं ट्रेन से यहाँ कैसे पहुँच गई? ये कौन सी जगह है? कुछ नज़र भी नहीं आ रहा है। क्या ट्रेन के साथ कोई दुर्घटना हो गई है जैसा उस दिन टेलीविजन पर दिखा रहे थे?
और पापा... पापा कहाँ हैं?" अपने आप से बातें करती हुई अमारा की आँखों से आँसू बहते जा रहे थे।

"पापा... पापा...।" अपनी पूरी ताकत लगाकर अमारा चीखी।

लेकिन जब बदले में उसे कोई जवाब नहीं मिला तो उस बच्ची का दिल बहुत घबरा उठा।

"कहीं ऐसा तो नहीं है कि मैं मर गई हूँ।" ये सोचते हुए अमारा एक बार फिर बेतहाशा रो पड़ी।

अगले ही क्षण उसे अपने हाथ-पैर की सुध आई तो उसने पाया कि उसके हाथों और पैरों में मजबूत रस्सी बंधी हुई थी।

"मुझे इस तरह किसने बाँधा होगा और क्यों? हाँ याद आया मम्मा उस दिन कह रही थी कि जो बच्चे बदमाश होते हैं, अपने बड़ों का कहना नहीं मानते हैं उन्हें राक्षस उठाकर ले जाते हैं। इसका मतलब मुझे भी किसी राक्षस ने...।
मम्मा... मम्मा... मैं पक्का वादा करती हूँ कि अब कभी बदमाशी नहीं करूँगी, तुम्हारा और पापा का कहना मानूँगी।
मुझे यहाँ से ले जाओ मम्मा... मम्मा...।" अमारा की चीखें और सिसकियाँ एक बार फिर से उस अँधेरी गुफा में गूँज उठी।

रोते-रोते थककर चूर होने के बाद अमारा जब शांत हुई तब उसे ऐसा लगा जैसे उसके आस-पास कोई फुसफुसाकर बात कर रहा है।

उसने ध्यान से उन शब्दों को सुनने की कोशिश की तो उसके कानों में आवाज़ आई "माँ तुम्हारे पास है गुड्डो। कुछ नहीं होगा तुम्हें। तुम घबराना मत।"

"हाँ गुड्डो, तुम्हारे बाबूजी भी यहीं हैं। कुछ नहीं होने देंगे हम तुम्हें।"

"गुड्डो? ये गुड्डो कौन है? और ये आवाज़ किनकी है? ये मेरे मम्मा-पापा की आवाज़ तो बिल्कुल नहीं है। क्या यहाँ कोई और भी बच्चा है मेरी तरह?" मन ही मन सोचते हुए अमारा ने तेज़ आवाज़ में सवाल किया "गुड्डो... कोई गुड्डो है क्या यहाँ? गुड्डो के माँ-बाबूजी, हो सके तो मुझे भी यहाँ से बचाकर ले चलिये।"

लेकिन इस बार जवाब में अमारा के कानों से कोई आवाज़ नहीं टकराई।

एक बार फिर उसकी आँखों से आँसुओं की धार बह चली और रोते-रोते ही उसकी पलकें मूँदने लगीं।

प्लेटफार्म की एक बेंच पर परेशान हालत में बैठी हुई पायल के कानों में जैसे ही संजीव के ट्रेन के पहुँचने की उद्घोषणा से संबंधित आवाज़ आई वो उठकर खड़ी हो गई और बेचैनी से ट्रेन के आने की दिशा में देखने लगी।

एक-एक सेकंड इस वक्त पायल को एक-एक युग से भी ज्यादा लंबा महसूस हो रहा था।

दस मिनट के बाद जैसे ही ट्रेन की झलक पायल को नज़र आई उसका दिल एक बार फिर किसी अनहोनी की आशंका से जोरों से धड़कने लगा।

ट्रेन के रुकते ही पायल हर डिब्बे की खिड़की में बेसब्री से झांकती हुई संजीव और अमारा को तलाश रही थी।

एक-एक डिब्बे से होकर आगे बढ़ते हुए उसकी नज़र आख़िरी डिब्बे से टीटी महोदय का हाथ थामकर उसकी तरफ आते हुए संजीव पर पड़ी।
क्रमशः