भाग 115
पुरवा की इच्छा पूरी करने के लिए सब कटास राज मंदिर पहुंच गए। शाम चार बजते बजते वो मंदिर के प्रांगण से कुछ ही दूर थे।
वैन को मंदिर से काफी पहले ही रोकना पड़ा। आगे गाड़ी नही जा सकती थी।
अमन ने वैन में साथ लाई व्हील चेयर निकलवाई और पुरवा को उस पर बिठा कर सभी के साथ अंदर मंदिर की ओर आ गया।
अब हिंदू मंदिर था तो ना तो उसका ज्यादा काया कल्प किया गया था। शायद भारत माता के दिल को घायल कर के बने इस देश ने एक नालायक बेटे की भांति उससे बदतमीजी पर पाए दो दो झनांके दार चाटों का बदला और हर क्षेत्र में पिछड़ने की खीज ऐसे ही निकाली थी।
ना ही ज्यादा बदलाव हुआ था। भारत के मस्जिदों की तरह यहां मंदिरों का रख रखाव नही था। जो साफ उनकी चिढ़ दरशा रहा था। अमन ने वहां के पुरोहित जी से पूरी बात बताई और पुरवा के बीमारी के बारे में बता कर एक कमरे की व्यवस्था करने का अनुरोध किया। सहृदय पुरोहित जी वैसे ही भक्तों की राह देखते दिन गुजार देते थे। आज चमत्कार ही था कि इतने लोग आए थे। वो भी भाग्य से मिले इस मौके को गवांन नही चाहते थे। तुरंत फुरंत में अपने चेले के संग मिल कर एक बड़ा सा सबसे अच्छा कमरा खुलवा दिया।
पुरवा के लिए ऊपर और बाकी सब के लिए जमीन पर गद्दे डलवा दिए। फिर खाने के प्रबंध के लिए वहां के माली के परिवार को बोल दिया।
यहां के माली और पुरोहित को भी आज कुछ कमाई का अवसर हाथ आया था। वो भी अपने इन मेहमानों की खिदमत पूरी श्रद्धा से कर रहे थे।
शाम की आरती में पुरवा को व्हील चेयर पर बिठा कर अमन, विवान और वैरोनिका शामिल हुए।
आरती के बाद पुरवा ने पुरोहित जी को अपने पास बुलाया और बोली,
"पुरोहित जी..! ये मेरी बेटी है। और ये इसके साथ ही काम करते हैं। दोनो डॉक्टर हैं। ( पुरवा और विवान की ओर इशारा कर के बोली) कल इनकी शादी करवाना चाहती हूं। क्या प्रबंध हो सकता है..?"
पुरोहित जी शादी की बात सुन कर प्रसन्न हो गए। चलो कम से कम एक शादी तो करवा पाएं। वरना जो हालत है कि लगता है सारे मंत्र ही भूल जायेंगे।
तुरंत ही अपना पत्रा खोल कर देखा और चहक कर बोले,
"यजमान ..! कल सुबह दस से ग्यारह बहुत ही शुभ मुहूर्त है। वर कन्या आजीवन सुखी रहेंगे इस लग्न में विवाह होने पर।"
पुरवा बोली,
"तो फिर ठीक है। आप जितना अच्छा प्रबंध हो सकता है करिए। खर्चे की चिंता मत करिए। यहां आस पास रहने वाले लोगों को भी आमंत्रित कर लीजिएगा।"
पुरोहित जी को पूर्वी और विवान के साथ भेज दिया पास के बाजार में पूर्वी के लिए एक लाल चुनरी और पीली साड़ी लाने के लिए और विवान के लिए पीली धोती कुर्ता और मौरा लाने।
पुरोहित जी ने जिस जिस चीज की आवश्यकता थी सब खरीदवा लिया।
रात में खाना खाने के बाद सभी लंबे सफर के कारण थके होने की वजह से जल्दी सो गए। करीब तीन बजे पुरवा की आंख खुली। उसने आवाज लगाई,
"अमन..! अमन..!"
अमन वही जमीन पर बिछे गद्दे पर सो रहा था। पुरवा की आवाज पर चौंक कर उठ बैठा। और घबरा कर पूछा,
"कोई तकलीफ है क्या.. पुरु..!"
पुरवा ने ना में सिर हिलाया।
वो बोली,
"अमन..! मुझे तालाब के पास ले कर चलो। मुझे फिर से वो पल महसूस करना है, मुझे फिर से वो पल जीना है।"
किसी और की नींद ना खराब हो इस लिए अमन ने धीरे से कुर्सी खिसका कर बिस्तर के पास लाया और गोद में ले कर पुरवा को उस पर बिठा दिया। फिर कुंड की ओर ले कर आया। पुरवा की जिद्द पर अमन ने उसे उसी सीढ़ी पर बिठाया, जिस पर कभी वो दोनो बैठे थे। वैसे ही पुरवा अमन के कंधे पर सिर रख कर बैठी हुई पानी की लहरों पर पड़ती चांदनी की चमकती किरणों को निहार रही थी। आसमान में चांद अपने पूरे शबाब पर था। वो एक बार फिर इस अद्भुत प्यार के पलों का साक्षी बन कर इतरा रहा था। सच्चे प्यार ने आज तमाम बाधाओं, बेइंहतहा मुश्किलों को पार कर दो प्रेमियों को फिर से मिला दिया था। उस रात की ही तरह पुरवा के हाथ में आज भी नानी का दिया कंगन चांदनी में चमक रहा था।
बड़ी देर पुरवा अमन के कंधे पर सिर रक्खे बैठी रही। अमन बार बार कह रहा था कि पुरु अंदर चलो थक जाओगी। पर पुरवा इस सुकून भरे पल को अच्छे से महसूस कर लेना चाहती थी।
सुबह जाने कब पुरोहित जी जागे थे कि उन्होंने पूरे मंदिर को आम के पत्तो से तोरण बनवा कर सजवा दिया था। शादी का मंडप बना कर सारी तैयारी पूरी कर ली थी।
सुबह सभी ने पवित्र तलाब के जल में स्नान किया और कटास राज के दर्शन किए। अमन ने तो सब कुछ देखा हुआ था। पर वैरोनिका के लिए ये सब बड़ा अनोखा और नया अनुभव था। वो ये सब बहुत इंजॉय कर रही थी। पूर्वी ने एक साड़ी उनके लिए भी खरीदी थी। उसे पहनते पहनते वैरोनिका थक गई। हार कर पुरवा से बोली,
"पुरवा..! तुम कैसे इस पांच गजी तंबू को लपेटती हो..! मुझसे तो नही पहनी जा रही।"
पूर्वी हंस कर उनके पास आई और बोली,
"लाइए आंटी..! मैं पहना देती हूं।"
फिर पूर्वी ने साड़ी पहना कर उनके माथे पर एक लाल बिंदी लगा दी।
पुरवा ने भी पीली सिल्क की बार्डर वाली साड़ी पहनी। पूर्वी ने उसके लंबे बालों का सुंदर सा जुड़ा बना दिया और उसमें एक बड़ा सा लाल गुलाब लगा दिया। माथे पर बड़ी सी लाल बिंदी दमक रही थी। पुरवा की खूबसूरती बस इतने में ही निखर है। बीमारी के बावजूद उसके चेहरे की खूबसूरती देखते बन रही थी।
पुरोहित जी ने पूर्वी और विवान को एक एक माला देकर एक दूसरे के गले में जयमाला डलवाई। फिर फेरे और सिंदूर दान करवाया।
शादी होते ही पूर्वी और विवान ने सबसे पहले बाबा कटास राज का आशीर्वाद लिया। फिर अमन, वैरोनिका और पुरवा का आशीर्वाद लिया।
एक छोटी मोटी दावत का प्रबंध पुरोहित जी ने शादी की खुशी में कर दिया था।
सब कुछ निपटने के बाद वो वापस लौट लिए।
देर शाम वो अमन के बंगले पर पहुंचे। पुरवा किसी भी कीमत पर हॉस्पिटल जाने को राजी नहीं हुई। बोली,
"मेरे साथ तो तीन तीन डॉक्टर है। क्या तुम तीनो से अच्छी देखभाल मेरी हॉस्पिटल में कोई डॉक्टर कर पायेगा..!"