भाग 6
अशोक के दोस्त के मंडप से जाते ही नईमा फुर्ती से गई और वहां मौजूद जूतों में सबसे नया और अच्छा जो जूता था उसे उठा लिया और अपने दुपट्टे में छुपाने की कोशिश करते हुए वहां से चली गई। नईमा ने अंदर के कमरे में बोरे के नीचे जूते छुपा दिए और वापस मंडप में उर्मिला के पास आ गई।
अब बस उसे इंतजार था कि अशोक मंडप से अंदर कोहबर में जाए।
अब मंडप की रस्में समाप्त हो गई थी। बारात के अशोक के तरफ के सारे लोग बाहर चले गए।
उर्मिला के घर की औरतें दूल्हा और दुल्हन को अंदर कोहबर की रस्म के लिए ले कर चली गई। साथ में अशोक का दोस्त भी था।
अंदर अशोक और उर्मिला को पासा खेलवाया गया। उर्मिला जो अभी तक रात से खुद को संभाले हुए थी। अब अचानक कोहबर में पहुंचते ही रोने लगी। उसे रोते देख सभी औरतें रोने लगी। पर रस्म तो पूरी करनी ही थी। एक भाभी ने समझा बुझा कर खेल शुरू किया। सबने दोनो को समझाया कि जो जीतेगा वो दूसरे के दिल पर राज करेगा। जो हारेगा वो सदा दूसरे के सामने झुक कर रहेगा।
अशोक से उर्मिला का रोना सहन नही हो रहा था। वो उसे खुश करना, हंसाना चाह रहा था। इस लिए थोड़ी सी कोशिश दिखावे के तौर पर की। फिर अंगूठी उर्मिला को लेने दी।
सभी ने उर्मिला की इस जीत पर ताली बजाई। उर्मिला के होठों पर भी अपनी इस जीत और औरतों की मजाकिया बातें सुन कर मुस्कुराहट आ गई।
फिर तो दूसरी ओर तीसरी बार भी अशोक हार गया।
सभी ने उर्मिला को छेड़ना शुरू किया कि अब तू राज करेगी अशोक जी के दिल पर।
औरतें हंस हंस कर मजाक कर अशोक को ये कह कर चिढ़ाने लगी कि अब तो हारे हो…पाहुन। तैयार रहिए जीवन भर बीबी की गुलामी करने के लिए।
जवाब में अशोक सिर्फ मुस्कुराता रहा।
अब अशोक को बाहर जाना था। फिर नाश्ते पानी के बाद बिदाई होनी थी।
अशोक उठा जाने के लिए और अपने जूते कहां है ये देखने लगा। थोड़ी सी कोशिश के बाद अशोक को अपने जूते मिल गए। पर उसके दोस्त के जूते नदारत थे।
दर असल हुआ ये कि जूते चोरी के डर से अशोक के जूते पहन कर उसका दोस्त चला गया था। नईमा ने जिन जूतों को ले कर छुपाया था वो अशोक के दोस्त के थे। दोनों दोस्तों ने मिलते जुलते एक से जूते ही खरीदे थे।
अशोक को आराम से जूते पहन कर जाते देख नईमा का चेहरा उतर गया।
नईमा अब दोस्त के जूते का क्या करती..? गई और नाराजगी के अंदाज में चुराए हुए जूते अशोक के दोस्त के आगे पटक दिया।
नईमा अपनी हार पर खिसियाई हुई थी।
फिर दोनो दोस्त ने आपस में कुछ बात की और अशोक ने जूता चुराई के नेग स्वरूप कुछ रुपए नईमा को पकड़ा दिए।
पर नईमा को अशोक के दोस्त से इस तरह हारना अच्छा नही लग रहा था। ऊपर से वो इस तरह हंस रहा था नईमा का मजाक उड़ाने के अंदाज में कि नईमा जल भुन कर रह गई। पर वो उसकी प्यारी सखी के पति का दोस्त था इस लिए कुछ कह नहीं पा रही थी।
फिर वो बाहर चले गए।
बारातियों के नाश्ते के बाद परिछन की रस्म हुई।
दोपहर के पहले ही उर्मिला की विदाई हो गई। दोनो सखी एक दूसरे से लिपट कर फूट फूट कर रो रही थीं।
उर्मिला अपनी मां से ज्यादा नईमा के गले लग कर रो रही थी।
सब ने किसी तरह उन दोनो को समझा बुझा कर अलग किया और उर्मिला को सजी संवरी डोली में अशोक के संग बिठा दिया।
उर्मिला विदा हो कर अपने ससुराल पहुंच गई।
इधर अशोक का जिगरी दोस्त बब्बन जब से शादी से लौटा था उसे कुछ भी अच्छा नही लग रहा था। एक अजीब सी बेचैनी हो रही थी। खाना पीना कुछ भी अच्छा नही लग रहा था।
अब अशोक की नई नई शादी हुई थी। इस कारण वो भी अब बब्बन के साथ ज्यादा वक्त नहीं गुजार पा रहा था।
जब भी बब्बन अपनी आंखें बंद करता सोने के लिए उसकी आंखों के सामने नईमा की गुस्से से घूरती आंखें आ जाती। वो उठ कर बैठ जाता। कभी उर्मिला भौजी के बगल में हंसती, मुस्कुराती नईमा आंखों के आगे आ जाती। ये सिलसिला चार दिनों तक चला।
अब बब्बन के बर्दाश्त के बाहर हो गया ये सब। वो बिना कुछ आगे पीछे सोचे अपने दोस्त अशोक के घर की ओर चल पड़ा।
अशोक बाहर ही कुएं पर नहा रहा था। उसे देख कर खुश हो गया और बोला,
"कहां गायब थे बब्बन …? आज चार दिन बाद अपनी मनहूस शकल दिखा रहे हो।"
वो आपस में ऐसे ही बे तकल्लूफी से बातें करते थे।
बब्बन बोला,
"ज्यादा भाषण मत दे यार…! मेरी हालत वैसे ही खराब है। जल्दी से नहा कर आ। तुझसे कुछ बहुत जरूरी बात करनी है।"
बब्बन के चेहरे की गंभीरता देख अशोक ने मजाक का मूड बदल दिया और नहा कर गमछा लपेटते हुए कुएं से नीचे आ गया।
हाथ में लोटे में लिया जल नीम के पेड़ में चढ़ाया।
फिर बब्बन जो खटिया पर बैठा हुआ था उसकी बगल में आ कर बैठ गया। और बोला,
"क्या बात है..? बड़े चिंतित लग रहे हो तुम..? ये कैसी हालत बना कर रक्खे हो..? नहाते धोते, नही हो क्या..?"
बब्बन ने अशोक का हाथ पकड़ कर बैठा लिया। फिर आस पास देखा तो कोई नही था।
वो बेताबी से अशोक से अपने दिल का हल बता डाला।
उस वक्त घर की नई नई बहू किसी के भी सामने नहीं जाती थी। चाहे वो पति का कितना भी खास दोस्त क्यों न हो..?
बब्बन ने उर्मिला भाभी की सखी के बारे में उनसे पूछने को कहा।
अशोक ने बब्बन से वादा किया कि वो कल ही उर्मिला से उसकी सखी के बारे में सब कुछ पूछ कर उसे बताएगा।
बब्बन के जाने के बाद अशोक ने उर्मिला से उसकी सखी के बारे में पूछा।
उर्मिला मुस्कुराई और बोली,
"लगता है आपके दोस्त को मेरी सखी से प्यार हो गया है। कितना अच्छा हो अगर आपके दोस्त से मेरी सखी से शादी हो जाए। दोनो एक ही गांव में रहेगी तो हमेशा मिल पाएंगी।"
अशोक भी यही चाहता था।
अगले दिन वो खुद बब्बन के घर गया और उस लड़की का नाम पता सब कुछ बब्बन को बता दिया।
बब्बन जब छोटा था तभी उसके अब्बा का इंतकाल हो गया था। घर में सिर्फ वो और उसकी अम्मी थीं। बड़ी आपा अपने ससुराल में थीं।
अशोक ने बब्बन की अम्मी से उसके निकाह के बारे में बात की। फिर बताया की उसकी पत्नी की एक सखी है। जो बहुत ही नेक और घर बार संभालने वाली है। साथ में सुंदर भी है। आप उसके लिए बब्बन का रिश्ता ले कर जाइए।
क्या बब्बन की अम्मी जान नईमा के घर रिश्ता ले कर जाने को राजी हुई..? क्या बब्बन अपने सपने को पूरा कर सका…? क्या नईमा उसकी हमसफर बन पाई…? जानने के लिए पढ़े अगला भाग।