भाग 2
सलमा ने साजिद की बात सुन कर उसकी ओर सवालिया नजरो से देखा और बोली,
"क्या मैं अकेली चली जाऊं…? वो भी इतनी दूर……! कभी तुम्हारे बिना या किसी और को साथ लिए बगैर बाजार तक तो गई नही हूं। अब कह रहे हैं आप कि इतनी दूर अकेली ही चली जाऊं….?"
साजिद बोले,
"पर मैं कैसे चलूं….? अभी तो सीजन चल रहा है। तुम तो जानती ही हो अभी ही माल खरीद कर स्टोर करना पड़ता है। तभी ऑफ सीजन होने पर बेचने पर अच्छा मुनाफा मिलता है। मैं चला गया तो पूरे साल का बिजनेस गड़बड़ हो जायेगा। फिर घर का खर्चा तुमसे छुपा तो नही है।"
फिर कुछ सोचते हुए साजिद बोले,
"सलमा..! ऐसा करो तुम अमन को साथ ले कर चली जाओ। उसके कॉलेज की छुट्टियां भी चल रही हैं। वो घर पर रह कर ऊब भी रहा है। कहीं घूमने जाने को बोल रहा था। अब इससे अच्छा मौका क्या मिलेगा घूमने का…! जाए तुम्हारे साथ घूम भी आए और अपनी जड़ें अपने खानदान से मेल मुलाकात भी कर आए। हां..! यही यही ठीक रहेगा।"
"पर… आपको भी तो बुलाया गया है। आप साथ नही गए तो सब आपको भी तो पूछेंगे..? क्या कहेंगे रिश्तेदार लोग कि इतना मसरूफ रहते है कि आखिरी शादी में भी आने का वक्त नहीं निकाल सके..! नही…! मैं आपके बिना नहीं जाऊंगी।"
सलमा ने रुखाई से कहा। वो थोड़ी नाराज सी हो गई। मन में सोचा… मैं जब से ब्याह कर आई हूं इनकी और इनके परिवार की खिदमत कर रही हूं। कभी भी अपने अरमानों को तव्वज्जो नही दिया। जब भी अम्मी अब्बू, बाकी घर वालो की याद आई। अकेले में रो कर जी हल्का कर लिया पर इनको भनक नहीं लगने दी कि मैं दुखी हूं। अब आज जब आपी के घर में आखिरी शादी है तो उसमें भी इन्हें जाने की फुरसत नहीं है। मैं अकेली जा कर क्या करूंगी…? सब के सब एक ओर से इनके लिए पूछेंगे। रहने ही देती हूं जाने को। पिछली दो शादियों में नही गई तो क्या वो हुई नहीं..? रहने ही देती हूं जाने को।
सलमा बात खत्म करने की गर्ज से वहां से उठ कर अंदर जाने लगी और मुंह फुलाए हुए बोली,
"रहने दीजिए… मैं भी रहने ही देती हूं।"
साजिद सलमा को बहुत चाहता था। वो किसी भी तरह से उसे उदास या दुखी नहीं देख सकता था। साजिद समझ गया कि सलमा उसके जाने से इनकार करने से नाराज हो गई है। साजिद उठ कर तेजी से जाती हुई सलमा के पास गया और हाथ पकड़ कर वापस ला कर अपने पास कुर्सी पर बिठा लिया। और मनाते हुए प्यार से बोला,
"सलमा…..! तुम तो नाराज हो गई। अभी तो निकाह में वक्त है। मैं ये कहां कह रहा हूं कि मैं नहीं आऊंगा। मैं तो बस इतना कह रहा हूं कि तुम कुछ पहले ही अमन के साथ चली जाओ। निकाह के दो दिन पहले ही मैं आ जाऊंगा। फिर कुछ दिन तुम्हारे साथ रुक कर फिर साथ में ले कर वापस चला आऊंगा। अब जल्दी जल्दी तो जाना हो नही पाता इस लिए मैं सोच रहा हूं तुम कुछ दिन आराम से रह कर सब से मिल जुल लो। तुम्हारा भी जी ऊब गया होगा यहां से। जी बहल जायेगा।"
साजिद की पूरी बात सुन कर नाराज सलमा के चेहरे पर मुस्कान छा गई। उसे लगा कि उसने साजिद को समझने में गलती की। उसे उसकी खुशी का बहुत ख्याल है। वो मुस्कुराते हुए बोली,
"आप ठीक कह रहे हैं। इस तरीके से कारोबार का नुकसान भी नही होगा और हम शादी में शामिल भी हो जायेंगे।"
तभी अमन भी आ गया। अम्मी अब्बू के मुंह से जाने की बात सुन कर उनसे पूछा,
"क्यों भाई…..! कहां जाने की प्लानिंग हो रही है?"
और उन दोनो के पास आ कर बैठ गया।
साजिद बोले,
" बेटा… जी…! हम नहीं जा रहे। आप और आपकी अम्मी जा रहे है।"
अमन हैरानी जताते हुए बोला,
"पर कहां…? मुझे भी तो पता हो।"
जवाब में साजिद ने खत अमन को पकड़ा दिया।
अमन ने पूरा खत पढ़ा। खत पढ़ते पढ़ते उसका चेहरा उतर गया और मुंह लटका कर बोला,
"पर .. अब्बू मैं वहां जा कर क्या करूंगा…? किसी को जानता भी तो नहीं। मैं तो बाहर अपने दोस्तों के साथ घूमने जाना चाहता था। पर आप मुझे वहां अनजान जगह भेज दे रहे हैं। जहां मैं किसी को जानता भी तो नही। घूमूंगा क्या खाक…? अब्बू …! मुझे मजा नही आयेगा। आप..! प्लीज रहने दें मुझे।"
साजिद बोले,
"नही जानते तो जान जाओगे बरखुरदार। पहले जाओ तो। मुझे यकीन है तुम्हे खानदान के लोगों से मिल कर अजनबीपन महसूस नहीं होगा। वो लोग बहुत अच्छे है। तुम्हारा खूब ख्याल रखेंगे। फिर हमारे बाद तुम्हे ही तो रिश्ता निभाना है। जब जाओगे नही तो कैसे निभाओगे..? फिर हमारी भी पुश्तैनी जड़ें तो वहीं है। तुम्हें उसके बारे में मालूम होना चाहिए। हम तो यहां वहीं से आ कर बसे है। अभी तुम्हारी छुट्टियां चल रही हैं। जब रिजल्ट आएगा तब तो तुम्हें कॉलेज जाना होगा। तुम भी तो कहीं घूमना चाह रहे थे। अब जाओ अम्मी को ले कर घूम आओ। मैं निकाह से पहले आ जाऊंगा। फिर तीनो वापस आ जायेंगे।"
अमन एक फरमाबरदार बेटा था। अपने अम्मी अब्बू की हर बात मानता था। फिर इसे कैसे मना कर देता..! उसने अम्मी के साथ जाने की रजा मंदी दे दी।
तैयारियां होने लगी। सलमा ने शमशाद की बहु के लिए एक भारी पाजेब और सोने की चेन खरीदी। बाकी सब को भी सौगात देने के लिए कुछ ना कुछ जरूर खरीदा।
तय तारीख को साजिद, सलमा और अमन को रेल गाड़ी पर बिठा आए। अमन को तमाम हिदायत दिया अम्मी का सफर के दौरान ख्याल रखने का।
अब घर में अमन से छोटी एक बेटी और बड़े बेटा बहु बचे। दो बड़ी बेटियों का निकाह कर उन्हें ससुराल रुखसत कर दिया था। वो दोनो ही अपने अपने घरों में सुखी थीं।
क्या अमन अपनी अम्मी के साथ बाखैरियत अपने ननिहाल पहुंच गया…? वो पहली बार गया था क्या उसे कोई समस्या हुई वहां पहुंचने में..? जानने के लिए पढ़े अगला भाग।