भाग 56
पुरवा जब तक अंदर रही सलमा बाहर दरवाजे के पास खड़ी उसके निकलने का इंतजार करती रही।
थोड़ी देर बाद पुरवा निकली तो सलमा साथ ले कर वापस लौटी और उसे समझाते हुए बोली,
"पुरवा..! देख बेटा.. जब तक तू यहां है ना जो भी जरूरत हो मुझे बताया कर। उर्मिला को बताने की जरूरत नहीं है। ठीक है..! "
पुरवा ने हां में सिर हिलाया।
फिर अपनी अपनी जगह पर आ कर बैठ हैं। इतनी देर में अमन ने लगभग आधी मुंगफली छील डाली थी। जैसे ही पुरवा बैठी, उसे पकड़ाते हुए बोला,
"ये लो पुरवा..! मैने छील दिया। तुम्हें आलस आ रहा था ना।"
पुरवा ने उसे थाम लिया। अब क्या। बताती.. किस कारण से वो उलझन में थी। वैसे मुंगफली उसे भी पसंद थी। तीखी लहसुन की चटनी के साथ वो उसे खाने लगी। तीखे पन से आंखो और नाक से पानी बहने लगा, पर वो नाक सुनक सुनक कर, आंखें पोछ कर खाती रही। अमन छिल छिल कर देता रहा। उर्मिला को बुरा लग रहा था कि अमन छील कर दे रहा है। बिचारा मेहनत कर रहा है। ऊपर से पगली लड़की कभी नही सुधरने वाली है। अरे..! जब तीता लग रहा है, नही खाया जा रहा है क्यों खा रही है चटनी..! नमक से खा ले। पर ना… ये चटोरी तो तीता जरूर खायेगी, अब चाहे नाक पोछते पोछते कट ही क्यों ना जाए।
जब उर्मिला से नही बर्दाश्त हुआ तो वो बोली,
"पुरवा..! रहने दे ना। जब नही खा पा रही है तो।"
पुरवा बोली,
"कौन बोला अम्मा…! खा तो रही हूं। बहुत अच्छी चटनी है। लो आप भी खाओ।"
और उर्मिला के मुंह के पास लगाया। उर्मिला ने "उहूं" करते हुए उसका हाथ हटा दिया।
सलमा उसके बचपने को देख कर हैरान हो रही थी। उर्मिला इसका ब्याह कर रही है, बिना ये सोचे कि ये तो अभी बच्ची है। अशोक और साजिद का भी ध्यान थोड़ी थोड़ी देर बार पुरवा की सुरसुराहट सुन कर उसकी ओर चला जा रहा था। और वो मन ही मन मुस्कुरा लेते।
अशोक बोले,
"पुरवा..! अब बंद करो ये सब खाना वाना। उतरने की तैयारी करो। अब लखनऊ आने वाला है। दरअसल साजिद और अमन को तो कोई तजुर्बा था नही इधर के रास्ते का। अब उसे फिर कुछ देर पहले की बात याद हो आई। क्यों बाई जी और साजिद मौसा गंभीर बातें। कर रहे थे। सामान समेटने में सलमा और अम्मा की मदद करते हुए उसने फिर से अपना पुराना सवाल दोहराया,
"अम्मा ..! वो कौन था जो नीचे उतर कर बच्ची के साथ गया। बाऊ जी लोग क्यों उसे छोड़ने दरवाजे तक गए थे।"
उर्मिला बताने के मूड में नहीं थी। टालने के गर्ज से बोली,
"पहले सब कुछ याद से रख ले बिटिया..! बाद में बता देंगे तुझे। कुछ छूटने ना पाए।"
सलमा मुस्कुरा कर बोली,
"चल अपनी अम्मा को छोड़ अभी लंबा सफर है। मैं ही तुमको बता दूंगी कौन थे वो लोग।"
पानी की सुराही पुरवा ने अपने पास रख ली। उसे यही सहेजना ज्यादा जरूरी लगा।
थोड़ी ही देर में लखनऊ स्टेशन आ गया। अब यहां कोई जल्दी नही थी उतरने की क्योंकि ये गाड़ी यही तक आती थी। आराम से सब सामान उतार कर एक तरफ रख लिया गया। आठ बजने ही वाले थे। अशोक बोले,
"चलिए साजिद भाई हम पूछ ताछ कार्यालय में आगे के गाड़ी में पता कर के आते हैं।"
साजिद बोले,
"हां यही पहले करना ठीक रहेगा।"
इसके बाद दोनों चले गए।
वहां पर स्टेशन मास्टर से पूछा चकवाल जाने के लिए ट्रेन तो उसने बताया कि पहले तो रावलपिंडी तक के लिए ही सीधी ट्रेन मिलती थी। पर पंद्रह दिनों से एक स्पेशल ट्रेन चकवाल तक जाने लगी है। रात साढ़े बारह बजे यहां से खुलेगी। आप उससे बड़े ही आराम से जा सकते हैं।
साजिद बोले,
"ये बढ़िया है। नही तो बड़ी दिक्कत होती थी। कई जगह उतरने चढ़ने में। अभी तो पर्याप्त समय है उसे खुलने में। चलिए थोड़ा बाहर घूम घाम कर आते हैं।"
बाहर आते ही खाने की एक दुकान दिखी। उस पर मशहूर निहारी कबाब की दुकान का बोर्ड चस्पा था। इस के बेहतरीन स्वाद के बारे में वो की लोगों से सुन चुके थे। पर साथ में अशोक थे इस लिए इसे खाने का और सलमा और अमन के लिए लेने का विचार त्याग दिया। अशोक को कहीं बुरा न लगे।
फिर गुलाब रेवड़ी देखी। उसे कई पैकेट खरीद लिया। अपनों की देने के काम भी आयेगी और खाने के भी काम आयेगी।
साथ ही दशहरी आमों की ढेरी लगाए कुछ लोग बैठे थे। आम की आवक अभी शुरू नहीं हुई थी, पर ये बागबान का कमाल था कि समय से पहले तैयार कर इसे ऊंचे दाम पर बेच रहा था। साजिद ने पूरी ढेरी ही खरीद ली। आम की ये किस्म उसके लिए बेशकीमती थी।
अब वो वापस लौट पड़े।
सामान के पास पहुंच कर सबसे बताया कि गाड़ी साढ़े बजे खुलेगी। वो बोले,
"ऐसा करो तुम लोग नीचे चादर बिछा लो और आराम से बैठ जाओ। खाना निकाल लो सलमा..! खा पी कर आराम कर को तुम सब थोड़ी देर।"
सलमा और उर्मिला ने एक एक चादर निकली और थोड़ा से फर्क से लगा कर बिछा दी। एक पर अशोक अमन और साजिद बैठ गए और दूसरे पर उर्मिला, सलमा और पुरवा बैठ हैं। फिर अपने अपने साथ लाया खाना निकालने लगी।
सलमा जहां दम आलू, छोले के साथ पूड़ी और कचौड़ी लाई थी साथ में। वहीं उर्मिला बाटी चोखा और करेले की कलौजी मकई का पराठा और मीठी पूड़ी लाई थी।
सलमा और उर्मिला ने साथ कई छोटी थालियों में निकाल निकाल कर पुरवा को दिया कि वो साजिद अशोक और अमन को पकड़ाती चले। साथ ही पुरवा को सुराही से पानी निकाल कर सभी को देने को बोल दिया।
अशोक साजिद और अमन को देने के बाद उर्मिला ने अपना और पुरवा का एक साथ ही निकाल लिया।
सब खाने लगे। खाना तो सब लजीज था। पर उर्मिला के बाटी चोखा का जवाब नहीं था। अमन ने तो पहले ही अपनी थाली से सलमा का साथ लाया सब कुछ निकाल कर सलमा की थाली में डाल दिया। और बोला,
"अम्मी..! मुझे तो आप बस बाटी चोखा और मीठी पूड़ी ही दे दो। मैं और कुछ नही खाऊंगा। जो स्वाद उर्मिला मौसी के हाथ के खानों में है वो कलमा खाला के घर के खानों में थोड़ी ना है। उसे तो आप सब ही खाओ।"