Kataasraj.. The Silent Witness - 35 in Hindi Fiction Stories by Neerja Pandey books and stories PDF | कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 35

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कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 35

भाग 35

इसके बाद सलमा और साजिद दोनो बाहर बैठक में आ गए। इत्तिफाकन कलमा और शमशाद दोनो मां बेटे बैठे किसी मुद्दे पर सलाह मशवरा कर रहे थे। सलमा और साजिद को देख शमशाद उठ खड़ा हुआ और बड़े ही इज्जत से उन दोनो को बिठाने के बाद बैठा।

सलमा कलमा के पास बैठ कर बोली,

"आपा…! हमें आए काफी दिन हो गए। सब कुछ हंसी खुशी से निपट गया। अब हमे जाना चाहिए। वहां कारोबार और घर सब कुछ चमन पहली बार संभाल रहा है। परेशान हो जाता होगा। पता नही संभाल भी पा रहा है या नही। हमने तीन दिन बाद जाने की सोचा है।"

सलमा की जाने की बात सुन कर कलमा का चेहरा उतर गया। वो उदास बोली,

"कितना अच्छा लग रहा था तू आ गई थी तो। अब जाने कब आयेगी।"

सलमा बोली,

"नही आपा…! अब इतना लंबा अंतराल नही होगा। हर साल गर्मियों में आऊंगी। आप दुखी ना हो।"

कलमा बोली,

"तो भी मैं अभी नहीं नही जाने दूंगी। कम से कम दो दिन मेरे कहने से रुक।"

बड़ी बहन की इल्तिज़ा सुन कर सलमा साजिद की ओर देखने लगी। वो खुद से कोई फैसला नहीं करना चाहती थी।

साजिद ने सोचा जैसे इतने दिन रुके वैसे दो दिन और रुक जाते हैं। अब दो दिन में कुछ नही बिगड़ जायेगा। अगर इतने से ही कलमा आपा को खुशी मिलती है तो यही सही। अब उन्हें उदास कर के जाना साजिद को मुनासिब नहीं लगा। उस ने मुस्कुरा कर हां में सिर हिलाया और बोला,

"जैसे इतने दिन रुके। दो दिन और रुक जाते है। जब आपा चाहती हैं तो। अब तो आप दोनो बहन खुश हैं ना।"

साजिद के दो दिन और रुकने के लिए राजी होने पर कलमा ने मुस्कुरा कर खुशी से सलमा को अपने गले लगा लिया। साजिद ने उसकी इच्छा का सम्मान किया और रुकने को राजी हो गया। कलमा और शमशाद इस बात से बहुत खुश थे।

कुछ देर रुक कर सलमा बोली,

"जाऊं.. पुरवा को जाने की तारीख बता दूं। उसे आए देर हो गई है। कहीं बिचारी देर होने की वजह से घर में डांट ना खा जाए। उर्मिला बहुत ही नियम कायदे वाली मां है।"

इतना कह कर सलमा उठ कर अंदर नाज़ के कमरे की ओर चल पड़ी।

पुरवा और नाज़ दोनो ही बातों में मशगूल थीं। ना समय की परवाह थी, ना घर जाने की चिंता। था तो बस दोस्ती से महकता ये बेशकीमती लम्हा। जिसे दोनो ही जी भर के जी लेना चाहती थीं। पुरवा जिस काम के लिए आई थी वो उसके दिमाग में बिलकुल निकल चुका था। उसे तो बस नाज़ के नई नई हुई शादी के दिलचस्प बातों को जानने में थी।

सलमा कमरे के रेशमी परदे को हटा कर कमरे में दाखिल हुई। उन पर निगाह पड़ते ही नाज़ ने बिंदास सहेली का चोला झट से उतार फैंका और एक फरमाबरदार, तहजीब वाली बहू का किरदार निभाने को पलंग से उठ कर खड़ी हो गई।

उसे खड़े होते देख सलमा ने बड़े ही प्यार से उसे इस तकल्लुफ के लिए मना किया और बोली,

"बैठ जाओ नाज़। मैं कोई बाहरी नही हूं। तुम मेरे लिए पहले मेरी बहन जैसी सहेली नईमा की बेटी हो, आरिफ की दुल्हन बाद में हो। मेरे सामने तुम आराम से रहो।"

नाज़ के बैठते ही वो पुरवा की तरफ मुखातिब हुई और बोली,

"पुरवा..! बिटिया…! तुम अपनी अम्मा से बता देना कि हम आज से पांचवे रोज जायेंगे। करीब दस बजे यहीं आ जाना तुम सब। शमशाद स्टेशन छोड़ देगा।"

सलमा ने जन बूझ कर यहां बुलाया था उर्मिला को। क्योंकि अपने घर से स्टेशन पहुंचा उनके लिए बड़ी समस्या थी। कोई अपना साधन तो था नहीं। बैल गाड़ी या टमटम करने पर पैसे के साथ साथ उनकी चिरौरी भी करनी पड़ती। जबकि यहां से शमशाद अपनी जीप या बग्घी से बड़े आराम से छोड़ देगा। अब जब उन्हें अपने साथ चलने को राजी किया है तो उनकी सुविधा का ख्याल रखना उनका दायित्व बनता है।

पुरवा को जाने की तारीख बता कर सलमा जाने के लिए खड़ी हो गई। जाते जाते बोली,

"नाज़ अपनी सहेली को कुछ खिलाया पिलाया या नही।"

नाज बोली,

"जी.. खिलाया था ना।"

सलमा बोली,

"कब जब वो आई थी.. तभी ना..।"

"जी।"

नाज़ बोली।

"उसमें तो काफी वक्त हो गया। इस उम्र में तो बहुत भूख लगती है। फिर से कुछ तुम भी खा लो और इसे भी खिला दो।"

नाज़ ने फिर हां में सिर हिलाया।

सलमा को नाज़ के इस तरह सिर हिलाने पर हंसी आ गई। वो हंसते हुए बोली,

"अच्छा तुम रहने दो.. मैं ही कल्लन मियां से कह कर भिजवा देती हूं तुम दोनो के लिए।"

इसके बाद सलमा चली गई।

जाते हुए कल्लन को कुछ नाश्ता और चाय नाज़ के कमरे में पहुंचाने को बोल दिया।

वैसे भी सभी के चाय पानी का वक्त हो हो गया था। कल्लन मियां से आज केले की झूरी बनाने को कलमा ने सुबह ही बोल दिया था। वो इसी की तैयारी में लगे हुए थे। कुछ वक्त लग गया उन्हें इसे बनाने में। पुरवा को जाना था इस कारण नाज़ के कमरे में सबसे पहले दे आया। तब भी बतिया, बतिया कर खाने की वजह से देर हो गई। जब उसे अहसास हुआ तो खिड़की का परदा उठा कर बाहर झांका। सूर्य देवता की चलते चलते थकान से चमक धीमी हो गई थी। अब वो विश्राम करना करने को उतावले हो रहे थे। अम्मा ने जल्दी आने की हिदायत दी थी उसे आते समय। अब देर होते देख पुरवा घबरा गई।

वो हड़बड़ी में नाज़ के पास आई और उलाहना देते हुए बोली,

"तुम ना नाजो.. रानी..! कोई मौका मत जाने देना हाथ से मुझे डांट खिलवाने का। अब खुद तो महारानी आराम से घर में ही रहेगी। पर मुझे तो इत्ती दूर जाना है। बता नही सकती थी कि शाम होने वाली है। घड़ी बांध कर बैठी हुई हैं पर ना… वो तो बस इस लिए है कि आरिफ भाई इनसे कितनी देर दूर रहे ये देखने के लिए। ये बताने के लिए थोड़ी ना कि पुरवा … जा तू चली जा देर हो जायेगी और देर होने पर बिगड़ी जायेगी।"

नाज़ उसकी हड़बड़ी देख कर और उसके मीठे उलाहने को सुन कर हंसते हुए बोली,

"शांत… शांत .. शांत…. मोहतरमा। आप चिंता ना करें इतनी भी देर नहीं हुई है अभी। आराम से पहुंच जाओगी।"

नाज़ को हंसते देख पुरवा और चिढ़ गई और बोली,

"तुम क्या जानो..? पैदल जाने में समय लगता है। अच्छा चलती हूं।"

कह कर पुरवा नाज़ के गले मिलने लगी।