Kataasraj.. The Silent Witness - 33 in Hindi Fiction Stories by Neerja Pandey books and stories PDF | कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 33

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कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 33

भाग 33

नाज के कमरे का पर्दा उठा कर हुलसती हुई पुरवा कमरे में घुसी और बिना इधर उधर देखे नाजो… नाजो…! पुकारती हुई भाग कर उससे लिपट गई। नाज़ भी इस तरह अचानक अपनी प्यारी सखी को देख कर हैरान थी। उसकी खुशी का ठिकाना नहीं था। उसने भी पुरवा को भींच कर गले लगा लिया। जैसे दो बहने ना जाने कितने अरसे बाद मिली हों।

फिर अलग हो कर हंसते हुए उसे छेड़ने के अंदाज में पुरवा बोली,

"और बताओ नाजो रानी…! कैसी कट रही है जिंदगी ससुराल में…? मेरे जीजा जी ज्यादा तंग तो नही करते तुझे…? रातों को सोने तो देते हैं ना…?"

नाज ने अपने हाथो से उसका मुंह बंद किया और आंखे दिखाते हुए गुस्सा जाहिर किया। और चुप कराना चाहा। पर पुरवा…वो भला कहां चुप रहने वाली थी..! उसे तो इस वक्त सारी कसर पूरी कर लेनी थी। आखिर एक मुश्त इतने दिन तक वो नाज़ से अलग जो रही थी। फिर दिल की सारी बातें तो करनी ही थी। इस पर भी ये नखरीली नाज़ उसे चुप करा रही है। वो नाजो का हाथ अपने मुंह से हटाते हुए बोली,

"अच्छा जी.. तो अब हमसे भी बाते छुपाई जायेगी..! अब हम पराए जो हो गए। हां..! भाई अब तो सिर्फ आरिफ भाई ही आपके करीब हैं। तो फिर उनकी बातें हमको क्यों बताई जाएगी…?"

नाज़ समझ गई कि पुरवा अपनी आदत से बाज आने वाली नही है। उसके बकबक पर लगाम लगाने को सच बताना जरूरी था कि क्यों वो इस तरह की बातों से बचना चाह रही है..? वो उसके कान के करीब अपना मुंह लाकर फुसफुसाते हुए बोली,

"मेरी मां…कुछ बोलने से पहले आगे पीछे देख तो लिया कर। जरा सा भी सब्र नहीं तेरे अंदर। जरा ठहर जा। उधर देख पीछे सोफे पर अमन और आरिफ बैठे हुए हैं। क्या सोचेंगे भला वो..हमारे बारे में..…? हम दोनो ऐसी बातें करते है…!"

पुरवा ने पलट कर देखा तो वाकई आरिफ और अमन पीछे सोफे पर बैठे हुए थे, उसी की ओर देख रहे थे और उसकी बातें सुन कर मुस्कुरा रहे थे। अब तो पुरवा की हालत देखने लायक थी। वो शर्म से गड़ी जा रही थी। बड़ी अजीब सी परिस्थिति बन गई थी उसके लिए। ना तो उससे रुका जा रहा था ना ही बाहर जाया जा रहा था। वो पलकें झुकाए खड़ी थी। उसे खुद पर गुस्सा आ रहा था। उसने इतनी हड़बड़ी क्यों कर दी..? थोड़ा सब्र करती, आराम से बैठ कर भी तो बाते की जा सकती थी।

तभी आरिफ खड़े हो गए और उसके पास आकर शरारती नजरों से घूरते हुए पुरवा से बोले,

"पुरवा…! तुम कुछ पूछ रही थी नाज़ से…? अब भाई.. वो तो बदल गई है कुछ बताएगी नही। पर अगर तुम चाहो तो मैं बता सकता हूं सब कुछ… सब कुछ मतलब सब कुछ।"

इतना कह कर आरिफ शरारत से मुस्कुराने लगे।

पुरवा की हालत ऐसी हो गई कि वो अगर अभी धरती फट जाए और वो उसमे सीता मईया की तरह समा जाए।

अब तक अमन जो सदा चुप ही रहता था पुरवा की पतली हालत देख कर ठठा कर हंस पड़ा।

नाज़ अभी नई नवेली दुल्हन थी, पर शौहर पर रोब लेना थोड़ा बहुत आ गया था। उसे कत्तई मंजूर नहीं था कि उसकी प्यारी सहेली को कोई भी छेड़े। अब वो चाहे उसका शौहर ही क्यों ना हो। बड़ी ही शालीनता से आरिफ को मीठी सी झिड़की देते हुए बोली,

"आप भी ना… बस मौका हाथ लगना चाहिए। शुरू हो जाते हैं। हो गया… निकल गया उसके मुंह से। इसमें हैरानी कि क्या बात है..! क्या आप और आपके दोस्त आपस में हंसी मजाक नही करते..! जो आप उसका माखौल उड़ा रहे हैं।"

आरिफ को पुरवा की हालत देख कर तरस आने लगा उस पर। वो समझ गया कि अब उसके और अमन के आगे पुरवा सामान्य नही रह पाएगी। इस लिए उसे कमरे से चला जाना ही ठीक लगा। आरिफ ने अमन से कहा,

"अमन…! आओ बाहर चलें। बेगम साहिबा को उनकी सहेली के साथ अकेले में समय बिताने दो। आखिर उनका भी हक है। तब तक हम थोड़ा बाहर तेजा के साथ एक चक्कर खेतों के लगा कर आते हैं। क्यों ठीक है ना।"

अमन ने सर हिला कर अपनी सहमति दे दी। साथ की आरिफ के पीछे पीछे जाने लगा।

जाते हुए आरिफ बोला,

"नाज…! आप आराम से बातें करिए अपनी सहेली से मैं कल्लन मियां को चाय नाश्ता ले कर आने को बोलता हूं।"

उन्हें जाते देख नाज़ ने पुरवा को सामान्य करने के लिए उसका हाथ पकड़ कर पलंग के पास ले कर आई। फिर बिठाते हुए बोली,

"क्या हुआ नाज़..? तू इतना संजिदा क्यों हो रही है। इतना तो होता रहता है। आ बैठ।"

इसके बाद नाज़ ने पुरवा को पैर ऊपर कर आराम से बैठा दिया। और खुद भी आराम से उसके करीब बैठ गई। फिर पुरवा का हाथ अपने हाथ में लेते हुए बोली,

"हां… पुरवा ..! अब पूछ जो कुछ पूछना हो।"

पर पुरवा खामोश रही।

उसे सामान्य करने के लिए नाज़ फिर खुद ही बोलने लगी,

"तेरे जीजा जी बहुत अच्छे है पुरवा। मेरा बहुत ही ध्यान रखते हैं। एक पल के लिए भी अकेला नही छोड़ते। अम्मी जान को थोड़ा बुरा लगता है पर वो खाना पीना सब यही कमरे में मेरे साथ ही खाते हैं।"

इतना बताए बताते नाज़ के गाल शर्म से लाल हो गए।

नाज़ का ध्यान अब इस और गया कि वो अचानक कैसे आ गई..? उसने पूछा,

"पुरवा…! तुम सिर्फ मुझसे मिलने आई हो या कोई काम है..? मैं ऐसे ही पूछ रही हूं। तुम बुरा मत मानना ठीक।"

अब पुरवा बोली,

"नही नाज़…! तुम तो अम्मा को जानती ही हो। भला वो बिना काम के आने देंगी मुझे इतनी दूर।"

"वो… सलमा मौसी हैं ना.. जब वो हमारे घर आई थीं तो अम्मा बाऊ जी को अपने साथ भोले बाबा के दर्शन कराने अपने साथ ले जाने को बोल रही थीं। अम्मा ने सोचा विचारा फिर तैयार हुई। वही बताने के लिए मुझे यहां भेजा है। कब जायेगे ये लोग, बस यही पूछने आई हूं..? अब अम्मा तो रोज रोज आ नही सकती.. वो.. अच्छा नही लगता ना। और बाऊ जी को काम था। इस लिए हमको भेज दिया। ऐसे एक पंथ दो काज हो गया। हम तुमसे मिल भी लेंगे और संदेशा भी ले लेंगे। ये मेरी अम्मा भी कम मतलबी थोड़े ना है, वैसे तुमसे मिलने को कहो तो पचास बहाने बताती हैं। अब आज अपनी गर्ज लगी तो खुद ही उन्हें ये खयाल आ गया कि हम तुमसे मिल आएं।"

नाज बनावटी नाराजगी दिखाते हुए बोली,

"तभी मैं कहूं…आज कैसे मेरा खयाल आ गया मोहतरमा को। आप तो काम से आई हैं मुझसे मिलने थोड़ी ना। और यहां हम खुश फहमी में पागल हुए जा रहे कि कोई तो है जो मुझे याद कर मिलने के लिए दौड़ा आया है।"

इतना कह कर नाज़ ने अपना मुंह फुला लिया।