Kataasraj.. The Silent Witness - 32 in Hindi Fiction Stories by Neerja Pandey books and stories PDF | कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 32

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कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 32

भाग 32

पुरवा नहा कर आई तब तक खाना तैयार हो गया गया था। उर्मिला गरम गरम रोटियां सेंक कर पास ही बैठे अशोक की थाली में दे रही थी। पुरवा को देखते ही बोली,

"आ पुरवा ..! तू भी खा ले।"

पुरवा भी थमकती हुई आई और अशोक के करीब ही बैठ गई। जब अशोक और उर्मिला की नजर पुरवा पर पड़ी तो दोनो एक साथ मुस्कुरा उठे। पुरवा ने घर के रोज के कपड़े की बजाय बाहर जाने वाला कपड़ा पहना हुआ था। अम्मा बाऊ जी को एक साथ मुस्कुराते देख कर पुरवा समझ गई कि वो उसके कपड़े देख कर ये अर्थ लगा रहे हैं कि हम उतावले हैं नाज़ के घर जाने को। अपनी चोरी पकड़े जाने पर चिढ़ते हुए बोली,

"क्या…? आप दोनो कुछ ज्यादा ही सोचते हो। वो तो हमने इस लिए पहन लिया कि दो बार कौन पहनेगा…। मुझे कोई जल्दी नही है जाने की। बड़ी मुसीबत है मेरे लिए.. जाओ तो आप दोनो को दिक्कत… , ना जाओ तो खुशामद करते है।"

खाने की थाली पकड़ाते हुए उर्मिला बोली,

"ना लाडो…! तुझे भला कौन गलत समझ सकता है..! वो तो हम इस लिए मुस्कुरा रहे थे कि हमारी बिटिया इन कपड़ों में कितनी सुंदर दिख रही है। तू तो बेवजह ही चिढ़ रही है। ये खा ले शांति से।"

मुंह बनाते हुए पुरवा ने थाली पकड़ी और खाने लगी। वो भी समझ रही थी कि अम्मा उसे बहका रही है।

पुरवा ने आज सुबह से घर का कोई भी काम नही किया था। खाना खा कर उठी तो इस कारण सारे बरतन मांजने बैठ गई। उर्मिला मना करना चाहती थी कि रहने दे तेरे कपड़े गंदे हो जायेंगे। पर ये सोच कर चुप रह गई कि कही फिर ना ये लड़की चिढ़ जाए।

बरतन मांज कर वो बरामदे में लेटी उर्मिला के पास जा कर उसके बगल में लेट गई। जिससे जब जाना हो तो अम्मा को आवाज ना लगाना पड़े। उर्मिला आंखे बंद किए लेटी थी। जब कुछ देर हो गई उर्मिला के अंदर कोई हरकत नहीं हुई तो उसे लगा कहीं अम्मा सो तो नही गई। देर हो जायेगी तो फिर वो बस आने जाने भर की ही होगी। नाजो से बात चीत नही हो पाएगी। पुरवा ने करवट बदला। पर उर्मिला वाकई सो गई थी। कोई असर नहीं हुआ उस पर। अब पुरवा ने अपनी बुद्धि भिड़ाई और खूब ताकत लगा कर बिलकुल उर्मिला के कान में खांसा। अब उर्मिल चौक कर उठ गई। और बाहर देखते हुए बोली,

"अरे….! तू गई नही बिटिया..? मेरी तो आंख झप गई थी। जा जल्दी जा.. नही तो देर हो जायेगी। फिर लौटने में दिक्कत होगी।"

उठते हुए पुरवा बोली,

"बिना आपके कहे कैसे चली जाती…! अब जा रही हूं।"

बालों में ऊपर से कंघी फिराया और शीशे में एक बार चेहरा देख वो बाहर आ गई। पैरों में चप्पल डाला और उर्मिला से बोली,

"अम्मा जा रही हूं।"

उर्मिला बाहर तक आई और बोली,

"देख… ध्यान से जाना। देर मत करना समय से आ जाना…. ठीक..।"

"हां…! अम्मा आ जायेंगे समय से। चिंता मत करो।"

इतना कहते हुए पुरवा तेज कदमों से चली गई। जब तक पुरवा दिखती रही, उर्मिला खड़ी हो कर उसे देखती रही। उसके ओझल हो जाने पर अंदर आ गई।

इधर नाज़ से मिलने के उत्साह में पुरवा के पैरों में जैसे बिजली फिट हो गई थी। तेजी से डग रखते हुए वो खेत,बाग और पोखर पार करके अब नाज़ की हवेली के गेट के सामने खड़ी थी। यहां तक तो वो बड़े उत्साह में आ गई थी। दिल में नाज़ से मिलने का उत्साह जो भरा हुआ था। पर अब उसकी हवेली के सामने आ कर उसे अंदर जाने में हिचक हो रही थी। कुछ पल खड़ी रही और फिर अपनी ओढ़नी को कंधे पर फैला कर पूरा शरीर ढकने की कोशिश की। फिर झिझकते हुए आगे बड़ी। कंधे पर ओढ़नी को फैलाए, एक किनारे को हाथ में पकड़ कर उसे उंगली पर लपेटते हुए छोटे छोटे कदम रखते हुए आगे बढ़ी गेट पर कुर्सी पर बैठे अर्दली की नजर जैसे ही पुरवा पर पड़ी वो पहचान गया। अभिवादन करते हुए उसने गेट खोल दिया। पुरवा ना जाने कितनी बार इस घर में आ चुकी थी। इसके कोने कोने से वाकिफ थी। बिना किसी से कुछ कहे नाज़ के कमरे की ओर जाने लगी। निकाह की गहमा गहमी समाप्त हो गई थी। लगभग सारे मेहमान अपने अपने घर वापस लौट गए थे। अब फुरसत के इस पल का आनंद दोनो बहन उठा रही थीं। बरामदे में सलमा और कलमा दोनो बहन बैठी बतिया रही थी उनकी नजर पुरवा पर पड़ी। सलमा बोली,

"अरे…पुरवा बिटिया….! आओ.. आओ…।"

पुरवा अंदर जाने के बजाय अब उनके पास आ गई। और नमस्ते करने के लिए अपने दोनो हाथ जोड़ दिए।

कलमा जो मसनद लगाए अधलेटी थी, उठ कर खिसक गई और पुरवा को बैठने के लिए जगह दे दिया।

पुरवा के सिर पर हाथ फिरा कर बारी बारी से दोनो ने खुश रहने का आशीर्वाद दिया। फिर सलमा बोली,

"तुम्हारे बाऊ जी अम्मा तो ठीक है ना बिटिया। क्या सोचा उन्होंने…? चल रहे हैं ना मेरे साथ।"

सलमा को लगा कहीं उर्मिला ने यही संदेश ले कर तो उसे नही भेजा है कि वो लोग साथ नही चल रहे। जब से यहां आई थी पुरानी यादें, पुराना साथ सब ताजा हो गया था। दूर रहने पर सब कुछ भुला हुआ था। पर अब एक बार फिर सब से दूर जाना बड़ा तकलीफ देह लग रहा था। कुछ तसल्ली थी कि अगर उर्मिला साथ चलती है तो वहां चल कर भी कुछ दिन नईहर की खुशबू साथ रहेगी। भले ही साजिद मियां कह रहे हैं कि अब वो हमेशा उसे साथ ले कर यहां आएंगे। पर उसे यकीन नही था जहां चकवाल पहुंचे कारोबार में फंसने के बाद उन्हें कुछ भी याद नहीं रहेगा। ये उसे पता था। अब ना जाने कब आना होगा…! ना जाने कब अपनों से मिलना होगा..!

पुरवा बोली,

"यही बताने के लिए तो अम्मा ने मुझे भेजा है कि हम सब भी आपके साथ चल रहे हैं। कब जाना है आप बता दीजिए।"

सलमा खुश होते हुए बोली,

"बहुत अच्छा बिटिया…! हम अभी इनसे पूछ कर पक्की तारीख बताते हैं।"

इतना कह कर सलमा उठने लगी। फिर सोचा पुरवा अकेली यहां कलमा आपा के बैठ कर क्या करेगी..? इसे नाज़ के पास छोड़ देती हूं।

"चल बिटिया..! तुझे तेरी सहेली से मिलवा दूं। तू यहां बैठ कर क्या करेगी..?"

पुरवा तो इसी लिए आई ही थी। वो फालतू में इधर उधर बैठ कर अपना समय बर्बाद नही करना चाहती थी। इस कारण तुरंत ही सलमा के पीछे पीछे चल दी। सलमा पुरवा को नाज़ के कमरे के सामने पहुंचा कर बोली,

"बिटिया..! तुम दोनो सहेली बतियाओ आराम से….तब तक मैं अमन के अब्बू से पूछ कर आती हूं।"