Kataasraj.. The Silent Witness - 15 in Hindi Fiction Stories by Neerja Pandey books and stories PDF | कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 15

Featured Books
Categories
Share

कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 15

भाग 15

आरिफ ने नाज़ और अमन का आपस में परिचय करवा दिया था। दो चार बातें नाज़ से भी कर ली थी। अब वापस भी जाना था। आरिफ को तो एक नजर बस नाज़ को देखना होता था। उसके मन की बेचैनी शांत हो जाती थी।

वो बोला,

"अच्छा…! तो पुरवा अब तुम और नाज़ वापस घर जाओ। देर करने से घर पर डांट पड़ेगी तुम दोनो को। जो मैं नहीं चाहता हूं।"

नाज ने पुरवा का हाथ पकड़ा और वापस जाने को तत्पर हुई। उसने अपने हाथ उठा कर बारी बारी से अमन और आरिफ को मुस्कुरा कर खुदा हाफिज किया।

अमन और आरिफ ने भी नाज़ को खुदा हाफिज किया। अमन और आरिफ वापस जाने लगे।

पुरवा और नाज़ भी लौट रही थी। अमन ने पीछे मुड़ कर उन दोनों को देखा। ठीक उसी समय पुरवा भी पलटी। दोनो की नज़रे मिली।

अमन ने आंख मिलते ही अपना हाथ हिला कर फिर से आगे देखने लगा।

अब पुरवा को बेचनी थी कि कहीं फिर से अमन पलट कर उसे नही देख रहा और बिलकुल ऐसा ही अमन को भी लग रहा था। अपने मन की आशंका को दूर करने के लिए दोनो ही पलट कर देख रहे थे।

ये सिलसिला तब तक चलता रहा जब तक पुरवा और नाज़ मुड़ कर दिखना बंद नही हो गई।

अमन और आरिफ घर लौट रहे थे। रास्ते में आरिफ ने समझाया कि

"देख भाई.. अमन….! ये आज अभी वाली बात मेरे और तुम्हारे बीच में ही रहे। इसे खाला को मत बताना। ठीक….?"

अमन ने वादा किया आरिफ भाई से कि वो यकीन रक्खे ये बात वो किसी से भी नही बताएगा।

नाज को उसके घर पे छोड़ कर तेज कदमों से पुरवा भी अपने घर वापस आ गई।

अशोक और उर्मिला खटिया पर बैठे उसी के लौटने की राह देख रहे थे। जैसे अधिक बरसात होते पर पानी बांध तोड़ कर निकलने को आतुर हो वैसे ही उर्मिला की ममता तो जैसे उसके सीने में समा ही नही रही थी। जब से अशोक से उसकी शादी की बात सुन ली थी। दिल अभी से विदा करने की सोच कर घबरा रहा था।

पुरवा का जी बैठा जा रहा था कि गोहधुरिया हो गई है। अब तो अम्मा पक्का ही डांटेगी। इतनी देर तक घुमा जाता है…? सुबह तो खाना बना कर बच गई थी। पर अब अम्मा उसे नही छोड़ेंगी। निगाह बचा कर अंदर जाने का भी कोई उपाय नहीं था। अम्मा और बाऊ जी मोहार पर ही बैठे थे। सिर नीचे किए डरते हुए पुरवा अंदर जाने लगी।

पुरवा के आशा के विपरित उर्मिला ने बिना कुछ उल्टा सीधा कहे पुरवा से बोली,

"क्यों बिट्टो…! मिल आई नाज़ से…? कैसी है वो…? बेचारी ज्यादा रोती तो नही। अब अम्मी,अब्बू, ये मायका सब कुछ उसे छोड़ कर पराए घर जाना है।"

अम्मा का मिज़ाज ठीक देख पुरवा उनके पास आ गई। उर्मिला ने हाथ पकड़ कर उसे अपने पास बिठा लिया। फिर उसके खुले बालों में उंगली फिराते हुए बोली,

"देख तो कितने रूखे हुए है तेरे बाल। जब से नहाई है ऐसे ही घूम रही है। जरा सा भी अपना ख्याल नही है इस लड़की को.. कि तेल लगा ले…. चोटी गूंथ लें। जा तेल और कंघी ले कर आ। मैं तेरी चोटी बना दूं।"

पुरवा हैरान थी अम्मा का व्यवहार देख कर। क्या अम्मा सनक गई है जो इतना मीठा व्यवहार कर रही है देर से वापस आने पर। या फिर कुछ देर बाद मेरी आरती उतरेंगी। समझ के बाहर था। फिर पुरवा ने सोचा अभी तो अम्मा प्यार बरसा ही रही है जब डाटेंगी तो देखा जायेगा।

बालों में तेल लगा कंघी हुई। पर मौसम ठीक ही रहा। पुरवा थक गई थी इस लिए कमरे में जा कर लेट गई। उर्मिला ने ना तो उसे रोज की तरह खाना परोसने को कहा ना ही खाना खाने को बुलाया। बल्कि उसकी थाली उसे वहीं बिस्तर में ही दे आई।

चार दिन बाद ही नाज़ और आरिफ की मायो की रस्म थी। शमशाद के घर में रौनक ही रौनक चारों ओर फैली हुई थी।

साजिद ने भी सलमा से किया अपना वादा निभाया। वो भी अपना सारा काम धाम बेटे चमन के हवाले कर हल्दी की रस्म के दिन आ गए।

घर रिश्तेदारों से अटा पड़ा था। बड़े ही जोश के साथ हर रस्म निभाई जा रही थी।

नाज़ का परिवार बेशक आरिफ के परिवार जैसा रईस नही था पर अपनी औकात से बढ़ चढ़ कर ही नईमा और बब्बन भी खर्च कर रहे थे। आखिर आरिफ के भी रूतबे का सवाल था।

बड़ी समस्या ये कि उर्मिला को दावत नामा दोनो ही तरफ से मिला था। साथ ही हर रस्म में मौजूद रहने की हिदायत भी शमशाद भाई, उनकी बीवी और उनकी अम्मी ने दे रक्खी थी। अब बात मायके से जुड़ी हुई थी। इस कारण जाना जरूरी था।

पर नाज़ भी पुरवा जैसी ही प्रिय थी। उसके घर की रस्म छोड़ कर वो भला कैसे जा सकती थीं।

उर्मिला को उलझन में देख अशोक ने कहा,

"तुम परेशान क्यों होती हो…? कोई जरुरी थोड़ी ना है कि बिलकुल रस्म के समय ही पहुंचो। लोग आगे पीछे भी तो पहुंचते है। उनकी मजबूरी होती है। ऐसा करो अब नाज़ का घर करीब है तो पहले उसके घर हो लिया करो। फिर उसके बाद शमशाद भाई घर हो लिया करेंगे। अब वो भी तो अनजान नही है हमारे और बब्बन के रिश्ते से।"

उर्मिला को अशोक की बात ठीक लगी। फिर यही तय रहा।

पुरवा तो मायो की रस्म से ही नाज़ के साथ साथ रहती। बस जरूरी कामों के लिए ही घर आती।

मायो में तो सिर्फ अशोक और उर्मिला ही गए।

लंबे अरसे बाद मिले लोग बच्चों के बारे में पूछते। अब बेटे तो यहां पर थे नही। पर सब लोग पुरवा को साथ नहीं लाने की शिकायत करते रहे। फिर उर्मिला ने बताया कि वो नाज़ के साथ है। पर मेहदी वाले दिन पुरवा को साथ लाने को सभी ने कहा। फिर उर्मिला ने हामी भर दी कि वो कल पुरवा को साथ ले कर ही आयेगी।

क्या उर्मिला पुरवा को ले कर शमशाद भाई के घर जा पाई…? क्या नाज़ और आरिफ का निकाह खुशनुमा माहौल में सम्पन्न हो पाया…? जानने के लिए पढ़े जिंदगी के हर पहलू को करीब से दिखाती हुई कहानी कटास राज : द साइलेंट विटनेस।