Dani ki kahani - 31 in Hindi Children Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | दानी की कहानी - 31

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दानी की कहानी - 31

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कुछ साल पहले दानी यू.के मित्रों के पास गईं थीं | उनके वहाँ बहुत सारे मित्र हैं | बहुत पहले जब वे युवा थीं तब गईं थीं इसलिए उनके मित्र उन्हें बार-बार बुला रहे थे |

दानी के बच्चों ने सोचा कि उम्र के ढलते दानी जाने में मज़बूर हो जाएँगी इसलिए उन्हें जाना चाहिए | दानी मन से खुश भी थीं क्योंकि उनके मित्र उनसे मिलने कई बार आ जाते थे लेकिन दानी का जाना ही टल जाता था |

उनके सारे मित्रों की उम्र उनके ही बराबर थी इसलिए सभी को लगता ,साथ में कुछ दिन गुज़ारने चाहिएँ | सबको ही अपने पुराने दिनों की याद आती | तय हो गया कि दानी 1/2 महीनों के लिए दोस्तों के पास रहेंगी | उनके साथ कॉलेज में पढ़ी थीं, उनकी युवावस्था के साथी थे जो सभी अलग-अलग स्थानों पर रहते थे |

पहले तो दानी के यहाँ के सारे तीसरी पीढ़ी के बच्चे शोर मचाने लगे | अब दानी ठहरीं सबकी

फेवरेट ---हर शाम को बरामदे में बैठकर बच्चों को खेलते हुए देखना,उनकी लड़ाइयों को सुलझाना ,उन्हें बहुत सी ऎसी बातें समझाना जो उनकी समझ से बहुत दूर रहतीं लेकिन दानी कुछ ऐसे बातों को समझातीं कि सब बच्चे 'हाँ' में गर्दन हिलाते नज़र आते | फिर --जो जिसकी पसंद का हो दानी उसके लिए वही बनवा देतीं या बना भी देतीं | कोई नहीं चाहता था कि वे उन सबको छोड़कर जाएँ |

दानी को भी अच्छा तो नहीं लग रहा था लेकिन मित्रों से मिलने का तो सबका मन होता है | दानी ने बच्चों को कहा कि जैसे वे अपने दोस्तों के साथ खुश होते हैं, वैसे भी वो भी हो जाएँगी | उन्हें समझाया कि अपनी चीज़ों की लिस्ट तैयार कर दें | किसी तरह से बच्चों को पटाया गया और उनके लटकते चेहरों को छोड़कर दानी अपने मित्रों से मिलने पहुँच गईं |

इस बार सबने मिलकर कार्यक्रम बनाया था कि सब साथ ही रहेंगे |इसलिए वहाँ के कंट्री-साइड के एक फार्म-हाऊस में चार मित्रों का इंतज़ाम हो गया था | दानी की बहन की बेटी की इच्छा थी कि दानी उनके पास रहें | दानी ने उन्हें आश्वस्त किया कि उनके घर बाद में कुछ दिनों के लिए आ जाएँगी |

सबको बहुत आनंद आया | पहले तो दानी जब वहाँ गईं थीं तब युवा थीं ,सबके बच्चे छोटे थे लेकिन अब सबके बच्चे बड़े हो चुके थे लेकिन दानी को यह देखकर बहुत अच्छा लगा कि उनकी सहेलियाँ अपने बच्चों के साथ ही रह रही थीं | बच्चे अपने दादा-दादी का बहुत सम्मान करते और उनसे बहुत कुछ सीखने की कोशिश भी करते |

पता ही नहीं चला ,कब लगभग पौने दो माह बीत गए |दानी अपने दोस्तों के साथ बहुत घूमीं , खूब आनंद किया उन्होंने | अब लौटने में समय कम रह गया था और दानी को बच्चों का सामान भी खरीदना था | उनकी बहन की बेटी चित्रा कहने लगी कि मौसी कुछ समय तो उनके पास रहें | बच्चों की शॉपिंग वह करवा देगी | चित्रा ने अपने ऑफ़िस से एक सप्ताह की छुट्टियाँ भी ले ली थीं |

दानी का समय बहुत अच्छी तरह कटा था ,बड़े सालों बाद वे इतने दिनों के लिए घर से निकलीं |

चित्रा का बेटा आठवीं कक्षा में और बेटी पाँचवी में पढ़ रहे थे | वे दोनों दानी से कहानियाँ सुनाने की माँग करते ,दानी को बच्चे याद आ जाते |

" ये क्या कर रहे हो आशु ?" एक दिन दानी किचन में सुबह-सुबह बैठी चाय पी रहीं थीं | आशु स्कूल के लिए तैयार हो चुका था और सामने वाले स्टोर से अपने 'गेम्स शूज़' निकाल रहा था | उसने अपनी पुस्तकों के बैग में ही अपने जूते रख लिए | शायद उसको कुछ मिल नहीं रहा था ,उसने ज़ोर से गुस्से में अपने बैग पर लात दे मारी | दानी से रहा नहीं गया इसीलिए उन्होंने आशु से कहा |

"दानी, देखिए न, बैग ही बंद नहीं हो रहा है ---" उसने दानी से बैग की जैसे शिकायत की |

"बेटा ! तुमने इसमें किताबों के साथ ही जूते भी रखे और बैग को पैर मार रहे हो ?"

"तो क्या हुआ ?" आशु ने दानी से उलटे पूछा |

दानी चुप हो गईं | चित्रा के आने पर दानी ने उन्हें यह बात बताई और इशारा भी किया कि उसने अपनी सास को 'ओल्ड-एज-होम' में रखकर कितना बड़ा नुक्सान किया | किसी बड़े के घर में होने से घर के बच्चों को कितना कुछ सीखने को मिलता है | माता-पिता की व्यस्तता के कारण जो बातें बच्चों को कहानी,कविता के माध्यम से बड़े सिखा देते हैं ,उससे बिना प्रयास के ही बच्चों का चारित्रिक विकास हो जाता है |

चित्रा को अपनी मौसी की बात समझ में तो आ रही थी लेकिन उसके निर्णय में देरी हो चुकी थी | उसकी आँखों में निराशा के आँसू भर आए थे |

 

डॉ प्रणव भारती