Yakshini ek dayan - 3 in Hindi Fiction Stories by Makvana Bhavek books and stories PDF | यक्षिणी एक डायन - 3

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यक्षिणी एक डायन - 3

बूढ़ा युग के सवाल का जवाब देते हुए कहता है – "नहीं बिटुआ यक्षिणी अब मर्दो को अपना शिकार नहीं बनाती।"

"क्‍यों बाबा,क्‍या यक्षिणी यहाँ से चली गयी है जो अब वो अपना मर्दो को शिकार नहीं बनाती है?"

वो बूढा युग के पास जाते हुए कहता है – "वो गयी नहीं है, शांत हो गयी है।"

"शांत हो गयी है मतलब?"

"मतलब यह कि आज से तेरह साल पहले उस ग्रेव्‍यार्ड कोठी में एक लेखक बाबू रहते थे। उन लेखक बाबू को ही उस यक्षिणी ने अपना आखिरी शिकार बनाया था। तुम्‍हें पता है लेखक बाबू की किसी को लाश तक नहीं मिली थी पर उनका कमरा पूरा खून से सना हुआ था, हर जगह खून ही खून था दिवारों पर, किताबों पर टेबल पर हर जगह, एक कोना ऐसा नहीं बचा था जहाँ पर खून ना हो।

यह बात सुनकर युग डरा नहीं बल्कि उदास हो गया अचानक से उसकी आँखों में नमी आ गयी थी। बूढ़ा इस बात को भाप लेता है और युग के कंधों पर हाथ रखते हुए पूछता है – "क्या हुआ बेटा, लेखक बाबू के बारे में सुनकर तुम्हारा चेहरा क्यों उतर गया?"

युग अपने दिल पर पत्थर रखते हुए कहता है – "क्योंकि आप जिस लेखक बाबू की बात कर रहे है वो और कोई नहीं बल्कि मेरे पिता थे।"

"क्‍या! इसका मतलब यह कि तुम वो लेखक बाबू के बेटे हो।"

"हाँ, मैं उन्‍हीं का बेटा हूँ युग।"

बूढ़ा अपनी बात को आगे जारी रखते हुए कहता है – "गाँव वालों का कहना था कि उस यक्षिणी ने ही लेखक बाबू को मारा था, उसी दिन से उस ग्रेव्‍यार्ड कोठी को बंद कर दिया गया और कोठी के बंद होने के साथ ही अमावस्‍या और पूर्णिमा की रात मर्दो के शिकार होने भी बंद हो गये। कुछ गाँव वालो का तो यह तक कहना है कि शायद लेखक के साथ संभोग करके उस यक्षिणी की हवस मिट गयी इसलिए वो शांत हो गयी।"

युग कुछ सोचते हुए कहता है – "पर जब हवस मिट गयी थी तो उस यक्षिणी ने मेरे पिता को क्‍यों मारा और आपने कहा था कि संभोग करने के बाद यक्षिणी अपने शिकार के शरीर में से खून चूस लेती है तो फिर मेरे पिता का खून कमरे में हर जगह कैसे फैला था, यक्षिणी ने उनका खून क्‍यों नहीं पिया?"

"पता नहीं, उसने लेखक बाबू का खून क्‍यों नहीं पिया, ये राज उनकी मौत के साथ ही ग्रेव्‍यार्ड कोठी में दफन हो गया था। यक्षिणी हर शिकार के साथ संभोग करने के बाद सीधे उसे मौत के घाट उतारती थी इसलिए हवस खत्‍म होने के बाद भी उसने लेखक बाबू को भी मार दिया होगा पर कुछ गाँव वालों का कहना था कि लेखक बाबू कई सालो से खोज बीन पूछताछ करके यक्षिणी पर कोई किताब लिख रहे थे इसकी भनक उसे लग गयी थी एक यह भी कारण हो सकता है और फिर अमावस्‍या आते ही यक्षिणी ने लेखक बाबू को मार दिया होगा।"

"क्‍या वो किताब मुझे मिल सकती है?"

"नहीं वो किताब तो कहीं नहीं है, सुना है प्रकाशित ही नहीं हो पाई, शायद ग्रेव्‍यार्ड कोठी में हो।"

"क्‍या कहा आपने ग्रेव्‍यार्ड कोठी में!"

"हाँ ग्रेव्‍यार्ड कोठी में पर मैं तुम्‍हे एक सलाह देता हूँ वो यक्षिणी शांत हो चुकी है तो बेहतर है उसे शांत ही रहने दो, उसके अंदर की वासना को फिर मत जगाओ वरना पता नहीं और कितने मर्दो की जान ले ले।"

"आप मुझे डरा क्‍यों रहे है?"

"मैं डरा नहीं रहा हूँ तुम्हें बस आगाह कर रहा हूँ बिटुआ, मौत के आने से पहले चेतावनी देनी पड़ती है।"

"मतलब?"

"तुम शहर के लोग मतलबी बहुत होते हो बिटुआ हर बात में मतलब ढूँढते हो, मतलब कुछ नहीं।"

"वैसे आप बहुत कुछ जानते है उस ग्रेव्‍यार्ड कोठी के बारे में आखिर कैसे?"

"जानूंगा कैसे नहीं मेरा पुराना रिश्‍ता जो है।"

युग उस बूढ़े को घूरते हुए पूछता है – "क्‍या कहा पुराना रिश्ता है! क्‍या रिश्ता है आपका ग्रेव्यार्ड कोठी से?"

बूढ़ा बड़ी-बड़ी आँखे करते हुए कहता है – "मेंदीपथार"

युग अपना मुँह फाड़ते हुए कहता है – "मेंदीपथार मतलब?"

"मतलब यह बिटुआ की मेंदीपथार स्‍टेशन आ गया है, चलो जल्दी उतर जाओ।"


ट्रेन मेंदीपथार स्‍टेशन पर आकर रूक गयी थी। युग और वह बूढ़ा अपना-अपना सामान लेकर ट्रेन से नीचे उतर जाते है। स्‍टेशन ज्‍यादा बड़ा नहीं था और पूरा सूनसान पड़ा हुआ था। स्‍टेशन पुराने जमाने का था। लाईट भी एक दो ही जल रही थी जो बार-बार बंद चालू हो रही थी।


ट्रेन अभी स्‍टेशन से निकली ही थी कि तभी युग की नज़र बूढ़े के हाथ में जो झोला था उस पर पड़ती है और वो देखता है कि उसके अंदर कई सारे कमल के फूल रखे हुए थे। युग सोचने लग जाता है ये बूढ़ा इतने सारे फूलो का क्या करने वाला है।


जैसे ही बूढ़ा स्‍टेशन पर ऊतरा था जल्‍दी-जल्‍दी कदम बढ़ाने लग गया था, जैसे उसे कहीं जाने में देर हो रही हो। युग के मन में कमल के फूलो वाली बात खटकती जा रही थी उससे रहा नहीं जाता और वो उस बूढ़े से पूछ ही लेता है


"वैसे बाबा आप इतने सारे कमल के फूलो का क्‍या करने वाले है?"


बूढ़ा अपने चेहरे पर मुस्‍कान लाते हुए कहता है – "तो तुम्‍हारी नज़र चली ही गयी इन पर बड़ी तेज नज़र है।"


"ये मेरे सवाल का जवाब नहीं हुआ बाबा, बताईए ना आप इतने सारे फूलो का क्‍या करने वाले है?"


"अरे पूजा आने वाली है ना उसी के लिए है ये फूल।"


"कैसी पूजा?"


"पूर्णिमा की पूजा।"


"पूर्णिमा की पूजा मतलब?"


"तुम नहीं समझोगे, तुम गाँव में नये आए हो ना, धीरे-धीरे समझ जाओगे।"


युग उस बूढ़े को हैरानी के साथ घूरे जा रहा था क्योंकि उसको उसकी बाते बिल्कुल समझ में नहीं आ रही थी।


युग अपनी जिन्‍स पकड़ते हुए कहता है – "अरे शिट, इसे भी अभी आना था।"


"क्‍या हुआ बेटा बड़ी मुश्किल में लगते हो?"


"हाँ बाबा, वो यहाँ पर कहीं वॉशरूम है क्‍या?"


बूढ़ा अपना सिर खुजाते हुए कहता है – "वॉशरूम मतलब बिटुआ?"


"मतलब टोयलेट पेशाबघर बाबा।"


"अच्‍छा ये बोलो ना तुम्‍हे टंकी खाली करनी है।"


युग चिढ़ते हुए कहता है – "हाँ वही।"


"वो तो नहीं है स्‍टेशन पर, पूरे देश की तर‍क्‍की हो गयी पर मेंदीपथार आज भी वैसा ही है जैसा पहले था।"


"तो फिर में वॉशरूम मतलब टंकी खाली कहाँ पर करूँ?"


"अरे इतनी सारी जगह है कहीं भी कर दो, वैसे भी अंधेरा है कोई नहीं देखने वाला।"


युग थोड़े आगे ट्रेन की पटरी के पास चले जाता है और टॉयलेट करने लग जाता है।


युग टॉयलेट करते हुए कहता है – "वैसे बाबा आपको यहाँ से कहाँ जाना है?"


"रौगंकामुचा"


"मतलब आपको वो किशनोई नदी पार करके जाना पड़ेगा।"


"हाँ।"


"आपको डर नहीं लगता यदि उस यक्षिणी ने आपको पकड़ लिया तो?"


"अरे मैंने कहा ना बिटुआ उसकी वासना खत्म हो चुकी है, वो अब शिकार नहीं करती और वैसे भी आज पूर्णिमा या अमावस्‍या थोड़ी है जो वो मुझे अपना शिकार बनाए।"


"वैसे आप रौगंकामुचा में कहाँ रहते है?"


"रौगंकामुचा में किशनोई नदी का जो घाट है ना वहीं पर रहता हूँ।"


युग कुछ सोचते हुए कहता है – "ये तो वही घाट है ना जहाँ पर वो यक्षिणी भटका करती थी, पापा कहते थे कि अकसर यक्षिणी किशनोई नदी के दोनों घाट के पास ही भटका करती थी।"


कोई जवाब नहीं आता है।


युग फिर पूछता है – "बताईए ना बाबा, आप चुप क्‍यों हो गये?"


बूढ़े का कुछ जवाब नहीं आ रहा था।


युग सोचने लग जाता है कि बाबा कोई जवाब क्‍यों नहीं दे रहे।


युग अपने पेंट की चैन बंद करता है और पीछे मुड़ने लग जाता है। जब वो पीछे मुड़ता है तो उसके रौंगटे खड़े हो जाते है। वो बूढ़ा अचानक से गायब हो गया था। युग के समझ नहीं आ रहा था कि वो बूढ़ा इतनी जल्‍दी कहाँ जा सकता था। युग अपना बैग उठाकर स्‍टेशन पर उस बूढ़े को ढूँढ़ने लग जाता है पर वो बूढ़ा उसे कहीं पर भी नहीं मिलता है।


युग हैरान था यह सोचकर कि वो बूढ़ा एक दम से कहाँ गायब हो गया पर थोड़ी ही देर बाद वो यह सोचकर संतुष्ट हो जाता है कि शायद वो बूढ़ा अकेले ही चले गया होगा और अच्‍छा ही हुआ चले गया वरना यक्षिणी के बारे में बाते करके वो खुद तो डरता साथ में उसे भी डराता।


युग स्‍टेशन से बाहर निकलता है तो देखता है कि स्‍टेशन के बाहर एक भी ओटो रिक्‍सा वाला नहीं था।


"ये गाँव में ना यही प्रॉब्‍लम होती है टैक्‍सी ही नहीं मिलती, शहरो का विकास तो हो रहा है पर गाँव आज भी गाँव ही है जरा सी तरक्‍की नहीं हुई यहाँ की आज भी वैसा का वैसा है जैसे पहले था।"


इतना कहकर युग पैदल-पैदल ही बंगलामुडा गाँव जाने के लिए निकल जाता है। आधे एक घंटे में वह बंगलामुडा गाँव पहुँच जाता है। बंगलामुडा गाँव पार करने के बाद काला झाड़ी जंगल पड़ता है जिसको पार करने के बाद ही किशनोई नदी आती है और वही से थोड़ी दूर पर युग की ग्रेव्‍यार्ड कोठी थी जहाँ पर युग को जाना था। युग ने बंगलामुडा गाँव तो पार कर लिया था पर काला झाड़ी जंगल के अंदर वो फँस गया था। किशनोई नदी जाने का रास्‍ता वो भूल चुका था। काला झाड़ी जंगल में अंधेरा इतना ज्यादा था कि उसके समझ ही नहीं आ रहा था कि कौन सा रास्‍ता कहाँ पर जाता है।


युग जंगल के अंदर लगे बाँस के पेड़ो को देखते हुए कहता है – "अब क्‍या करूँ आगे का रास्‍ता तो भूल गया मैं, दो तीन राउंड मार लिये पर बार-बार घुम कर फिर के यहीं पर आकर रूक जाता हूँ, ये काली झाड़ी का जंगल तो पहेली बन गया है मेरे लिये कुछ समझ नहीं आ रहा क्‍या करूँ।"


युग अपना मोबाईल निकालते हुए कहता है – "यहाँ पर तो नेटवर्क भी नहीं आ रहा कि किसी को फोन करके बुला लू।"


युग के आस-पास साल और बाँस के पेड़ लगे हुए थे। हवा के झोके जब भी इन बाँस के पेड़ो के बीच में से निकलते थे तो ऐसा लगता था जैसे आपस में कोई फुसफुसा रहा हो। मोबाईल के टॉर्च की रोशनी में युग को ज्‍यादा कुछ दिखाई नहीं देर रहा था। युग सोच ही रहा था कि वो क्‍या करे कैसे इस जंगल में से निकले तभी उसे किसी के कदमों की आहट सुनाई देती है।


कदमों की आहट सुनकर युग सहम जाता है और सोचने लग जाता है इतनी रात में इस जंगल में कौन होगा। युग डरने लग जाता है और सोचने लग जाता है कहीं यक्षिणी तो नहीं पर फिर वो अपने दिल को तसल्‍ली देता है नहीं ये यक्षिणी-वक्षिणी कुछ नहीं होती सिर्फ कहानियाँ है जो मेरे पापा ने बनाई थी।


कदमों की आहट धीरे-धीरे तेज होते जा रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे कोई युग के पास आ रहा हो। युग जमीन पर पड़ा बाँस का टुकड़ा उठा लेता है और कदमों की आहट सुनने लग जाता है। तभी युग देखता है कि उसके बगल में जो बाँस के पेड़ लगे हुए थे वो हिल रहे थे और आवाज उसी तरफ से आ रही थी, युग पूरी तरह तैयार हो गया था उस आहट का सामना करने के लिए जैसे ही कदमो की आहट बंद होती है युग की आँखें फटी की फटी रह जाती है, उसके हाथ से बाँस का टुकड़ा अपना आप छुट जाता है और वो खुद डर के मारे झट से जमीन पर गिर जाता है।


युग के सामने एक काला साया खड़ा हुआ था।


युग डरते हुए अपना मोबाईल उठाता है और उसका टॉर्च उस काले साए पर मारते हुए कहता है – "क..कौन हो तुम?"


एक लड़के की आवाज सुनाई देती है – "मैं अभिमन्‍यु।"


जब टॉर्च की रोशनी उस काले साऐ पर पड़ती है तो युग देखता है कि वो काला साया किसी और का नहीं बल्‍की उसी की उम्र के एक लड़के का थी। जिसके लम्‍बे-लम्‍बे घुंघरालू गर्दन तक बाल थे और उसने आँखो में बड़ा सा चश्‍मा पहना हुआ था। उस लड़के के हाथ में कोई डिवाईस था जिसे देखकर ऐसा लग रहा था जैसे कोई रिडींग नापने वाला डिवाईस हो।


अभिमन्‍यु युग की तरफ हाथ बड़ाते हुए कहता है – "उठ जाओ नीचे क्‍यों लेटे हुए हो?"


युग अभिमन्‍यु का हाथ पकड़ते हुए कहता है – "लेटा नहीं हूँ तेरे कारण डर गया था।"


"क्‍या कहा मेरे कारण डर गया था क्‍यों, तु डरपोक है क्‍या?"


"क्‍या बोला तुने…"


इतना कहकर युग अभिमन्‍यु के चेहरे पर टॉर्च मारने लग जाता है। जब युग गोर से अभिमन्‍यु का चेहरा देखता है तो हैरानी के साथ कहता है – "कहीं तुम अभि तो नहीं?"


युग अपनी बात पूरी करता उससे पहले ही अभिमन्‍यु भी युग की तरफ उंगली करते हुए कहता है – "और तुम युग है ना?"


इतना कहकर ही दोनों एक दूसरे के गले मिल जाते है। अभिमन्‍यु युग के बचपन का दोस्‍त था।


युग अभिमन्‍यु के बालों को हाथ लगाते हुए कहता है – "तु तो बहुत बदल गया है यार, बड़े-बड़े बाल, आँखों में बड़ा सा चश्‍मा।"


अभिमन्‍यु कहता है – "बदल तो तु भी गया है बहुत यार, ये बता कब आया और कहाँ जा रहा है तु इतनी रात में?"


"बस आज ही आया, ये मान ले एक-दो घंटे पहले और मैं तो अपने घर ग्रेव्‍यार्ड कोठी जा रहा हूँ, तु बता तु कहाँ जा रहा है इतने सुनसान जंगल में वो भी इतनी रात में और तुने ये बाल इतने बड़ा के क्‍यों रखे है एक पल तो मुझे लगा जैस वो थी।"


अभिमन्‍यु हैरानी के साथ पूछता है – "वो थी मतलब?"


युग बात को घुमाते हुए कहता है – "छोड ना और तु पहले मेरे सवाल का जवाब दे, ये बता तु इतनी रात में यहाँ पर क्‍या कर रहा है, मुझे तो कुछ गड़बड़ लग रही है।"


"यार गड़बड़-वड़बड़ कुछ नहीं है, अगर मैंने बता दिया कि मैं यहाँ पर क्‍या कर रहा था तो तु हँसेगा इसलिए बेहतर होगा कि मत जान।"


"अरे नहीं हँसूगा भाई, पहले तु बता तो यहाँ पर क्‍या कर रहा था?"


अभिमन्‍यु धीरे से कहता है – "मैं यहाँ पर भूत पकड़ रहा था।"


युग को सुनाई नहीं देता और वो फिर पूछता है – "क्‍या कहा?"


अभिमन्‍यु युग के कान में चिल्लाते हुए कहता है –"भूत पकड़ रहा था यार।"


अभिमन्‍यु की बात सुनकर युग जोर-जोर से हँसने लग जाता है और कहता है – "तु पागल हो गया है क्‍या, ये कैसी बात कर रहा है, मुझे लगा तेरी बचपन कि ये आदत भूतो पर विशवास करने की चली गयी होगी और तु अब समझदार हो गया होगा पर तु तो अभी भी नहीं सुधरा यार, पूरा वैसा का वैसा है जैसे बचपन में था, डब्‍बा का डब्‍बा।"


अभिमन्‍यु नाराज़ होते हुए कहता है – "मैंने कहा था ना तु हँसेगा इसलिए नहीं बता रहा था।"


युग को गिल्‍टी फील होने लगता है और वो धीरे से कहता है – "सॉरी यार, चल छोड़ ये बता क्‍या करता है आज कल तु।"


"मेरी गुहाटी में जॉब है अभी छुट्टीयाँ मनाने आया हूँ।"


"गुहाटी में जॉब है पर किस चीज की?"


"अभी तो बताया।"


"क्‍या बताया?"


"भूत पकड़ने की, मैं एक सर्टिफाईड पैरानॉर्मल एक्टिविटी एक्‍सपर्ट हूँ, हम लोग भूत खोजने का काम करते है।"


अभिमन्‍यु की बात सुनकर युग अपनी हँसी रोक नहीं पा रहा था, वो हँसते जा रहा था।


"यार तु हँस क्‍या रहा है, हँस ले जिनको कम नोलेज होती है वो अक्सर अपने से ज्‍यादा नॉलेज वालो को पागल ही समझते है, शायद तुझे पता नहीं है हमारे इंडिया में दस सर्टिफाइड पैरानॉर्मल सोसायटीज है जो भूत खोजने का काम करती है, मैं भी उसी सोसायटी से सर्टिफाईड हूँ समझा।"


युग हँसते हुए कहता है –"फिर ये बता आज तक कोई भूत खोजा या नहीं खोजा?"


"अभी तक तो नहीं खोजा पर जल्‍द खोज लूँगा।"


"और वो कैसे?"


अभिमन्‍यु अपने हाथ का डिवाईस दिखाते हुए कहता है – "इसकी मदद से।"


युग हैरानी के साथ पूछता है – "ये क्‍या है?"


"इसे इलेक्‍ट्रोमैग्नेटिक फील्‍ड मीटर कहते है।"


"मतलब?"


"मतलब यह कि इस मीटर का इस्‍तेमाल एक टाईम के अंदर इलेक्‍ट्रोमैंग्नेटिक फील्‍ड में होने वाले अंतर को जाँचने के लिए किया जाता है। कहते है किसी जगह पर जब भूत प्रवेश करते है तो वहाँ की इलेक्‍ट्रोमैग्नेटिक फील्‍ड में बदलाव आता है, इस तरह भूतों का पता लगाया जाता है इसमें एक अलग तरह का सेंसर भी लगा होता है जो बजता है और हमे बताता है कि हमारे आस-पास कुछ अदृश्‍य शक्तियाँ है।"


युग कुछ बोलता उससे पहले ही वो इलेक्‍ट्रोमैग्नेटिक फील्‍ड मीटर बजने लग जाता है।


युग हैरानी के साथ पूछता है – "ये क्‍या हो रहा है, ये डिवाईस इतनी आवाज क्‍यों कर रहा है?"


अभिमन्‍यु अपने आस-पास देखते हुए कहता है – "ये संकेत है कि हमारे आस-पास कुछ है।"


युग धीरे से कहता है – "मतलब भूत!"


"हाँ!!"