वीर प्रताप और रुक्मणी की नज़र उन पर पड़ने के बाद कुमुदिनी तिलक से अलग हुई और उसे बाय करते हुए धीरे से कहा, "भैया कल मिलोगे?"
"हाँ कुमुद बिल्कुल मिलूँगा।"
जैसे ही कुमुदिनी ऊपर आई रुक्मणी ने सवालों की झड़ी लगा दी, "कौन था वह? बीच सड़क पर यह क्या कर रही थीं। तुम्हें शर्म आनी चाहिए। अपने पापा की इज़्जत का तुम्हें जरा भी ध्यान नहीं रहा। पूरे शहर में सब कितनी इज़्जत करते हैं उनकी और तुम?"
"माँ मेरी बात तो सुनो, आप ग़लत सोच रही हो। वैसे भी मैंने किया ही क्या है? दोस्तों के गले लगना कोई शर्म की बात नहीं होती।"
उसके बाद कुमुदिनी ने वीर की तरफ़ देखते हुए कहा, "माँ वह तिलक है और मैंने उसे अपना मुँह बोला भाई माना है। भगवान ने मुझे भाई नहीं दिया ना, तो मैंने ख़ुद ही ढूँढ कर बना लिया।"
"भाई माना है? क्यों ऐसा बोल रही है। वरुण भी तो है, क्या वह नहीं है तेरा भाई?"
"है माँ पर पता नहीं क्यों मुझे तिलक से बहुत अपना पन मिलता है और अपने भाई के गले मिलना ग़लत नहीं होता ना माँ। पंद्रह दिनों बाद रक्षा बंधन है और उस दिन मैं आप लोगों के सामने उसे राखी बाँधूंगी।"
कुमुदिनी की बातें सुनकर वीर प्रताप ने अपने शरीर का नियंत्रण खो दिया और धड़ाम से बालकनी पर लगे हुए झूले पर बैठ गए। रुक्मणी को लगा शायद वह दृश्य देखकर उन्हें आघात लगा है। लेकिन कुमुदिनी जानती थी कि उसके पिता गश खाकर इस तरह निर्जीव से क्यों हो गए हैं। उसने तुरंत ही डॉक्टर को फ़ोन किया।
डॉक्टर ने आकर वीर प्रताप को देखने के बाद कहा, " चिंता की कोई बात नहीं है, अचानक थोड़ा ब्लड प्रेशर बढ़ गया था। वीर प्रताप जी क्या कोई तनाव है आपके दिमाग में?"
"नहीं-नहीं ऐसी तो कोई बात नहीं है।"
बीच में रुक्मणी ने कहा, "तनाव की बात ही मत करो डॉक्टर साहब पूरा बिज़नेस इनके ही कंधों पर तो है ऊपर से कॉलेज के ट्रस्टी होने के कारण वहाँ की भी कुछ ना कुछ समस्या आती ही रहती हैं। सभी की चिंता भी बहुत करते रहते हैं।"
डॉक्टर ने कहा, " वीर प्रताप जी अपने आप को तनावमुक्त रखने की कोशिश कीजिए। मैं कुछ दवाइयाँ लिख देता हूँ ले लेना।"
उधर तिलक जब घर पहुँचा तो रागिनी ने उसके आते ही उससे पूछा, " तिलक तुमने कुमुद को सारी सच्चाई क्यों बताई? मैं समझ सकती हूँ कोई तो कारण होगा लेकिन वह कारण मैं जानना चाहती हूँ बेटा?"
"माँ यदि मैं उसे यह सच नहीं बताता तो अनर्थ हो जाता। माँ वह पगली मुझे प्यार . . . ," इतना कह कर वह चुप हो गया।
रागिनी ने कहा, "तिलक बेटा तुमने बिल्कुल ठीक किया। भाग्य भी कैसे-कैसे दिन दिखाता है।"
उसके बाद धीरे-धीरे चुनाव का समय नज़दीक आ रहा था। कुमुदिनी शांत थी वह ना वरुण की तरफ़ थी ना ही तिलक की तरफ़। इस चुनाव में वरुण ने बढ़-चढ़ कर अपना प्रचार किया। वरुण के साथ-साथ तिलक भी अपनी जीत के लिए जोर-शोर से प्रचार कर रहा था। चुनाव का दिन भी आ गया और उसके बाद परिणाम भी आ गए। जीत तिलक की झोली में आई।
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः