Forgotten sour sweet memories - 6 in Hindi Biography by Kishanlal Sharma books and stories PDF | भूली बिसरी खट्टी मीठी यादे - 6

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भूली बिसरी खट्टी मीठी यादे - 6

धनी राम जी हेड पोस्ट मास्टर से मिलकर बोले,"अनपढ़ मा को दे सकते हो और जो लड़का आठवी मे पढ़ रहा है।उसे मनी आर्डर क्यो नही दे सकते?"
और मुझे मनी आर्डर देना पड़ा।
उन दिनों प्रसारण मंत्रालय द्वारा पिक्चर भी दिखाई जाती थी।हमारे क्वाटर के सामने पार्क था।और काफी जगह भी खाली थी।अक्सर वही पर स्क्रीन लगाया जाता था। हमारे क्वाटर के बाई तरफ कुछ फासले पर भी क्वाटर थे।एक क्वाटर में एक नर्स और एक आदमी रहते थे।किसी से वह बोलते नही थे।कुछ दिनों बाद उसमें एक नर्स और आ गयी।पहली वाली नर्स गोरी और सुंदर थी।जबकि दूसरी काली।कुछ दिनों बाद पहली नर्स शायद छुट्टी लेकर गांव गयी थी।कुछ दिनों बाद वह लौटी।क्वाटर का दरवाजा बंद था।लेकिन खिड़की खुली थी।गोरी नर्स ने खूब दरवाजा थपथपाया पर दरवाजा नहीं खुला था और वह नर्स हारकर चली गयी।
आगे बढ़ने से पहले मैं अछनेरा का एक किस्सा सुनना चाहता हूँ।पिताजी को स्टेशन के सामने क्वाटर मिला हुआ था।बगल वाले क्वाटर में पिताजी के विभाग का ही हवलदार रहता था।वह मद्रासी था।उन दिनों शराब का चलन आज जैसा नही था।कम ही लोग पीते थे।होली के दिन उस मद्रासी ने कुछ ज्यादा ही पी ली।शराब के नशे में उसने कुछ बहुत ही बेहूदी हरकते कर दी।लोगो ने जबरदस्ती उसे क्वाटर में बंद कर दिया।नशा उतरने पर उसे अपनी गलती का एहसास हुआ और रोज पीने वाले ने शराब छोड़ दी।जब वह ट्रांसफर होकर गया तब भी उसने शराब नही पी।
अजमेर में मेरे दो और भाइयों का जन्म हुआ था।दोनो जुड़वा थे।उन दिनों अजमेर में तीन सिनेमा हॉल प्रभात,मैजेस्टिक और प्लाजा थे।बाद में श्री और अजंता बने।पिक्चर का मुझे काफी शौक रहा।अजमेर में आनासागर या बजरंग गढ़ न गए ती फिर क्या।होने को वहाँ दरगाह भी है।यू तो मै न जाने कितनी बार अजमेर गया हूँ।ससुराल है तो अब भी जाता रहता हूँ।लेकिन दरगाह नही जाता।क्यो नही जाता?इसे आप खुद ही समझ ले। बाद में हमारे पड़ोसी धनी राम का ट्रांसफर हो गया और उस क्वाटर में कैलाश रहने के लिए आ गए थे।कैलाश जवान थे और ज्यादा समय नौकरी में आये नही हुआ था।मेरी और उनकी उम्र में अंतर था।लेकिन वह मेरे से ऐसे बात करते मानो हम हमउम्र दोस्त हो।वह मॉडर्न पत्नी चाहते थे।इसलिए कई लड़कियां उन्होंने रिजेक्ट की।इनके बड़े भाई महावीर भी बांदीकुई में ड्राइवर थे। ये बाद में मेरे रिश्ते में साले बने क्योकि यह मेरी पत्नी के कजिन थे। अजमेर से नवी क्लास पास ही कि थी कि पिताजी का अजमेर से ब्यावर ट्रांसफर हो गया।ब्यावर अजमेर से आगे है।यहाँ आने पर स्टेशन के सामने ही क्वाटर मिल गया था।बगल में ही स्टेशन मास्टर का क्वाटर था।वह ईसाई थे।उनके बच्चों के साथ मे हम भाई बहन खेलते थे।ब्यावर में दसवीं क्लास में मेरा एड्मिसन सरकारी मल्टी परपज हायर सेकंडरी स्कूल में करा दिया गया।उस समय वहाँ के प्रिंसिपल दुर्गा प्रसाद थे।बाद में वह मेरे कजिन रमेश के साले बने।
यह मैं बात सन 65 और 66 कि कर रहा हूं।उन दिनों इंद्रा गांधी सूचना मंत्री थी।वह सड़क मार्ग से आयी थी और ब्यावर से उन्हें मेल पकड़ना था।तब सुरक्षा का ज्यादा ताम झाम नही होता था।