Forgotten sour sweet memories - 7 in Hindi Biography by Kishanlal Sharma books and stories PDF | भूली बिसरी खट्टी मीठी यादे - 7

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भूली बिसरी खट्टी मीठी यादे - 7

तब ब्यावर में कोई वेटिंग रूम नही था।इंद्रा गांधी आर पी एफ आफिस में ही कुछ देर बैठी थी।मैं भी देखने के लिए गया था।उस समय लाल बहादुर शास्त्री प्रधान मंत्री थे।उन दिनों ही टेरेलिन के कपड़े की शुरुआत हुई थी।
मेरा स्कूल घर से दूर था।मैं पैदल ही स्कूल आता जाता था।उस समय अनाज की समस्या थी।तब शास्त्रीजी ने सप्ताह में एक दिन एक समय उपवास की अपील की थी।
मैं शास्त्रीजी के जीवन से काफी प्रभावित रहा।सन 1965 में पाकिस्तान ने भारत पर हमला कर दिया था।उसी समय पिताजी ने रेडियो खरीदा था।बुश कम्पनी का रेडियो उस समय दो सौ रु का आया था।लड़ाई के समाचार रेडियो पर सुना करते थे।
उस समय हमारे प्रधान मंत्री ने साहस दिखाया और पाकिस्तान को पटखनी दे दी।अभी तक मुझे याद है।11 जनवरी को मेरा अंग्रेजी का पेपर था।दसवीं क्लास के अर्धवार्षिक परीक्षा चल रही थी।शास्त्रीजी रूस गए हुए थे।ताशकंद में भारत और पाकिस्तान के प्रधान मंत्री के बीच वार्ता के लिए रूस ने बुलाया था।और शास्त्रीजी की मौत का समाचार आया।और उस दिन परीक्षा रद्द हो गयी थी।उनकी मौत का रहस्य आज तक बना हुआ है।उनकी मौत के बाद इंद्रा गांधी भारत की प्रधान मंत्री बनी थी।
मेरे पिताजी कांग्रेसी थे।ताऊजी स्वतन्त्र पार्टी को पसंद करते थे।
उन दिनों फ्लेक्स कम्पनी का भी नाम था।ब्यावर की तिल पपड़ी भी मशहूर थी।आज भी है।यहां से हाई स्कूल राजस्थान बोर्ड से पास करने के बाद पिताजी का ट्रांसफर आबूरोड हो गया।यहाँ भी माता घर मे रेलवे कॉलोनी में पिताजी को क्वाटर मिल गया था।इस क्वाटर में एक आम का पेड़,एक अंजीर का पेड़ और एक पपीते का पेड़ था।आम खूब आते थे और अंजीर टूट कर गिरते रहते।आज जब जरूरत पड़ने पर अंजीर खरीदता हूँ और भाव सुनता हूँ तब उन दिनों की याद ताजा हो जाती है।
आबूरोड में रेलवे का हायर सेकंडरी तक स्कूल था।इस स्कूल में मेरा एड्मिसन करा दिया गया।
पहले हम गए तब आर पी एफ आफिस स्टेसन के बाहर था।लेकिन बाद में पिताजी के समय ही स्टेशन पर आर पी एफ आफिस बन गया था।
आबूरोड दो वजह से और जाना जाता है।माउंट आबू हिल स्टेशन है।यहां का सनसेट और देलवाड़ा के जैन मंदिर भी प्रसिद्ध है।यहां पर नक्की झील भी है।और सबसे ज्यादा प्रसिद्ध होने का एक और कारण भी है।यहां पर ब्रह्मा कुमारी का प्रधान स्थान भी है।आबू रोड से ही अम्बे माता के मंदिर जाने का रास्ता है।उन दिनों ही आबू रोड़ में छोटी लाइन के डीजल इंजनों के लिए डीजल शेड बना था।यहाँ पर डी एम ई की पोस्ट रखी गयी और सिंह की पोस्टिंग हुई थी।उनकी पत्नी रेलवे अस्पताल में डॉक्टर थी।आबू रोड़ में संगमरमर के पत्थर का भी काम होता था।यहाँ की रबड़ी भी मशहूर थी।
पहले कुछ किस्से स्कूल के।हमारे साथ छः लड़कियां भी ग्यारहवीं क्लास में पढ़ती थी।पूरी छः के नाम तो याद नही।लेकिन माया को नही भूल सकता।माया मॉडर्न और फॅशनबल थी।उसे कपड़े बदलने का बड़ा शौक था।वह हाफ टाइम में घर खाना खाने जाती और कपड़े चेंज करके आती।स्कूल का कोई ड्रेस कोड नही था।इसलिए सब अपनी अपनी मर्जी के कपड़े पहन कर आते थे