Forgotten sour sweet memories - 10 in Hindi Biography by Kishanlal Sharma books and stories PDF | भूली बिसरी खट्टी मीठी यादे - 10

Featured Books
  • अपराध ही अपराध - भाग 24

    अध्याय 24   धना के ‘अपार्टमेंट’ के अंदर ड्र...

  • स्वयंवधू - 31

    विनाशकारी जन्मदिन भाग 4दाहिने हाथ ज़ंजीर ने वो काली तरल महाश...

  • प्रेम और युद्ध - 5

    अध्याय 5: आर्या और अर्जुन की यात्रा में एक नए मोड़ की शुरुआत...

  • Krick और Nakchadi - 2

    " कहानी मे अब क्रिक और नकचडी की दोस्ती प्रेम मे बदल गई थी। क...

  • Devil I Hate You - 21

    जिसे सून मिहींर,,,,,,,,रूही को ऊपर से नीचे देखते हुए,,,,,अपन...

Categories
Share

भूली बिसरी खट्टी मीठी यादे - 10

लेकिन मैं ज्यो ही वार्ड के दरवाजे पर पहुंचा।मुझे रोक दिया और दरवाजा बंद हो गया था।यो तो दीवाली की छुट्टी थी लेकिन पिताजी के एडमिट होने का समाचार मिलते ही सी एम ओ और अन्य डॉक्टर आ गए थे और सब वार्ड में थे।
कुछ देर बाद एक नर्स मेरे पास आई और बोली,"आपके पिताजी का नाम क्या था?"
और इस था ने मेरा संसार मुझ से छीन लिया था।मेरे सिर से पिता का साया उठ गया था।पिताजी के गुज़र जाने की खबर आग की तरह फैल गयी थी।
मैं समझ नही पा रहा था।पिताजी ने क्यो मुझे भेज दिया और फिर क्यो तुरन्त बुलवाया था।आखिर इस दुनिया से जाने से पहले वह मुझ से क्या कहना चाहत्ते थे।और मुझे यह गम आज तक सालता रहता है।काश मैं पिताजी के कहने पर घर न आया होता।स्टाफ वहां के लोगो और पिताजी के परिचित और मित्रों के सहयोग को मैं आजीवन नही भूलूंगा।
पिताजी के पार्थिव शरीर को घर पर लाया गया था।सेकड़ो लोग साथ थे।कॉलोनी में जहाँ से भी लाया गया वह के लोग व्यथित थे।वजह पिताजी का नम्र स्वभाव और सज्जनता थी।क्वाटर में आगे के कमरे में बर्फ की सिल्ली पर रखा गया था।बांदीकुई में बड़े ताऊजी को रेलवे फोन से सूचित कर दिया गया था।मेरी माँ एक ही बात रोते हुए दोहरा रही थी,"मेरे राम लक्ष्मण अब किसका इन्तजार करेंगे।
मेरे सबसे छोटे भाई जो जुड़वा है।उस समय पास साल की उम्र के थे।पिताजी सुबह आठ बजे घर से जाते और दोपहर करीब एक बजे लंच के लिए घर आते थे।फिर वह तीन या चार बजे जाते और रात को नौ बजे वापस आते।
दोपहर में पिताजी के आने का समय से पहले ही दोनों भाई सड़क के मोड़ पर खड़े होकर पिताजी के आने का इन्तजार करते।पिताजी के गुज़र जाने पर माँ रो रही थी।भाई बहन रो रहे थे लेकिन मेरी आँखों मे आंसू नही थे।लोगो ने मुझे रुलाने का भरसक प्रयास किया लेकिन मेरी आँखों मे आंसू नही आये।मुझे खिलाने की भी कोशिश की लेकिन मैंने न कुछ खाया न ही पिया।न मैं सोया।
दिल्ली से अहमदाबाद के लिए मीटर गेज की गाड़ी 3अप चलती थी।यह गाड़ी बांदीकुई से 3 बजे चलती और आबूरोड सुबह पांच बजे आती थी।इस ट्रेन से मेरे ताऊजी और अन्य रिश्तेदार आ गए और रुदन चालू हो गया था।इसी ट्रेन से सिन्हा साहिब जो आर पी एफ के अजमेर मण्डल के असिस्टेंट सिक्योरिटी अफसर थे।पिताजी की अंतिम यात्रा में सम्मिलित होने के लिए आबूरोड आ गए थे।उस समय पश्चिम रेलवे के चीफ सिक्योरिटी अफसर वारियर साहब थे।रेलवे के फंड से 3 हजार रु की आर्थिक मदद मुझे तुरन्त एक सैनिक लेकर मुम्बई से आया था।
दिवाली की दोज के दिन पिताजी का अंतिम संस्कार किया गया था।तब सिन्हा साहब ने मेरे ताऊजी से कहा था,"इसकी बी एस सी पूरी करना।पढ़ाई बीच मे मत छुड़वाना।"
लेकिन मैंने आगे पढ़ने से मना कर दिया था।मैं जानता था।पढ़ाई के लिए पैसा चाहिए और माँ भाई बहन की पढ़ाई और खर्च के लिए भी पैसा।हालांकि उन दिनों पढ़ाई में ज्यादा पैसा नही लगता था।पर आय भी तो तब कम थी और पिताजी के गुज़र जाने से आय का जरिया बंद और पेंशन थी नही।