Meri Girlfriend - 2 in Hindi Short Stories by Jitin Tyagi books and stories PDF | मेरी गर्लफ्रैंड - 2

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मेरी गर्लफ्रैंड - 2

चैप्टर - 2


दो साल पहले जुलाई का महीना

पहली हाई सैलरी नौकरी का पहला दिन था। जिसे साप्ताहिक भाषा में मंगलवार और तारीक के विवरण के अनुसार उन्नीस जुलाई कहेंगे। यानी कि जोइनिंग का दिन था, वैसे मुझे नौकरी किसी बड़ी फर्म, कंपनी, या व्यावसायिक ऑफिस में नहीं मिली थी। बल्कि मेरी नौकरी एक सिल्वर एंड गोल्ड हॉलमार्किंग सेंटर पर लगी थी। जिसे एक तरह की दुकान ही कह सकते हैं। जो गोल्ड और सिल्वर को बाजार में बिकने के लिए कानूनी जामा पहनाती थी। पर मेरी किस्मत अच्छी थी। शायद इसलिए ही मुझे वहाँ काम ऑफिस का ही मिला था। और इस काम को तकनीकी भाषा में assay technician कहते थे।, मैं उस हॉलमार्किंग सेन्टर पर उन बिलों को तैयार करने के सहायक के रूप में नामांकित हुआ था। जिनकी, भारत सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त विभाग BIS(bureau of Indian standard) के लेखा परीक्षक अधिकारियों द्वारा अपनी बाज़ जैसी नज़रों से हर दो साल में जाँच की जाती थी।

जोइनिंग के दिन राजन(दुकान का मालिक) को प्रभावित करने के उद्देश्य से, मैं तय समय से आधा घण्टा पहले दुकान पर पहुँच गया था। वहाँ पहुँचकर मैंने देखा, एक लड़की जिसने पीले रंग का सूट पहन रखा था बड़े इत्मीनान से, दुकान(हॉलमार्किंग सेंटर) के सामने वाली दुकान के बराबर में पड़ी बेंच पर बैठकर कैंडीक्रश खेल रही थी। जब मैं उसके पास पहुँचा, तो उसने मेरी तरफ बड़ी उदासीन सी नज़रों से देखकर अपनी नज़रें हटा ली, जिनमें मेरे मुताबिक तो कोई भी हलचल नहीं थी। ये नज़रे कुछ ऐसी थी। जैसे वह किसी बस स्टॉप पर अपनी बस के इन्तज़ार में बैठी हो और उस बस का आने का कोई निश्चित समय ना हो, और मैं वहाँ से गुजरने वाला एक ऐसा मुसाफिर हूँ जिसकी तरफ ज्यादा देखने पर, वो उससे बेमतलब के सवाल पूछने लगेगा जिनका उसके लिए कोई मतलब नहीं है। इसलिए उसने मेरे अस्तित्व को नकारते हुए अपने मोबाइल पर चल रही आभासी खेल प्रतियोगिता में ध्यान लगाना जरूरी समझा। लेकिन जब मैं भी उसी बस के इंतज़ार में जिसका समय निश्चित नहीं था वहाँ उसके बराबर में बैठकर चारों तरफ गर्दन घुमाकर देखने लगा, तो उसे मेरी इस क्रिया से एक खिन्न सी पैदा हुई। जिसके एवज में उसने कहा, “ये जगह इतनी भी खूबसूरत नहीं हैं। जो इतनी बार गर्दन घुमा-घुमाकर देखी जाए; कहीं दूसरी दुनिया से पहली बार तो इस पृथ्वी पर नहीं आए तुम”

मैं जो अब तक उस लंबी सी गैलरी को कई बार पूरा देखकर भी आधे से भी कम देखने का संशय मन में लिए, उस गैलरी को पूरा देखने की चेष्टा लेकर बैठा था। एक दम से बोला, “क्या कहा आपने?

मेरे इस जवाब से उसने सोचा लड़का ढीला हैं। इसलिए वो वापस, बिना कुछ कहे अपने कैंडी क्रश के नए लेवल में लग गई थी। थोड़ी देर तक एक शांति बनी रही मुझे लगा दूसरी तरफ से अब कुछ और पूछा जाएगा। जिसके लिए मैं खुद को पूरी तरह तैयार कर चुका था। लेकिन जब उधर से लगातार एक निरीह भाव संचरण होकर मेरी तरफ आता रहा तब मैं खुद ही परेशान होकर बोल पड़ा, “मैं आज पहली बार यहाँ जॉब करने आया हूँ, मतलब आज ही मेरी जोइनिंग हैं।“

उसने बिना कैंडी क्रश से ध्यान हटाएँ बड़े निरीह भाव से कहा, “कौन सी दुकान में, यहाँ तीन फ़्लोर हैं।“

मैंने बड़े अच्छे ढंग से बताया, “ये जो सामने वाली दुकान हैं। इसमें, लक्ष्मी सिल्वर एंड गोल्ड हॉलमार्किंग सेंटर

उसने कैंडी क्रश पर चलती उंगलियों को रोकते हुए कहा, “क्या काम मिला हैं?”

उसके लगातार दो सवाल पूछने पर मुझे लगा अब सही हैं, बातों का सिलसिला चल पड़ा, इसलिए मैंने बातों में पूरी तरह इंट्रेस्ट लेते हुए कहा, “कोई लड़की हैं। जो assay head हैं। यहाँ पर, मुझे उनके अस्सिस्टेंट के तौर पर रखा हैं।“

इस बात को कहकर मैंने गिनकर दस सेकंड तक उसके चेहरे को देखा और फिर बोला, “तुम जानती हो उन्हें”

उसने अबकी बार कैंडी क्रश को बंद करकर मोबाइल को स्क्रीन की तरफ से बेंच पर रखा, अपने सूट को नीचे खिंचा, चुन्नी को गले से निकालकर बैग में रखा और मुझसे से पूरी तरह मुख़ातिब होते हुए बोली, “इस पूरी बिल्डिंग के हर फ्लोर पर काम करने वाली हर लड़की को मैं जानती हूँ।“

“ अच्छा! तुम यहीं कहीं किसी दुकान में काम करती हो”

उसने कहा, “हम्म्म्म्म”

“तो जो इस सामने वाली दुकान में काम करती हैं। वो कैसी हैं। आदत में……ज्यादा डांटती तो नहीं”

उसने कहा, “डांटना तो दूर की बात, इतनी अच्छी आदत हैं। उसकी, एक बार में पसंद आ जाती हैं। सबको, जो भी उससे मिलता हैं।“

“अच्छा! और चेहरे से दिखने में कैसी हैं। मतलब सुंदर हैं।“

उसने कहा, सुंदर हैं। या नहीं, पता नहीं, और ये इतना जरूरी भी नहीं, क्योंकि ये सुंदरता जैसे शब्द तो उभरती जवानी की तरफ बढ़ती उम्र की पहचान हैं। और गुज़रती जवानी की तरफ बढ़ती उम्र की गुमनामियाँ, इन जैसी चीजों से कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए किसी भी इंसान को चाहे वो लड़का हो या लड़की, लेकिन एक बात जरूर कहूँगी। उसका रंग काला हैं।

“काला रंग”

क्यों काला रंग बुरा हैं। जो ऐसे अजीब सी शक्ल बना कर बोल रहा हैं।

“नहीं,… मुझे लगा जितना तुमने भाषण दिया। उस हिसाब से वो बहुत ज्यादा सुंदर होगी। लेकिन तुमने तो भाषण के अंत में उम्मीदों पर पानी फेर दिया।“

उसने कहा, “तो तेरे हिसाब से काली लड़कियाँ बेकार होती हैं।“

“नहीं, मैंने ऐसा कुछ नहीं कहा, लेकिन लड़की सुंदर हो, और गौरी हो तो अच्छा लगता हैं। उसके साथ…..जैसा भी तुम्हारा रिलेशन हो, निजी या सार्वजनिक”

उसने कहा, “तो साफ बोलना तुझे गोरी लड़की चाहिए। अपनी निजी ज़िन्दगी में भी और सार्वजनिक ज़िन्दगी में भी”

“इस बात में बुराई क्या हैं? अपने लिए कुछ चाहने में, अब कौन हैं। ऐसा इंसान, जिसे कुछ अच्छा मिल रहा हो ज़िंदगी में और वो मना कर देगा।…वैसे भी लड़कियां खुद भी तो चाहती हैं। गौरा होना, वरना ये ब्यूटी पार्लर क्यों खुले है।“

उसने कहा, “तु ज्यादा नहीं बोलता कुछ”

देखो, मैं आपको नहीं कह रहा हूं। आप बेवजह गुस्सा हो रही हो, मैं तो उसे कह रहा हूं। जिसके साथ मुझे काम करना हैं।

उसने कहा, “काला रंग हैं। उसका, ये बात सुनकर ‘उन्हें’ से ‘उसे’ पर आ गया”

“आप भी तो मुझे तुम से तू पर गई।“

एक काम कर अब चुप हो जा, थोड़ी देर में दुकान खुलेगी सामने वाली, उसमें अंदर चले जाना