girlfriend for me - 5 in Hindi Short Stories by Jitin Tyagi books and stories PDF | मेरी गर्लफ्रैंड - 5

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मेरी गर्लफ्रैंड - 5

चेप्टर - 5


अब पाँच अगस्त तक सबकुछ ठीक- ठाक चलता रहा था। हमने उन चीज़ों के बारे में बात करना बंद कर दिया था जो परेशानी का कारण बनती थी। हम केवल अपनी ही चर्चा किया करते थे। इस बीच दो अच्छी बातें हुईं थी। पहली उसने चार बजे की बजाए अब साढ़े पाँच बजे ऑफिस से जाना शुरू कर दिया था। और दूसरी हमने फोन पर एक-दूसरे के साथ बहुत ज्यादा वक़्त बिताना शुरू कर दिया था।


अब आ गया था उस साल का फ़्रेंडशिप डे जो उस साल सात अगस्त को पड़ा था। यानी कि नौकरी का बीसवाँ दिन, सुबह से ही बड़ी कशमकश से भरा हुआ था। एक तो रिसेप्शन वाले लड़के(मुकुल) ने एक दिन पहले अंतिम के बारे में मुझे जाने क्या-क्या बता दिया था। जिस वजह से मैं, परेशान हो रहा था कि अंतिम ने मुझसे अब तक कितना कुछ छुपाया हैं। और दूसरी तरफ अंतिम मैसेज कर-करकर, क्योंकि रात से मैंने उससे बात नहीं की थी। बार-बार पूछे जा रही थी। मेरे लिए क्या गिफ्ट लेकर आ रहा हैं।


ऐतिहासिक काल से लेकर अब तक शक हमेशा ही हत्या का रूप लेता रहा हैं। और हत्या के बाद रह गया हैं। तो बाद में फुरसत में पछताना, फ्रेंडशिप डे के दिन मेरी हालत इतनी बुरी तो नहीं हुई थी। कि मैं ऑथेलो का रूप धरकर अपनी डैसीमडोना की हत्या कर देता, लेकिन हालत कुछ ठीक भी नहीं थी। इसलिए मैं उस दिन ना उसके लिए गिफ्ट लेकर गया और ना ही जाकर उससे बात की, मैंने अपना पूरा दिन उससे अलग, रिसेप्शन वाली लड़की के साथ बिता दिया था। वो पूरा दिन मेरा इंतज़ार करती रही थी। कि मैं आऊँगा और उसका गिफ्ट उसे दूँगा। पर मैं नहीं गया। तकलीफ देता रहा था। उसे मैं पूरा दिन

वैसे ये एक तरह से अच्छा ही था। क्योंकि अगर मैं उसके पास जाता और उससे बात करता, तो अपने गुस्से के कारण, उसे बेवजह परेशान ही करता। क्योंकि रिसेप्शन वाली लड़की के साथ बात करने पर मुझे पता चला कि हर कोई किसी से कुछ चाहता हैं। और जब नहीं मिलता तो उसे बदनाम कर देता हैं। लड़कियों के मामले में तो ख़ासकर


*****

मैं इस कहानी में कुछ ज्यादा ही आगे बढ़ गया। या ये कहे जैसे इस कहानी में सिर्फ दो ही लोग हो, लेकिन ये कहानी एक पूरे हॉलमार्किंग सेन्टर के अंदर की दास्तान हैं

इस हॉलमार्किंग सेन्टर को खुले हुए मात्र दो साल हुए थे।, इसे खोलने के पीछे कोई बिजनेस करने का आईडिया नहीं था। बल्कि एक सोची समझी तरकीब थी। जिससे बेरोजगार राजन इधर-उधर टाइम पास करने से अच्छा कुछ काम करें। और इस तरकीब की कर्ता-धर्ता राजन की पत्नी थी। राजन की पत्नी जिसका सरला करकर कुछ नाम था। जिसे राजन के सामने लेना, अपनी नौकरी दाँव पर लगाने जैसा था। जिसके पीछे कारण यह था। कि राजन की पत्नी का अफेयर अपनी बड़ी बहन के पति के साथ चल रहा था। पर इसकी वजह राजन खुद था। क्योंकि जब ये हॉलमार्किंग सेन्टर खुला ही था। तो इसमें एक इंदिरा नाम की लड़की रिसेप्शन पर काम करती थी। जिसके साथ राजन की आंखें चार हो चुकी थी। बस इसी के जवाब में राजन की पत्नी ने अपने जीजा से सम्बन्ध बना लिए थे। जिसकी निशानी मेरे नौकरी पर लगने से दो महीने पहले, राजन के घर में आया तीसरा बच्चा था। पर राजन इस बारे में कुछ नहीं कर सकता था। क्योंकि ये हॉलमार्किंग सेन्टर उसके ससुर के द्वारा उसके लिए खुलवाया गया था। जिसकी दस्तावेजों में मालिक उसकी वाइफ थी। और वो मालिक कम नौकर ज्यादा था।

अब इतनी परेशानियाँ जिसकी ज़िन्दगी में हो, उसे भी तो खुश रहने के लिए कोई वजह चाहिए। बस इसी खुश रहने की वजह के रास्ते पर चलकर राजन ने मेरी नौकरी लगने से एक महीने पहले, रिसेप्शन पर एक नई लड़की जिसका नाम अल्का था। उसे रखा था। हालांकि, रिसेप्शन पर मुकुल अकेला ही सब कुछ बड़े अच्छे से संभाल रहा था। फिर भी अल्का को रिसेप्शन पर जगह दी गई। जिससे इस उथल-पुथल भरी ज़िन्दगी में राजन अपना सुकून तलाश सकें।

इस अल्का की सैलरी वहाँ, सबसे ज्यादा अठारह हज़ार थी। और बाकी सब जो इस सेन्टर के, खुलने के पहले दिन से अपनी सेवाओं को मूर्त रूप दे रहे थे। वो अभी तक ग्यारह हजार तक भी नहीं पहुँचे थे। आखिरकार, मुझे खुद आठ हजार मिल रहे थे। वैसे, इस सैलरी की गुप्तता को सार्वजनिक करने वाला शख्स मैं ही था। जिसने एक दिन राजन की गलती से बाहर छुटा रजिस्टर पढ़ लिया था। जिसमें सैलरी और अटेंडेंस लिखे हुए थे।, अल्का की सैलरी सबसे ज्यादा हैं। इस बात का पता चलते ही, बाकी सबको उससे अंदर ही अंदर नफरत हो गयी थी। हालांकि वो उसे दिखाई नहीं जाती थी।

ये अल्का भी शादी-शुदा थी। और इसका गृहनगर यूपी में आजमगढ़ था।, ये अपने पति को छोड़कर, जो शराबी था। यहाँ, दिल्ली में अपनी चार साल की बच्ची के लिए, जो इसकी माँ के पास थी। नौकरी कर रही थी।, पर नौकरी तो वो दिखाने के लिए थी। जिसकी ताकीद उस दिन हुई थी। जब इसने aasif qureshi को acif kuresi लिखा था। और इस बात की राजन को छोड़कर सबने मजाक उड़ाई थी। क्योंकि, अगर राजन मजाक लेता। तो दिल, किससे बहलाता। लेकिन अफसोस राजन की उम्मीदें, नाउम्मीदी में उस दिन बदल गयी। जब अचानक एक दिन बाइक से मुकुल द्वारा अल्का को लक्ष्मी नगर छोड़ा गया था। उस एक घंटे के सफर के बाद अल्का को मुकुल से क्रश हो गया था। बस तभी से अल्का, राजन का दिल कम बहलाती और गुस्सा ज्यादा दिलाती थी। और राजन इस गुस्से को इस पर ना निकाल कर, बाकी सब पर माँ- बहन की गलियों में निकालता था।

क्रश अल्का को हुआ था। मुकुल को नहीं, क्योंकि, मुकुल तो पहले से खुद को, शीतल के पास गिरवी रख चुका था। जो फूडपांडा काल सेन्टर में काम करती थी। इसलिए वो शीतल की क़िस्त पूरी करें। अल्का के पास, खुद को बेच नहीं सकता था। जिस कारण उसने इन सब से खुद को अलग ही रखना बेहतर समझा। और उस दिन के बाद से अल्का को कभी अपनी बाइक की पिछली सीट पर नहीं बैठाया

इस हॉलमार्किंग सेन्टर के दो हिस्से थे। एक आउटडोर और दूसरा इंडोर, मैं आउटडोर हिस्से में राजन, अल्का, नीरज, मुकुल, अंतिम के साथ काम करता था। इसलिए वहाँ, के किस्से मुझे जल्दी पता चल गए। पर इंडोर के हिस्से में कुछ ऐसे राज छिपे थे। जो मुझे थोड़ा परेशान करने वाले थे। बस ये ही वो राज थे। जो मुझे फ्रेंडशिप डे से एक दिन पहले पता चले थे।

इंडोर जगह पर, पूरा दिन तीन बन्दे काम करते थे। सैंपल लेने वाला सुधीर, टंच करने वाला हिमांशु और हॉलमार्क करने वाला सुमित

सुमित एक शादीशुदा सीधा सा तीस से ऊपर का बन्दा था। अपनी किस्मत पर रोने वाला, जिसकी ज़िन्दगी की बचपन से एक ख्वाहिश, सुजुकी कंपनी की अपनी निजी बाइक लेनी थी। पर वो ख्वाहिश कब पूरी होगी। इस बात को केवल ईश्वर जानता था। और हिमांशु वो था। जो कभी अंतिम से प्यार करता था। लेकिन अंतिम ने उसके प्रपोज़ल को ठुकरा दिया था। और इस प्रपोज़ल को ठुकराने के पीछे सुधीर था। जो रिश्ते में मुकुल के चाचा का लड़का था।

सुधीर और अंतिम की प्रेमकहानी हॉलमार्किंग सेन्टर क्या पूरे करोलबाग में मशहूर थी। इन दोनों के बीच प्रेम प्रसंग इतना बढ़ चुका था। कि अंतिम प्रेग्नेंट हो गई थी। पर इतनी जल्दी एक रिश्ते में, जो अभी तक समाज द्वारा मान्य नहीं था। उसमें एक नई जिंदगी को लेकर आना जल्दबाजी होगी। इसलिए दोनों ने सहमति से अबॉर्शन का रास्ता चुन लिया था। इस अबॉर्शन के बाद अंतिम को उम्मीद थी। कि सुधीर अपने घर पर शादी की बात करेगा, लेकिन वो ऐसा चाहते हुए भी नहीं कर पाया। जिसका कारण था। सुधीर की अपनी व्यक्तिगत परेशानी; सुधीर के माँ-बाप जब वो चार साल का था। तभी उसे छोड़ कर दुनिया से चले गए थे। उसे बचपन से लेकर अबतक मुकुल के माँ- बाप, जो रिश्ते में उसके चाचा-चाची लगते थे। उन्होंने पाला था। इसलिए, वो उन्हें नाराज़ करके अंतिम से शादी नहीं कर सकता था। क्योंकि, उसके पालनहार माता-पिता के अनुसार अंतिम एक एसटी जाति की लड़की थी। और सुधीर ओबीसी के अंदर की किसी जाति का, जिनका एक होना संभव नहीं था। लेकिन जब, सुधीर की शादी के लिए कभी हाँ और कभी ना के बीच अंतिम एक बार फिर प्रेग्नेंट हुई। और नतीजे के तौर पर रास्ता फिर राम मनोहर लोहिया हॉस्पिटल के अबॉर्शन रूम का चूना गया। तो इस बार अबॉर्शन की परिणति के रूप में दोनों का थोड़े बहुत झगड़े के साथ, बिना किसी झंझट के ब्रेकअप हो गया था। अलग होने के दो महीने बाद अंतिम की शादी हो गई और सुधीर का रिश्ता


इस सेन्टर में हर किसी को हर किसी की सारी बातें पता थी। बस सब, सबकुछ जानकर अंजान होने का दिखावा करते थे। मैं नाराज़ इस बात पर नहीं हुआ था। कि अंतिम ने मुझसे सुधीर की बातें छुपाई थी। बल्कि गुस्सा मुझे इस बात पर था कि वो सुधीर के पास बैठकर मेरे बारे में चर्चा कर रही थी। कि लड़का कैसा हैं। ये ठीक तो हैं। सही रहेगा मेरे लिए, और ये बातें मुझे मुकुल ने बताई थी। कि अंतिम तेरे बारे में बड़ी जानकारी ले रही हैं। आजकल आखिर, चल क्या रहा हैं? तुम दोनों के बीच